Tuesday, July 16, 2013

हमारी फिल्म का दायरा बढ़ गया है




पिछले दिनों जब किरण राव ने आनंद गांधी की फिल्म 'शिप ऑफ थिशियस' की स्पेशल स्क्रीनिंग रखी,तो निर्देशकों और अभिनेताओं ने अनुमान नहीं किया था कि 'शिप ऑफ थिशियस' देखने के दौरान उन्हें अद्भूत सिनेमाई अनुभव होगा। करण जौहर और अयान मुख़र्जी जैसे हिंदी फिल्मों के कई दिग्गज निर्माता-निर्देशक 'शिप ऑफ थिशियस' देखने के बाद अपनी रचनात्मक अभिव्यक्ति को बौना समझने लगें। दरअसल,आनंद गांधी  निर्देशित 'शिप ऑफ थिशियस' कई देसी-विदेशी फिल्म फेस्टिवल में पुरस्कृत और प्रशंसित हो चुकी है। किरण राव ने फिल्म से प्रभावित होकर 'शिप ऑफ थिशियस' के  सिनेमाघरों में  व्यापक प्रदर्शन की योजना बनायी है। जुलाई के तीसरे सप्ताह में हिंदी सिनेमा प्रेमियों के लिए  सिनेमाघरों में दस्तक दे रही' शिप ऑफ थिशियस'के निर्देशक आनंद गांधी की बातें उन्हीं के शब्दों में ...


समाज से संवाद
फिल्म सामाजिक माध्यम है। यह ऐसा माध्यम है जिसके जरिये फिल्म मेंकर समाज से संवाद स्थापित करता है। जब उस संवाद में आपसे कहा जाता है कि  जो बातें आपने  फिल्म में कही है वह मेरे जीवन का हिस्सा बन गयी है ....तो बहुत ही अच्छा लगता है। 'शिप ऑफ थिशियस' को अब तक मिली सकारात्मक प्रतिक्रिया से बहुत हौसला बढ़ा  है।मेरा पहला  प्रयास सफल रहा और अब लगता है कि ऐसे और भी प्रयास करने चाहिए।

किरण का जुड़ना 
किरण के जुड़ने के बाद बहुत लाभ मिला है हमारी फिल्म को। शिप ऑफ थिशियस'  को मिले किरण के प्यार का ही नतीजा है कि यह बड़े पैमाने पर सिनेमाघरों में प्रदर्शित हो रही है। अब हमारी फिल्म का दायरा कई गुना बढ़ गया है।

विचारों, दुविधाओं और अनुभवों के धागों से बंधी तीन यात्राएं 
फिल्मे में तीन कहानियाँ चलती हैं। पहली जो कहानी है वह एक ब्लाइंड फोटोग्राफर के बारे में है। दर्शक देख पाएंगे कि आँखों के बिना किस प्रकार से वह तस्वीरे खींचती है? दूसरी कहानी एक साधु की है जो बड़े विद्वान् हैं।शहर में रहकर उन्होंने पशु-हिंसा के खिलाफ लड़ियाँ लड़ी हैं। ..मगर  उनको जो दवाईंयां  दी गयी है उसमें पशु अंश है जिस कारन उनके सामने बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह है कि वे मृत्यु को अपना ले या अपने विचारों को छोड़ कर  दवाइयां ले ले। तीसरी कहानी एक शेयर ब्रोकर की है जिसकी जिन्दगी  बहुत ही सीमित रही है,पर उनकी जिंदगी को बड़ा दायरा मिलता है जब एक किडनी स्मगलिंग रैकेट का राज उनके सामने खुलता है।अपनी चुराई हुई किडनी की खोज में वे स्वीडेन चले जाते हैं जहाँ पर उनको अपनी चुराई गयी किडनी मिल गयी है। ...तो  ये तीन यात्राएं हैं हमारी फिल्म में। विचारों, दुविधाओं और अनुभवों के धागों से  ये तीन यात्राएं बंधी हुई हैं।


जीवन के पहलू 
मुझे लगता है कि एक बहुत बड़ा दर्शक वर्ग है जो इस प्रकार के सिनेमा के लिए बिलकुल तैयार है। इस प्रकार के सिनेमा की प्यास है बहुत लोगों को।ऐसे दर्शक है जिनको अबतक नहीं पता है कि ऐसा सिनेमा भी है जिसे देखने के बाद उनके जीवन के कुछ पहलू खुल जायेंगे।हम वैसे ही दर्शकों तक पहुँचने का प्रयास कर रहे हैं।




सिनेमा के माध्यम का समुचित प्रयोग नहीं 
'शिप ऑफ थिशियस' की मेकिंग के दौरान बहुत ही खूबसूरत चैलेंज थे।चैलेंज था क्योंकि इस जैसे उदहारण कम थे। ऐसी फ़िल्में कम हैं जिसमें  जीवन के जटिल अहसासों और प्रश्नों को खोजने की कोशिश की गयी है। सिनेमा संभावनाओं वाला माध्यम है। मुझे लगता है सिनेमा के माध्यम का समुचित प्रयोग नहीं किया गया है। सिनेमा अनुभवों और अनुभूतियों से आगे अन्वेषण का भी विषय हो सकता है। हम चाहते थे कि  अपनी फिल्म में दर्शन और विज्ञान के  सम्मिलन से बनी कहानी पेश करें जो जीवन के मूल्यों को दर्शकों के सामने लेकर आये । हमारे बचपन की कहानी तो भी ऐसी ही होती थी फिर वह विक्रम-बेताल की कहानी हो या पंचतंत्र की कहानी हो ...।
-सौम्या अपराजिता 

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