tag:blogger.com,1999:blog-6949899691225482182024-03-13T23:09:56.275+05:30Soumya Vachan (सौम्य वचन)मनोरंजन जगत से जुडी सहज,सरल एवं सौम्य अभिव्यक्ति...Somya Aparajitahttp://www.blogger.com/profile/14438976490936719303noreply@blogger.comBlogger231125tag:blogger.com,1999:blog-694989969122548218.post-46883230829786185852017-02-27T13:26:00.003+05:302017-02-27T13:26:41.266+05:30फिर आ रहा है 'बाहुबली'<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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-सौम्या अपराजिता</div>
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<a href="https://1.bp.blogspot.com/-tgsFa2rgzqU/WLPbg8i5sFI/AAAAAAAAMlk/kNDQ0EMYbE0R5YQDxLk2DDbgoL-SsSlUwCLcB/s1600/IMG_20170227_094207.JPG" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="400" src="https://1.bp.blogspot.com/-tgsFa2rgzqU/WLPbg8i5sFI/AAAAAAAAMlk/kNDQ0EMYbE0R5YQDxLk2DDbgoL-SsSlUwCLcB/s400/IMG_20170227_094207.JPG" width="340" /></a></div>
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एक बार फिर 'बाहुबली' अपनी भव्यता और तकनीकी उत्कृष्टता के साथ दर्शकों को रिझाने आ रहा है। इस बार 'बाहुबली' पहले से ज्यादा शानदार है। तकनीक ने उसे और भी प्रभावशाली बना दिया है। यहां बात हो रही है एस राजामौली की बहुचर्चित और बहुप्रतीक्षित फ़िल्म 'बाहुबली:द कंक्लूजन' अर्थात 'बाहुबली 2' की। पिछले दो वर्षों से बेसब्री से इंतज़ार कर रहे दर्शकों को 'बाहुबली 2' के प्रदर्शन के बाद पता चल जाएगा कि आखिर कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा? दरअसल, दो वर्ष पूर्व प्रदर्शित हुई 'बाहुबली' के बाद इस सवाल के प्रति दर्शकों को जिज्ञासा ने ही एस राजामौली को 'बाहुबली' के सीक्वल को बनाने की प्रेरणा दी। परिणामस्वरूप 'बाहुबली 2' के निर्माण की योजना बनी और अब दो वर्ष के अथक परिश्रम और बड़े पूँजी निवेश के बाद 'बाहुबली 2' प्रदर्शन के लिए तैयार है।</div>
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रिलीज से पहले हिट<br /> उल्लेखनीय है कि एस एस राजामौली की 'बाहुबली 2' ने प्रदर्शन से पूर्व ही सेटेलाइट राइट के जरिए 500 करोड़ का कारोबार कर लिया है। चार भाषाओं तेलुगु, तमिल, मलयालम और हिंदी में एकसाथ प्रदर्शित हो रही 'बाहुबली 2' के विषय में एक और उल्लेखनीय तथ्य है कि करण जौहर की धर्मा प्रोडक्शन ने इसके हिंदी संस्करण के अधिकार को 120 करोड़ रुपये में खरीदा है। गौरतलब है कि 'बाहुबली' हिंदी में डब की गई दक्षिण भारत की पहली ऐसी फिल्म थी जिसने बॉक्स ऑफिस पर 100 करोड़ का व्यवसाय किया था।</div>
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भव्य और शानदार<br /> ज्ञात तथ्य है कि 'कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा?' सवाल के जवाब के कारण 'बाहुबली 2' इस वर्ष की सर्वाधिक बहुप्रतीक्षित फिल्मों में शामिल है। फ़िल्म के प्रति दर्शकों की इसी उत्सुकता को ध्यान में रखते हुए इसे और भी भव्य और तकनीकी रूप से समृद्ध बनाने की कोशिश की गयी है। फ़िल्म के विजुअल इफ़ेक्ट को दमदार और विश्वसनीय बनाने के लिए पूरी ताकत और मेहनत झोंक दी गयी है। 'बाहुबली 2' के विज़ुअल इफ़ेक्ट्स सुपरवाइज़र आरसी कमलाकन्नन के अनुसार,' यह बेहद मुश्किल काम है, लेकिन इससे बहुत संतुष्टि भी मिलती है।'बाहुबली 2' के विज़ुअल इफ़ेक्ट्स का काम हाथ में लिए तक़रीबन 15 महीने हो चुके हैं। लगभग सभी बड़े वीएफ़एक्स स्टूडियो में काम चल रहा है। पोस्ट प्रोडक्शन का काम दुनियाभर के 33 स्टूडियो में चल रहा है।' जहां तक 'बाहुबली 2' के बजट का सवाल है,तो वह भी बेहद उल्लेखनीय है। निर्माता शोबु यरलगड्डा के अनुसार,' बजट का बड़ा हिस्सा इसकी मेकिंग पर खर्च हुआ है। मुझे ख़ुशी है कि पैसा फ़िजूल नहीं गया। 'बाहुबली' की दोनों फ्रेंचाइजी पर लगभग 450 करोड़ का खर्च आया है। कई लोगों ने सोचा कि इतना पैसा खर्च करना बेवकूफ़ी है। मेरे ज़हन में भी ये बात आती थी कि क्या मैं सही काम कर रहा हूं? और सच कहूं तो 'बाहुबली' की रिलीज़ से पहले तक मुझे भी अंदाज़ा नहीं था कि इस तरह के रिटर्न्स मिलेंगे।'</div>
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सृजन और तकनीक का तालमेल<br /> 'बाहुबली' के बाद 'बाहुबली 2' के कला निर्देशन की भी जिम्मेदारी संभाली है साबू सायरिल ने। 'बाहुबली 2' के लिए उन्होंने अपनी सृजनशीलता को नया और वृहत आयाम दिया है। वे बताते हैं,'बाहुबली' एक बड़ा प्रोजेक्ट था। जब यह प्रोजेक्ट सफल हो गया तो हमें पार्ट 2 में और भी चीजें करने की हिम्मत आ गई। इसलिए पार्ट 2 के लिए मुझे बड़ा बजट और मैटेरियल मिला। बाहुबली के लिए नया साम्राज्य बनाया गया। हालांकि, मैं इसके बारे में ज्यादा जानाकारी शेयर नहीं कर सकता। इन सबके लिए मुझे बहुत ज्यादा रिसर्च करनी पड़ी। अधिकांश लोगों का सोचना था कि 'बाहुबली' में कंप्यूटर ग्राफिक्स का इस्तेमाल किया गया था, लेकिन ऐसा है नहीं। उदाहरण के तौर पर जब घोड़ा युद्ध में गिरता है तो वह असली नहीं होता। ना ही कंप्यूटर ग्राफिक्स होता है। हम उन घोड़ों को बनाते हैं ताकि उन्हें असली जानवर को बिना नुकसान पहुंचाए हम उन्हें दिखा सकें। हम लोग रियल लुकिंग ह्यूम डमी बनाते हैं जिन्हें युद्ध में गिरते हुए और ऊंचाई से फेंकते हुए देखा जा सकता है। हमने 'बाहुबली-2' के लिए ऐसे हथियार भी बनाए हैं जो कलाकार को नुकसान पहुंचाए बिना असली दिखें।'</div>
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इंटरनेट की सेंध<br /> गौरतलब है कि तमाम मेहनत और सावधानी के बाद भी 'बाहुबली 2' का नौ मिनट लंबा वॉर सीक्वेंस पिछले दिनों इंटरनेट पर लीक हो गया था जिस्कर बाद निर्देशक एसएस राजमौली ने हैदराबाद के जुबली हिल्स पुलिस स्टेशन में इस घटना की शिकायत दर्ज करवाई थे। इस शिकायत के चलते पुलिस ने एक ग्राफिक डिजाइनर को फिल्म की फुटेज चुराने को लेकर गिरफ्तार किया। हालांकि, राजामौली ने रिपोर्ट दर्ज करवाकर सीन को इंटरनेट से हटवा दिया, लेकिन उससे पहले यह फुटेज सोशल मीडिया पर वायरल हो चुकी थी। दरअसल,जब से 'बाहुबली 2' की शूटिंग शुरू हुई है,तब से इस फिल्म के सेट से कुछ-न-कुछ लीक होने की ख़बरें सुर्खियां बनती रही हैं। हालांकि... 'बाहुबली 2' की पटकथा की गोपनीयता के मद्देनजर सेट पर मोबाइल फोन तक बैन कर दिए थे।</div>
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कसौटी पर कलाकार<br /> 'बाहुबली' में राजा भल्लादेव के किरदार में राणा डुग्गुबाती ने प्रभावी अभिनय किया था। 'बाहुबली 2' में उनका किरदार और भी दमदार होने वाला है। फ़िल्म में अपने किरदार को और असरदार बनाने के लिए राणा ने करीब 5 महीने रोज ढाई घंटे अपनी बॉडी पर मेहनत किया है,वहीँ बाहुबली की केंद्रीय भूमिका निभाने वाले अभिनेता प्रभास भी काफी उत्साहित हैं। प्रभास इस बार 'बाहुबली 2' में बाहुबली और शिवुडु की दोहरी भूमिका निभा रहे हैं। ये दोनों भूमिकाएं एक दूसरे से एकदम अलग है। इन दोनों भूमिकाओं को निभाने के लिए प्रभास ने बेहद चुनौतियां झेली हैं। शिवुडु के किरदार के लिए प्रभास को सामान्य सा दिखना था जिसमे उन्हें अपने शरीर का वजन 80 से 88 किलो रखना था,बाहुबली के किरदार के लिए करीब अपना वजन 105 किलो रखना था। इन दोनों रुपों के लिए प्रभास ने बेहद मेहनत की,साथ-ही-साथ अलग-अलग डाइट चार्ट फॉलो किया।</div>
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एक और 'बाहुबली'!<br /> रोचक तथ्य है कि 'बाहुबली' अर्थात 'बाहुबली:द बिगनिंग' और 'बाहुबली 2' अर्थात 'बाहुबली:द कंक्लूजन' के बाद एक और संस्करण निर्माण की दिशा में अग्रसर है। इसका संकेत पिछले दिनों एस एस राजामौली ने 'जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल' में दिया। एसएस राजामौली ने लिटलेचर फेस्टिवल में पुस्तक लॉन्च की जिसमें 'बाहुबली बिगिनिंग' से भी पहले की कहानी कही गई है। यह पुस्तक है-'राइज़ ऑफ़ शिवगामी- बाहुबली बिफोर द बिगिनिंग'। गौरतलब है कि 'राइज़ ऑफ़ शिवगामी' बाहुबली सीरीज़ की पहली बुक है जिसमें 'बाहुबली- द बिगिनिंग' से भी पहले की कहानी कही गई है। इस नॉवल में शिवगामी को अपने पिता की हत्या का बदला लेते हुए दिखाया जाएगा। संभव है कि 'बाहुबली 2' की सफलता के बाद इस पुस्तक की कहानी को फ़िल्म में उकेरने की योजना बने और दर्शक एक बार फिर 'बाहुबली' की रोचक कहानी के नए आयाम को सिल्वर स्क्रीन पर देख पाएं। हालांकि..फ़िलहाल 'बाहुबली 2' अर्थात 'बाहुबली: द कंक्लूजन' के प्रदर्शन पर निगाहें टिकी हैं...क्योंकि यह जानना जरुरी है कि...'आखिर कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा?'</div>
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Somya Aparajitahttp://www.blogger.com/profile/14438976490936719303noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-694989969122548218.post-54568894782006234522017-02-27T13:23:00.000+05:302017-02-27T13:23:47.499+05:30कानून के फ़िल्मी हाथ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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-सौम्या अपराजिता</div>
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'कानून के हाथ लंबे होते हैं'...मगर जब हमारी फिल्मों में कानून के इन लंबे हाथों को जज और वकील थामने की कोशिश करते हैं,तो कानूनी दांव-पेंच से भरपूर नाटकीय दृश्यों और संवादों की लड़ी-सी लग जाती है। दरअसल,हिंदी फिल्मों में जज के हथौड़े की धमक और वकीलों की बहस हमेशा से बेहद प्रभावी अंदाज में प्रयोग किये जाते रहे हैं। 'जॉली एल एल बी 2' इसका ताज़ा उदहारण है। फ़िल्म में कोर्ट रूम ड्रामा के रीयलिस्टिक अप्रोच को दर्शक बेहद पसंद कर रहे हैं। साथ ही वकील जगदीश्वर मिश्रा बने अक्षय कुमार के कानूनी दांव पेंच के मनोरंजक अंदाज को भी प्रशंसा मिल रही है। अगर कहें कि सुभाष कपूर निर्देशित इस फ़िल्म की सफलता में हिंदी फिल्मों के लोकप्रिय फार्मूले 'कोर्ट रूम ड्रामा' का का योगदान उल्लेखनीय है,तो गलत नहीं होगा। उल्लेखनीय है कि जब-जब कोर्ट रूम ड्रामा के दृश्यों की प्राथमिकता वाली फ़िल्में सिनेमाघरों में आई हैं,दर्शकों की उस फ़िल्म विशेष के प्रति उत्सुकता बढ़ी है।</div>
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यदि बीते वर्ष की ही बात करें तो दो सफल फ़िल्मों की कहानी 'रुस्तम' और 'पिंक' अदालती तेवर और कानूनी दांव-पेंच के इर्द-गिर्द बुनी गयी थीं। 'रूस्तम' एक ऐसे नौसेना अधिकारी की कहानी थी जिसे खुद को कोर्ट के सामने बेगुनाह पेश करना होता है। ...तो दूसरी तरफ 'पिंक' पूरी तरह कोर्ट ड्रामा पर आधारित थी जिसमें अमिताभ बच्चन ने ऐसे वकील की भूमिका निभायी थी जो झूठे केस में तीन लड़कियों को बचाता है। इन दोनों ही फिल्मों को दर्शकों ने सर-आँखों पर बिठाया। दरअसल,आम दर्शकों में 'कोर्ट','कचहरी' और 'जज के हथौड़े' का प्रकोप इतना है कि वह इनसे दूर ही रहना चाहता है। रियल लाइफ में इनसे दूर रहने की इच्छा ही फिल्मों में इनके प्रति दर्शकों का रुझान बढ़ाती है। दर्शक रियल लाइफ में तो कोर्ट-कचहरी के चक्कर से दूर रहना चाहते हैं,मगर सिल्वर स्क्रीन पर उन्हें यही कोर्ट रूम ड्रामा बेहद पसंद आता है। रुस्तम के निर्देशक टीनू सुरेश के अनुसार,'कोर्ट के अंदर चलने वाली बहस, वकीलों के तर्क, गवाहों की चालाकी और जज की पैनी नज़र दर्शकों में दिलचस्पी पैदा कर देती है। साथ ही,जब कठघरे में ख़ुद हीरो खड़ा होकर अपनी पैरवी कर रहा हो, तो भला कौन उसे हारता देखना चाहेगा?'</div>
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यदि गौर करें तो बीते कुछ वर्षों में कोर्ट रूम ड्रामा वाली फिल्मों ने दर्शकों को खूब रिझाया है जिनमें 'जॉली एलएलबी','शाहिद' और 'ओ माय गॉड' उल्लेखनीय हैं। 'जॉली एलएलबी' में अदालत की गंभीर कार्यवाही को हल्के-फुल्के तरीके से दिखाने की कोशिश की गई,तो 'शाहिद' शाहिद आजमी की जिंदगी पर बनी थी जो देश के खिलाफ साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है। कुछ साल जेल में बिताने के बाद वह बाहर निकलकर कानून की पढ़ाई करता है और उन लोगों की मदद करता है जिनपर आतंकवाद के झूठे आरोप लगे थे। उधर 'ओ माय गॉड' में भगवान को ही अदालत में लाकर खड़ा कर दिया गया था। सबूतों और दलीलों की कसौटी पर कसी इस फ़िल्म ने दर्शकों को अपने मोहपाश में बांध लिया था। एक दशक पूर्व प्रदर्शित हुई 'ऐतराज' के भी अधिकांश दृश्य कोर्ट रूम में फिल्माए गए थे। अक्षय कुमार, करीना कपूर और प्रियंका चोपड़ा अभिनीत इस फ़िल्म में बेबुनियाद आरोपों से पति को बचाने के लिए एक पत्नी का वकील के किरदार में आना दर्शकों को पसंद आया था।</div>
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भारतीय न्याय व्यवस्था से आम नागरिकों की शिकायत को बयां करता 'दामिनी' के लोकप्रिय संवाद 'तारीख़ पे तारीख' को भला कौन भूल सकता है! इस फ़िल्म में क़ानून की सुस्त रफ़्तार और अदालती कार्यवाहियों को लेकर आक्रोश को सही मायनों में सामने रखा गया था। उस दौर में इस फ़िल्म के पूर्व आयी कई फिल्मों की कहानियां कानून और अदालत के इर्द-गिर्द बुनी गयी थीं जिनमें 'मेरी जंग','आज का अंधा क़ानून', 'फ़र्ज़ और क़ानून', 'क़ानून अपना-अपना', 'क़ानून क्या करेगा', 'क़ायदा-क़ानून' और 'कुदरत का क़ानून' जैसी फ़िल्में आयीं जिनमे 'मेरी जंग' सफल रही जबकि शेष फिल्मों को लचर पटकथा के कारण बॉक्स ऑफिस की सफलता से हाथ धोना पड़ा।</div>
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दरअसल,हिंदी फिल्मों में कानूनी दांव-पेंच वाले दृश्यों को बी आर चोपड़ा की फ़िल्म 'कानून' के प्रदर्शन के बाद से प्राथमिकता मिलनी शुरू हुई। इस फ़िल्म के बाद तो जैसे निर्माता-निर्देशकों की नजर में अदालत के दृश्य अवश्यम्भावी से हो गए। उसके बाद तो दर्शकों को हर दूसरी-तीसरी फ़िल्म में अदालत में वकीलों की ज़िरह वाले दृश्यों को देखने की आदत-सी हो गयी। रोचक तथ्य है कि अमिताभ बच्चन और हेमा मालिनी अभिनीत 'अँधा कानून' की सफलता के बाद 'कानून' और 'अदालत' जैसे शब्द फिल्मों के दृश्यों के साथ-साथ उसके शीर्षक में भी शामिल हो गए।</div>
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यदि कहें कि न्याय व्यवस्था के प्रति आम जनता के असंतोष और आक्रोश के चित्रण के कारण ही कोर्ट रूम ड्रामा वाली फ़िल्में दर्शकों को भाती हैं,तो गलत नहीं होगा। 'अदालत' और 'कानून' के दांव-पेंच से संघर्ष करते फ़िल्मी नायक में दर्शक अपनी छवि देखते हैं और जब वही नायक तमाम संघर्षों से दो-चार होता हुआ न्याय की मंजिल पाता है,तो उसकी जीत में दर्शक अपनी जीत महसूस करते हैं। दरअसल,रील लाइफ में 'कानून' का डर ही रियल लाइफ के 'कानूनी दांव-पेंच' की ओर दर्शकों को आकर्षित करता है।</div>
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सिल्वर स्क्रीन पर 'कोर्ट रूम ड्रामा'<br /> *जॉली एलएलबी<br /> *रुस्तम<br /> *पिंक<br /> *शाहिद<br /> *दामिनी<br /> *ऐतराज<br /> *ओ माय गॉड<br /> *कानून<br /> *अंधा कानून</div>
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Somya Aparajitahttp://www.blogger.com/profile/14438976490936719303noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-694989969122548218.post-14154560078099082992017-02-27T13:20:00.000+05:302017-02-27T13:20:06.668+05:30सेट' पर 'दिल मिले'<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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-सौम्या अपराजिता</div>
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फिल्मों और धारावाहिकों की शूटिंग के दौरान अभिनेता-अभिनेत्री प्रत्येक दिन साथ-साथ घंटों बिताते हैं। एक-दूसरे के सुख-दुःख बांटते हैं। धीरे-धीरे उन्हें एक-दूसरे का साथ भाने लगता है।उनके बीच आपसी समझ,सम्मान,स्नेह और विश्वास की भावना पनपने लगती है। ...और इस तरह वे एक-दूसरे के प्रेम पाश में बंधने लगते हैं। जल्द ही वह वक़्त भी आता है जब दिल से मजबूर होकर वे एक-दूसरे को जीवनसाथी बनाने का निर्णय ले लेते हैं। तभी तो,कभी सह-कलाकार रह चुके अभिनेता-अभिनेत्रियों की कई जोड़ियां आज खुशहाल वैवाहिक जीवन बीता रही हैं। एक नजर सिल्वर और स्मॉल स्क्रीन की ऐसी जोड़ियों पर जो पहले सह-कलाकार थे...और आज पति-पत्नी हैं ....</div>
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फिल्मों के सेट पर फूटा 'प्यार का अंकुर'-</div>
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जया बच्चन-अमिताभ बच्चन<br /> जया बच्चन और अमिताभ बच्चन का परिचय ऋषिकेश मुखर्जी ने अपनी फिल्म 'गुड्डी'के सेट पर कराया था। इस मुलाकात के बाद 'ज़ंजीर' के सेट पर दोनों के बीच नजदिकियां बढ़ीं और इसी फिल्म की शूटिंग के दौरान दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया। शालीन और सादे अंदाज में जया संग अमिताभ परिणय सूत्र में बंध गएं।</div>
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नीतू सिंह-ऋषि कपूर<br /> ऋषि कपूर और नीतू सिंह की पहली फिल्म 'जहरीला इंसान' थी। इसी फ़िल्म के सेट पर दोनों दोस्त बने और फिर लंबे प्रेम प्रसंग के बाद पति-पत्नी बन गएं। 'जहरीला इंसान' के सेट पर ऋषि अक्सर नीतू को छेड़ते रहते थे। शुरुआती नाराजगी के बाद धीरे-धीरे नीतू को ऋषि की शरारतें रास आने लगी और दोनों करीब आ गए। 'खेल खेल में' के सेट पर ऋषि-नीतू का रिश्ता दोस्ती से प्यार में बदला और फिर सही समय और मौका देखकर दोनों विवाह बंधन में बंध गए।<br /> हेमा मालिनी-धर्मेन्द्र<br /> हेमा मालिनी और धर्मेन्द्र की मुलाकात 1970 में आई फिल्म 'शराफत' के सेट पर हुई थी। कहा जाता है कि 'मैं हसीन तू जवान' के सेट पर दोनों के बीच प्यार भरे रिश्ते की नींव पड़ी। धर्मेंद्र पहले से शादीशुदा और चार बच्चों के पिता थे। इसके बाद भी धर्मेंद्र ने हेमा मालिनी से शादी कर ली और पिछले 36 वर्षों से दोनों का संग-साथ बना हुआ है।</div>
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करीना कपूर-सैफ अली खान<br /> 'टशन' के सेट पर करीना कपूर और सैफ अली खान एक-दूसरे के प्रेम पाश में बंधे। लद्दाख और राजस्थान में फ़िल्म की शूटिंग के दौरान करीना और सैफ को एक-दूसरे के प्रति प्यार का अहसास हुआ। प्यार के इसी अहसास के बाद दोनों ने शादी का फैसला किया। आज करीना और सैफ अपने नन्हे राजकुमार तैमूर के साथ खुशनुमा वैवाहिक जीवन बीता रहे हैं।</div>
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ट्विंकल खन्ना-अक्षय कुमार<br /> जब अक्षय कुमार और ट्विंकल खन्ना 'इंटरनेशनल खिलाडी' और 'जुल्मी' फिल्मों में अभिनय कर रहे थे तब उन्हें नहीं पता था कि इन फिल्मों का सेट उनके शादीशुदा भविष्य की नींव रखेगा। 'इंटरनेशनल खिलाड़ी' के सेट पर अक्षय और ट्विंकल एक-दूसरे के इतने करीब आ गए कि दोनों ने विवाह बंधन में बंधने का फैसला कर लिया। आज दोनों फ़िल्मी दुनिया के सबसे खुशहाल वैवाहिक जोड़ियों में एक एक हैं।</div>
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ऐश्वर्या राय बच्चन- अभिषेक बच्चन<br /> अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्या राय बच्चन ने 'ढाई अक्षर प्रेम के' और 'कुछ न कहो' के सेट पर दोस्ती का रिश्ता बनाया। 'गुरु' के सेट पर दोनों के बीच प्यार का अंकुर फूटा जो 'उमराव जान' के सेट पर पौधा बन गया। इस पौधे को संवारने और निखारने के लिए दोनों ने शादी का फैसला किया। आज बिटिया आराध्या के साथ वैवाहिक जीवन के खुशनुमा पल जी रहे हैं।</div>
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जेनेलिया-रितेश देशमुख<br /> जेनेलिया देशमुख और रितेश देशमुख ने 'तुझे मेरी कसम' में पहली बार साथ काम किया और इसी फ़िल्म के सेट पर दोनों के बीच मजबूत रिश्ते की शुरुआत हुई। यह रिश्ता कुछ वर्ष बाद विवाह के खूबसूरत मोड़ पर पहुंच गया।</div>
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काजोल-अजय देवगन<br /> अजय देवगन और काजोल की पहली मुलाकात 'हलचल' के सेट पर हुई थी। सेट पर साथ-साथ वक़्त गंवाते हुए दोनों का एक-दूसरे की ओर झुकाव हुआ। उसके बाद लगभग चार वर्षों तक प्रेम सम्बन्ध में बंधने के बाद अजय और काजोल एक सादे समारोह में विवाह बंधन में बंध गए।<br /> ---------------<br /> सीरियल के सेट ने 'बना दी जोड़ी'</div>
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गौतमी गाडगिल-राम कपूर<br /> राम कपूर और गौतमी गाडगिल की मुलाकात बालाजी टेलेफिल्म्स के धारावाहिक 'घर एक मंदिर' के सेट पर हुई थी। दोनों घंटों सेट पर साथ-साथ रहा करते। जल्द ही दोनों के दिल में एक-दूसरे के लिए कोमल भावनाएं पनपने लगीं और बिना वक़्त गवाएं गौतमी और राम ने विवाह बंधन में बंधने का फैसला किया। राम और गौतमी के जीवन में पुत्री सिया और पुत्र अक्स खुशियाँ लेकर आए हैं।</div>
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देबिना-गुरमीत चौधरी<br /> 'रामायण' में आदर्श पति-पत्नी राम-सीता की भूमिका निभाते हुए गुरमीत चौधरी और देबिना को अहसास नहीं था कि एक दिन दोनों निजी जीवन में भी पति-पत्नी की भूमिका निभाएंगे। 'रामायण' की शूटिंग के दौरान चले लम्बे प्रेम प्रसंग के बाद दोनों ने विवाह रचा लिया। </div>
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गौरी प्रधान-हितेन तेजवानी<br /> 'कुटुंब' में हितेन तेजवानी और गौरी प्रधान की ओन स्क्रीन जोड़ी को दर्शकों ने बेहद प्यार दिया। इन दोनों आकर्षक कलाकारों का साथ दर्शकों को बेहद अच्छा लग, तो निजी जीवन में भी हितेन और गौरी एक-दूसरे के करीब आने लगें और दोनों के बीच प्यार की मजबूत डोर बंध गयी। जल्द ही हितेन और गौरी ने विवाह का निर्णय लिया। दोनों के जीवन में जुड़वाँ बच्चे उपहार बनकर आये।</div>
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गौरी यादव-यश टोंक<br /> 'कहीं किसी रोज' में अभिनय के दौरान यश टोंक और गौरी यादव की मुलाकात हुई थी। हालांकि,उस धारावाहिक में गौरी ने यश की भाभी की भूमिका निभायी थी,पर शूटिंग के दौरान दोनों को साथ वक़्त गुजारने के मौके मिलते रहे और उनकी प्रेम कहानी शुरू हो गयी। यश और गौरी इनदिनों अपनी दो बेटियों के साथ खुशहाल वैवाहिक जीवन बीता रहे हैं।</div>
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बरखा बिष्ट-इन्द्रनील सेनगुप्ता<br /> धारावाहिक 'प्यार के दो नाम ..एक राधा और एक श्याम' के सेट पर इन्द्रनील सेनगुप्ता और बरखा बिष्ट एक-दूसरे के साथ काम तो कर रहे थे,पर उन्हें एक-दूसरे के प्रति प्यार का अहसास नहीं था। दोनों एक-दूसरे को लेकर पूर्वाग्रह से ग्रसित थे। ...पर जब धारावाहिक ख़त्म होने लगा तब बरखा और इन्द्रनील को एक-दूसरे की कमी का अहसास होने लगा। दोनों ने आपसी प्यार को महसूस किया। दो वर्ष लबे प्रेम सम्बन्ध के बाद इन्द्रनील और बरखा ने विवाह बंधन में बंधने का फैसला किया। आजकल दोनों अपनी दो वर्षीय बेटी मीरा के साथ ख़ुशी के पल बीता रहे हैं।</div>
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सईं देवधर-शक्ति आनंद<br /> 'सारा आकाश' की शूटिंग के दौरान सईं देवधर और शक्ति आनंद को एक-दूसरे का साथ अच्छा लगने लगा। लगभग दो वर्षों तक साथ काम करने के बाद दोनों ने महसूस किया कि उन्हें शादी कर लेनी चाहिए। जल्द ही शक्ति और सईं ने विवाह रचा लिया।</div>
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श्वेता क्वात्रा-मानव गोहिल<br /> 'कहानी घर घर की' शूटिंग के दौरान श्वेता और मानव के बीच की नींव पड़ी जो बाद में विवाह के परिणाम तक पहुंची। गौरतलब है कि इन दिनों श्वेता और मानव अपनी नन्हीं परी जारा के साथ सुखी वैवाहिक जीवन बीता रहे हैं।</div>
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सनाया ईरानी-मोहित सहगल<br /> धारावाहिक 'मिले जब हम तुम' की शूटिंग के दौरान सनाया ईरानी और मोहित सहगल एक-दूसरे के संपर्क में आए। दोनों पहले पहले मित्र,फिर हमराज और अब पति-पत्नी बन गए।</div>
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रिद्धि डोंगरा-राकेश<br /> राकेश वशिष्ठ और रिद्धि डोंगरा के बीच प्यार का अंकुर धारावाहिक 'मर्यादा' की शूटिंग के दौरान फूटा। राकेश को रिद्धि की सादगी पसंद आई,तो रिद्धि को राकेश का अपनापन भा गया। 'मर्यादा' में विवाहित जोड़े की भूमिका निभाने के दौरान राकेश और रिद्धि को अहसास हुआ कि निजी जीवन में भी उन्हें विवाह रचा लेना चाहिए। दोनों ने जल्द ही अपने दिल की बात सुनी और 'मर्यादा' की शूटिंग से कुछ समय का ब्रेक लेकर विवाह कर लिया।</div>
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बॉक्स के लिए-</div>
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और भी विवाहित जोड़े हैं जिनकी प्रेम कहानी 'फिल्मों के सेट' से शुरू हुई-</div>
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*दिलीप कुमार-सायरा बानो<br /> *सुनील दत्त-नरगिस<br /> *देव आनंद-कल्पना कार्तिक<br /> *रणधीर कपूर-बबीता<br /> *कुणाल केमु-सोहा अली खान<br /> *बिपाशा बसु-करण सिंह ग्रोवर</div>
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और भी विवाहित जोड़े हैं जिनकी प्रेम कहानी 'सीरियल के सेट' से शुरू हुई-</div>
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*दिव्यांका त्रिपाठी-विवेक दाहिया<br /> *रवि दुबे-शरगुन मेहता<br /> *किरण कर्माकार-रिंकू धवन<br /> *गुरदीप कोहली-अर्जुन पुंज<br /> *संजीव सेठ-लता सबरवाल<br /> *मजहर सैयद-मौली गांगुली<br /> *आदित्य रेडिज-नताशा शर्मा<br /> *मोहित मालिक-अदिति मालिक<br /> </div>
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Somya Aparajitahttp://www.blogger.com/profile/14438976490936719303noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-694989969122548218.post-26848044559331035312017-02-04T09:49:00.003+05:302017-02-04T09:49:41.437+05:30रचनात्मक स्वतंत्रता पर पहरा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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-सौम्या अपराजिता<br /> </div>
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<a href="https://3.bp.blogspot.com/-9H5GKiw6Myc/WJVWJlG2EhI/AAAAAAAAMlQ/DvHxOSbPwpYt-CPrOdxW7K3z5V3uscv-wCLcB/s1600/IMG_20170204_094442.JPG" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="400" src="https://3.bp.blogspot.com/-9H5GKiw6Myc/WJVWJlG2EhI/AAAAAAAAMlQ/DvHxOSbPwpYt-CPrOdxW7K3z5V3uscv-wCLcB/s400/IMG_20170204_094442.JPG" width="351" /></a></div>
फ़िल्में रचनात्मक अभिव्यक्ति का भव्य और आकर्षक माध्यम है...,मगर कई बार फ़िल्मकार को रचनाशीलता के लिए मुसीबत भी झेलनी पड़ती है। दरअसल,फ़िल्मकार जब फिल्मों के लिए कहानियां ढूंढते हैं,तो अक्सर उनकी नजर गौरवशाली इतिहास पर पड़ती है और वे इतिहास के पन्नों में दर्ज कई ऐसी कहानी निकाल लेते हैं...जो रोचक और रोमांचक होती है।...मगर जब फिल्मकार ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की कहानी को कहने के लिए रचनात्मक स्वतंत्रता लेते हैं,तो अक्सर उनका सामना विरोध से होता है। हाल ही में संजय लीला भंसाली को 'पद्मावती' की शूटिंग के दौरान भी ऐसे ही विरोध से दो-चार होना पड़ा।<br />
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जयपुर में 'पद्मावती' की शूटिंग के समय राजपूत समुदाय के एक संगठन के लोगों ने संजय लीला भंसाली के साथ अभद्रता की और जयगढ़ किले में फिल्म के सेट पर तोड़फोड़ करके शूटिंग भी रोक दी। इन लोगों का आरोप था कि भंसाली अपनी फिल्म में अलाउद्दीन खिलजी और रानी पद्मावती के बारे में तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश कर रहे हैं। दरअसल,इससे पहले भी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर बनी फिल्मों को विवादों का सामना करना पड़ा है।</div>
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'बाजीराव मस्तानी' की शूटिंग के समय भी संजय लीला भंसाली को विरोध का सामना करना पड़ा था। परिणामस्वरूप 'बाजीराव मस्तानी' के रिलीज के समय पुणे में जमकर विरोध हुआ था। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस को लिखे एक पत्र में पेशवा के वंशज प्रसादराव पेशवा ने सरकार से इस मामले में दखल देने की मांग की थी। उन्होंने आरोप लगाया था- 'यह पाया गया है कि रचनात्मक स्वतंत्रता के नाम पर इस फिल्म में मूल इतिहास को उलटा गया है। साथ ही, एक गीत को बाजीराव पेशवा प्रथम की दो पत्नियों काशीबाई और मस्तानी पर फिल्माया गया है। यह घटना ऐतिहासिक तथ्यों से मेल नहीं खाती।' आशुतोष गवोरिकर की फिल्म 'जोधा अकबर' का भी राजस्थान में जबरदस्त विरोध हुआ था।<br /> राजपूत संगठनों का कहना था कि फ़िल्म में प्रस्तुति इतिहास में वर्णित तथ्यों के ख़िलाफ़ है। जबकि फ़िल्म के निर्माता-निर्देशक आशुतोष गोवारीकर कह चुके थे कि फ़िल्म में काल्पनिकता का पुट है और यह कोई ऐतिहासिक दस्तावेज़ नहीं है। फिर भी...राजपूतों की करणी सेना ने फ़िल्म के विरोध में बाक़ायदा प्रदर्शन किया था और चेतावनी दी थी कि अगर इसे सिनेमाघरों में रिलीज़ किया गया तो गंभीर नतीजे होंगे।</div>
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ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की फ़िल्में ही नहीं,बल्कि दूसरे विषय और कथ्य की फिल्में भी विरोध का शिकार हुई हैं और हो रही हैं। मथुरा में अक्षय कुमार की 'टॉयलेट एक प्रेम कथा' की शूटिंग के दौरान भी जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ा। फिल्म के कथानक को लेकर विरोध उपजा। दरअसल, नंदगांव-बरसाना के बीच फिल्म में वैवाहिक संबंधों को दर्शाने पर क्षेत्र के लोगों को ऐतराज था। वहां के लोगों के अनुसार, नंदगांव के लड़के और बरसाना की लड़की के बीच विवाह सनातन धर्म की परंपराओं और मर्यादाओं के विपरीत है। फिल्म का शीर्षक भी ब्रज संस्कृति के अनुरूप नहीं है। गौरतलब है कि विरोध में पंचायत द्वारा फ़िल्म के निर्देशक की जीभ काटने और अभिनेता अक्षय कुमार को पीटने का आदेश भी जारी किया गया।</div>
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एक और फ़िल्म है-'गैंग ऑफ़ वासेपुर 3' जिसे लेकर विरोध का स्वर मुखर हो चुका है। अभी इस फ़िल्म की शूटिंग भी शुरू नहीं हुई है,मगर विरोध शुरू हो चुका है। झारखंड के वासेपुर के निवासी इस आने वाली फिल्म के खिलाफ है। जिसकी वजह है उनके इलाके की बदनामी। उन्हें लगता है कि इस शहर की सकारात्मक बाते पहली दो कड़ियों में नहीं दिखाई गयी है। इससे उनका इलाका बदनाम हुआ हैं।</div>
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दरअसल,फिल्मों के कथ्य से अपात्ति हो सकती है,मगर उसे लेकर हिंसात्मक विरोध का कोई आधार नहीं है। जयपुर में 'पद्मावती' की शूटिंग के समय संजय लीला भंसाली के साथ हुआ दुर्व्यवहार निश्चित रूप से निंदनीय है। कलात्मक अभिव्यक्ति पर ऐसे आघात के प्रति ठोस कदम उठाने चाहिए। यह नहीं भूलना चाहिए कि जब इतिहास के मशहूर पात्रों को फ़िल्मकार अपनी रचनाशीलता से गढ़ते हैं,तभी 'मुग़ले आज़म','जोधा अकबर' और 'बाजीराव मस्तानी' जैसी यादगार और शानदार फ़िल्में अस्तित्व में आती हैं।</div>
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Somya Aparajitahttp://www.blogger.com/profile/14438976490936719303noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-694989969122548218.post-49334457425098158762017-02-03T18:47:00.002+05:302017-02-03T18:47:39.281+05:30बायोग्राफी की बेबाक बातें<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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-सौम्या अपराजिता<br /> </div>
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<a href="https://4.bp.blogspot.com/-VPgOLxowYH0/WJSCwcZosmI/AAAAAAAAMlA/wGDayp3bPVkLdqjscSsSKG1WKk893hMvQCLcB/s1600/IMG_20170203_184530.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="400" src="https://4.bp.blogspot.com/-VPgOLxowYH0/WJSCwcZosmI/AAAAAAAAMlA/wGDayp3bPVkLdqjscSsSKG1WKk893hMvQCLcB/s400/IMG_20170203_184530.jpg" width="360" /></a></div>
हमारी फिल्मों की ही तरह फ़िल्मी शख्सियत की बायोग्राफी भी मसालेदार होती है। दोस्ती-दुश्मनी के कई राज खोलने वाली बायोग्राफी में रहस्य और रोमांच का सारा सामान मौजूद रहता है। पिछले दिनों ऐसी ही दो नयी बायोग्राफी बाज़ार में आई है जिसमें एक करण जौहर और दूसरी ऋषि कपूर की है। फिल्मों में रची-बसी इन दोनों ही लोकप्रिय और रोचक शख्सियतों की बायोग्राफी ने फिल्मों की चमकीली दुनिया के कई राज खोले हैं।<br />
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करण जौहर की फिल्मों की ही तरह उनकी बायोग्राफी भी इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है। काजोल से उनकी दोस्ती की टूटने की वजह के जिक्र ने करण की बायोग्राफी 'द अनसूटेबल ब्वॉय' को 'टॉक ऑफ़ द टाउन' बना दिया है। करण ने पुस्तक में लिखा है,' काजोल से कोई रिश्ता अब नहीं रह गया है। हमारे बीच में कई गलतफहमी हुई थीं। मुझे तो बहुत ही बुरा लगा था । मैं उस बारे में बात भी नहीं करना चाहूंगा। इसकी वजह है कि यह मेरे और काजोल के लिए सही भी नहीं रहेगा। हम करीब 20 साल बाद बातचीत नहीं करेंगे। हम अब एक दूसरे को देखकर बस हेलो कहते हैं और आगे बढ़ जाते हैं।' काजोल के साथ विवाद के अतिरिक्त करण ने अपने निजी रिश्तों और प्रेम संबंधों को लेकर भी कई खुलासे किए हैं। इस चर्चित पुस्तक में करण ने अपने वात्सल्य प्रेम का भी जिक्र किया है और लिखा है,' मेरी एक ख्वाहिश है कि वे जीवन शादी करें या न करें लेकिन मुझे एक बच्चा जरूर होगा। मेरे अंदर एक अच्छी मां के सारे गुण विद्यमान है और मैं बच्चों की देखभाल को लेकर बहुत एक्टिव हूं।'</div>
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करण जौहर की बायोग्राफी के साथ-साथ ऋषि कपूर की बायोग्राफी भी खूब सुर्खियां बटोर रही है। दरअसल,ऋषि कपूर ने अपनी बायोग्राफी 'खुल्लम-खुल्ला- ऋषि कपूर अनसेंसर्ड' में कई चौंकाने वाले खुलासे किये हैं जिसमे से सबसे चकित करने वाला वाकया है -दाऊद इब्राहिम के साथ चाय पीने का जिक्र। रोचक शीर्षक वाली अपनी बायोग्राफी में ऋषि ने 'कर्ज' के असफल होने से उन्हें हुए डिप्रेशन का भी खुलासा किया है। उन्होंने लिखा है, 'कर्ज' से उन्हें बहुत उम्मीदें थी।मुझे लगा था कि 'कर्ज' से मेरा करियर बुलंदी छूने लगेगा।इसमें बेहतरीन संगीत और कलाकार थे।लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ,तो मैं गहरे डिप्रेशन में चला गया। मैं कैमरे के सामने जाने से भी डरने लगा था।'</div>
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इससे पहले पत्नी नंदिता पुरी द्वारा लिखी गयी ओमपुरी की बायोग्राफी ने भी काफी बवाल मचाया था। दरअसल,'ओमपुरी-अनलाइकली हीरो' के अवलोकन के पूर्व ऐसी चर्चा थी कि इसमें ओमपुरी के कई महिलाओं के साथ शारीरिक संबंध का जिक्र है जिसे लेकर ओमपुरी नाराज थे और उन्होंने नंदिता को बुरा-भला कहते हुए यह धमकी तक दे डाली थी कि वह किसी भी कीमत पर इस किताब को छपने नहीं देंगे। जैसे-जैसे समय बीता यह बात साफ हो गई कि यह प्रचार पाने के लिए की गई सोची-समझी रणनीति थी। जब पुस्तक छपकर सामने आई तो सारी बातें साफ हो गई थीं।नंदिता पुरी ने इस किताब में अपने पति के जीवन के उन पहलुओं को सामने लाने की कोशिश की है जो अब तक आम लोगों के सामने नहीं आ पाए थे।</div>
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चिरयुवा और सदाबहार रेखा की बायोग्राफी 'रेखा: द अनटोल्ड स्टोरी' भी अपने कथ्य के कारण पाठकों की जिज्ञासा का विषय बनी हुई है। इस पुस्तक में रेखा के जीवन के कई राज़ खोले गए हैं। हालांकि, इसके पहले भी रेखा को लेकर कई बातें कही जा चुकी हैं,लेकिन कम ही लोग जानते होंगे कि रेखा के जन्म तक उनके माता-पिता ने शादी नहीं की थी। इसके साथ ही बगैर शादी के सिंदूर और शूटिंग के सेट पर रेखा को किए गए चुम्बन सहित कई अन्य चौकाने वाले किस्सों का जिक्र है। शत्रुघ्न सिन्हा ने भी बायोग्राफी 'एनीथिंग बट खामोश' में कई रोचक तथ्यों से परिचित कराया है। उन्होंने बताया है कि अमिताभ बच्चन उनकी शोहरत से परेशान थे। अमिताभ अपनी कुछ फिल्मों में उन्हें नहीं देखना चाहते थे। जीनत अमान और रेखा की वजह से उनके और अमिताभ बच्चन के बीच दरार बढ़ी। दरअसल,रेखा और शत्रुघ्न सिन्हा की बायोग्राफी में अमिताभ बच्चन से जुड़े वाकयों का उल्लेख रोचक बनाता है।</div>
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हिंदी फिल्मों के अभिनय सम्राट दिलीप कुमार और सदाबहार देव आनंद के जीवन के अनछुए पहलू भी पुस्तक में उकेरे गए हैं। जहां<br /> दिलीप कुमार के जीवन की बानगी को 'सब्सटेंस एंड द शैडो' में लेखक उदय तारा नायर ने दिलीप कुमार से बातचीत और इंटरव्यू के आधार पर लिखा है...वहीँ देव आनंद ने स्वयं ही ऑटो बायोग्राफी ' रोमांसिंग विद लाइफ-एन ऑटोबायोग्राफी' लिखी। 'रोमांसिंग विद लाइफ-एन ऑटोबायोग्राफी' के बहाने पाठक देव आनंद की रूमानी छवि और उनकी फिल्मी जिंदगी की चाशनी में डूब जाते हैं। रोचक तथ्य है कि पुस्तक में देव आनंद ने फिल्मी हस्तियों के अलावा राजनीतिक हस्तियों का भी जिक्र किया है। खास तौर से इंदिरा गांधी और उनके पुत्र संजय गांधी का। इंदिरा गांधी के बार में देव आनंद ने लिखा है कि वह बहुत ही कम बोलती थीं, जिसकी वजह से उनके विरोधी इंदिरा गांधी को गूंगी गुड़िया कहते थे।</div>
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लोकप्रिय और सफल कलाकारों की बायोग्राफी के बीच 'आशिकी' की गुमशुदा अभिनेत्री अनु अग्रवाल की बायोग्राफी का जिक्र भी उल्लेखनीय है। अनु ने अपनी आत्मकथा 'अनयूजवल: मेमोइर ऑफ़ ए गर्ल हू केम बैक फ्रॉम डेड' में अपने उथल-पुथल भरे जीवन की मार्मिक मगर रोचक कहानी बयां की है। अनु के अनुसार,'यह उस लड़की की कहानी है जिसकी ज़िंदगी कई टुकड़ों में बंट गई थी और बाद में उसने खुद ही उन टुकड़ों को एक कहानी की तरह जोड़ा है।'</div>
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दरअसल,फ़िल्मी सितारों के निजी जीवन से जुड़ी जिज्ञासा इन बायोग्राफी के प्रति पाठकों की उत्सुकता बढ़ाती है। साथ ही,फ़िल्मी कलाकारों के जीवन में रिश्तों के बनते-बिगड़ते समीकरण का उल्लेख भी बायोग्राफी को लोकप्रिय बनाता है। उम्मीद है फिल्मों से जुड़े और भी कलाकार अपने रोचक जीवन की बानगी पुस्तक में पेश करते रहेंगे। हालांकि... यदि उनमे मसालेदार घटनाओं के मुकाबले प्रेरक प्रसंगों को प्राथमिकता मिले,तो और भी अच्छा होगा।</div>
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फ़िल्मी शख्सियतों की प्रकाशित उल्लेखनीय बायोग्राफी-</div>
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*देव आनंद-'रोमांसिंग विद लाइफ'<br /> *दिलीप कुमार-'द सब्सटैंस एंड द शैडो'<br /> *प्रेम चोपड़ा-'प्रेम नाम है मेरा,प्रेम चोपड़ा'<br /> *नसीरुद्दीन शाह-'एंड देन वन डे:द मेमॉयर'<br /> *जावेद अख्तर-'तरकश'<br /> *वैजयंती माला-'..बॉन्डिंग:द मेमॉयर'<br /> *रेखा-'रेखा:द अनटोल्ड स्टोरी'<br /> *शत्रुघ्न सिन्हा-'एनीथिंग बट खामोश'<br /> करीना कपूर-'द स्टाइल डायरी ऑफ़ अ बॉलीवुड दिवा'<br /> अनु अग्रवाल:'अनयुजुअल:मेमॉयर ऑफ़ अ गर्ल हु कम बैक फ्रॉम द डेड'<br /> ममता कुलकर्णी-'ऑटोबायोग्राफी ऑफ़ अ योगिनी'<br /> आयुष्मान खुराना-क्रेकिंग द कोड:माय जर्नी इन द बॉलीवुड</div>
</div>
Somya Aparajitahttp://www.blogger.com/profile/14438976490936719303noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-694989969122548218.post-59558163473296736752017-01-24T10:31:00.001+05:302017-01-24T10:31:13.688+05:30सीरियल से सिनेमा तक...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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-सौम्या अपराजिता</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://2.bp.blogspot.com/-z4B0Le0-Bj0/WIbfb-1p8DI/AAAAAAAAMkQ/4QbgenQ9kW0nHrYV6tEqz3BegDdExUdBQCLcB/s1600/download%2B%25281%2529.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="265" src="https://2.bp.blogspot.com/-z4B0Le0-Bj0/WIbfb-1p8DI/AAAAAAAAMkQ/4QbgenQ9kW0nHrYV6tEqz3BegDdExUdBQCLcB/s400/download%2B%25281%2529.jpg" width="400" /></a></div>
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पिछले दिनों विद्या बालन की एक ऐसी तस्वीर सामने आयी जिसने उन दिनों की याद दिला दी जब विद्या धारावाहिक 'हम पांच' में राधिका की भूमिका निभाया करती थी। दरअसल,एक आयोजन के दौरान विद्या की मुलाकात 'हम पांच' के कलाकारों से हुई,तो उन्होंने गर्व के साथ अपने पुराने साथी कलाकारों के साथ तस्वीरें खिंचवाईं और उसे सोशल मिडिया पर शेयर की। उल्लेखनीय है कि विद्या उन चुनींदा कलाकारों में से एक हैं जिन्होंने स्मॉल स्क्रीन से सिल्वर स्क्रीन तक का सफ़र सफलता पूर्वक तय किया है। विद्या से पहले शाहरुख़ खान और इरफ़ान खान ने स्मॉल स्क्रीन से सिल्वर स्क्रीन का सफ़र तय किया और बता दिया कि अगर हुनर और हौसला हो,तो छोटे पर्दे से बड़े पर्दे तक के सफ़र को उपलब्धियों भरा बनाया जा सकता है। हालांकि...छोटे पर्दे से बड़े पर्दे तक का सफ़र इतना आसान नहीं है। कुछ ही कलाकार हैं जिन्होंने शाहरुख़ खान,इरफ़ान खान,मनोज बाजपेयी,आर माधवन और विद्या बालन की तरह अपनी मेहनत,लगन और धैर्य से छोटे पर्दे से बड़े पर्दे तक का सफ़र सफलतापूर्वक तय किया है।</div>
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यदि मौजूदा दौर की बात करें,तो आयुष्मान खुराना,सुशांत सिंह राजपूत और यामी गौतम ने यह साबित कर दिया है कि छोटे पर्दे का अनुभव बड़े पर्दे के सफ़र को शानदार बना सकता है। ये तीनों ही कलाकार कभी टेलीविज़न स्क्रीन पर अपने अभिनय के रंग भरते थे और आज ये बिग स्क्रीन के लोकप्रिय चेहरे बन गए हैं। यामी गौतम और आयुष्मान खुराना ने साथ-साथ छोटे पर्दे से बड़े पर्दे का रुख किया। अगर कहें कि 'विक्की डोनर' की रिलीज़ के बाद इडियट बॉक्स के दो चेहरे सिल्वर स्क्रीन पर चमक उठे,तो गलत नहीं होगा।। रियलिटी शो 'रोडीज' से उभरने वाले आयुष्मान खुराना और 'ये प्यार न होगा कम' में अपनी सहज अदायगी से मन मोहने वाली यामी गौतम ने बेहद कम वक़्त में फ़िल्म प्रेमियों के दिल में जगह बना ली है। आयुष्मान जहाँ हरफनमौला कलाकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुए हैं,वहीँ यामी ने अपने आकर्षण और अभिनय से बड़े निर्माता-निर्देशकों का ध्यानाकर्षण किया है। आयुष्मान इस समय 'बरेली की बर्फी' और 'मेरी प्यारी बिंदु' जैसी चर्चित फिल्मों में अभिनय कर रहे हैं,तो यामी के पास दो बड़ी फ़िल्में 'काबिल' और 'सरकार 3' है।</div>
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'एम एस धोनी' की सफलता के बाद सुशांत सिंह राजपूत के लिए बड़े पर्दे का सफ़र और भी सुहाना हो गया है। पिछले दिनों उन्हें 'सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के स्टार स्क्रीन अवार्ड से भी नवाजा गया। सुशांत के लिए अच्छी बात है कि उनकी पहली फिल्म 'काय पो छे' बॉक्स ऑफिस पर सफल साबित हुई थी। दरअसल,सुशांत जब धारावाहिक 'पवित्र रिश्ता' के मानव से 'काय पो छे' के ईशान भट्ट बने,तो उनके लिए दर्शकों का प्यार-दुलार और भी बढ़ गया। सुशांत कहते हैं,'मैं वहां (टीवी पर) एक ही जैसा रोल करके बोर हो गया था, तभी मैंने टीवी छोड़कर कुछ टाइम असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर काम किया और फिर फिल्म में काम करना शुरू किया।' सुशांत को सिर्फ दर्शकों से ही नहीं बल्कि हिंदी फिल्मों के प्रतिष्ठित निर्माता-निर्देशकों की भी सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है।</div>
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छोटे पर्दे से बड़े पर्दे की ओर रुख करने वाले कलाकारों में राजीव खंडेलवाल,प्राची देसाई और ग्रेसी सिंह भी उल्लेखनीय हैं। धारावाहिक 'कहीं तो होगा' में धीर-गंभीर सुजल की भूमिका से दर्शकों के दिल में बसने वाले राजीव ने राजकुमार गुप्ता निर्देशित फिल्म 'आमिर' से सिल्वर स्क्रीन पर कदम रखा। दर्शकों ने उन्हें बड़े पर्दे पर भी स्वीकारा। हालांकि,राजीव को स्टार स्टेटस नहीं मिला है,फिर भी वे निर्माता-निर्देशक और दर्शकों के चहेते बने हुए हैं। राजीव की ही तरह प्राची देसाई भी हिंदी फिल्मों में अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब हुई हैं। 'कसम से' में बानी की लोकप्रिय भूमिका निभाने के बाद जब वे 'रॉक ऑन' में फरहान अख्तर की नायिका बनीं, तो दर्शकों ने प्राची में अच्छी अभिनेत्री की झलक देखी और निर्माता-निर्देशक भी इस मासूम सी दिखने वाली लड़की में अपनी फिल्म की नायिका की छवि देखने लगे। परिणामस्वरूप प्राची को रोहित शेट्टी और मिलन लुथरिया जैसे दिग्गज निर्देशकों के साथ अभिनय का मौका मिला। ग्रेसी सिंह ने धारावाहिकों से फिल्मों की दुनिया में बड़ी छलांग लगाते हुए पहली ही फ़िल्म 'लगान' में आमिर खान की नायिका बनीं। हालांकि,उसके बाद ग्रेसी का फ़िल्मी करियर रंग नहीं ला पाया।</div>
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टीवी स्क्रीन से निकलकर बिग स्क्रीन को रोशन करने वाले कलाकारों में हंसिका मोटवानी भी एक हैं। हालांकि,हंसिका ने हिंदी फिल्मों में नहीं,मगर साउथ की फिल्मों में अपनी स्थायी पहचान बना ली है। वे तमिल-तेलुगु फिल्मों की बड़ी अभिनेत्री बन चुकी हैं। जहाँ हंसिका ने अपने फ़िल्मी करियर के लिए साउथ की राह पकड़ी,वहीँ करण सिंह ग्रोवर,गुरमीत चौधरी,जय भानुशाली और पुलकित सम्राट जैसे युवा कलाकारों ने धारावाहिकों के बाद हिंदी फिल्मों को करियर के लिए चुना। हालांकि...गुरमीत,करण,जय और पुलकित अभी भी संघर्षरत अभिनेताओं में शुमार हैं। उन्होंने अपनी शुरुआती पहचान तो बना ली है,मगर वे स्थायी पहचान बनाने में असफल रहे हैं।</div>
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दरअसल,अभिनय के सफ़र में तरक्की पाने के लिए टीवी की दुनिया से फिल्मों की ओर रुख करने वाले कलाकारों के पास अनुभव और हुनर तो होता है,मगर हर बार किस्मत उनका साथ नहीं देती। कई बार तो अच्छे अवसर की कमी उनके लिए मुसीबत का सबब बन जाती है और प्रतिभा के बाद भी उन्हें फिल्मों में स्थायी पहचान नहीं मिल पाती है। हालांकि, अब टीवी और फिल्मों विभाजक रेखा समाप्त हो चुकी है। छोटे पर्दे पर बड़े पर्दे के सितारों की लगातार मौजूदगी ने इस दूरी को मिटाने का काम किया है। अब दर्शक अपने पसंदीदा कालकारों को हर अवतार में स्वीकार करने को तैयार है। इस स्थिति ने टीवी के कालकारों के लिए एक नयी उम्मीद जगा दी है।</div>
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बॉक्स के लिए-<br /> टीवी से जुड़े रहना चाहते हैं शाहरुख़..<br /> ' मुझे यह समझ आया है कि टीवी की पहुंच अब लोगों के दिलों तक पहले से कहीं ज्यादा हो गई है। इसलिए टीवी सीरीज में भी अब ऐसी कहानियां देखने को मिल रही हैं जिससे ऑडियंस खुद को जोड़ सके।बेशक मैं फिर से टीवी की दुनिया में आना चाहूंगा क्योंकि कुछ कहानियां केवल दो घंटे के समय में नहीं बताई जा सकती। इसके लिए आपको दस घंटे चाहिए होते हैं।</div>
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टीवी से फिल्मों की ओर रुख क्यों करते हैं कलाकार-</div>
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फिल्मों में पैसा ज्यादा-तनाज़ ईरानी<br /> टीवी में आपके किरदार को कभी भी इन-आउट किया जा सकता है, लेकिन फिल्मों में आपको एक किरदार को पूरी तरह जीने का मौका मिलता है। इसके अलावा बॉलिवुड में टीवी के मुकाबले पैसा भी ज्यादा मिलता है।</div>
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टीवी की दुनिया में अफरातफरी-रोनित रॉय<br /> टीवी की दुनिया में अफरातफरी का माहौल रहता है। हालांकि, फिल्मों में भी लोग ज्यादा रिलैक्स नहीं हैं, लेकिन सीरियल्स के मुकाबले स्थिति वहां फिर भी ठीक है।</div>
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टीवी से फिल्मों में जाना तरक्की-मनोज बोहरा<br /> छोटे पर्दे से बड़े पर्दे पर जाना एक बहुत बड़ा कदम है। यह एक एक्टर के रूप में आपकी तरक्की को दर्शाता है। भले ही सीरियल में आप कितने भी पॉपुलर हो जाएं, लेकिन फिल्मों में काम करने से अलग ही पहचान बनती है। फिल्मों में आपके द्वारा निभाए गए किरदारों को लंबे वक्त तक याद रखा जाता है।</div>
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Somya Aparajitahttp://www.blogger.com/profile/14438976490936719303noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-694989969122548218.post-59692449539002209702017-01-24T10:19:00.002+05:302017-01-24T10:19:58.353+05:30नए कलेवर में पुरानी हिंदी फ़िल्में<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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-सौम्या अपराजिता</div>
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कहते हैं ... 'ओल्ड इज़ गोल्ड'। इसी कहावत को ध्यान में रखते हुए हिंदी फिल्मों के निर्माता अक्सर पुरानी-क्लासिक फिल्मों के रीमेक बनाकर उन्हें नए रंग-रूप में नयी पीढ़ी के दर्शकों के सामने प्रस्तुत करने की कोशिश करते रहे हैं। अग्निपथ,डॉन,ख़ूबसूरत,जंजीर और चश्मेबद्दूर जैसी सदाबहार फिल्मों के सफल रीमेक दर्शक देख चुके हैं। आने वाले दिनों में कुछ और रोचक पुरानी फिल्मों की रीमेक नए रंग-रूप में दर्शकों के सामने होंगी।</div>
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इत्तेफ़ाक<br /> वर्ष 1969 में प्रदर्शित हुई थ्रिलर 'इत्तेफ़ाक' नए कलाकारों के साथ नए कलेवर में दर्शकों के सामने होगी। राजेश खन्ना और नंदा अभिनीत इस फ़िल्म के रीमेक में सिद्धार्थ मल्होत्रा और सोनाक्षी सिन्हा मुख्य भूमिका में होंगी। रवि चोपड़ा के बेटे अभय चोपड़ा 'इत्तेफ़ाक' के रीमेक से निर्देशन में अपना सफ़र की शुरुआत करेंगे। धर्मा प्रोडक्शन निर्मित इस फ़िल्म की शूटिंग फरवरी शुरू होगी। उत्साहित सिद्धार्थ कहते हैं,'<br /> मैं 'इत्तेफाक' को लेकर बहुत एक्साइटेड हूं। यह 1969 में आई फिल्म कर रीमेक है। मेरे लिए एक बेंचमार्क पहले ही तय हो गया है, क्योंकि 1960 के दशक में आई फिल्म में सुपरस्टार राजेश खन्ना थे। रीमेक में मुझे खुद को उनके अभिनय कौशल के अनुरूप ढालना होगा।'</div>
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जुड़वा<br /> पिछले दिनों वरुण धवन ने सलमान खान अभिनीत 'जुड़वा' के रीमेक 'जुड़वा 2' की औपचारिक घोषणा की। वरुण इस फ़िल्म में सलमान खान वाली दोहरी भूमिका निभाएंगे जबकि उनका साथ देंगी जैकलीन फ़र्नांडीज और तापसी पन्नू। बता दें कि 'जुड़वा' में सलमान खान के साथ करिश्मा कपूर और रंभा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। रोचक तथ्य है कि 'जुड़वा' के निर्देशक डेविड धवन 'जुड़वा 2' में अपने पुत्र वरुण धवन को निर्देशित करेंगे। वरुण कहते हैं,'हर फिल्म में हम अपना बेहतर देने की कोशिश करते हैं। यह फिल्म मुझे एक बड़ी जिम्मेदारी का अहसास करा रही है। जिसकी यह है कि एक तो यह सलमान खान की फिल्म का रीमेक है और दूसरे इस फिल्म के डायरेक्टर की अपेक्षाएं। हालांकि जिम्मेदारी के साथ ही मैं इस फिल्म को लेकर उत्सुक भी हूं।'</div>
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सदमा<br /> 1983 में अभिनेता कमल हासन-श्रीदेवी की फिल्म 'सदमा' का रीमेक बनाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। ऐड फिल्ममेकर लॉयड बपतिस्ता इसका निर्माण कर रहे हैं। वे बताते हैं,'मैं सदमा का रीमेक निर्मित कर रहा हूं। यह एक शानदार फिल्म है। जब मैं युवा था तब मैंने यह फिल्म देखी थी और अंतिम दृश्य हमेशा मेरे दिमाग में बना रहता है। मुझे लगता है कि आजकल की पीढ़ी के जो लोग प्यार में विश्वास नहीं रखते हैं उन्हें 'सदमा' जैसी फिल्में अवश्य रूप से देखनी चाहिए।' फ़िल्म की कास्टिंग और अन्य पहलुओं पर महत्वपूर्ण निर्णय जल्द ही होंगे। हालांकि...ख़बरों के मुताबिक करीना कपूर या आलिया भट्ट 'सदमा' की रीमेक में केंद्रीय भूमिका निभाती हुई नजर आ सकती हैं।</div>
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चमेली की शादी<br /> वर्ष1986 में आई कॉमेडी फिल्म 'चमेली की शादी' की रीमेक बनने वाली है और खबरों के मुताबिक लीड रोल के लिए पहले निर्माता विनय सप्रू और राधिका राव ने सोनाक्षी सिन्हा को अप्रोच किया गया था,मगर किसी वजह से बात नहीं बन पायी और अब 'चमेली की शादी' का रीमेक फैंटम फिल्म्स के बैनर तले बनने की बात कही जा रही है। फ़िल्म में परिणीति चोपड़ा और दिलजीत दोसांझ के होने की चर्चा है। 'चमेली की शादी' की रीमेक में जहां परिणीति चोपड़ा को अमृता सिंह की भूमिका निभाने की जिम्मेदारी मिलेगी,वहीँ अनिल कपूर के भोलेपन को दलजीत पर्दे पर उतारेंगे। रोहित जुगराज को इस फ़िल्म के निर्देशन की जिम्मेदारी सौंपी गयी है।</div>
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मिस्टर इंडिया<br /> अपने बेटे के कैरियर को स्थापित करने के लिए अनिल कपूर ने 'मिस्टर इंडिया' के रीमेक की योजना बनायी है। ख़बरों के अनुसार बोनी कपूर निर्मित इस फ़िल्म में अनिल कपूर के पुत्र हर्षवर्धन कपूर केंद्रीय भूमिका निभाएंगे जबकि अनिल उनके पिता के किरदार में नजर आएंगे। हालांकि,अभी इस फ़िल्म की औपचारिक घोषणा नहीं हुई है,मगर निश्चित रूप से पापा द्वारा निभायी गयी भूमिका में पुत्र को देखना रोचक होगा।</div>
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धड़कन<br /> वर्ष 2000 की सुपरहिट फिल्म 'धड़कन' की रीमेक बनाने की तैयारियां हो रही हैं। पहले बताया जा रहा था कि शिल्पा शेट्टी,सुनील शेट्टी और अक्षय कुमार अभिनीत 'धड़कन' की इस रीमेक फ़िल्म की हीरोइन श्रद्धा कपूर, जबकि हीरो सूरज पंचोली और फवाद खान होंगे।...मगर अब खबर है की प्रेम सोनी निर्देशित 'धड़कन' की रीमेक में नए कलाकार होंगे। सूत्रों की मानें बतो फिल्म की शूटिंग जल्द शुरू हो सकती है क्योंकि निर्माता अब अधिक देर नहीं करना चाहते हैं।</div>
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प्रदर्शित हो चुकी पुरानी हिंदी फिल्मों की रीमेक:</div>
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अग्निपथ<br /> डॉन<br /> जंजीर<br /> राम गोपाल वर्मा की आग ('शोले' की रीमेक)<br /> खूबसूरत<br /> चश्मेबद्दूर<br /> बोल बच्चन ('गोलमाल' की रीमेक)</div>
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Somya Aparajitahttp://www.blogger.com/profile/14438976490936719303noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-694989969122548218.post-68670220144140433792017-01-24T10:17:00.000+05:302017-01-24T10:17:54.699+05:30इंडियावालों की धूम<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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-सौम्या अपराजिता</div>
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इंडिया तरक्की कर रहा है। परम्परा और आधुनिकता के तालमेल से बने इंडियावाले दुनिया में अपनी प्रतिभा और आकर्षण का जादू चला रहे हैं। विशेषकर ग्लैमर वर्ल्ड से जुड़े इंडिया वालों का आकर्षण पाश्चात्य देशों में खूब चल रहा है। वे विश्व स्तर पर खुद को साबित कर रहे हैं...।</div>
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गर्व की बात है कि संयुक्त राष्ट्र संघ की यूनिसेफ़ ने प्रियंका चोपड़ा को अपने ग्लोबल गुडविल एम्बेसडर के रूप में चुना है। प्रियंका के लिए ही नहीं,बल्कि इंडियावालों के लिए भी यह किसी उपलब्धि से कम नहीं है। अमेरिकन टीवी शो 'क्वांटिको' में केंद्रीय भूमिका निभा रही प्रियंका कहती हैं कि वह यूनीसेफ की ग्लोबल गुडविल एम्बेसडर बनकर बेहद खुश और सम्मानित महसूस कर रही हैं। उल्लेखनीय है कि इससे पहले प्रियंका यूनीसेफ की नेशनल गुडविल एम्बेसडर रह चुकी हैं। प्रियंका ने पिछले दिनों ट्वीट कर कहा, 'विश्वास नहीं होता कि 10 साल हो गए! अब सभी बच्चों के लिए इस अद्भुत संगठन के साथ ग्लोबल गुडविल एम्बेसडर के रूप में सेवा का अवसर मिलना मेरे लिए सम्मान की बात है।' एक तरफ प्रियंका यूनीसेफ की ग्लोबल गुडविल एम्बेसडर बनती हैं,तो दूसरी तरफ अपने स्टाइल से ऑस्कर रेड कार्पेट पर धूम भी मचाती हैं। दरअसल, 'ऑस्कर अवॉर्ड समारोह' में हॉलीवुड की तमाम बड़ी हस्तियों के साथ-साथ प्रियंका ने भी शिरकत की थी। ऑस्कर में शिरकत करने वाली अभिनेत्रियों के परिधान हमेशा से ही चर्चा का विषय रही है और इस मामले में प्रियंका अपनी पहली उपस्थिति में ही बाजी मारने में कामयाब रहीं। ऑस्कर समारोह के दौरान जिन अभिनेत्रियों के परिधान को गूगल पर सबसे ज्यादा सर्च किया गया, उनमें प्रियंका भी शीर्ष दस में जगह बनाने में कामयाब रहीं। प्रियंका इस सूची में सातवें स्थान पर रहीं। इस सूची में पहली पोजिशन पर हॉलिवुड ऐक्ट्रेस जेनिफर गार्नर रहीं, वहीं प्रियंका ने केट ब्लेंशेट, केट विंसलेट और ओलिविया वाइल्ड जैसी हॉलिवुड की मशहूर अभिनेत्रियों को पछाड़ते हुए इस सूची में सातवां मुकाम हासिल किया।</div>
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रितिक रोशन के दीवाने पूरी दुनिया में हैं इसका पता इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक ऑनलाइन सर्वे में उन्हें दुनिया के सबसे हैंडसम पुरुषों की सूची में तीसरा पायदान मिला है। वर्ल्डटॉपमोस्ट डॉट कॉम साइट ने यह सर्वे कराया है। इस सूची में हॉलीवुड के अभिनेता टॉम क्रूज और रॉबर्ट पेटिसन के बाद रितिक को तीसरा स्थान मिला। रितिक रोशन के अलावा इस सूची में ह्यूज जैकमैन, जॉनी डेप और ब्रैट पिट को भी शामिल किया गया है। सलमान खान को इस सूची में सातवां स्थान मिला है। इस उपलब्धि के बारे में रितिक कहते हैं,'यह मेरे लिए एक कॉम्प्लीमेंट है, अचीवमेंट नहीं। अपने प्रशंसकों के प्यार के लिए मैं आभारी हूं और इस कॉम्प्लीमेंट के लिए उन्हें धन्यवाद करता हूं। मेरे ख्याल से किसी भी सर्वे में दुनिया के टॉप-10 में जगह बनाना ही महत्वपूर्ण है। मेरा मानना है कि गुड लुक्स कभी भी आपके आंतरिक व्यक्तित्व का हिस्सा नहीं होने चाहिए। जब आप यह न सोचें कि आप बहुत हैंडसम लगते हैं या आप बहुत अट्रैक्टिव हैं, ऐसा न सोचना आपको और अधिक आकर्षक दिखाता है।' गौरतलब है कि रितिक ने एशिया के सबसे सेक्सी पुरुषों की सूची में भी दूसरा स्थान पाया है।</div>
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एशिया के सबसे सेक्सी पुरुषों की सूची में रितिक रोशन के साथ कई और इंडियावाले शामिल हैं। स्मॉल स्क्रीन के लोकप्रिय अभिनेता आशीष शर्मा तीसरे स्थान पर हैं जबकि सलमान खान शीर्ष पांच में शामिल हैं। इस सूची में शाहरूख खान सतरहवें स्थान पर हैं। वहीं रणवीर सिंह ने दसवां और शाहिद कपूर ने सातवां स्थान हासिल किया है। </div>
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ब्रिटेन के समाचार पत्र 'ईस्टर्न आई' द्वारा प्रकाशित एशिया की सबसे सेक्सी महिलाओं की सालाना सूची में भी देसी बालाओं ने बाजी मार ली है। इस सूची के अनुसार दीपिका पादुकोण एशिया की सबसे सेक्सी महिला बनी हैं,तो वहीँ दूसरे स्थान पर प्रियंका चोपड़ा हैं। रोचक तथ्य है कि तीसरे स्थान पर स्मॉल स्क्रीन की अभिनेत्री निया शर्मा हैं। एशिया की सबसे सेक्सी महिलाओं की इस सूची में आलिया भट्ट पांचवें स्थान पर हैं,तो सनाया ईरानी ने छठा स्थान पाया है। सातवे स्थान पर कट्रीना कैफ, सोनम कपूर आठवें और गौहर खान दसवें स्थान पर हैं।</div>
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एशिया की सबसे सेक्सी महिला की उपाधि पाकर दीपिका पादुकोण बेहद सम्मानित महसूस कर रही हैं। वे कहती हैं,' इससे मेरे चेहरे पर मुस्कान आई है, लेकिन अलग-अलग लोगों के लिए सेक्सी का मतलब भी अलग होता है।मेरे लिए यह सिर्फ शारीरिक नहीं है।जिसके साथ आप सहज है वहीं सेक्सी है। आत्मविश्वास सेक्सी है। मासूमियत और सौम्यता सेक्सी है।' काबिलेगौर है कि फोर्ब्स मैग्ज़ीन<br /> द्वारा जारी की गयी 'वर्ल्ड हाईएस्ट पेड एक्ट्रेस' की सालाना सूची के 'शीर्ष दस' में भी दीपिका शामिल हैं। एक करोड डॉलर की कमाई के साथ तीस वर्षीय दीपिका इस सूची में दसवें स्थान पर हैं। उल्लेखनीय है कि इस सूची में शामिल की जाने वाली वह एकमात्र भारतीय अभिनेत्री हैं।</div>
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इस वर्ष 'फोर्ब्स मैग्ज़ीन' के 'वर्ल्डज़ हाईएस्ट पेड एक्टर्स' की सूची में शीर्ष दस में शाहरुख़ खान और अक्षय कुमार की उपस्थिति उल्लेखनीय है। इसके अनुसार दुनिया भर में सबसे ज्यादा कमाई करने वाले अभिनेताओं में शाहरुख खान आठवें स्थान पर हैं,तो अक्षय कुमार दसवें स्थान पर काबिज हैं। मैग्जीन के मुताबिक आठवें स्थान पर काबिज शाहरुख खान की इस साल की आय 221 करोड़ रुपए(3 करोड़ 30 लाख डॉलर) रही। इसी नंबर पर उनके साथ'आयरन मैन'के डाउनी जूनियर भी इतनी ही कमाई के साथ शामिल हैं। 3.15 करोड़ डॉलर यानी 211 करोड़ रुपए की आय के साथ अक्षय कुमार हॉलीवुड के ब्रैड पिट के साथ दसवें नंबर पर हैं। फोर्ब्स के मुताबिक अक्षय हिट फिल्मों के चलते कमाई के मामले में आगे हैं। साथ ही विज्ञापनों से भी उनकी अच्छी कमाई होती है। सूची के मुताबिक 2.85 करोड़ डॉलर(190 करोड़ रुपए)की कमाई के साथ सलमान खान चौदहवें नंबर पर हैं,जबकि 2 करोड़ डॉलर(134 करोड़ रुपए)की कमाई के साथ अमिताभ बच्चन को लिस्ट में अठारहवां स्थान दिया गया है। </div>
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बॉक्स के लिए---</div>
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* 'गूगल इंडिया' द्वारा जारी किए गए 'टॉप ट्रेंडिंग एक्टर्स' की सूची -<br /> 1-सुशांत सिंह राजपूत<br /> 2-कबीर बेदी<br /> 3-पुलकित सम्राट<br /> 4-हर्षवर्धन कपूर<br /> 5-सलमान खान</div>
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*'गूगल इंडिया' द्वारा जारी किए गए 'टॉप ट्रेंडिंग एक्टर्स' की सूची -<br /> 1-दिशा पटानी<br /> 2-उर्वशी रौतेला<br /> 3-पूजा हेंगड़े<br /> 4-मंदाना करीमी</div>
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*सोनम-शाहिद बने हॉटेस्ट वेजेटेरियन<br /> पेटा इंडिया ने शाहिद कपूर और सोनम कपूर को इस वर्ष के हॉटेस्ट वेजेटेरियन की उपाधि दी गयी है। पेटा की तरफ से कराए गए एक ऑनलाइन सर्वे के अनुसार सोनम और शाहिद विजेता बनकर उभरे हैं। शाहिद और सोनम ने अमिताभ बच्चन,आलिया भट्ट,कंगना रनौत, विद्युत जामवाल,आर माधवन और सनी लियोनी को पीछे छोड़ यह खिताब अपने नाम किया है</div>
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Somya Aparajitahttp://www.blogger.com/profile/14438976490936719303noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-694989969122548218.post-60046609817010021002017-01-24T10:08:00.003+05:302017-01-24T10:08:19.890+05:30बायोपिक,विवाद और मनोरंजन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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-सौम्या अपराजिता</div>
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जब फ़िल्मकार अपनी फिल्मों में रियल लाइफ के नायकों के जीवन की कहानी कहने की सोचते हैं</div>
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,तो विवादों का साया उनके साथ-साथ चलने लगता है। दरअसल,रियल लाइफ चरित्रों पर आधारित फिल्मों अर्थात 'बायोपिक' और विवादों का चोली-दामन का साथ रहा है। फ़िल्मकार यदि किसी व्यक्ति के निजी जीवन से जुड़े तथ्यों को दिखाने में थोड़ी भी रचनात्मक छूट लेते हैं,उन्हें आलोचना-प्रत्यालोचना का शिकार होना पड़ता है। पिछले दिनों प्रदर्शित हुई 'दंगल' को भी ऐसे विवाद से दो-चार होना पड़ रहा है।</div>
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महावीर फोगट के जीवन पर आधारित 'दंगल' सफलता के सोपान छू रही है। सफलता की सीढियां चढ़ रही 'दंगल' प्रदर्शन से पहले विवादों से दूर रही,मगर प्रदर्शन के दो-तीन बाद एक विवाद इस प्रशंसित फ़िल्म से भी जुड़ ही गया। यह विवाद निर्माता-निर्देशकों द्वारा फ़िल्म मेकिंग के दौरान ली गयी रचनात्मक छूट के कारण हुआ। दरअसल,'दंगल' में दिखाया गया है कि जब गीता फोगट रियो ओलंपिक के फाइनल बाउट के लिए रिंग में जा रही होती हैं,तो उनके पिता को किसी बहाने से एक कमरे में बंद कर दिया जाता है। अगले दृश्य में उसके कोच सामने आते हैं। सभी को यही लगता है कि गीता के कोच के कहने पर ऐसा किया गया है। फिल्म देखने के बाद रियल लाइफ में गीता के कोच रहे पीआर सोंधी ने बताया कि सही में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था। फिल्म में जो दिखाया गया है उससे उनकी छवि को धक्का लगा है। उन्होंने यह भी कहा कि आमिर खान को फिल्म बनाते समय संबंधित लोगों से भी बात करनी चाहिए। गीता ने भी इस दृश्य की सत्यता के बारे में अपनी राय रखते हुए अपने कोच की बात को सच बताया है। पिता को कमरे में बंद करने की बात का गीता ने भी खंडन किया है। गीता के अनुसार फिल्म को रोमांचक बनाने के लिए ऐसा किया गया है। जबकि सही में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था। आमिर खान ने भी माना है कि 'दंगल' को रोमांचक और मनोरंजन बनाने के लिए यह रचनात्मक छूट ली गयी थी। आमिर के अनुसार, यह फिल्म(दंगल) एक बायोपिक है लेकिन इसके कुछ पात्रो को इंटरटेनिंग बनाने के लिए बदला गया है। यह केवल दर्शको के मनोरंजन के लिए किया गया है।' लेखक प्रसून जोशी भी मानते हैं कि बायोपिक को मनोरंजक बनाने के लिए कल्पना का पुट देना जरुरी हो जाता है। प्रसून कहते हैं,'जीवनी लेखन किसी काल्पनिक कहानी लेखन के मुकाबले बहुत मुश्किल है। उसे लिखने के लिए काफी रिसर्च करना पड़ता है। उस इंसान से जुड़ी छोटी से छोटी बारीकियों को ध्यान में रखना पड़ता है। 'भाग मिल्खा भाग' लिखने के दौरान मैंने चुस्त पटकथा लिखने के लिए तथ्यों के साथ कल्पना मिलाई, क्योंकि मैं मनोरंजक फिल्म लिखना चाहता था। इस फिल्म में अनेक पात्र काल्पनिक हैं। काल्पनिक दृश्य यथार्थ को धार प्रदान करें तो उनका समावेश करना उचित है। कोई भी बायोपिक पूरी तरह यथार्थपरक नहीं हो सकता, इस तरह वृत्तचित्र बनाया जा सकता है।' </div>
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कभी-कभी कड़वी सच्चाई से उठने वाले संभावित विवादों के डर से बायोपिक निर्माताओं को समझौते करने पड़ते हैं। ऐसा ही 'एम एस धोनी' के निर्माताओं को करना पड़ा था। फ़िल्म' को विवादों से बचाने के लिए फ़िल्म के अहम् हिस्से को ऐन वक़्त पर हटा दिया गया। दरअसल,'एम एस धोनी' के टीज़र रिलीज के बाद तीन सीनियर खिलाडियों को टीम से हटाने से जुड़े एक डायलॉग ने काफी चर्चा बटोरी। इस डायलॉग के कारण फ़िल्म से विवादों के जुड़ने का डर था जिस कारण रिलीज के ठीक पहले फिल्म के उस मशूहर डायलॉग को हटाने का निर्णय किया गया। इस विवाद से बचने के बाद जब महेंद्र सिंह धोनी से उनके बायोपिक 'एम एस धोनी' के सीक्वल की बात की गयी,तो उन्होंने साफ इशारा किया कि उनके बायोपिक का कोई सीक्वल नहीं होगा। उनका मानना है कि इससे काफी विवाद खड़ा हो सकता है।</div>
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आमतौर पर बायोपिक फ़िल्में रियल लाइफ की उन्हीं शख्सियतों पर बनायी जाती हैं जिनका जीवन रोचक और प्रेरक तथ्यों से भरा हो या जो विवादों में रहे हों। ऐसे में, विवादित शख्सियतों के बायोपिक पर होने वाले विवादों को दरकिनार नहीं किया जा सकता है। आने वाले दिनों में ऐसी ही कुछ विवादित शख्सियतों की बायोपिक दर्शकों के सामने होंगी जिनमे संजय दत्त और हसीना पारकर की बायोपिक है। संजय दत्त से जुड़े तमाम विवादों को दर्शक रणबीर कपूर अभिनीत बायोपिक 'संजय दत्त' में देखेंगे,तो वहीँ विवादों में रही दाऊद इब्राहिम की बहन हसीना पारकर के व्यक्तित्व को बायोपिक 'हसीना' में जीती नजर आएंगी श्रद्धा कपूर । दरअसल,इन फिल्मों से विवाद का जुड़ा होना तय है क्योंकि ये फिल्में ही विवादित शख्सियतों की बायोपिक हैं। ऐसी ही एक विवादित शख्सियत की बायोपिक में विद्या बालन भी नजर आएंगी। विद्या सिल्वर स्क्रीन पर एक ऐसी लेखिका के जीवन को जीने जा रही हैं जो विवादों में रही हैं। यह हैं अंग्रेजी की प्रसिद्ध लेखिका कमला सुरैया। कमला सुरैया की बायोपिक को लेकर विद्या बेहद उत्साहित हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि वे भविष्य में इस फ़िल्म से जुड़ने वाले विवादों के लिए खुद को तैयार कर चुकी हैं। दरअसल,भारत में अभी भी कड़वी सच्चाइयों से दूर भागने की मानसिकता है। दर्शकों का कुछ वर्ग समाज के यथार्थ से दूर भागने की कोशिश करता है जिस कारण फ़िल्मकार जब भी बायोपिक में सच्चाई दिखाने की कोशिश करते हैं,उन्हें विवादों से दो-चार होना पड़ता हैं। 'पान सिंह तोमर' के निर्देशक तिग्मांशु धुलिया कहते हैं,' जब हम हॉलीवुड में देखते हैं कि किसी उल्लेखनीय व्यक्ति पर बायोपिक फिल्में बन रही हैं, तो हम काफी खुश होते हैं और उसकी प्रशंसा भी करते हैं और सोचते हैं कि ऐसी फिल्में भारत में बने। लेकिन सच्चाई यह है कि हम जिस तरह के ढांचे में जकड़े हैं, ऐसी फिल्में बनाना संभव नहीं है। क्योंकि हमारी कोशिश दर्शकों तक पूरी सच्चाई पहुंचाने की नहीं होती बल्कि हम पर लोकप्रिय ढांचे में खुद को ढालने का दबाव होता है।'</div>
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आने वाली बायोपिक फ़िल्में-<br /> *हसीना(दाऊद इब्राहिम की बहन हसीना पारकर के जीवन पर आधारित)<br /> *संजय दत्त (संजय दत्त के जीवन से जुडी)<br /> *पैड मैन ( महिलाओं के लिए सस्ते सेनिटरी पैड मुहैया कराने वाले अरूणांचालम मुरुगानानथम के जीवन पर आधारित)<br /> *मुरलीकांत पेटकर(पैरालंपिक में भारत के लिए गोल्ड जीतने वाले एथलीट मुरलीकांत पेटकर के जीवन पर आधारित)<br /> *सारे जहां से अच्छा(अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा के जीवन पर आधारित)<br /> *मंटो (लेखक सआदत हसन मंटो के जीवन पर आधारित)<br /> *सिमरन (गुजराती एन आर आई नर्स संदीप कौर के जीवन पर आधारित)</div>
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बायोपिक से जुड़े 'विवाद'<br /> *नीरजा भनोत की बायोपिक 'नीरजा' को पैन एम 73 में नीरजा भनोत की साथी क्रू मेंबर रही नुपुर अबरोल ने रियल से अधिक फिक्शनल बताया। नुपुर के इस वक्तव्य ने सफल और सराही जा रही 'नीरजा' को भी विवादों से जोड़ दिया।</div>
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*एक घटनाक्रम में लुधियाना की बलजिंदर कौर ने सरबजीत की असली बहन होने का दावा किया है। उन्होंने दलबीर कौर की भूमिका निभा रही ऐश्वर्या राय बच्चन और निर्देशक उमंग कुमार को लीगल नोटिस भी भेजा और 'सरबजीत' पर रोक लगाने की बात कही थी।</div>
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* मशहूर लेखिका अमृता प्रीतम के बायोपिक की चर्चा काफी दिनों से चल रही है,मगर कुछ आपत्तियों के कारण अभी तक इस फ़िल्म का निर्माण शुरू नहीं हो पाया है।अमृता प्रीतम के पौत्री ने इस फ़िल्म के निर्माण पर आपत्ति जतायी है। उनके अनुसार अमृता प्रीतम नहीं चाहती थीं कि उनकी आत्मकथा का कमर्शियल उपयोग किया जाए।<br /> </div>
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Somya Aparajitahttp://www.blogger.com/profile/14438976490936719303noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-694989969122548218.post-7851883955260324372016-12-05T23:17:00.000+05:302016-12-05T23:17:12.731+05:30...कि पैसा बोलता है !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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-सौम्या अपराजिता</div>
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इन दिनों हर तरफ 'रुपए','बैंक','हजार','सौ' जैसे शब्द छाए हुए हैं। यूं तो पैसा सबके जीवन में बेहद मायने रखता है,मगर इन दिनों तो ऐसा लगता है...मानो सबकी चिंता पैसों के इर्द-गिर्द सिमट-सी गयी है। ज्ञात तथ्य है कि नोटबंदी के सरकारी फैसले के कारण ऐसा हुआ है। इस फैसले के कारण जहां देश की अर्थनीति में बड़ा परिवर्तन आया है,वहीँ फिल्मों में 'पैसे' और 'रुपए' से जुड़े गीत और फ़िल्में भी प्रासंगिक हो गयी हैं।</div>
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आजकल जिसके पास पांच सौ और दो हजार के नए नोटों की श्रृंखला आ गयी है उनसे चिढ़ते हुए बैंकों में लंबी लाइन लगने वाले लोग यही गुनगुना रहे होंगे-'काहे पैसे पे इतना गुरुर करे.... हे हे चार पैसे क्या मिले क्या मिले भई क्या मिले वो ख़ुद को समझ बैठे ख़ुदा।' इन दिनों हर तरफ पैसे की माया का जादू है। दरअसल,पैसे की माया अपरम्पार है। शायद...इसी दर्शन को 'काला बाज़ार' का यह गाना आगे बढ़ाता है-'ठन ठन की सुनो झंकार कि पैसा बोलता है।' वैसे पैसा अगर जरुरत है,तो वह अब मुसीबत भी बन गया है। तभी तो....जरुरत से ज्यादा पैसा हो,तो उसे बैंक में जमा कराने की मुसीबत और कम हो,तो घर खर्च के लिए बैंक के चक्कर लगाने की मुसीबत। ऐसे में.. बरबस ही 'कर्ज' के इस गीत की याद आ जाती है-'पैसा ओ पैसा ये हो मुसीबत न हो मुसीबत।'</div>
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जहां..आजकल पांच सौ और दो हजार रुपए की चर्चा हर तरफ छायी हुई है,वहीँ बीते जमाने में 'पांच रूपया,बारह आना' के भी अपने मायने थे...तभी तो 'चलती का नाम गाड़ी' के इस गीत के पीछे बेहद रोचक घटना जुड़ी हुई है। 'चलती का नाम गाड़ी' के नायक किशोर कुमार इन्दौर के क्रिश्चियन कॉलेज में पढ़ते थे। कॉलेज की कैंटीन से उधार लेकर खुद खाना और दोस्तों को खिलाना उनकी आदत थी। वह ऐसा समय था जब 10-20 पैसे की उधारी भी बहुत मायने रखती थी। किशोर कुमार पर जब कैंटीन वाले के पांच रुपए बारह आना उधार हो गए,तो वह उधार मांगे जाने पर किशोर कैंटीन में बैठकर ही टेबल पर ग्लास और चम्मच बजा-बजाकर पाँच रुपया बारह आना गा-गाकर कई धुन निकालते थे और कैंटीन वाले की बात अनसुनी कर देते थे। बाद में 'चलती का नाम गाड़ी' में उन्होंने गीत में इस 'पांच रुपया बारह आना' वाले गीत को बहुत ही खूबसूरती से इस्तेमाल किया।</div>
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रोचक है कि 'नोटबंदी' के मौजूदा दौर में जब प्लास्टिक मनी का महत्त्व बढ़ रहा है...ऐसे में,'दुश्मन' का गीत 'पैसा फैंको तमाशा देखो' कुछ हद तक अप्रासंगिक हो गया लगता है। साथ ही,अब शायद ही कोई भूलकर भी 'जॉनी गद्दार' के इस गीत को गुनगुनाने की हिम्मत करेगा-'कैश मेरी आँखों में,कैश मेरी साँसों में'। आखिर...अब जल्द ही कैश का खेल ख़त्म जो होने वाला है।हालांकि...कैश में न सही,प्लास्टिक मनी के रूप में ही सही,पैसे का दबदबा बना हुआ है। तभी तो,जब प्रेमी अपनी प्रेमिका की बढ़ती मांगों से परेशान हो जाता है,तो अक्सर कहता है-'क्यों पैसा-पैसा करती है,क्यों पैसे पे तू मरती है!' सच कहें तो प्यार,मोहब्बत,रिश्ते....सब इस भौतिक युग में पैसे का खेल बनकर रह गए हैं,तभी तो गुलज़ार ने 'कमीने' के गीत में लिखा है-'कौड़ी- कौड़ी पैसा पैसा ..पैसे का खेल.. चल चल सड़कों पे होगी ठैन-ठैन।' ऐसे में...निष्कर्ष तो एक ही है..... ' न बीवी न बच्चा, न बाप बड़ा न भैया द होल थिंग इज दैट कि सबसे बड़ा रुपैया।' सच में....'पैसा ये पैसा,कोई नहीं ऐसा।'</div>
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बॉक्स के लिए:</div>
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पैसे का महिमामंडन करते फिल्मों के शीर्षक-<br /> *पैसा<br /> *पैसा ये पैसा<br /> *पैसा ही पैसा<br /> *पैसा वसूल<br /> *पैसा या प्यार<br /> *सबसे बड़ा रुपैया<br /> *मोह माया मनी<br /> *अपना सपना मनी मनी<br /> *आमदनी अठन्नी,खर्चा रुपैया</div>
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काले धन के मुद्दे को उजागर करती फिल्में-<br /> *खोंसला का घोसला<br /> *काला बाज़ार<br /> *ब्लड मनी<br /> *कॉर्पोरेट<br /> *जन्नत</div>
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पैसे के महत्त्व को बताते प्रसिद्ध संवाद-</div>
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*'आज मेरे पास बंगला है, गाड़ी है, बैंक बॅलेन्स है, तुम्हारे पास क्या है!' (दीवार)</div>
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* 'तू लड़की के पीछे भागेगा, लड़की पैसे के पीछे भागेगी... तू पैसे के पीछे भागेगा, लड़की तेरे पीछे भागेगी।' ( वॉन्टेड)</div>
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*'पैसा पैसे को खींचता है।'(जन्नत)</div>
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*'पैसे की कैपिसिटी,जीने की स्ट्रेंथ,अकाउंट का बैलेंस और नाम का खौफ कभी ख़त्म नहीं होना चाहिए।' (वन्स अपॉन अ टाइम इन मुम्बई दोबारा)</div>
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*'पैसे बहाने से अच्छा है,खून बहाओ।'(औरंगजेब)</div>
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Somya Aparajitahttp://www.blogger.com/profile/14438976490936719303noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-694989969122548218.post-52053831226024539912016-09-15T21:57:00.001+05:302016-09-15T21:59:05.307+05:30अतुलनीय रजनीकांत...<p dir="ltr">-सौम्या अपराजिता</p>
<p dir="ltr">रजनीकांत का व्यक्तित्व,उनकी लोकप्रियता का दायरा और दर्शकों के बीच उनकी स्वीकार्यता का प्रभाव इतना गहरा और व्यापक है कि भाषा,क्षेत्र और समय की दीवारें टूट जाती हैं। रजनीकांत का प्रभावशाली व्यक्तित्व पूरे भारत को एक सिरे से बांधता है...उनकी फ़िल्में उत्तर-दक्षिण की दूरियों को पाटती हैं,विदेश में बसे भारतीयों में देश प्रेम का संचार करती हैं,तो दर्शकों में 'आम से खास' बनने के जज्बे का संचार करती हैं। दरअसल,'रजनीकांत' सिर्फ एक अभिनेता का नाम नहीं रहा,बल्कि यह 'विशेषण' बन गया है।भला... किसी अभिनेता की लोकप्रियता का इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है!</p>
<p dir="ltr">दरअसल,रजनीकांत की बेपनाह लोकप्रियता और प्रभाव की विशेष वजह है। दरअसल,दूसरे लोकप्रिय अभिनेताओं की तरह रजनीकांत व्यावसायिक लाभ के लिए अपनी ऑन स्क्रीन छवि को बेचते नहीं हैं। गौर करें तो लोकप्रियता के सोपान पर अमिताभ बच्चन भी हैं,शाहरुख़ खान भी हैं और सलमान खान भी।...मगर उन सबसे अलग हैं रजनीकांत...। रजनीकांत की तरह दूसरे अभिनेता भी स्क्रीन पर अन्याय के खिलाफ लड़ते हैं और असहायों की सहायता करते दिखते हैं,मगर जब उस अभिनेता की रियल लाइफ की बात आती है,तो वे अक्सर विज्ञापनों में शराब,गुटखा या किसी अन्य उत्पादों को बेचते हुए दिख जाते हैं जिससे असहायों की मदद करने वाले आम आदमी के हीरो वाली उनकी छवि धूमिल होने लगती है। वे सिर्फ व्यावसायिक अभिनेता के रूप में दर्शकों के बीच लोकप्रिय बनकर रह जाते हैं। वहीँ दूसरी तरफ रजनीकांत अपनी अभिनय कला को सिर्फ फिल्मों तक सीमित रखते हैं जिससे उनकी पहचान में सिर्फ उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व की झलक दिखती है जो उन्हें दूसरे  व्यावसायिक अभिनेताओं  से अलग दर्शकों के लिए पूजनीय बनाती है। गौरतलब है कि 2006 में एक 'कोला-कंपनी' ने रजनीकांत को अपना ब्रांड-अम्बैसडर बनने का प्रस्ताव दिया था, किन्तु 2 करोड़ का प्रस्ताव होने के बावजूद रजनीकांत ने उस कंपनी को मीटिंग के लिए समय तक नहीं दिया। उल्लेखनीय है कि रजनीकांत फ़िल्मों के बाहर कभी मेकअप में नहीं दिखते। वे न तो टेलीविजन रियलिटी शो की शोभा बनना पसंद करते हैं और न ही अवार्ड शो या स्टेज पर प्रस्तुति देते हैं। निजी जीवन में रजनीकांत स्वयं को 'लार्जर देन लाइफ' बनाकर प्रस्तुत नहीं करते। वे दर्शकों को कहानियाँ बेचना पसंद करते हैं, पर कभी भी खुद की बोली नहीं लगाते। कैमरे से बाहर होते ही वे अपने सामान्य रूप में आ जाते हैं।</p>
<p dir="ltr">रजनीकांत का अपने दर्शकों के साथ अद्भुत परस्पर रिश्ता है। वे दर्शकों का शोषण नहीं करते हैं। वे दर्शकों के विश्वास की रक्षा के लिए कृत संकल्पित हैं। लोकप्रियता के शिखर पर भी रजनीकांत ने अपने आपको आभामंडल में छिपाने की कोशिश नहीं की, बल्कि अपने द्वारा निभाए गए 'लार्जर दैन लाइफ' चरित्रों को भी अपनी जमीनी पहचान से जोड़े रखा है। इसीलिए दर्शक जब फ़िल्म में उनके चरित्र विशेष के लिए तालियाँ बजा रहे होते हैं, तो कहीं न कहीं वह तालियाँ रजनीकांत को मिल रही होती हैं। रजनीकांत की कोशिश होती है कि उनके चरित्र में भी लोग उनकी पहचान कर सके, उस रजनीकांत की पहचान जो उनके बीच उनकी तरह का है। शूटिंग पर समय के पाबंद, साथी कलाकारों से अच्छा व्यवहार, प्रशंसकों का हाथ जोड़ कर अभिवादन करना उनकी पहचान है।</p>
<p dir="ltr">यह जीवित किंवदंती बन चुके रजनीकांत का अपने प्रशंसकों के साथ बंधे अटूट रिश्ते का ही असर है कि उनकी फिल्मों की रिलीज-डेट पर कई बड़ी कंपनियां 'छुट्टी' की घोषणा कर देती हैं क्योंकि उन्हें इस बात की आशंका ही नहीं, बल्कि पूरा ज्ञान है कि अगर छुट्टी नहीं भी की गयी तो तमाम कर्मचारी 'बीमारी' या कोई और 'बहाना' करके छुट्टी ले ही लेंगे। उनके लिए रजनीकांत की फ़िल्म देखने के कोई जरूरी शर्त नहीं होती है क्योंकि भगवान के दर्शन ही 'भक्त' के लिए पर्याप्त होते हैं। रजनीकांत की उपस्थिति मात्र दर्शकों को यह विश्वास दिलाने में सक्षम होती है कि फ़िल्म में जो कुछ भी होगा...सर्वोत्तम होगा। साथ ही,उनके चलने की खास शैली और संवाद अदायगी का अनोखे अंदाज को निहारना दर्शकों के लिए सोने पे सुहागा जैसा होता है। रोचक तथ्य हऐ कि बालों को हाथ से झटकना, हाथों-उंगलियों को संगीत की टेक पर आगे लाकर घुमाना, कोट-पेंट में हाथ लटकाना और लहराती चाल में चलना जैसी अस्सी के दशक वाली सिनेमाई हरकतें आज भी रजनीकांत की स्टाइल बनी हुई है। 'किंग ऑफ स्टाइल' के रूप में अपने प्रशंसकों के बीच पहचान बना चुके रजनीकांत रूपहले परदे पर जितने भी स्टाइलिश लगें, लेकिन निजी जीवन में उनके जैसी साधारण वेश-भूषा वाला सितारा शायद ही सिने जगत में मिले। स्क्रीन पर हमेशा जवान नजर आनेवाले रजनीकांत निजी जीवन में कभी जवान दिखने की कोशिश भी नहीं करते हैं।</p>
<p dir="ltr">सच कहें तो रजनीकांत अपने चिरपरिचित अंदाज में वर्षों से दक्षिण भारतीय फ़िल्म उद्योग की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी बने हुए हैं। पिछले दिनों प्रदर्शित हुई 'कबाली' की बेपनाह सफलता ने एक बार फिर रजनीकांत को सिर्फ दक्षिण भारत का ही नहीं,बल्कि भारतीय फ़िल्म उद्योग के 'थलाइवा (सेनापति)' के रूप में स्थापित कर दिया है। 'कबाली' के क्रेज ने यह सिद्ध कर दिया है कि पैंसठ वर्षीय बेहद साधारण व्यक्तित्व वाले इस मितभाषी और विनम्र अभिनेता ने लोकप्रियता और सफलता का वह शिखर छू लिया है जो अकल्पनीय,अतुलनीय और अद्भुत है।</p>
<p dir="ltr">क्रेज कबाली का:</p>
<p dir="ltr">*'कबाली' भारत की ऑल टाइम बिगेस्‍ट ओपनर फि‍ल्‍म बन गई है। यह रजनीकांत के करियर की 159वीं फि‍ल्‍म है, जो एक गैंगस्‍टर के जीवन पर आधारित है। इसमें राधिका आप्‍टे, धनशिखा और कलाईरासन प्रमुख भूमिका में हैं।</p>
<p dir="ltr">*22 जुलाई को रिलीज हुई फिल्म 'कबाली' ने दुनिया भर में अभी तक 600 करोड़ से ज्यादा का व्यवसाय किया है। आंकड़ों के मुताबिक 'कबाली' ने भारतीय बॉक्स ऑफिस पर अबतक 211 करोड़ का व्यवसाय किया है जिसमें 40 करोड़ रुपए उत्तर भारत से हैं।</p>
<p dir="ltr">* 'कबाली' पूरी दुनिया में लगभग 8000-10,000 स्‍क्रीन पर रिलीज की गई है। अमेरिका में 480 स्‍क्रीन, मलेशिया में 490 और गल्‍फ देशों में 500 से ज्‍यादा स्‍क्रीन पर यह फि‍ल्‍म दिखाई जा रही है। चीन में यह 4500 स्क्रीन पर रिलीज की गयी है। संभवत: ‘कबाली’ एकमात्र भारतीय फिल्म है, जो एशिया के सभी देशों में एक साथ रिलीज हो रही है। </p>
<p dir="ltr">रजनीकांत:सिफर से शिखर तक<br>
रजनीकांत का जन्म 12 दिसंबर, 1950 को बेंगलुरू में हुआ। उनके बचपन का नाम शिवाजी राव गायकवाड़ है। उनके पिता रामोजी राव गायकवाड़ एक हवलदार थे। मां जीजाबाई की मौत के बाद चार भाई-बहनों में सबसे छोटे रजनीकांत को अहसास हुआ कि घर की माली हालत ठीक नहीं है। बाद में उन्होंने परिवार को सहारा देने के लिए कुली और बस कंडक्टर का भी काम किया।अभिनय में दिलचस्पी के चलते उन्होंने 1973 में मद्रास फिल्म संस्थान में दाखिला लिया और अभिनय में डिप्लोमा लिया।<br>
रजनीकांत की मुलाकात एक नाटक के मंचन के दौरान फिल्म निर्देशक के. बालाचंदर से हुई थी, जिन्होंने उनके समक्ष उनकी तमिल फिल्म में अभिनय करने का प्रस्ताव रखा। इस तरह उनके करियर की शुरुआत बालाचंदर निर्देशित तमिल फिल्म 'अपूर्वा रागंगाल' (1975) से हुई, जिसमें वह खलनायक बने। यह भूमिका यूं तो छोटी थी, लेकिन इसने उन्हें आगे और भूमिकाएं दिलाने में मदद की। इस फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया था। करियर की शुरुआत में तमिल फिल्मों में खलनायक की भूमिकाएं निभाने के बाद वह धीरे-धीरे एक स्थापित अभिनेता की तरह उभरे। तेलुगू फिल्म 'छिलाकाम्मा चेप्पिनडी' (1975) में उन्हें मुख्य अभिनेता की भूमिका मिली। उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। कुछ सालों में ही रजनीकांत तमिल सिनेमा के महान सितारे बन गए और तब से सिनेमा जगत में एक प्रतिमान बने हुए हैं।</p>
<p dir="ltr">रजनीकांत:रोचक तथ्य<br>
* रजनीकांत एक वक्त बस कंडक्टर का भी काम करते थे और यात्री सड़क पर उनकी बस का इंतजार करते थे। लोग उनके टिकट देने तथा खुले पैसे लौटाने के अंदाज से प्रभावित रहते थे। वह अपने अंदाज में मुसाफिरों को टिकट देते थे और खुले पैसे देते थे। उनके मशहूर अंदाज के चलते ही लोग उनकी बस का इंतजार करते थे और सामने से अनेक बसें खाली जाने देते थे। </p>
<p dir="ltr">* संघर्ष के दिनों में रजनीकांत ने बेंगलुरू में मैसूर मशीनरी में भी कुछ दिन काम किया और चावल के बोरे ट्रकों में लादने का भी काम किया जिसके लिए उन्हें 10 पैसे प्रति बोरा मिलता था। </p>
<p dir="ltr">*जब भी रजनीकांत की कोई फिल्म रिलीज़ होती है उनके फैंस एसोसिएशन से जुड़े लोग रजनीकांत के पोस्टर को दूध से नहलाते हैं।</p>
<p dir="ltr">*रजनीकांत को समर्पित 1,50,000 से अधिक फैन क्लब हैं जो दुनिया भर में फैले हुये है।</p>
<p dir="ltr">* वे देश के एकमात्र ऐसे फिल्म अभिनेता है जो कि सीबीएसई की 12वीं कक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल किए हैं। बस कंडक्टर से सुपरस्टार तक उनकी जीवन यात्रा का पाठ छात्रों को पढ़ाया जाता है।</p>
<p dir="ltr">* रजनीकांत अपनी सादगी के लिए जाने जाते हैं। निजी जीवन में आम आदमी की तरह रहते हैं। रोचक घटना है कि एक बार एक औरत ने सुपरस्टार रजनीकांत को भिखारी समझकर 10 रूपए का नोट थमा दिया था।दरअसल,रजनीकांत अपने सादे पहनावे में एक मंदिर गए थे जहां दर्शन के बाद वे मंदिर के किनारे थोड़ी देर के लिए बैठ गए। तभी वहां से एक महिला गुजरी और उसने रजनीकांत को भिखारी समझते हुए 10 रूपए का नोट भीख में दिया।</p>
<p dir="ltr">लोकप्रिय और सफल फ़िल्में -<br>
*कबाली<br>
*रोबोट<br>
*शिवाजी<br>
*लिंगा<br>
*कोच्चदियां<br>
*बाशहा<br>
*थालापट्ठी<br>
*चंद्रमुखी<br>
*मुत्तु<br>
*राणा</p>
<p dir="ltr">प्रमुख हिंदी फ़िल्में:<br>
*हम<br>
*अंधा कानून<br>
*जॉन जॉनी जनार्दन<br>
*चालबाज़<br>
*फूल बने अंगारे<br>
*असली नकली</p>
<p dir="ltr">अमिताभ बच्चन:<br>
इतना लंबा वक्त बीत गया है रजनी को स्टार बने, लेकिन आज भी वो पहले जैसे ही नर्म, सरल, ईमानदार और जमीन से जुड़े हुए हैं। मैं रजनीकांत के गुणों से सदा प्रभावित रहा हूं। रजनीकांत सही मायनों में धरतीपुत्र हैं।</p>
<p dir="ltr">सचिन तेंदुलकर: रजनीकांत का उत्साह अद्भुत है, जो आस-पास के अन्य लोगों के अन्दर भी उत्साह जगा देता है।</p>
Somya Aparajitahttp://www.blogger.com/profile/14438976490936719303noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-694989969122548218.post-36978569808258988712016-08-09T12:02:00.001+05:302016-08-11T10:23:25.118+05:30इतिहास के झरोखों से<p dir="ltr">-सौम्या अपराजिता</p>
<p dir="ltr">जब कुछ रोचक और नया गढ़ना मुश्किल लगने लगता है,तो अक्सर निर्माता-निर्देशक इतिहास के झरोखों में झांकने लगते हैं। बीते काल और परिवेश से जुड़ी रोचक कहानियों के तिनके ढूँढने के बाद उन्हें अपनी सृजनशीलता,सुविधा और समझ से फ़िल्मी कैनवास पर उतारने के मुश्किल और रचनात्मक प्रयास में लग जाते हैं। कई विशेषज्ञ निर्देशक अपने इस प्रयास में सफल भी होते हैं...परिणामस्वरूप हिंदी सिनेमा को ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित 'मुग़ल ए आज़म','अनारकली','लगान','जोधा अकबर' और 'बाजीराव मस्तानी' जैसी क्लासिक फ़िल्में उपहार स्वरुप मिल जाती हैं। आने वाले दिनों में भी ऐतिहासिक परिवेश में रची-बसी कई फ़िल्में इतिहास में घटी रोचक घटनाओं के प्रति दर्शकों की उत्सुकता और जिज्ञासा की क्षुधा मिटाने सिल्वर स्क्रीन पर आ रही हैं।</p>
<p dir="ltr">मोहंजो दारो:<br>
आशुतोष गोवारिकर ऐतिहासिक फिल्मों को विश्वसनीयता के साथ पर्दे पर उतारने में सफल रहे हैं। हालांकि,'मोहंजो दारो' के साथ वे कुछ अलग कर रहे हैं। इस फ़िल्म में उन्होंने सिंधु घाटी सभ्यता के सबसे समृद्ध नगर मोहंजो दारो के ऐतिहासिक परिवेश की पृष्ठभूमि में काल्पनिक कहानी बुनी है। उल्लेखनीय है कि रितिक रोशन अभिनीत इस फ़िल्म को रिलीज से पहले आलोचना का शिकार होना पड़ रहा है।  प्रशंसकों ने सिंधु घाटी सभ्यता का चित्रण करने के लिए इस्तेमाल की गई वीएफएक्स तकनीक को लेकर ट्रेलर पर सवाल उठाए हैं। फिल्म की आलोचना करने वालों का कहना है कि ट्रेलर देखकर लगता ही नहीं कि वे हड़प्पा सभ्यता के किसी शहर को देख रहे हैं। इस फिल्म के ट्रेलर को देखकर ऐसा लगता है कि जैसे ये ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर बनी कोई लव स्टोरी हो। इस सन्दर्भ में निर्देशक आशुतोष गोवारिकर बेहद सधे अंदाज में कहते हैं,' एक ट्रेलर में हमारी अपनी छवि या प्रतिक्रिया होती है। एक ट्रेलर में, आप एक कहानी चित्रित करने का प्रयास करते हैं। कुछ तत्व आपको चकित करते हैं लेकिन आप धैर्य रखें और फिल्म देखने के बाद अपनी राय बनाएं।'</p>
<p dir="ltr">रुस्तम:<br>
अक्षय कुमार अभिनीत 'रुस्तम' में द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान मुंबई में घटे एक वास्तविक प्रसंग की रोचक गाथा को बुना गया है। फ़िल्म की कहानी 1959 में मुंबई के एक चर्चित मर्डर केस पर आधारित है। फ़िल्म की कहानी 'नेवल अफसर केके नानावटी की है जिसने अपनी पत्नी के प्रेमी की हत्या कर दी थी। उस दौर में भी ये केस अखबारों की सुर्खियां बना था। अपनी पत्नी के प्रेमी की हत्या कर दी थी। उस दौर में भी यह केस अखबारों की सुर्खियां बना था। 'रुस्तम' की विशेषता अभिनेता-निर्माता अक्षय कुमार और नीरज पांडे की जोड़ी है जो पहले भी कई सफल फिल्मो से दर्शकों का मनोरंजन कर चुकी है।</p>
<p dir="ltr">रंगून:<br>
'रंगून' द्वितीय विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि पर केंद्रित है। विशाल भारद्वाज निर्देशित और साजिद नाडियाडवाला निर्मित 'रंगून' में शाहिद कपूर इंडियन नेशनल आर्मी (आईएन) के एक सैनिक की भूमिका निभा रहे हैं। सैफ अली खान और कंगना रनौत भी केंद्रीय भूमिकाओं में हैं। देखना रोचक होगा कि कंगना की प्रतिभा को विशाल इस पीरियड ड्रामा में कैसे सामने लेकर आते हैं। कंगना फिल्म को एक ‘जुनूनी प्रेम कहानी’ बताती हैं, जो भारतीय इतिहास के अशांत दौर पर आधारित है। कंगना फ़िल्म के विषय में बताती हैं ‘यह फिल्म 1940 के दशक की कहानी कहती है, जब द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ था। फिल्म में तीन किरदार हैं जिनमें से एक मशहूर अभिनेता और उनका मार्गदर्शक है जिसके साथ वह प्यार कर बैठती हैं। दूसरा एक सैनिक है। फिल्म में आजादी और उस दौर से जुड़ी और भी बहुत सारी चीजें हैं। यह एक जुनूनी प्रेम कहानी है।’</p>
<p dir="ltr">पद्मावती:<br>
संजय लीला भंसाली ने एक बार अपनी नयी फ़िल्म के कथानक के लिए भारतीय इतिहास की एक और अनूठी प्रेम कहानी को चुना है। दरअसल,संजय अपनी नयी फ़िल्म 'पद्मावती' में मेवाड़ की रानी पद्मावती के प्रति ख़िलजी वंश के शासक अलाउद्दीन खिलजी के आकर्षण को पर्दे पर दिखाना चाहते हैं। गौरतलब है कि रानी पद्मावती अपनी खूबसूरती और साहस के लिए बेहद लोकप्रिय थीं। पद्मावती के केंद्रीय चरित्र के लिए दीपिका पादुकोण का नाम तय हो चुका है,वहीँ अलाउदीन ख़िलजी की भूमिका में रणवीर सिंह के नाम की मुहर लग चुकी है जबकि रानी पद्मावती के पति राणा रतन सिंह की भूमिका फिल्‍म ‘मसान’ के एक्टर विकी कौशल निभा सकते हैं।</p>
<p dir="ltr">सन्स ऑफ सरदार- द बैटल ऑफ सारागढ़ी:<br>
अजय देवगन निर्मित 'सन्स ऑफ सरदार- द बैटल ऑफ सारागढ़ी' सारागढ़ी की ऐतिहासिक लड़ाई पर बन रही है जो 12 सितंबर 1897 में सिक्ख रेजिमेंट के 4th बैटेलियन के 21 सिक्खों ने लड़ी थी। अजय ने इस फिल्म को लेकर काफी रिसर्च किया है। वे 'सन्स ऑफ सरदार- द बैटल ऑफ सारागढ़ी' को भारत की सबसे बड़ी फिल्मों में शामिल करना चाहते हैं। गौरतलब है कि अजय की यह महत्वकांक्षी फ़िल्म अगले वर्ष दीवाली के दौरान प्रदर्शित होगी।</p>
<p dir="ltr">झांसी की रानी:<br>
केतन मेहता की फिल्म 'रानी लक्ष्मीबाई' में कंगना रनोट वीरांगना लक्ष्मीबाई के रूप में नजर आएंगी जिन्होंने ब्रिटिश राज के खिलाफ आवाज बुलंद की थी। कंगना को फिल्म की स्क्रिप्ट बहुत पसंद आयी है और उनका कहना है कि वह एक मां और वीर स्त्री का रोल करने के लिए बहुत उत्साहित हैं। कंगना ने फ़िल्म के लिए तलवारबाजी और घुड़सवारी सीखना शुरू कर दी हैं। जल्द ही भारतीय इतिहास की लोकप्रिय वीरांगना लक्ष्मीबाई के जीवन पर आधारित इस फ़िल्म की शूटिंग ग्वालियर और बुंदेलखंड के इलाक़ों में शुरू होगी।</p>
<p dir="ltr">रानी रत्नावती:<br>
राजस्थान स्थित भानगढ़ की रानी रत्नावती के जीवन पर आधारित फ़िल्म के निर्माण की योजना बन रही है। संभव है कि ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित इस फ़िल्म में सोनाक्षी सिन्हा रानी रत्नावती की केंद्रीय भूमिका में नजर आएंगी। फिल्म का निर्देशन संभवत: अब्बास मस्तान करेंगे। नवाजुद्दीन सिद्दीकी फ़िल्म से औपचारिक रूप से जुड़ चुके हैं।</p>
Somya Aparajitahttp://www.blogger.com/profile/14438976490936719303noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-694989969122548218.post-63039235432200607592016-06-19T10:56:00.001+05:302016-06-19T10:56:41.907+05:30पापा की पारियां http://somya-aparajita.blogspot.in/2013/12/star-daughter-of-bollywood.html?m=1Somya Aparajitahttp://www.blogger.com/profile/14438976490936719303noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-694989969122548218.post-30989056903365087342016-06-18T12:33:00.002+05:302016-06-18T13:27:24.211+05:30ड्रग्स,नशा और फ़िल्में<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="ltr">
-सौम्या अपराजिता</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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ड्रग्स,स्मोकिंग और अल्कोहल का नशा....व्यक्तित्व ही नहीं,समाज को भी पतन की ओर ले जाता है। नशे के दौरान मिलने वाला क्षणिक आनंद जीवन भर का नासूर बन जाता है। हमारी फिल्मों में भी नशे के इसे बुरे प्रभाव को दिखाने की समय-समय पर कोशिश की गयी है। फ़िल्म निर्माता-निर्देशकों ने अपने-अपने तरीकों से नशा उन्मूलन के सन्दर्भ में प्रयास किए है। अनुराग कश्यप निर्मित और अभिषेक चौबे निर्देशित 'उड़ता पंजाब' इसका ताजा उदहारण है जिसमें पंजाब में ड्रग्स की भीषण समस्या पर प्रकाश डालने की महत्वपूर्ण कोशिश की गयी है। 'उड़ता पंजाब' से पूर्व भी नशे पर आधारित कई फिल्मों ने सिल्वर स्क्रीन पर दस्तक दी है।<br />
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1971 में आई फिल्म 'हरे रामा हरे कृष्णा' संभवतः पहली बार ऐसी फ़िल्म थी जिसमें ड्रग्स की लत के बुरे प्रभाव को दिखाया गया था। जीनत अमान पर फिल्माया गया गीत 'दम मारो दम' ड्रग्स में डूबे युवाओं की मनोदशा को सही मायनों में दर्शाता है। अगर कहें कि देव आनंद अभिनीत यह फ़िल्म ड्रग्स के प्रति आम दर्शकों में जागरूकता का संचार करने वाली पहली फ़िल्म थी,तो गलत नहीं होगा। इस फ़िल्म के प्रदर्शन के कुछ वर्ष बाद आयी 'चरस' में भी ड्रग्स के मुद्दे को उठाया गया था। हालांकि,धर्मेन्द्र और हेमा मालिनी अभिनीत इस फ़िल्म में ड्रग्स की स्मगलिंग पर प्रकाश डाला गया था। अवैध तरीके से ड्रग्स की स्मगलिंग कर देश के युवाओं को दिग्भ्रमित करने वाले गिरोह के पर्दाफाश की कहानी को इस फ़िल्म में कहा गया था।</div>
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नयी पीढ़ी के फिल्मकारों ने भी ड्रग्स के प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष प्रभाव को समय-समय पर दिखाने की कोशिश की है। कुछ वर्ष पूर्व आई सुदीप्तो भट्टाचार्य निर्देशित और बिपाशा बसु अभिनीत फ़िल्म 'पंख' में ड्रग्स के दुष्प्रभाव को दिखाया गया था। हालांकि,इस फ़िल्म में ड्रग्स की लत से पीड़ित किशोर के मनोविज्ञान पर अधिक प्रकाश डाला गया था। फ़िल्म का किशोर नायक नशीली दवाओं की डोज़ लेकर बिपाशा बसु की फंतासी करता है। उधर मधुर भंडारकर ने 'फैशन' में कंगना रनोट द्वारा अभिनीत शोनाली बोस के किरदार के जरिये यह दिखाने की कोशिश की कि किस तरह ड्रग्स की आदत एक सफल व्यक्ति को गुमनामी और हताशा के गर्त में ले जा सकती है।</div>
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<a href="https://3.bp.blogspot.com/-jlBUq1NoF64/V2TxJveVBVI/AAAAAAAAMH0/jh7Mpr6Vn_UZQlMtdJN_ur9NSxdc0ZOGQCLcB/s1600/images%2B%25281%2529.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="224" src="https://3.bp.blogspot.com/-jlBUq1NoF64/V2TxJveVBVI/AAAAAAAAMH0/jh7Mpr6Vn_UZQlMtdJN_ur9NSxdc0ZOGQCLcB/s400/images%2B%25281%2529.jpg" width="400" /></a></div>
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अनुराग कश्यप ने 'उड़ता पंजाब' से पूर्व भी अपनी फिल्मों की कहानी में नशा और उसके प्रभाव को दिखाने की कोशिश की है। जहाँ 'देव डी' में देवदास बने अभय देओल बचपन की प्रेमिका पारो की शादी के बाद ड्रग्स के नशे में चूर हो जाते है,वहीँ 'नो स्मोकिंग' में जॉन अब्राहम धूम्रपान के नशे से दूर होने की कोशिश में दिखते हैं। अनुराग निर्मित एक और फ़िल्म 'शैतान' में ड्रग्स के बुरे प्रभाव के इर्द-गिर्द कहानी बुनी गयी थी। फ़िल्म में नशीली दवाओं और शराब में डूबे पांच दोस्त नशे में चूर हो कर अपनी कार से एक स्कूटर सवार को कुचल डालते हैं। नशे के प्रभाव में घटी इस घटना के बाद उनके पश्चाताप की कहानी फ़िल्म में कही गयी है।</div>
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विशाल भारद्वाज निर्देशित फ़िल्म 'सात खून माफ़' के एक हिस्से में भी ड्रग्स के मुद्दे को उठाया गया था। फ़िल्म में जॉन अब्राहम ने प्रियंका चोपड़ा के दूसरे पति की भूमिका निभायी थी जो नशे में लिप्त है। फ़िल्म में प्रियंका ने जॉन के नशे की लत छुड़ाने की बेहद कोशिश की,लेकिन कामयाब नहीं होने पर ड्रग्स का ओवरडोज़ देकर उसे जान से मार डाला।</div>
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कुछ वर्ष पूर्व प्रदर्शित हुई 'दम मारो दम' में गोवा की पृष्ठभूमि पर आधारित ड्रग्स माफिया की कहानी को दिखाया गया था। उधर सैफ अली खान अभिनीत जॉम्बीज पर आधारित फिल्म 'गो गोवा गॉन' भी पूरी तरह ड्रग्स पर आधारित थी। फिल्म तीन युवाओं की कहानी है जो जिंदगी के मजे लेने के लिए गोआ छुट्टियां मनाने जाते हैं। इन तीनों युवा दोस्तों का मानना है कि जिंदगी में एक्साइटमेंट काफी जरूरी है और इसलिए गोआ में तीनों दोस्त नशे का सहारा लेते हैं। </div>
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हालांकि,हमारी फिल्मों में ड्रग्स और नशे के बुरे प्रभाव को समय-समय पर दिखाया गया है,मगर इस सन्दर्भ में जागरूकता लाने के लिए ऐसी फिल्मों के निर्माण की जरुरत है जो फ़िल्मी मसाले से इतर इस गंभीर समस्या की गहराई में जाकर प्रभावशाली तस्वीर पेश करे। उम्मीद है...तमाम अड़चनों को झेलने के बाद रिलीज हुई फ़िल्म 'उड़ता पंजाब' ऐसी ही फ़िल्म होगी।<br />
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नशे के मुद्दे पर आधारित फ़िल्में-<br />
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हरे रामा हरे कृष्णा<br />
चरस<br />
जांबाज़<br />
जलवा<br />
फैशन<br />
देव डी<br />
शैतान<br />
पंख<br />
दम मारो दम<br />
गो गोआ गॉन<br />
उड़ता पंजाब</div>
</div>
Somya Aparajitahttp://www.blogger.com/profile/14438976490936719303noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-694989969122548218.post-51925106056437395652016-06-17T10:48:00.001+05:302016-06-17T11:03:12.785+05:30चार की चमक : पृष्ठभूमि नहीं,हुनर है हिट<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
-सौम्या अपराजिता<br />
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फ़िल्मी दुनिया में खुद को स्थापित करना गैरफ़िल्मी पृष्ठभूमि के कलाकारों के लिए टेढ़ी खीर होती है। इन कलाकारों के पास प्रतिभा और कुछ कर दिखाने का हौसला तो होता है,मगर शुरुआती पहचान और अवसर के लिए आवश्यक फ़िल्मी संपर्क और प्रभाव का अभाव होता है। कई पापड़ बेलने के बाद यदि शुरुआती अवसर मिल भी जाता है,तो उसके बाद फ़िल्मी पृष्ठभूमि वाले स्टार कलाकारों की प्रभावशाली मौजूदगी के बीच खुद को स्थापित करने की चुनौती होती है। विशेषकर गैरफ़िल्मी पृष्ठभूमि की अभिनेत्रियों के लिए तो फ़िल्मी दुनिया में सफलता का सफ़र मुश्किल भरा होता है। ऐसे ही मुश्किल भरे सफ़र को अपने बुलंद हौसलों और हुनर के साथ तय कर हिंदी फिल्मों में सफलता की कहानी लिखी है-बरेली की प्रियंका चोपड़ा,मंडी की कंगना रनोट,बैंगलुरु की अनुष्का शर्मा और दीपिका पादुकोण ने। कंगना,प्रियंका,दीपिका और अनुष्का शर्मा ने खुद को सिर्फ समर्थ अभिनेत्री के रूप में ही स्थापित नहीं किया है,बल्कि इन चारों अभिनेत्रियों ने बता दिया है कि अगर हौसला,हुनर और जोश हो,तो गैर फ़िल्मी पृष्ठभूमि की अभिनेत्रियां भी सफलता के सोपान को छू सकती हैं। बाहर से आयी इन अभिनेत्रियों ने अपने अभिनय और आकर्षण के दम पर फ़िल्मी दुनिया में प्रभावशाली पहचान बनायी है। इन्होंने पुरुष प्रधान हिंदी फ़िल्मी दुनिया के समीकरण को बदल कर नायिका प्रधान फिल्मों के सुनहरे भविष्य की नींव रखी है।<br />
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<a href="https://3.bp.blogspot.com/-Tc7rv7aB7nk/UlJN8JqK0sI/AAAAAAAACO0/sIAPHVLb3MMcxgraC0_iN9hDwcpsuCVAQCKgB/s1600/krrish-3-12a.jpg.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="250" src="https://3.bp.blogspot.com/-Tc7rv7aB7nk/UlJN8JqK0sI/AAAAAAAACO0/sIAPHVLb3MMcxgraC0_iN9hDwcpsuCVAQCKgB/s400/krrish-3-12a.jpg.jpeg" width="400" /></a></div>
प्रियंका की प्रतिभा<br />
विविध रंग की भूमिकाओं में ढलने की कला में पारंगत हो चुकी प्रियंका चोपड़ा हर अंदाज और कलेवर में दर्शको को प्रभावित करती हैं। गैर फ़िल्मी पृष्ठभूमि की यह अभिनेत्री अभिनय की हर कसौटी पर खरी उतरने के लिए तैयार रहती है। 'अंदाज' से 'मैरी कॉम' तक के फ़िल्मी सफ़र में प्रियंका ने तमाम उतार-चढाव के बीच हिंदी फिल्मों में अपनी प्रभावी पहचान बनायी है। सही मायने में प्रियंका ने हिंदी फिल्मों में अभिनेत्रियों के अस्तित्व को सकारात्मक उड़ान दी है। अपने संघर्ष भरे सफ़र के विषय में प्रियंका कहती हैं,' मैं जब फिल्म जगत में आई तो मेरी उंगली पकड़ने और मुझे यह कहकर रास्ता दिखाने वाला कोई नहीं था कि 'यह सही दिशा है।' मुझे कभी कोई मार्गदर्शक नहीं मिला और न ही मेरी ऐसे लोगों से दोस्ती थी, जो फिल्मों के बारे में कुछ जानते हों। मिस वर्ल्ड का खिताब जीतने के बावजूद शुरूआती दिनों में मुझे काफी संघर्ष करना पड़ा। मुझे साइन करने के बावजूद कई बार तो इसलिए फिल्मों से बाहर कर दिया गया कि कोई और अभिनेत्री किसी तगड़ी सिफारिश के साथ निर्माता के पास पहुंच गई थी। लेकिन मैं उस समय कुछ करने की स्थिति में नहीं थी। इससे मुझे दुख तो हुआ, लेकिन यह सीख भी मिली कि कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं है। आज जब पीछे मुड़कर देखती हूं,तो मुझे अपने संघर्ष पर गर्व होता है। उसी संघर्ष की बदौलत आज मैं इस मुकाम पर हूं।'<br />
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<a href="https://1.bp.blogspot.com/-DbllZp3Mnpo/SQAkw3OuihI/AAAAAAAAAD0/uyUlCZRHqYQwB2NB4t6GkDVU5KxdjQdRgCKgB/s1600/IMG_8028.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="400" src="https://1.bp.blogspot.com/-DbllZp3Mnpo/SQAkw3OuihI/AAAAAAAAAD0/uyUlCZRHqYQwB2NB4t6GkDVU5KxdjQdRgCKgB/s400/IMG_8028.JPG" width="266" /></a></div>
कंगना की खनक<br />
फिल्मों में अवसर मिलने के शुरूआती संघर्ष से लेकर दो बार राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार की विजेता बनने तक का कंगना रनोट का सफ़र उन युवतियों के लिए प्रेरणादायक है जो देश के सुदूर इलाकों में बैठकर अभिनेत्री बनने का सपना संजोया करती हैं। कंगना ने सामान्य पारिवारिक पृष्ठभूमि की मजबूरियों के साथ तमाम परेशानियों से जूझते हुए आज वह मुकाम बनाया है जो फ़िल्मी चकाचौंध में पली-बढ़ी अभिनेत्रियों के लिए भी दूर की कौड़ी साबित हो रही है। अपने संघर्ष के अनुभवों को बांटते हुए कंगना कहती हैं,'बीच में एक दौर ऐसा आया था, जब मुझे लग रहा था कि अब मेरा कुछ भी नहीं हो सकता है। मुझे ढंग की फिल्में नहीं मिल रही थी। हर तरफ मेरी आलोचना हो रही थी। ‘तनु वेड्स मनु’ और ‘क्वीन’ के बाद बहुत फर्क आ गया है। नाकामयाबी के उस दौर में भी मैंने हिम्मत नहीं हारी थी। मैंने कभी परवाह नहीं की कि लोग मेरे बारे में क्या कह रहे हैं। खुद को मांजती रही और आने वाले अवसरों के लायक बनती रही। मेरा तो एक ही लक्ष्य रहा कि जो मुझे अभी लायक नहीं मान रहे हैं, उनके लिए और बेहतर बनकर दिखाऊंगी। मैं खुद को भाग्यशाली नहीं मानती हूं। मैंने हमेशा हर चीज में बहुत संघर्ष किया है। पिछले दस सालों में मैंने काफी कुछ सहा है। मैं हमेशा से ही यहाँ एक बाहरी व्यक्ति थी और हमेशा ही रहूंगी। एक समय था जब मेरे लिए हिंदी फिल्मों में काम पाना मुश्किल था पर अब ऐसा बिल्कुल नहीं है। अब अलग तरह का संघर्ष है लेकिन पहले जितना नहीं।'<br />
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<a href="https://3.bp.blogspot.com/-tTZ9NKduLZk/UnTqVj2pPEI/AAAAAAAACvk/eIrpwIF4PjEtIQLrbwj13wVidstt1AjtQCKgB/s1600/IMG_8991-751292.jpg%25282%2529-777303.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="266" src="https://3.bp.blogspot.com/-tTZ9NKduLZk/UnTqVj2pPEI/AAAAAAAACvk/eIrpwIF4PjEtIQLrbwj13wVidstt1AjtQCKgB/s400/IMG_8991-751292.jpg%25282%2529-777303.jpeg" width="400" /></a></div>
दीपिका की दिलकशी<br />
बंगलुरु में जब दीपिका पादुकोण अपने पिता प्रकाश पादुकोण के साथ बैडमिंटन की प्रैक्टिस किया करती थीं,तब उन्होंने सोचा भी नहीं था कि एक दिन वे हिंदी फिल्मों की शीर्ष श्रेणी की नायिका बनेंगी। उन्हें इस बात का इल्म नहीं था कि जिन हाथों में अभी रैकेट है उसमें कभी फिल्मफेयर अवार्ड की ट्रॉफी होगी। ...पर ऐसा हुआ और आज हिंदी फ़िल्मी दुनिया में गैर फ़िल्मी पृष्ठभूमि की दीपिका की सफलता और लोकप्रियता का दीप अपनी रौशनी बिखेर रहा है। उनकी खूबसूरती के चर्चे तो हमेशा ही होते रहे हैं। अब तो, अजब सी अदाओं वाली इस हसीना के अभिनय का जादू भी चलने लगा है। अब वे सिर्फ अपनी बदौलत किसी फ़िल्म को कामयाब बनाने की क्षमता रखती हैं। उन्होंने नए दौर में अभिनेत्रियों के अस्तित्व को सशक्त बनाने में अहम भूमिका निभायी है। दीपिका को गर्व है कि गैर फ़िल्मी पृष्ठभूमि से होने के बाद भी वे हिंदी फिल्मों में खुद को स्थापित करने में सफल रहीं हैं। दीपिका कहती हैं,'अच्छा लगता है जब लोग कहते हैं कि तुम बिना किसी सपोर्ट के,बिना किसी गॉडफादर के यहाँ तक आई हो। यह बड़ी उपलब्धि लगती है।'<br />
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<a href="https://1.bp.blogspot.com/-dysyR7SzBv0/UqIYz0_YOVI/AAAAAAAAC6E/h16TFjQb6wcKwevk6yGiA1bOu74W30rmwCKgB/s1600/images_35.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="400" src="https://1.bp.blogspot.com/-dysyR7SzBv0/UqIYz0_YOVI/AAAAAAAAC6E/h16TFjQb6wcKwevk6yGiA1bOu74W30rmwCKgB/s400/images_35.jpeg" width="272" /></a></div>
अनुष्का का आकर्षण<br />
बचपन में जब अनुष्का शर्मा अपने प्रिय अभिनेता शाहरुख़ खान और अक्षय कुमार की फ़िल्में देखती थीं,तो अक्सर अपनी मां से मजाक में कहा करती थी,'मां...देखना मैं एक दिन शाहरुख़ और अक्षय के साथ फ़िल्म करूंगी।' उन्हें नहीं पता था कि उनका यह मजाक एक दिन हकीकत बन जायेगा। अनुष्का की पहचान आज सिर्फ शाहरुख़ खान की नायिका के रूप में नहीं,बल्कि हिंदी फिल्मों की समर्थ और सक्षम अभिनेत्री की है। अनुष्का ने अपने स्वाभाविक अभिनय और आकर्षण से खुद को स्टार अभिनेत्री बनाया और यह साबित कर दिया कि फ़िल्मी दुनिया में सफलता के लिए पृष्ठभूमि से अधिक हुनर मायने रखता है। अभी तक दस फिल्मों में अपने शानदार अभिनय की बानगी पेश कर चुकी अनुष्का कहती हैं,'मैं फ़िल्मी बैकग्राउंड से नहीं हूं। फिल्मों को लेकर जो ज्ञान मुझे आज है वो सात सालों में सात फिल्में करने के बाद आया है। अब ये मेरा पैशन बन चुका है। '</div>
Somya Aparajitahttp://www.blogger.com/profile/14438976490936719303noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-694989969122548218.post-82443787397468609632016-06-17T10:28:00.001+05:302016-06-17T12:03:16.278+05:30ठंडे बस्ते में...<p dir="ltr">-सौम्या अपराजिता</p>
<p dir="ltr">कहते हैं हमेशा बड़ी-बड़ी योजनाएं सफल नहीं होतीं। कई बार परिस्थितियां उन योजनाओं के कारगर होने में बाधक हो जाती हैं जिस कारण उसे आगे बढ़ाना और <u>व्या</u>वहारिक रूप देना मुश्किल हो जाता है। कई बार हमारी हिंदी फिल्मों के साथ भी ऐसा ही होता है। गाजे-बाजे के साथ बड़े सितारों की मौजूदगी के बीच फ़िल्म की घोषणा की जाती है,मगर बाद में पता चलता है कि उस फ़िल्म विशेष के निर्माण की योजना पर पानी फिर गया है। फ़िल्म डिब्बा-बंद हो जाती है। इसकी वजहें कई होती हैं। कई बार चुने हुए सितारों की अत्यधिक व्यस्तता के कारण,तो कई बार उचित पूँजी के अभाव में घोषित फ़िल्म के निर्माण की योजना टालनी पड़ती है। आइये नजर डालते हैं पिछले कुछ दिनों में घोषित हुई उन फिल्मों पर जो अभी भी निर्माण की पहली सीढ़ी पर नहीं पहुँच पायी हैं। ऐसे में इन्हें फ़िलहाल 'डिब्बा-बंद' ही माना जा रहा है।</p>
<p dir="ltr">दर्शकों ने 'मुन्नाभाई एम बी बी एस' और 'लगे रहो मुन्नाभाई' में मुन्ना और सर्किट की जोड़ी को खूब पसंद किया। इसलिए निर्माता विधु विनोद चोपड़ा और निर्देशक राजू हिरानी ने 'मुन्ना भाई चले अमेरिका' की योजना बनाई। फ़िल्म का प्रोमो भी रिलीज कर दिया गया....मगर सात वर्ष बाद भी फ़िल्म का निर्माण नहीं शुरू हो पाया। कहा जा रहा है कि पहले फ़िल्म की निर्देशक राजू हिरानी की 'पी के' के निर्माण में व्यस्तता और फिर संजय दत्त के कारावास के कारण इस फ़िल्म का निर्माण तय समय पर नहीं हो पाया। हालांकि,राजू हिरानी और विधु विनोद चोपड़ा ने दर्शकों को भरोसा दिलाया है कि वे मुन्नाभाई सीरीज की तीसरी फ़िल्म बनाएंगे,मगर वह 'मुन्नाभाई चले अमेरिका' नहीं होगी।</p>
<p dir="ltr">'हेरा-फेरी 3' लगातार मुसीबत में फंसी हुई है। योजना तो यह थी कि इस फिल्म को पिछले वर्ष अगस्त में प्रदर्शित कर दिया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। अक्षय कुमार और सुनील शेट्टी की जगह जॉन अब्राहम और अभिषेक बच्चन को चुन लिया गया था, लेकिन जॉन फिल्म से अलग हो गए। उनके बाद हाल ही में अभिषेक ने भी फिल्म से अलग होने की बात कह दी। अभिषेक बच्चन ने कहा है कि वह अब कॉमेडी फिल्म 'हेरा फेरी 3' का हिस्सा नहीं है। फिल्म 'हेरा फेरी 3' के बारे में पूछे जाने पर अभिषेक ने बताया, 'मैं अब यह फिल्म नहीं कर रहा हूं।' नीरज वोरा निर्देशित फिल्म 'हेरा फेरी 3' के बारे में एक साल पहले घोषणा कर दी गई थी और पिछले साल जून से फिल्म की शूटिंग भी की गई थी। हालांकि, यह भी खबर थी कि कुछ वजहों से फिल्म की शूटिंग रोक दी गई थी।</p>
<p dir="ltr">'शुद्धि' पिछले दो वर्षों से चर्चा में रही। करण जौहर निर्मित होने वाली यह फ़िल्म अपनी बदलती स्टारकास्ट के कारण सुर्ख़ियों में रही। रितिक रोशन और रणवीर सिंह से होते हुए फ़िल्म सलमान खान की झोली में गिरी...मगर उसके बाद अचानक ही फ़िल्म के लिए वरुण धवन और आलिया भट्ट के नाम की घोषणा कर दी गयी। मगर अब खबर है कि यह बहुचर्चित फ़िल्म फ़िलहाल नहीं बन रही है। 'शुद्धि' फिलहाल ठंडे बस्ते में चली गई है। वरुण धवन ने बताया कि 'शुद्धि' की जगह वे अब अपनी अगली फिल्म 'बद्रीनाथ की दुल्हनिया' पर काम शुरू कर चुके हैं जिसके निर्माता भी करण जौहर ही हैं। वरुण ने कहा,'शुद्धि' पर फिलहाल काम शुरू नहीं हो रहा है, लेकिन मैं करण के एक दूसरे प्रोजेक्ट 'बद्रीनाथ की दुल्हनिया' पर काम शुरू कर चुका हूं।' करण जौहर के मुताबिक 'लॉजिस्टिक' वजहों से 'शुद्धि' के निर्माण की प्रक्रिया पर ब्रेक लग गया है।</p>
<p dir="ltr">पिछले दो वर्ष पूर्व 'नो एंट्री' के सीक्वल 'नो एंट्री में एंट्री' की घोषणा की गयी थी।...मगर सलमान खान की तारीखों के अभाव में इस कॉमेडी फ़िल्म के निर्माण की योजना टलती रही। फिल्म निर्देशक अनीज बज्मी ने करीब डेढ़ साल पहले सलमान को 'नो एंट्री' के सीक्वल की कहानी सुनाई थी। सूत्रों के मुताबिक, जब सलमान को कहानी सुनाई गयी तो उन्होंने इसे पसंद किया। था,मगर अपनी हांमी नहीं भरी थी। कहा तो यह भी जा रहा है निर्माता बोनी कपूर से नाराजगी की वजह से सलमान इस फ़िल्म को टाल रहे हैं। दरअसल,'एआईबी कंट्रोवर्सी' के कारण अर्जुन कपूर से खफा हैं सलमान...जिसका खामियाजा अर्जुन के पिता बोनी कपूर को भुगतना पड़ रहा है। लेकिन अब खबर है कि एक बार फिर 'नो एंट्री में एंट्री' के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हो सकती है। बोनी कपूर जल्द ही सलमान के साथ मिलकर उनसे 'नो एंट्री' के सीक्वल की तारीखों के बारे में चर्चा करेंगे।'नो एंट्री' के सीक्वल की शूटिंग शुरू होने के बारे में बोनी कपूर ने कहा,' सलमान इस पर सही जवाब देंगे। मैंने उनके साथ इस बारे में पहले भी बातचीत की है। हम दोबारा मिलेंगे और फैसला करेंगे। मैं फिल्म 'मॉम' में व्यस्त था। हम अगले कुछ सप्ताह में मिलेंगे और इस बारे में बातचीत करेंगे।'</p>
<p dir="ltr">एक वर्ष पूर्व अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम की बहन हसीना पारकर के जीवन पर आधारित बायोपिक 'हसीना' की घोषणा की गयी थी। इस फ़िल्म के लिए सोनाक्षी सिन्हा का चुनाव भी किया गया था। मगर पिछले दिनों खबर आयी कि सोनाक्षी ने फ़िल्म छोड़ दी है और अब उनकी जगह श्रद्धा कपूर को अप्रोच किया गया है। मगर बात कुछ और ही है। दरअसल,इस फ़िल्म को फिनांसर नहीं मिल पा रहे हैं जिस कारण वक़्त पर फ़िल्म का निर्माण प्रारम्भ नहीं हो पा रहा है। यही वजह है कि सोनाक्षी ने फ़िल्म से खुद को किनारे कर दिया है। अब कहा जा रहा है कि फिलहाल कुछ दिनों के लिए फ़िल्म को ठन्डे बस्ते में डाल दिया गया है।</p>
Somya Aparajitahttp://www.blogger.com/profile/14438976490936719303noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-694989969122548218.post-38911727852080579802016-04-30T09:50:00.000+05:302016-06-17T09:55:06.043+05:30प्रेरित और प्रोत्साहित करते हैं पद्म पुरस्कार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="gmail_quote">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://2.bp.blogspot.com/-oTlZhsH0ZWg/SaT36JeNv8I/AAAAAAAAAFE/cwftQW8p6cov6n_dFNW-ju6KzHVGuXlrwCKgB/s1600/Bollywood.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="400" src="https://2.bp.blogspot.com/-oTlZhsH0ZWg/SaT36JeNv8I/AAAAAAAAAFE/cwftQW8p6cov6n_dFNW-ju6KzHVGuXlrwCKgB/s400/Bollywood.jpg" width="266" /></a></div>
-सौम्या अपराजिता<br />
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पुरस्कार और सम्मान प्रोत्साहन के स्रोत होते हैं। इनसे और भी बेहतर,प्रयोगशील और रचनात्मक बनने और करने की प्रेरणा मिलती है। ..और यह पुरस्कार जब देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान के रूप में हों,तो ये उत्साहवर्द्धक होने के साथ-साथ गौरवशाली भी हो जाते हैं। भारतीय सन्दर्भ में पद्म पुरस्कार ऐसे ही सम्मान हैं।</div>
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<br /></div>
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भारत रत्न के बाद पद्म पुरस्कार भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान हैं। ये पुरस्कार, विभिन्न क्षेत्रों जैसे कला, समाज सेवा, लोक-कार्य, विज्ञान और इंजीनियरी, व्यापार और उद्योग, चिकित्सा, साहित्य और शिक्षा, खेल-कूद, सिविल सेवा इत्यादि के संबंध में प्रदान किए जाते हैं। ये पुरस्कार प्रत्येक वर्ष गणतंत्र दिवस के अवसर पर उद्घोषित किये जाते हैं। कला क्षेत्र के अंतर्गत फ़िल्म जगत से जुड़ी शख्सियतों को भी प्रति वर्ष पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया जाता रहा है। हालांकि,फ़िल्म जगत की प्रतिभाओं को इस प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित करने की परंपरा देर से शुरू हुई,मगर वक़्त के साथ प्रति वर्ष पद्म पुरस्कारों से सम्मानित होने वालों की सूची में फ़िल्म जगत से जुड़ी प्रतिभाओं की संख्या बढ़ती ही जा रही है। इस वर्ष भी प्रियंका चोपड़ा,अनुपम खेर,रजनीकांत,मधुर भंडारकर सहित कई शख्सियतों को पद्म श्री,पद्म भूषण और पद्म विभूषण की उपाधि से सम्मानित किया गया।</div>
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1958 में सर्वप्रथम पद्म पुरस्कारों के लिए हिंदी सिनेमा की शख्सियतों को भी नामांकित किया गया था। उसके बाद तो सिनेमा की विधा में उत्कृष्ट योगदान देने वाली शख्सियतों को यदा-कदा पद्म श्री,पद्म भूषण और पद्म विभूषण की उपाधि के लिए नामांकित किया जाने लगा। सिनेमा के क्षेत्र से सर्वप्रथम पद्म श्री से 1958 में नरगिस,देविका रानी और सत्यजीत रे को सम्मानित किया गया,तो हिंदी सिनेमा जगत से सर्वप्रथम पद्म भूषण से सम्मानित होने वाले कलाकार थे पृथ्वी राज कपूर और लता मंगेशकर। इन दोनों ही कालजयी शख्सियतों को वर्ष 1969 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। भारत रत्न के बाद देश का द्वितीय सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है पद्म विभूषण। इस सम्मान से दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन को सम्मानित किया गया है। इस वर्ष रजनीकांत को इस विशिष्ट सम्मान से सम्मानित किया गया है।</div>
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दरअसल,समय के साथ समाज और देश में सिनेमा का प्रभाव बढ़ा है। और कला के इस अनूठे माध्यम को अब मुख्य धारा से जोड़ कर देखा जाने लगा है। ऐसे में,देश के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान के लिए अब इस क्षेत्र के उत्कृष्ट लोगों को प्रमुखता के साथ शामिल करना आवश्यक हो गया है। यदि पिछले कुछ वर्षो में देखें तो लोकप्रिय कलाकारों और फिल्मकारों को पद्म पुरस्कार के लिए सम्मानित करने का सिलसिला बढ़ा है। आमिर खान से शाहरुख़ खान तक और ऐश्वर्या बच्चन से प्रियंका चोपड़ा तक पद्म पुरस्कारों से सम्मानित हो चुकी हैं। पूर्व में जहाँ बेहद चुनिंदा लोगों को इस सम्मान के लिए चुना जाता था,वहीँ आज के दौर में एक वर्ष में सिनेमा की आधा दर्जन से अधिक शख्सियतों को इस प्रतिष्ठित सम्मान के योग्य समझा जाने लगा है। यह बात सिनेमा से जुड़े लोगों को उत्कृष्ट और सार्थक प्रयास के लिए प्रेरित करती है। इस वर्ष पद्मश्री सम्मान के लिए चुने गए फिल्मकार नील माधव पंडा का कहना है कि यह सम्मान उन्हें देश से संबंधित मुद्दों पर आधारित और अधिक फिल्में बनाने के लिए प्रेरित करेगा। 'आई एम कलाम' के लिए जाने जाने वाले पंडा ने पद्मश्री के लिए चुने जाने पर खुशी जताते हहुए कहा,'मैं काफी खुश हूं कि मुझे पद्मश्री से सम्मानित किया जाएगा। मेरे लिए यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। मैं आश्वस्त हूं कि इससे मुझे देश के लिए प्रासंगिक मुद्दों पर अधिक फिल्में बनाने की दिशा में काम करने के लिए प्रेरणा मिलेगी।'</div>
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*प्रियंका चोपड़ा: 'दिल धड़कने दो' से 'बाजीराव मस्तानी' तक और 'क्वांटिको' के लिए पीपुल्स चॉइस अवॉर्ड पाने तक और अब पद्मश्री.... मैं शब्दों में नहीं बता सकती कि मैं किन एहसास से गुजर रही हूं। मुझे लगता है कि जैसे मेरा सपना सच हो गया है।मेरा मानना है कि यह सब मेरी कड़ी मेहनत का फल है। मैं अपने काम को कभी हल्के में नहीं लेती।'</div>
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*अनुपम खेर:'खुश, विनीत और सम्मानित महसूस कर रहा हूं। एक निर्वासित कश्मीरी पंडित के बेटे को उसकी कड़ी मेहनत के लिए आज प्रतिष्ठित पद्म भूषण मिला है जिन्होंने एक छोटे शहर में वन विभाग में क्लर्क का काम किया। मेरे देश को शुक्रिया।'</div>
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*उदित नारायण :' पद्मभूषण पुरस्कार पाकर मुझे खुशी व गर्व की अनुभूति हो रही है। संतुष्टि के भी भाव हैं कि मेरी 35 बरसों की सेवा सफल हो गई। इस मौके पर मुझे 'लगान' का 'ओ मितवा' गाना याद आ रहा है। वह इंसान को निडर होकर जिंदगी की दुश्वारियों से मुकाबला करने को प्रेरित करता रहता है। मैं आगे भी निडर व निष्पक्ष भाव से संगीत व राष्ट्र की सेवा में अनवरत लगा रहूंगा। इस पुरस्कार से मिथिला के मान में चार चांद लग गए हैं।'</div>
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महत्वपूर्ण सूची-</div>
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अब तक पद्म पुरस्कारों से सम्मानित सिनेमा जगत की शख्सियतें-</div>
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पद्म भूषण :</div>
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*पृथ्वी राज कपूर,लता मंगेशकर(1969)</div>
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*राज कपूर(1971)</div>
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*बी एन सरकार(1972)</div>
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*बी नरसिम्हा रेड्डी,धीरेन्द्र नाथ गांगुली(1974)</div>
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*बेगम अख्तर(1975)</div>
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*मृणाल सेन(1981)</div>
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*एस बालाचंदर(1982)</div>
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*अक्किनेनी नागेश्वर राव(1984)</div>
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*दिलीप कुमार,श्याम बेनेगल(1991)</div>
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*नौशाद,तलत महमूद(1992)</div>
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*रजनीकांत(2000)</div>
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*अमिताभ बच्चन,देव आनंद,प्राण (2001)</div>
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*जगजीत सिंह,नसीरुद्दीन शाह (2003)</div>
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*यश चोपड़ा,मन्ना डे (2005)</div>
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*साई परांजपे,ए के हंगल (2006)</div>
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*आमिर खान,ए आर रहमान(2010)</div>
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*शशि कपूर,वहीदा रहमान (2011)</div>
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*शबाना आज़मी,धर्मेन्द्र(2012)</div>
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*राजेश खन्ना,शर्मीला टैगोर(2013)</div>
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*कमल हासन (2014)</div>
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*अनुपम खेर,उदित नारायण (2016)</div>
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पद्म श्री:</div>
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*नरगिस,देविका रानी,सत्यजीत रे(1959)</div>
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*अशोक कुमार(1962)</div>
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*महबूब खान (1963)</div>
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*मोहम्मद रफ़ी,शशाधर मुखर्जी(1967)</div>
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*बेगम अख्तर,सुनील दत्त,दुर्गा खोटे(1968)</div>
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*बलराज साहनी,राजेन्द्र कुमार,सचिन देव वर्मन (1969)</div>
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*मन्ना डे (1971)</div>
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*ऋषिकेश मुखर्जी,वहीदा रहमान,सुचित्रा सेन,महेंद्र कपूर (1972)</div>
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*नूतन (1974)</div>
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*गोपीकृष्ण,येसुदास(1975)</div>
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*श्याम बेनेगल(1976)</div>
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*भूपेन कुमार हजारिका (1977)</div>
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*अमिताभ बच्चन (1984)</div>
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*अपर्णा सेन (1987)</div>
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*शबाना आज़मी (1988)</div>
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*कमल हासन,लीला सैमसन,मोहन अगाशे,ओम पूरी(1990)</div>
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*आशा पारीख,मनोज कुमार,जया बच्चन (1992)</div>
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*जावेद अख्तर (199)</div>
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*रामानंद सागर,ए आर रहमान,शेखर कपूर,हेमा मालिनी(2000)</div>
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*गोविन्द निहलानी,मणि रत्नम(2002)</div>
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*आमिर खान,डैनी डेंजोप्पा,राखी(2003)</div>
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*हरिहरन,अनुपम खेर(2004)</div>
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*शाहरुख़ खान,कविता कृष्णमूर्ति(2005)</div>
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*टॉम अल्टर,माधुरी दीक्षित(2008)</div>
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*अक्षय कुमार,हेलेन,उदित नारायण,कुमार शानू,ऐश्वर्या राय बच्चन (2009)</div>
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*रेखा,सैफ अली खान (2010)</div>
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*तबस्सुम,काजोल,इरफ़ान खान (2011)</div>
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*श्रीदेवी(2013)</div>
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*संजय लीला भंशाली,रवींद्र जैन,प्रसून जोशी (2015)</div>
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*प्रियंका चोपड़ा,अजय देवगन,मधुर भंडारकर,नीला माधव पांडा,एस राजामौली,सईद जाफ़री (2016)</div>
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Somya Aparajitahttp://www.blogger.com/profile/14438976490936719303noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-694989969122548218.post-72623778304232560022014-12-30T14:55:00.000+05:302014-12-30T14:55:29.658+05:30सिनेमा सौ करोड़ का...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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पूंजी आती है,तो उसका महत्त्व और मूल्य भी घटता जाता है। विशेषकर फ़िल्म व्यवसाय के परिप्रेक्ष्य में तो पैसे का अवमूल्यन इन दिनों जग-जाहिर है। पहले अगर कोई फ़िल्म कुछ हफ्ते सिनेमाघरों में बिता लेती थी,तो उसे बड़ी उपलब्धि समझी जाती थी। तब फिल्मों की सफलता 'सिल्वर जुबली' या 'गोल्डन जुबली' के पैमाने पर मापी जाती थी। अधिक-से-अधिक दिनों तक सिनेमाघरों में ठीके रहना फिल्मों की सफलता का मापदंड था।...लेकिन अब एक-दो हफ्ते में होने वाले फ़िल्म व्यवसाय को उसकी सफलता से जोड़कर देखा जाता है। अब तो आलम यह है कि फ़िल्म की रिलीज़ के तीन-चार दिन ही उसका भविष्य तय कर देते हैं। शायद...इसकी वजह इन तीन-चार दिनों में फिल्मों के सौ करोड़ की कमाई का आंकड़ा छू लेने का ट्रेंड है। पिछले दिनों दीवाली के अवसर पर रिलीज़ हुई 'हैप्पी न्यू ईयर' ने तीन दिनों में ही सौ करोड़ की कमाई कर ली। अब यह फ़िल्म बेहद अभिजात्य 'दो सौ करोड़ क्लब' में भी शामिल हो चुकी है। दरअसल,इन दिनों हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में ' सौ करोड़ी क्लब' में शामिल होना प्रतिष्ठा और सफलता का सबब बन गया है।</div>
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बदली तस्वीर<br /> गौर करें तो बदलते वक़्त के साथ फिल्म निर्माण से लेकर फिल्म की मार्केटिंग के तरीकों में इस कदर बदलाव आया है कि अब फ्लॉप-हिट की परिभाषा धूमिल हो गई है। बड़े प्रोडक्शन हाउसों ने फ़िल्म व्यवसाय की पूरी तस्वीर बदल दी है। अब बड़े प्रोडक्शन हाउस के बैनर तले बड़े बजट में बननेवाली फिल्में एक साथ ढाई से तीन हजार प्रिंटों के साथ रिलीज होती हैं। धुंआधार प्रचार के साथ शुक्रवार को रिलीज होकर फ़िल्में रविवार के आखिरी शो तक नफा-नुकसान का हिसाब सिर्फ तीन दिन में ही तय कर डालती है। फ़िल्म की रिलीज़ के बाद दर्शकों को लुभाने के लिए प्रचार-प्रसार के नये और अनूठे तरीकों से कमाई के आंकड़े को बढ़ाने की कोशिश जारी रहती है और फिर वह दिन भी जल्द ही आ जाता है जब फ़िल्म की कमाई सौ करोड़ के आंकड़े को छू लेती है और 'सौ करोड़ क्लब' में शामिल हो जाती है।</div>
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कमाई के नए आयाम<br /> पिछले कुछ वर्षों में फिल्मों की कमाई के कई नए आयाम उभरे हैं जिसने फ़िल्म व्यवसाय को नयी ऊंचाइयां दी हैं। दरअसल,अब फिल्मों की कमाई सिर्फ टिकट खिड़की पर नहीं होती है। फ़िल्म की कमाई का पचास प्रतिशत यदि 'डिस्ट्रीब्यूशन राइट' से आता है,तो तीस प्रतिशत सेटेलाइट्स राइट से आता है। म्यूजिक राइट से फ़िल्म की पंद्रह प्रतिशत कमाई होती है जबकि शेष पांच प्रतिशत की कमाई टिकट विक्री से होती है। यह फ़िल्म की अतिरिक्त कमाई होती है जो टिकट बिक्री के साथ बढ़ती जाती है। फ़िल्म व्यवसाय के इन नए आयामों के ही कारण फ़िल्में रिलीज के पहले ही अपनी लागत वसूल कर ले रही हैं। यदि 'हैप्पी न्यू ईयर' का ही उदाहरण लें तो 150 करोड़ में बनी इस फ़िल्म ने रिलीज के पूर्व 202 करोड़ (डिस्ट्रीब्यूशन राइट-125 करोड़, सैटेलाइट राइट-65 करोड़ और म्यूजिक राइट- 12 करोड़) की कमाई कर ली थी। दरअसल, बड़े सितारों की फिल्मों की लागत का बड़ा हिस्सा अब सेटेलाइट अधिकार से निकल आता है। इसी वर्ष रिलीज़ हुई 'हॉलीडे' की कुल लागत 75-80 करोड़ थी। करीब 15 करोड़ रुपए मार्केटिग में खर्च किए गए। इस तरह 'हॉलिडे' के निर्माण में 90 करोड़ की पूँजी निवेश की गयी जबकि फिल्म के सेटेलाइट राइट 39 करोड़ रुपए में बिके। `चेन्नई एक्सप्रेस' के सेटेलाइटल राइट 50 करोड़ में बेचे गए थे जबकि फिल्म का कुल बजट 105 करोड़ के करीब था। 120 करोड़ में बनी 'धूम 3' के सेटेलाइट अधिकार 70 करोड़ से अधिक में बिके थे। इन आंकड़ों से ज्ञात है कि सेटेलाइट राइट फिल्मों की बड़ी कमाई का सबसे कारगर माध्यम बन गए हैं।</div>
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टिकट,प्रिंट और थिएटर<br /> फ़िल्म के व्यवसाय को बढ़ाने में टिकट की कीमत,प्रिंट की संख्या,फ़िल्म की रिलीज़ के लिए बुक किये गए थिएटरों की संख्या और रिलीज़ के समय का अहम् योगदान होता है। ट्रेड विशेषज्ञ कोमल नाहटा बताते हैं,'पहले जहां फ़िल्में 200 से 250 प्रिंट्स के साथ रिलीज़ होती थीं वहीं आज धूम-3 जैसी फ़िल्में 4,500 प्रिंट्स के साथ रिलीज़ होती हैं। टिकटों की क़ीमत भी 10-15 रुपए से बढ़कर अब 500 रुपए या इससे भी ज़्यादा पहुंच चुकी है।' दरअसल,मौजूदा दौर में फ़िल्म टिकट की औसत कीमत 160 रुपये हो गयी है। जैसे-जैसे टिकट की कीमत बढ़ती है,फ़िल्म की कमाई भी बढ़ती जाती है। ठीक वैसे ही फिल्म जितने अधिक प्रिंट के साथ रिलीज होती हैं, उतनी ही अधिक कमाई करती हैं। यदि फिल्मों की रिलीज़ के लिए अधिक-से-अधिक थिएटर बुक किये जाते हैं,तो फ़िल्म की रिलीज़ के समय जुड़े दर्शकों के शुरूआती उत्साह के कारण कमाई भी अधिक होती है क्योंकि रिलीज़ के तुरंत बाद दर्शक अधिक-से-अधिक संख्या में सिनेमाघरों में पहुँचते हैं। त्योहारों की छुट्टियों के दौरान रिलीज़ भी फ़िल्म की कमाई के आंकड़ों को बढ़ाने में अहम् योगदान देती है। गौर करें तो सौ करोड़ क्लब में शामिल अधिकांश फ़िल्में त्योहारों के दौरान ही रिलीज़ हुई हैं।</div>
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हकीकत या शगूफा<br /> करोड़ी क्लब में शामिल होने का दबाव दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। हर निर्माता,निर्देशक,अभिनेता और अभिनेत्री इस क्लब का हिस्सा बनकर अपना गुणगान कराना चाहता है। इस ट्रेंड के कारण ही कई बार निर्माता-निर्देशक अपनी फिल्मों की कमाई के आंकड़ों को तोड़-मरोड़कर पेश करते हैं और रिलीज़ होते ही अपनी फ़िल्म को सौ करोड़ी क्लब में शामिल करने की जद्दोजहद में जुट जाते हैं। यही वजह है कि इन दिनों सौ करोड़ क्लब की फिल्मों की कमाई को संदेह की दृष्टि से भी देखा जाने लगा है। निर्माता अपनी फिल्मों की कमाई को इतना बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने लगे हैं कि अब करोड़ी क्लब की फिल्मों की कमाई के हकीकत पर भी प्रश्नचिह्न उठने लगे हैं। निर्देशक बासु चटर्जी कहते हैं,'किसी फिल्म की सफलता-असफलता को 'सौ करोड़ क्लब से जोडऩा बिलकुल गलत बात है। सही का सवाल ही नहीं उठता। ये तो फिल्मकारों की बातें हैं। इसमें कुछ तथ्य नहीं है। भारतीय सिनेमा में 'सौ करोड़ क्लब कल्चर एक प्लेग की बीमारी की तरह है।' सौ करोड़ क्लब की फिल्मों के पहले अभिनेता आमिर खान का यह बयान इस सन्दर्भ में बेहद प्रासंगिक है जिसमें उन्होंने कहा है,'बहुत सारी फिल्मो को सुपरहिट कहा जाता है लेकिन जरूरी नहीं हैं कि वे सुपरहिट हों। फिल्मों की कमाई के आंकड़े निर्माता और सितारे देते हैं।मैं जनता को बताना चाहूंगा कि 99 प्रतिशत आंकड़े फर्जी दिए जाते हैं। आंकड़ों को बढ़ा चढ़ाकर बताया जाता है। हकीकत में बिजनेस से जुड़े लोगों को सही आंकड़ा पता होता है। हमको मालूम है कि वास्तव में फिल्म का कितना धंधा हुआ है। कई बार फिल्म को आडियंस नकार देती है। उनका बिजनेस ठीक नहीं होता तब भी उसे बढ़ा चढ़ाकर बताया जाता है। मैं इतना बता सकता हूं कि लोगों को जब फिल्म पसंद नहीं आती है तो चलती नहीं है। सही आंकड़ों के लिए सर्तकता बरतना जरूरी है। दरअसल, सब लोग जल्दबाजी में रहते हैं। चाहते हैं कि उनकी कमाई के आंकड़े जल्द से जल्द प्रकाशित हो जाएं।' आमिर खान के इस बयान से काफी हद तक जाहिर हो गया है कि 'सौ करोड़ क्लब' की हकीकत संदेह के घेरे में है।</div>
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कला या कारोबार!<br /> सौ करोड़ क्लब के तथाकथित अभिजात्य फ़िल्म निर्माता-निर्देशकों ने व्यावसायिकता से प्रेरित फिल्मों के निर्माण को अधिक तरजीह दी है जिस कारण फिल्मों का कला-पक्ष उपेक्षा का शिकार हो रहा है। इस पूरे ट्रेंड से अर्थपूर्ण और कलात्मक फिल्मों के निर्देशक हतोत्साहित हो रहे हैं। उन्हें अपनी फ़िल्म के निर्माण के लिए आर्थिक सहयोग मिलने में तकलीफ हो रही है क्योंकि अधिकांश निर्माताओं का लक्ष्य 'सौ करोड़ी क्लब' की उम्मीदवार फिल्मों का निर्माण करना बन गया है। वे बड़े सितारों वाली फार्मूला फिल्मों के निर्माण में व्यस्त हैं। यदि कोई प्रतिष्ठित निर्माता प्रयोगधर्मिता से प्रेरित होकर कलात्मक और मुद्दे पर आधारित फ़िल्म बनाता भी है,तो उसे 'सौ करोड़ी क्लब' में शामिल होने के उद्देश्य से बनायी गयी फ़िल्म से मुकाबला करने के लिए तैयार होना पड़ता है। इस मुकाबले में अक्सर उसकी हार होती है क्योंकि उसकी फ़िल्म के मुकाबले 'सौ करोड़ी क्लब' में शामिल होने के लिए तैयार फ़िल्म धुआंधार प्रचार के बाद अधिक प्रिंटों के साथ अधिक सिनेमाघरों में रिलीज़ होती है। दशहरा के मौके पर रिलीज़ हुई 'हैदर' और 'बैंग बैंग' का ही उदहारण लें। जहां 'हैदर' का कलात्मक पक्ष अधिक हावी था,वहीँ 'बैंग बैंग' व्यावसायिक सिनेमा के सारे गुणों से भरपूर था। हालांकि समीक्षकों और दर्शकों की नजर में 'बैंग बैंग' की तुलना में 'हैदर' कहीं बेहतरीन फ़िल्म थी,मगर 'सौ करोड़ी क्लब' में शामिल हुई-'बैंग बैंग'। इसकी वजह थी 'बैंग बैंग' की बड़े पैमाने पर रिलीज़। यह सच है कि 'बैंग बैंग' अधिक सफल रही,मगर ऐसी फ़िल्में कुछ ही दिनों में दर्शकों की यादों से धूमिल हो जाती है...वहीँ दूसरी तरफ 'हैदर' जैसी फिल्मों के हर दृश्य की यादें सिनेप्रेमियों के दिलों में बस जाती हैं। कोमल नाहटा कहते हैं,'दर्शकों की याददाश्त कमज़ोर हो रही है। फ़िल्म कितनी भी बड़ी ब्लॉकबस्टर क्यों ना हो..लोग दो-तीन हफ़्ते में उसे भूल जाते हैं। फ़िल्म अच्छी हो तो वह कारोबार करने के साथ-साथ लंबे समय तक याद रखी जाएगी।'</div>
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हिंदी फिल्मों के बेहतर भविष्य के लिए जरुरी है कि फिल्मों के निर्माण में उसके कलात्मक पक्ष और व्यावसायिक पक्ष के बीच संतुलन बनाया जाए....तभी फ़िल्में 'सौ करोड़' लोगों के दिलों में सौ वर्षों तक रह पाएंगी...वरना 'सौ करोड़ क्लब' का हिस्सा होने के बाद भी सौ से कम दिनों में भूला दी जाएंगी।</div>
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-सौम्या अपराजिता</div>
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करोड़ क्लब-तथ्य</div>
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-सौ करोड़ क्लब में वे फ़िल्में शामिल हैं जिन्होंने भारतीय बाजार से सौ करोड़ रुपये या इससे ज्यादा का कारोबार किया है। <br /> -सौ करोड़ क्लब में अब तक 34 फ़िल्में शामिल हो चुकी हैं। इनमें से छह फिल्मों की कमाई ने दो सौ करोड़ का आंकड़ा पार कर लिया है।<br /> -करोड़ क्लब की शीर्ष फ़िल्म है 'धूम 3'। इसने लगभग 280.25 करोड़ रुपये का कारोबार किया है।<br /> -सौ करोड़ क्लब की अधिकांश फिल्मों के नायक सलमान खान हैं। उनकी सात फिल्में (एक था टाइगर, दबंग 2, दबंग, रेडी, बॉडीगार्ड, जय हो और किक) इस क्लब में शामिल हैं।</div>
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दो सौ करोड़ क्लब-<br /> धूम 3<br /> कृष 3<br /> किक<br /> चेन्नई एक्सप्रेस<br /> 3 इडियट्स<br /> हैप्पी न्यू ईयर<br /> पीके</div>
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सौ करोड़ क्लब-<br /> एक था टाइगर<br /> ये जवानी है दीवानी<br /> बैंग बैंग<br /> दबंग 2<br /> बॉडीगार्ड<br /> सिंघम रिटर्न्स<br /> दबंग<br /> राउडी राठौड़<br /> जब तक है जान<br /> रेडी<br /> गलियों की लीला-रासलीला<br /> जय हो<br /> अग्निपथ<br /> रा.वन<br /> गज़नी<br /> हॉलिडे<br /> बर्फी<br /> भाग मिल्खा भाग<br /> डॉन2<br /> गोलमाल 3<br /> हाउसफुल 2<br /> एक विलेन<br /> सन ऑफ सरदार<br /> बोल बच्चन<br /> टू स्टेट्स<br /> ग्रैंड मस्ती<br /> रेस 2<br /> सिंघम</div>
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Somya Aparajitahttp://www.blogger.com/profile/14438976490936719303noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-694989969122548218.post-29290010837377362192014-12-30T14:21:00.000+05:302014-12-30T14:51:58.019+05:30विवादों का साया....<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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यह वर्ष हिंदी फ़िल्मी दुनिया के लिए उतार-चढ़ाव भरा रहा। एक तरफ इस साल ने सौ करोड़ी फिल्मों के क्लब में नयी फिल्मों को शामिल होते हुए देखा, तो दूसरी तरफ नए ट्रेंड ने भविष्य को नयी दिशा दी। नए चेहरों ने उम्मीद की नयी किरण जगायी,तो विवादों के साए से भी यह साल अछूता नहीं रहा। विवादों की कड़ियों ने एक तरफ फिल्मों की चमकीली दुनिया के रहस्यों का पर्दाफाश किया,तो दूसरी तरफ कुछ सितारो की चमक भी फीकी की। मधुर रिश्ते कड़वे हुए,तो अभिनेत्रियों के सम्मान को लेकर नयी बहस भी छिड़ी। कहना गलत नहीं होगा कि विवादों के कारण यह साल फ़िल्मी दुनिया के लिए बेहद 'हैपनिंग'रहा।</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="http://2.bp.blogspot.com/-5GU8oEh_mrw/VKJfqaXvgWI/AAAAAAAAE0U/Y31boI02up4/s1600/download%2B(3).jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="http://2.bp.blogspot.com/-5GU8oEh_mrw/VKJfqaXvgWI/AAAAAAAAE0U/Y31boI02up4/s1600/download%2B(3).jpg" height="400" width="265" /></a></div>
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चमकीली दुनिया का अंधियारा<br />
'मकड़ी' में अपनी अभिनय प्रतिभा के दम पर राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से सम्मानित हो चुकी श्वेता प्रसाद बसु से जुड़ा विवाद सबसे अधिक सुर्ख़ियों में रहा। श्वेता के सेक्स रैकेट में शामिल होने की खबर ने पूरी फ़िल्मी दुनिया को सकते में ला दिया। एक प्रतिभाशाली अभिनेत्री के इस तरह के विवाद से जुड़ने से फिल्मों की दुनिया का ऐसा सच सामने अाया जो अब तक पर्दे में था।पता चला कि किस तरह प्रतिभा के बावजूद गैर फ़िल्मी पृष्ठभूमि की अभिनेत्रियों के लिए फिल्मों में अपनी जमीन तलाशना मुश्किल होता है। ऐसे में,जब उन्हें अच्छे अवसर नहीं मिलते हैं,तो पूँजी के अभाव में वे ऐसे कुकृत्य में शामिल होने के लिए मजबूर हो जाती हैं। दरअसल,श्वेता कुछ महीने पहले हैदराबाद के एक पांच सितारा होटल से तथाकथित सेक्स स्कैंडल के आरोप में गिरफ्तार की गई थीं। फिलहाल 2 महीने सुधारगृह में बिताने के बाद श्वेता बाहर आ गई हैं और फिर से सक्रिय हैं।<br />
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अभिनेत्रियों के सम्मान की बात<br />
दीपिका पादुकोण ने अभिनेत्रियों के प्रति मीडिया के नजरिये पर नयी बहस छेड़ दी। एक प्रतिष्ठित मीडिया कंपनी के ट्विटर अकाउंट पर दीपिका की लो-नेक लाइन की तस्वीर को 'बड़ी खबर' बताकर पेश किया गया,जिस पर दीपिका ने कड़ा विरोध जताया। दीपिका ने कहा कि यदि मीडिया के लोग अभिनेत्रियों का सम्मान नहीं करते,तो उन्हें महिला सशक्तिकरण की चर्चा करने का कोई अधिकार नहीं है। दीपिका के इस विरोध में दूसरी अभिनेत्रियां भी शामिल हुईं और उन्होंने भी दीपिका का साथ दिया। उधर उस मीडिया कंपनी ने सार्वजनिक रूप से दीपिका पर लांछन लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उधर सोनाक्षी सिन्हा ने भी अभिनेत्रियों को लेकर घटिया नजरिए पर करारा प्रहार किया जब कमाल खान ने अपने ट्विटर अकाउंट पर हिंदी फिल्मों की अभिनेत्रियों के सबसे आकर्षक नितंब का कांटेस्ट शुरू किया। सोनाक्षी ने कमाल की इस हरकत की सरेआम आलोचना की और कमाल को चार थप्पड़ लगाने और उल्टा लटकाकर फांसी लगाने की भी पेशकश कर दी। सोनाक्षी की इस हिम्मत को फ़िल्म प्रेमियों का समर्थन मिला और कमाल को खूब गालियां मिली।<br />
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प्रचार का ये कैसा हथकंडा<br />
प्रचार के एक अजूबे हथकंडे ने आमिर खान को विवाद से जोड़ दिया। 'पीके' को लेकर दर्शकों की जिज्ञासा बढ़ाने के लिए आमिर ने अपनी नंगी तस्वीर का सहारा लिया जिसका जमकर विरोध हुआ। 'पीके' के पहले पोस्टर के रूप में आमिर की नंग-धड़ंग तस्वीर जब पहली बार सामने आयी,तो नयी बहस छिड़ गयी। एक तरफ कुछ लोगों ने इसे भारतीय संस्कृति पर प्रहार करने की हरकत बतायी गयी,तो दूसरी तरफ कुछ लोगों ने इसे कलात्मक बताया और जमकर सराहना की। उधर इस तस्वीर को लेकर विभिन्न सामाजिक संगठनों ने विरोध जताया और प्रदर्शन भी किया। इस तरह आमिर द्वारा प्रचार का यह चर्चित हथकंडा इस वर्ष के विवादों की सूची में शामिल हो गया।<br />
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रिश्ते हुए तार-तार<br />
बनते-बिगड़ते रिश्तों की इस फ़िल्मी दुनिया में इस वर्ष दो मधुर रिश्तों की दुखद परिणति देखने को मिली। प्रीति जिंटा-नेस वाडिया और रितिक रोशन-सुजैन खान के रिश्ते के टूटने ने विवादों का रूप लिया। एक तरफ प्रीति ने नेस पर उत्पीड़न का आरोप लगाया,तो दूसरी तरफ रितिक संग सुजैन के रिश्ते के टूटने के बाद की घटनाएं सुर्खियां बनीं। रितिक-सुजैन की शादी टूटी जिसकी वजह अर्जुन रामपाल के साथ सुजैन की नजदीकियां बतायी गयी। दूसरी तरफ कंगना रनोट संग रितिक के अफेयर की खबर ने भी आग में घी का काम किया। प्रीति जिंटा और नेस वाडिया के बीच की कड़वाहट ने तो कई दिनों तक अख़बारों की सुर्ख़ियों में जगह बनायी। दोनों के बीच आरोप-प्रत्यारोप और वाद-विवाद का ऐसा दौर प्रारम्भ हुआ जिसने चमकीली दुनिया के रिश्तों की जटिलता को सार्वजानिक कर दिया।<br />
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हीरोइन और थप्पड़<br />
सबसे ताजा विवाद जिसने जाते-जाते इस साल को 'हैपनिंग' बना दिया,वह है-गौहर खान थप्पड़ विवाद। एक टीवी शो के फिनाले एपिसोड की शूटिंग के दौरान भरी महफ़िल में एक दर्शक द्वारा गौहर को थप्पड़ मारना चौंकाने देने वाली खबर बन गया। थप्पड़ मारने वाले शख्स के अनुसार उसने गौहर को इसलिए थप्पड़ मारा था क्योंकि मुस्लिम होते हुए भी गौहर छोटे कपड़े पहनती है। गौहर पर लगे इस थप्पड़ ने नयी बहस छेड़ दी है। लोग चर्चा करने लगे हैं कि क्यों किसी युवती पर ही ऐसा दबाव डाला जाता है?क्यों उसे ही कपड़ों को लेकर दिशा-निर्देश जारी किये जाते हैं? गौहर थप्पड़ विवाद उस संकुचित मानसिकता का परिचायक है जो सिर्फ अभिनेत्रियों पर लागू होता है। अभिनेता जब बिना शर्ट के स्क्रीन पर दिखने पर तालियां बजती हैं,मगर जब अभिनेत्रियां छोटे कपड़े पहनती है , तो उन्हें क्यों बेशर्म कहा जाता है?</div>
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इन विवादों ने ख़बरों में जगह बनायी....साथ ही फ़िल्मी सन्दर्भ में मूल्यों,नैतिकता और महिला सशक्तिकरण को लेकर सकारात्मक बहस भी छेड़ी है। अतः ये विवाद नकारात्मक नहीं,बल्कि सकारात्मक संकेत देते हैं।<br />
-सौम्या अपराजिता</div>
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Somya Aparajitahttp://www.blogger.com/profile/14438976490936719303noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-694989969122548218.post-82607383167850218182014-06-23T11:12:00.000+05:302014-06-23T11:24:12.162+05:30मधुर रिश्तों का कड़वा स्वाद...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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मायानगरी की खोखली दुनिया के रिश्ते भी अजीब होते हैं।यहां रिश्ते के स्थायित्व की कोई गारंटी नहीं होती है। जब प्रेम परवान पर होता है,तो इस दुनिया के प्रेमी-प्रेमिका सरेआम बाहों में बाहें डालकर प्रेम गीत गाते हैं,लेकिन जब उनके रिश्ते में कड़वाहट आती है,तो बीते दिनों के मधुर रिश्ते को खूंटी पर डालकर एक-दूसरे को सार्वजनिक रूप से अपमानित करने का कोई मौका नहीं छोड़ते। बनते-बिगड़ते रिश्तों की इस चमकीली दुनिया में रिश्ते बनने और फिर उसके बिखरने में देर नहीं लगती। कई बार रिश्ते इतने बिखर जाते हैं कि उन्हें समेटना नामुमकिन हो जाता है। एक-दूसरे के लिए इतनी कड़वाहट आ जाती है कि बदला लेने की भावना प्रबल होती जाती है और पूर्व प्रेमी या प्रेमिका को नए-नए तरीकों से अपमानित करने का सिलसिला-सा चल पड़ता है। प्रीति जिंटा और नेस वाडिया के रिश्ते की कहानी भी इसी मुकाम पर पहुँच गयी है। इस कहानी का अंत बेहद दुखदायक और चिंताजनक है। दोनों के बीच नफरत की ऐसी दीवार खींच गयी है जिसे तोड़ना असंभव लगता है।</div>
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<a href="http://3.bp.blogspot.com/-GX1k3e0DSeM/U6e8xfi2hDI/AAAAAAAAEFI/lhvoVaa2CZQ/s1600/default_41836987248.jpeg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="http://3.bp.blogspot.com/-GX1k3e0DSeM/U6e8xfi2hDI/AAAAAAAAEFI/lhvoVaa2CZQ/s1600/default_41836987248.jpeg" height="299" width="400" /></a></div>
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टूट गयीं रिश्ते की कड़ियाँ<br />
लगभग चार वर्ष तक उद्योगपति नेस वाडिया के साथ मधुर रिश्ते में बंधी प्रीति ने जब अहसास किया कि अब उनका रिश्ते की डोर कमजोर हो रही है,तो प्रीति और नेस ने आपसी सहमती से एक-दूसरे के साथ सम्बन्ध-विच्छेद कर लिया। हालांकि, दोनों के बीच व्यावसायिक रिश्ता बना रहा। आईपीएल की 'किंग्स एलेवेन पंजाब' के संयुक्त स्वामित्व की जिम्मेदारी दोनों निभाते रहें। गौरतलब है कि प्रीति और नेस ने यह व्यावसायिक रिश्ता तब जोड़ा था,जब वे निजी जीवन में अपने रिश्ते के स्थायित्व के सपने देख रहे थे। हालांकि, निजी जीवन का वह रिश्ता तो टूट गया,मगर व्यावसायिक रिश्ता बना रहा। ऐसा लग रहा था कि नेस और प्रीति ने बेहद समझदारी से अपने व्यावसायिक सम्बन्ध पर बीते दिनों के मधु पर रिश्ते के टूटने की कड़वाहट को हावी नहीं होने दिया है। इसी बीच प्रीति ने निजी जीवन में किसी और की तलाश कर ली और उसके साथ मधुर रिश्ते में बंध गयी। और उधर वाडिया घराने के सुपुत्र नेस भी अपने लिए नयी प्रेमिका तलाशने में व्यस्त हो गएं। ...मगर पिछले दिनों जब प्रीति ने आईपीएल के मंच पर सार्वजनिक रूप से नेस पर छेड़छाड़ और बदतमीजी के आरोप लगाए तब दोनों के बीच के रिश्ते की कड़वाहट को रेखांकित किया जा सका।</div>
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पक्ष प्रीति का<br />
अन्याय के खिलाफ हमेशा अपनी आवाज बुलंद करने वाली प्रीति ने एक बार अपने चिरपरिचित अंदाज में साहसी कदम उठाते हुए पूर्व प्रेमी नेस के खिलाफ एफ आईआर दर्ज करायी है। साथ ही,फेसबुक पर सार्वजनिक रूप से अपने दर्द को बयां किया। गौरतलब है कि प्रीति ने हमेशा औरतों के खिलाफ होने वाले अपराधों के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद की है। जब भी उन्हें मौका मिला है,तब-तब वे नारी-सशक्तीकरण के लिए अपने विचार प्रकट करती रही हैं। ऐसे में,यदि प्रीति के साथ सार्वजानिक रूप से कोई दुर्व्यवहार करे,तो निश्चित रूप से उनका चुप बैठना लाजिमी नहीं था। पिछली मुलाकात में प्रीति ने कहा था,' मैंने अपनी मेहनत और लगन के बल पर इतना कुछ पाया है। अपनी परछाई शीशे में देख सकती हूँ। मेरे पापा हमेशा कहते थे कि बेटा लाइफ में हमेशा सीधा रास्ता लो फिर राइट लो। तो उनकी बात मानते हुए मैं हमेशा सीधे रास्ते ही चली हूँ। अन्याय सहना मेरी फितरत नहीं है। और इस सन्दर्भ में समझौता भी नहीं कर सकती।बिना किसी समझौते के मैं यहाँ तक पहुँची हूँ। मैं अपने वैल्यूज़ और सिद्धांत से कोई समझौता नहीं कर सकती।' ऐसे साहसी विचार रखने वाली प्रीति का नेस वाडिया पर दुर्व्यवहार का आरोप सच में चौंकाने वाला है। वाडिया ग्रुप के मालिक नुस्ली वाडिया के पुत्र नेस वाडिया भारतीय उद्योगजगत की प्रतिष्ठित शक्सियत हैं। उनका अपनी पूर्व प्रेमिका और व्यावसायिक भागीदार के साथ कथित व्यवहार निश्चित रूप से निंदनीय है। हालांकि,प्रीति और नेस के बीच आया यह विवाद अभी विचारणीय है,फिर भी प्रीति के ईमानदार और साहसी व्यक्तित्व को देखते हुए इस पूरे प्रकरण में प्रीति का पक्ष विश्वसनीय जान पड़ता है। और साथ ही,यह भी अहसास होता है कि प्रीति और नेस के रिश्ते में कड़वाहट इस कदर घुल गयी है कि दोनों के बीच के व्यावसायिक रिश्ते की कड़ियाँ भी अब टूटने के कगार पर पहुँच गया है।</div>
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<a href="http://4.bp.blogspot.com/-6T2UQiSpm90/U6e9DQ6y0lI/AAAAAAAAEFQ/O2H6P-1GFaA/s1600/images_12-1335742660.jpeg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://4.bp.blogspot.com/-6T2UQiSpm90/U6e9DQ6y0lI/AAAAAAAAEFQ/O2H6P-1GFaA/s1600/images_12-1335742660.jpeg" height="185" width="400" /></a></div>
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प्रेम से नफरत तक<br />
ग्लैमर की चकाचौंध में डूबे रहने वाले कई और पूर्व प्रेमी जोड़े के बीच नफरत की कहानियां लिखी गयी हैं। पिछले दिनों ही पूर्व मॉडल रिया पिल्लई और टेनिस खिलाड़ी-अभिनेता लीएंडर पेस के रिश्ते का अंत भी कुछ ऐसा हुआ कि दोनों ने सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे पर प्रताड़ित करने के आरोप लगाए। ..और कभी लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले लिएंडर और रिया इन दिनों अपनी बेटी अयाना की कस्टडी के लिए कोर्ट में एक-दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं। प्यार के रिश्ते के नफरत में बदलने की कहानी के कई और कथानक हैं- सलमान खान-ऐश्वर्या राय बच्चन,जॉन अब्राहम- बिपाशा बसु और शाहिद कपूर-करीना कपूर। ऐश्वर्या राय बच्चन और सलमान खान के रिश्ते का दुखद अंत तब हुआ जब प्यार की कोमल भावनाओं में हिंसा का प्रवेश हुआ। अपने तेवर के लिए मशहूर सलमान ने जब ऐश्वर्या पर अपने प्यार को थोपने के लिए हिंसा का सहारा लिया,तो ऐश्वर्या ने उस रिश्ते को वहीँ विराम दे दिया। सलमान की पाबंदियों और हिंसक प्रवृति से ऐश्वर्या इतनी कुठित हो गयीं कि उन्हें धीरे-धीरे सलमान से नफरत होने लगी। हालांकि, जॉन अब्राहम-बिपाशा बसु और शाहिद कपूर-करीना कपूर के बीच सम्बन्ध विच्छेद अत्यधिक कड़वाहट भरा नहीं रहा,फिर भी इन दोनों प्रेमी जोड़ों ने रिश्ते के टूटने के बाद एक-दूसरे को उपेक्षित और अपमानित करने का कोई मौका नहीं छोड़ा है। वक़्त भी इन दोनों प्रेमी जोड़ों के बीच आई कड़वाहट को धूमिल नहीं कर सका है।</div>
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ताकि बनी रहे रिश्ते की गरिमा<br />
कुछ ऐसे भी पूर्व प्रेमी जोड़े हैं जिन्होंने अपने टूटे रिश्ते की गरिमा बरकरार रखी है। उनका मधुर रिश्ता तो टूट गया,पर उनके बीच एक-दूसरे के लिए कड़वाहट भी नहीं है। वे आज प्रेमी-प्रेमिका तो नहीं,मगर अच्छे मित्र जरुर हैं। रणबीर कपूर-दीपिका पादुकोण और सलमान खान-कट्रीना कैफ ऐसे ही पूर्व प्रेमी जोड़े हैं जिनके बीच प्रेम-सम्बन्ध तो नहीं रहा,मगर उनकी दोस्ती बरकरार है। एक-दूसरे के साथ व्यावसायिक सम्बन्ध बनाने में उन्हें कोई गुरेज नहीं है। साथ ही, अनजाने में भी मिलने पर वे एक-दूसरे की उपेक्षा नहीं करते। रणबीर-दीपिका और सलमान-कट्रीना ने यह साबित किया है कि प्रेम-सम्बन्ध टूटने के बाद भी स्नेह का रिश्ता बना रह सकता है।</div>
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उम्मीद है,भविष्य में प्रीति-नेस की प्रेम कहानी की तरह किसी और प्रेम कहानी का दुर्भाग्यपूर्ण और दुखद अंत नहीं होगा। ऐसा तभी संभव है,जब पूर्व प्रेमी या प्रेमिका के लिए सम्मान और स्नेह की भावना हो,तभी बनते-बिगड़ते रिश्तों की चकाचौंध वाली इस दुनिया में सम्बन्ध विच्छेद के बाद भी रिश्ते की गरिमा और मर्यादा बनी रहेगी...।</div>
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फेसबुक पर प्रीति का दर्द-</div>
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'मैं भले ही बहुत ज्यादा अमीर नहीं हूं,लेकिन सच्चाई मेरे साथ है। मैंने अपनी जिंदगी में बहुत मेहनत की है। अपनी मेहनत से मैंने जिंदगी में एक मुकाम हासिल किया है।मुझे ये कहते हुए बहुत दुख होता है कि जब-जब मेरे साथ काम करने के दौरान बदसलूकी हुई किसी ने मेरा साथ नहीं दिया, लेकिन मेरे पास इस बार सख्त कदम उठाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।कई बार हम इतने शर्मिंदा और अपमानित हो जाते हैं कि खुद को बेवकूफ बनाते हैं, जो कुछ भी हुआ वो किसी ने नहीं देखा। लोग अक्सर इधर-उधर देखने लगते हैं जैसे कि वो वहां मौजूद ही नही हैं या हम वहां मौजूद नहीं हैं। लोग बस इतना ही शर्मिंदा होते हैं कि अपनी नजरें चुरा लें लेकिन इतना शर्मिंदा नहीं होते कि मामले में हस्तक्षेप करें।विडंबना ही है कि वानखेड़े में मेरे साथ जो कुछ भी हुआ उसके बाद लोग मेरे चरित्र को लेकर कहानियां गढ़ रहे हैं लेकिन कोई सच के बारे में बात नहीं कर रहा। मुझे पूरा भरोसा है कि वहां मौजूद चश्मदीद सच बोलेंगे और पुलिस अपना काम तेजी से व निष्पक्षता से करेगी।कोई भी औरत इस तरह के विवाद में फंसना नहीं चाहेगी, जिस विवाद से फिलहाल मैं गुजर रही हूं। मैंने फिल्म इंडस्ट्री में 15 साल काम किया लेकिन कभी मुझे इतनी बेइज्जती का सामना नहीं करना पड़ा और इसके लिए मैं उन सभी पुरुषों को धन्यवाद कहती हूं जिनके साथ मैंने काम किया। जीवन के उतार-चढ़ाव में मेरा सिर हमेशा ऊंचा रहा है।हर इंसान की एक सीमा होती है कि वो किसी चीज को कब तक बर्दाश्त कर सकता है। हम में से कुछ मूर्ख लोग इसे ताकत कहते हैं और जीवन की सकारात्मक चीजों पर फोकस करते हैं।मैंने इतने सालों में उनके (नेस वाडिया) खिलाफ मीडिया में कुछ नहीं कहा लेकिन अब मेरे पास कोई विकल्प नहीं बचा था।'</div>
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Somya Aparajitahttp://www.blogger.com/profile/14438976490936719303noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-694989969122548218.post-56210117426987796722014-05-12T13:05:00.000+05:302014-05-12T13:06:25.982+05:30सिनेमा में मां...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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जब संगीत के जादूगर ए आर रहमान को ऑस्कर के प्रतिष्ठित मंच पर सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के पुरस्कार से सम्मानित किया गया,तो अभिवादन भाषण में रहमान ने उस क्षण की ख़ुशी बयां करते हुए कहा था,'हिन्दी फिल्मों का एक मशहूर डॉयलाग है-'मेरे पास मां है'।इस वक़्त मैं भी गर्व के साथ कह सकता हूं कि मेरे पास मां है। यह पुरस्कार उन्हीं का आशीर्वाद है।'इस अभिवादन भाषण में ए आर रहमान ने अनजाने में ही विश्व सिनेमा के सर्वाधिक प्रतिष्ठित मंच पर हिंदी फिल्मों में मां के महत्त्व को प्रकाशित कर दिया। ..और साथ ही यह भी बता दिया कि हमारी फिल्मों की कहानियों में मां का चरित्र कितना महत्वपूर्ण है,तभी तो हिंदी फिल्मों के इतिहास का सर्वाधिक लोकप्रिय संवाद 'मेरे पास मां है' भी मां को समर्पित है।<br />
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<a href="http://4.bp.blogspot.com/-y_IZrnCmvKI/U3BzTZSx51I/AAAAAAAAD3w/tATuRW91oI8/s1600/default552230080.jpeg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="http://4.bp.blogspot.com/-y_IZrnCmvKI/U3BzTZSx51I/AAAAAAAAD3w/tATuRW91oI8/s1600/default552230080.jpeg" height="212" width="400" /></a></div>
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दरअसल,भारतीय परिप्रेक्ष्य में मां के अस्तित्व के भावनात्मक पहलू को उभारने में हिंदी फिल्मों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। फिल्मों में मां की करुणामयी छवि को बेहद संजीदा अंदाज में प्रस्तुत किया जाता रहा है। कई फिल्मों की कहानियां मां के चरित्र के इर्द-गिर्द बुनी गयी हैं,तो कई फिल्मों में नायक का उसकी मां से आत्मीय सम्बन्ध मुख्य कथानक रहा है। मां की करुणामयी छवि को चित्रित करने वाली अभिनेत्रियों ने अपने अभिनय और अनुभव से फिल्मों में मां के अस्तित्व को नए आयाम दिए हैं। इन अभिनेत्रियों में निरूपा रॉय उल्लेखनीय हैं। निरूपा रॉय ने सिल्वर स्क्रीन पर मां के इतने चरित्रों को जीवंत किया है कि उन्हें 'हिंदी फिल्मों की मां' की उपाधि दी जाती है। 'दीवार' से लेकर 'मर्द' तक और 'अमर अकबर एंथोनी' से लेकर ' लाल बादशाह' तक निरूपा रॉय ने दर्जनों फिल्मों में मां की भूमिका में अभिनय के रंग भरे हैं। निरूपा रॉय के बाद जिस अभिनेत्री को मां की भूमिका में दर्शकों का सर्वाधिक प्यार-दुलार मिला है..वह हैं राखी। राखी ने ' करण अर्जुन','राम-लखन','बाजीगर' और ' दिल का रिश्ता' जैसी कई फिल्मों मां की भूमिका को चित्रित किया। हालांकि, निरूपा रॉय और राखी ने कई फिल्मों में मां की भूमिकाएं निभाकर हिंदी फिल्मों की लोकप्रिय मां की उपाधि पायी,वहीं नर्गिस ने पहली बार ही 'मदर इण्डिया' में मां की भूमिका को इतने प्रभावी अंदाज में निभाया कि वह भूमिका हिंदी फिल्मों की मां की सर्वाधिक सशक्त और प्रभावशाली भूमिका बन गयी। एक युवती की अस्मिता के लिए अपने प्रिय पुत्र को गोली मारने की हिम्मत रखने वाली मां के इस चरित्र में नर्गिस ने अपने अभिनय की ऐसी बानगी पेश की कि'मदर इंडिया' ऑस्कर पुरस्कार में नामांकित कर ली गयी। हिंदी फिल्मों में मां के चरित्रों को अपने अभिनय के रंग से रंगने वाली अभिनेत्रियों में दुर्गा खोटे,स्मिता जयकर, अचला सचदेव, रीमा लागू, ललिता पवार, अमीर बानो, फरीदा जलाल,लीला मिश्रा और कामिनी कौशल भी उल्लेखनीय हैं।<br />
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<a href="http://2.bp.blogspot.com/-bsA5q0F-hYQ/U3B1FE3gduI/AAAAAAAAD4M/WE4W_VXSS6w/s1600/default_21176100261.jpeg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://2.bp.blogspot.com/-bsA5q0F-hYQ/U3B1FE3gduI/AAAAAAAAD4M/WE4W_VXSS6w/s1600/default_21176100261.jpeg" height="265" width="400" /></a></div>
कुछ वर्ष पूर्व तक सिल्वर स्क्रीन की मां त्याग और करूणा की प्रतिमूर्ति थी। वह बिना उफ़ किये दूखों का पहाड़ उठा लेती थी। अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए जीवन भर त्याग करती रहती थी। तमाम तकलीफों और पति द्वारा ठुकराए जाने के बाद भी उसमें अपने बच्चों की खातिर जीने की हिम्मत थी।वह बेसहारा और लाचार थी,पर अपने बच्चों को संस्कारी बनाने का कोई मौका नहीं चूकती थी। अब सिल्वर स्क्रीन की मां का रूप बदल चुका है। बदलते वक़्त के साथ हिंदी फिल्मों की मां भी अब बिंदास और खुले विचारों वाली हो गयी है। वह बेबस और लाचार नहीं है। वह खुश और उत्साही है। पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने दम पर वह बच्चों के भरण-पोषण की हिम्मत रखती है। अब वह अपने पुत्र-पुत्री से उनके गर्ल फ्रेंड और बॉय फ्रेंड के विषय में बातें किया करती है। मर्यादा और परंपरा की चादर को उतारकर अब वह भी पार्टियो में झूमती है। अब उसके बाल सफ़ेद नहीं होते। अब वह किस्मत के भरोसे नहीं रहती,बल्कि किस्मत को बदलने की हिम्मत रखती है। 'जाने तू या जाने ना' की मां ऐसी ही थी। रत्ना शाह पाठक द्वारा निभायी गयी आधुनिक मां की इस लोकप्रिय भूमिका के इत्तर यदि मौजूदा दौर की बात करें,तो किरण खेर इस दौर की सर्वाधिक लोकप्रिय ऑन स्क्रीन मां हैं। किरण ने कई फिल्मों में आधुनिक मां की बिंदास छवि को बखूबी निभाया है। 'सिंह इज किंग','कभी अलविदा ना कहना','हम-तुम','वीर-जारा','दोस्ताना','मैं हूं ना' में किरण ने मां की रोचक भूमिकाओं को शिद्दत से निभाया और खुद को हिंदी फिल्मों में नयी पीढ़ी की लोकप्रिय मां के रूप में स्थापित किया। किरण के साथ ही फरीदा जलाल भी नयी पीढ़ी की दुलारी ऑन स्क्रीन मां हैं। अपनी मासूमियत और चुलबुले अंदाज से फरीदा जलाल मां की भूमिका को अलग रंग देती हैं। बीते दौर की मुख्य धारा की अभिनेत्रियां भी अपने अनुभव से मां की भूमिका को प्रभावी अंदाज में चित्रित करती रही हैं इनमें जया बच्चन और हेमा मालिनी उल्लेखनीय हैं। जया बच्चन ने 'फिजा','कल हो न हो' और 'कभी ख़ुशी कभी गम' में,तो हेमा मालिनी ने 'बागबां' में मां की भूमिका में अपने उम्दा अभिनय की छाप छोड़ी। जया और हेमा मालिनी की तरह कई और लोकप्रिय अभिनेत्रियां अपनी बढ़ती उम्र के मद्देनजर मां की भूमिका में रूचि दिखा रही हैं। इनमें रति अग्निहोत्री,पूनम ढिल्लन और पद्मिनी कोल्हापुरे काबिलेजिक्र हैं। ये तीन अभिनेत्रियां पिछले वर्ष प्रदर्शित हुई फिल्मों में पहली बार मां की भूमिका निभाती हुई दिखीं,तो वहीँ पिछले दिनों प्रदर्शित हुई 'टू स्टेट्स' में अमृता सिंह और रेवती ने नए दौर में मां की भूमिका के महत्त्व को नए सिरे से परिभाषित किया।<br />
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<a href="http://3.bp.blogspot.com/-Eg8ZotK40oI/U3BzuwTCmkI/AAAAAAAAD34/agDpj8jgrFs/s1600/images_61021778080.jpeg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://3.bp.blogspot.com/-Eg8ZotK40oI/U3BzuwTCmkI/AAAAAAAAD34/agDpj8jgrFs/s1600/images_61021778080.jpeg" /></a></div>
<b>हिंदी फिल्मों में मां के चरित्रों द्वारा बोले गए लोकप्रिय संवाद-</b><br />
मेरे पास मां है (दीवार)<br />
एक बार मुझे मां कहकर पुकारो बेटा (दीवार) <br />
जुग-जुग जियो मेरे लाल (मदर इंडिया)<br />
मेरे दूध का कर्ज चुकाने का वक़्त आ गया है (मदर इंडिया)<br />
मेरे करण-अर्जुन आएंगे (करण अर्जुन)<br />
मेरे लाल को यूं मत डांटिए (हम आपके हैं कौन)<br />
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<span class="Apple-style-span" style="font-size: 17px; font-weight: bold;">मां ने दिखायी अभिनय की राह</span><br />
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<a href="http://3.bp.blogspot.com/-NbTj27Agv8c/U3B4I16ROqI/AAAAAAAAD4g/gEzl8QCzNGA/s1600/images_10-840451901.jpeg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="http://3.bp.blogspot.com/-NbTj27Agv8c/U3B4I16ROqI/AAAAAAAAD4g/gEzl8QCzNGA/s1600/images_10-840451901.jpeg" /></a></div>
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<i style="background-color: #252525;"><span class="Apple-style-span" style="color: white;">मौजूदा दौर के कई अभिनेता-अभिनेत्रियों के लिए उनकी अभिनेत्री मां प्रेरणा रही हैं। मां से उन्हें अभिनय की विरासत मिली। मां की उपलब्धियों की बदौलत उन्हें हिंदी फिल्मों में शुरूआती पहचान मिली और सम्मान मिला। इन अभिनेता-अभिनेत्रियों में काजोल और सैफ अली खान उल्लेखनीय हैं। काजोल ने जहां मां तनुजा से प्रेरित होकर हिंदी फिल्मों में अभिनय के सफ़र की शुरुआत की,वहीं सैफ अली खान ने मां शर्मिला टैगोर के प्रोत्साहन से अभिनय जगत में प्रवेश किया। बड़े भाई की ही तरह सोहा अली खान ने भी हिंदी फिल्मों में अपनी पहचान बनायी। हेमा मालिनी ने ड्रीम गर्ल बनकर कई वर्षों तक हिंदी फ़िल्मी पटल पर अभिनय की बानगी पेश की,तो उनकी पुत्री एषा देओल ने भी मां के नक्शेकदम पर चलते हुए फिल्मों की राह अपना ली। अभिनय की दुनिया में अभिषेक बच्चन के मनोबल को मां जया बच्चन ने बढ़ाया,तो मूनमून सेन ने रिया सेन और राइमा सेन के लिए फिल्मों की राह प्रशस्त की,वहीं डिम्पल कपाड़िया की दोनों बेटियों ट्विंकल खन्ना और रिंकी खन्ना ने हिंदी फिल्मों में अपनी किस्मत आजमायी। करीना कपूर और करिश्मा कपूर के लिए उनकी मां बबीता प्रेरणा बनीं,तो लाजवाब अभिनेता के रूप में रणबीर कपूर की पहचान में मां नीतू कपूर का महत्वपूर्ण योगदान है।</span></i></div>
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<b><i><br /></i>मां की प्रेरणा से अभिनय की राहों पर जो चलें..</b><br />
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<a href="http://2.bp.blogspot.com/-WW2zhr-jGPw/U3B34rwhDhI/AAAAAAAAD4Y/EA7LF-SXriE/s1600/images_92010519601.jpeg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://2.bp.blogspot.com/-WW2zhr-jGPw/U3B34rwhDhI/AAAAAAAAD4Y/EA7LF-SXriE/s1600/images_92010519601.jpeg" height="320" width="212" /></a></div>
शोभना समर्थ- तनूजा और नूतन<br />
तनुजा - काजोल<br />
शर्मीला टैगोर - सैफ अली खान और सोहा अली खान<br />
हेमा मालिनी- एषा देओल<br />
मूनमून सेन - रिया सेन और राइमा सेन<br />
बबीता-करीना कपूर और करिश्मा कपूर<br />
नीतू कपूर-रणबीर कपूर<br />
नर्गिस दत्त-संजय दत्त<br />
स्मिता पाटिल-प्रतीक<br />
डिम्पल कपाड़िया-ट्विंकल खन्ना<br />
जया बच्चन-अभिषेक बच्चन<br />
रति अग्निहोत्री-तनुज विरमानी<br />
नूतन-मोहनीश बहल<br />
किरण खेर-सिकंदर<br />
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<ul style="text-align: left;">
<li>-सौम्या अपराजिता</li>
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Somya Aparajitahttp://www.blogger.com/profile/14438976490936719303noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-694989969122548218.post-60622991664488181682014-05-03T21:15:00.001+05:302014-05-03T21:15:57.840+05:30सितारों का क्रिकेट कनेक्शन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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फिल्मी दुनिया के चमकते सितारों का क्रिकेट से लगाव किसी से छिपा नहीं है। ..फिर वह सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न की उपाधि देने के लिए लता मंगेशकर और अमिताभ बच्चन की सक्रिय पहल हो या भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी और जॉन अब्राहम की दोस्ती या फिर फटाफट क्रिकेट की क्रांति 'इंडियन प्रीमियर लीग' (आईपीएल) में शाह रुख खान,जूही चावला,प्रीति जिंटा और शिल्पा शेट्टी की सक्रियता। आईपीएल की व्यवस्था में फ़िल्मी सितारों की औपचारिक सहभागिता ने क्रिकेट और सिनेमा के संबंध को प्रगाढ़ किया है।</div>
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<a href="http://3.bp.blogspot.com/-ShA3k7g0MAI/U2UNCtZ9tEI/AAAAAAAAD0w/xqrj2_goWzc/s1600/images_2-1416319295.jpeg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="http://3.bp.blogspot.com/-ShA3k7g0MAI/U2UNCtZ9tEI/AAAAAAAAD0w/xqrj2_goWzc/s1600/images_2-1416319295.jpeg" /></a></div>
<div dir="ltr">
रिश्ता हुआ मजबूत<br />
क्रिकेट से फ़िल्मी सितारों का रिश्ता नया नहीं है। कभी क्रिकेट के चमकते सितारों के साथ अभिनेत्रियों के प्रेम सम्बन्ध ने सुर्खियां बटोरी,तो कभी क्रिकेट के मैदान में दर्शक दीर्घा में सितारों की ग्लैमरस उपस्थिति आकर्षण का केंद्र बनी। क्रिकेट के साथ फ़िल्मी सितारों का यह अप्रत्यक्ष सम्बन्ध तब औपचारिक हो गया जब आईपीएल का आरम्भ हुआ। शाह रुख खान,जूही चावला,प्रीति जिंटा और शिल्पा शेट्टी जैसे फ़िल्मी सितारों ने फटाफट क्रिकेट के इस वृहत आयोजन में अपनी सक्रियता से क्रिकेट संग हिंदी फ़िल्मी सितारों के रिश्ते को मजबूत आधार दिया है।</div>
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<a href="http://4.bp.blogspot.com/-AKsHJajX6N0/U2ULXFD0loI/AAAAAAAAD0c/2ZIIh_uN2CA/s1600/images-753552460.jpeg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://4.bp.blogspot.com/-AKsHJajX6N0/U2ULXFD0loI/AAAAAAAAD0c/2ZIIh_uN2CA/s1600/images-753552460.jpeg" height="192" width="320" /></a></div>
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मनोरंजन की दोहरी गारंटी<br />
फिल्म प्रेमी दर्शक अपने प्रिय सितारों की क्रिकेट में सक्रियता से उत्साहित हैं। आईपीएल के मौसम में दर्शकों की नजर फिल्मों पर नहीं,बल्कि फिल्मों के सितारों की क्रिकेट जगत से जुडी गतिविधियों पर होती है। क्रिकेट की नयी क्रांति आईपीएल के महाकुंभ के आरम्भ के साथ ही क्रिकेट के मैदान में सितारों की उपस्थिति दिन-दुनी रात-चौगुनी बढ़ने लगती है। दरअसल,आईपीएल के मंच पर क्रिकेट से फ़िल्मी सितारों का जुड़ना दर्शकों के लिए मनोरंजन की दोहरी गारंटी होती है। दर्शकों को अपने प्रिय क्रिकेट सितारों के चौकों-छक्कों पर तालियां बजाने का मौका मिलता है,तो उन चौकों-छक्कों पर झूम रहे दर्शक दीर्घा में बैठे लोकप्रिय सितारों को करीब से निहारने का मौका भी मिलता है। यह फ़िल्मी सितारों की सक्रिय सहभागिता का ही परिणाम है कि आईपीएल का आरंभ और समापन समारोह किसी फ़िल्मी आयोजन की तरह ही आकर्षक,मनोरंजक और ग्लैमरस होता है। वरीय क्रिकेटर सुनील गावस्कर भी फ़िल्मी सितारों की उपस्थिति वाले आईपीएल के ऐसे आयोजनों के प्रशंसक है। वे कहते हैं,' मुझे भारतीय फिल्मी दुनिया का आईपीएल से जुड़ना विशेष रूप से पसंद है क्योंकि यही वह चीज है जिसके लिए प्रीमियर लीग जाना जाता है।'</div>
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<a href="http://4.bp.blogspot.com/-RX0bTPX3-90/U2UMZjzYZ9I/AAAAAAAAD0o/09h8V0feFOQ/s1600/images_3-406137359.jpeg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="http://4.bp.blogspot.com/-RX0bTPX3-90/U2UMZjzYZ9I/AAAAAAAAD0o/09h8V0feFOQ/s1600/images_3-406137359.jpeg" height="312" width="320" /></a></div>
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क्रिकेट में किंग<br />
क्रिकेट से औपचारिक सम्बन्ध स्थापित करने वाले फ़िल्मी सितारों में सबसे उल्लेखनीय हैं,...किंग खान' शाह रुख खान। शाह रुख खान ने 2008 में औपचारिक तौर पर अपने क्रिकेट प्रेम का इजहार किया जब उनकी कंपनी रेड चिली एंटरटेनमेंट ने कोलकाता नाईटराइडर्स को खरीद लिया। शाह रुख बताते हैं,' मुझे याद है जब आईपीएल के शुरू होने की बात चली थी, तो कई लोगो का कहना था कि इंडिया में राष्टीय क्रिकेट का कोई मतलब नही है। आईपीएल को लोग पसंद नही करेंगे।सिटी टीम का कोई महत्त्व नही होगा,लेकिन आज मै इंडिया से बाहर भी कही जाता हूं, तो यह महसूस करता हूँ कि लोग आइपीएल पसंद करते हैं। मुझे टीवी की टीआरपी का नही पता है,लेकिन इतना पता है कि यह लोगो को मनोरंजन देता है।' प्रत्येक आईपीएल टूर्नामेंट के दौरान अपनी टीम के खिलाडियों को शाह रुख खेल-भावना का पाठ पढ़ाते हैं। हर मैच से पहले शाह रुख़ अपनी टीम के सभी खिलाडियों को इस सन्देश से प्रोत्साहित करते हैं,-'आपको एक्टिंग नही आती, मुझे क्रिकेट नही आती।क्रिकेट खेलना आपका काम है,लेकिन आप मैच हार नही मानने के जज्बे के साथ ही खेलें।' गौरतलब है कि कोलकाता नाईट राइडर्स में जूही चावला भी शाह रुख खान की साझेदार हैं। जूही कहती हैं,'हमने कभी नहीं सोचा था कि आईपीएल इतना बड़ा हो जाएगा। जब मैंने और शाह रुख ने आईपीएल का हिस्सा बनने का निर्णय किया था तब हमें बस इतना पता था कि हम क्रिकेट यानि उस खेल से जुड़ रहे हैं जो हमारे देश का पैशन है।'</div>
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<a href="http://2.bp.blogspot.com/-IE7Pk9TAgTM/U2UHpAo4HaI/AAAAAAAAD0E/kYqcgw8dzcc/s1600/2168_xcitefun-preity-zinta-ipl.jpg1830182106.jpeg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://2.bp.blogspot.com/-IE7Pk9TAgTM/U2UHpAo4HaI/AAAAAAAAD0E/kYqcgw8dzcc/s1600/2168_xcitefun-preity-zinta-ipl.jpg1830182106.jpeg" height="400" width="267" /></a></div>
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क्रिकेट के लिए करियर कुर्बान<br />
प्रीति जिंटा ने क्रिकेट के लिए अपने चमकते हुए फ़िल्मी करियर को दांव पर लगा दिया। प्रीति ने क्रिकेट के लिए अभिनय से विराम ले लिया जिसका खामियाजा आज उन्हें भुगतना पड़ रहा है। आईपीएल में अपनी टीम 'किंग्स एलेवेन पंजाब' के प्रति पूरी तरह समर्पित होने के लिए प्रीति ने कई बड़ी फिल्मों में अभिनय का प्रस्ताव ठुकरा दिया। प्रीति के प्रशंसक सिल्वर स्क्रीन पर अपनी प्रिय अभिनेत्री को नहीं देखकर निराश हैं,मगर प्रीति को अपने फ़िल्मी करियर को हाशिए पर रखकर आईपीएल से जुड़ने पर गर्व है। प्रीति कहती हैं,' मैंने क्रिकेट को नहीं चुना.....क्रिकेट ने मुझे चुना। अगर,किसी दूसरे खेल से जुड़ा कोई क्लब खुल रहा होता और उसमें अवसर मिलता तो जरूर,मैं उससे जुड़ती। मुझे स्पोर्ट में रूचि थी और यह मौका क्रिकेट में मिला इसलिए जुड़ गयी। आई पी एल बहुत बड़ा इंवेस्टमेंट था। मैं सीखना चाहती थी। जब मैं फिल्मों में नयी आयी थी तब मैंने सब कुछ छोड़कर सिर्फ फिल्में की थी। ऐसे में,जब क्रिकेट में आयी तो थोड़ा वक्त तो क्रिकेट में लगाना ही था।'</div>
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<a href="http://4.bp.blogspot.com/-BR3hDloFViI/U2UJ-af4WaI/AAAAAAAAD0Q/ZwYuYEu26_8/s1600/shilpa-2.jpg1962455523.jpeg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="http://4.bp.blogspot.com/-BR3hDloFViI/U2UJ-af4WaI/AAAAAAAAD0Q/ZwYuYEu26_8/s1600/shilpa-2.jpg1962455523.jpeg" height="320" width="274" /></a></div>
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ग्लैमरस सुर्ख़ियों के लिए<br />
शिल्पा शेट्टी ने अपने करियर की ढलान पर क्रिकेट का हाथ थामा और पति राज कुंद्रा के साथ राजस्थान रॉयल की बागडोर अपने हाथों में ले ली। ग्लैमरस सुर्खियों में बने रहने के लिए शिल्पा ने क्रिकेट से खुद को जोड़ लिया। शिल्पा कहती हैं,'हम क्रिकेट से प्यार करते हैं। इस खेल के प्रति जज्बे के कारण हम आईपीएल का हिस्सा बने। क्रिकेट के प्रति मेरा लगाव शुरू से ही रहा है, इसलिए इतना अच्छा मौका मैं मिस नहीं करना चाहती हूं। मैं अपनी टीम के साथ हमेशा रहना चाहती हूं।' उल्लेखनीय है कि राजस्थान रॉयल के प्रचार गीतों में शिल्पा की ग्लैमरस उपस्थिति को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती है। कहा जा सकता है कि फिल्मों में गिरती साख को बचाने के लिए क्रिकेट से जुड़ने का फैसला शिल्पा के लिए सकारात्मक रहा है।</div>
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<a href="http://3.bp.blogspot.com/-Zi0rY_XvvKU/U2UOw82xQnI/AAAAAAAAD08/T32Sd1CnQEs/s1600/images_5-954000629.jpeg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://3.bp.blogspot.com/-Zi0rY_XvvKU/U2UOw82xQnI/AAAAAAAAD08/T32Sd1CnQEs/s1600/images_5-954000629.jpeg" height="238" width="320" /></a></div>
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सितारों की क्रिकेट लीग<br />
आईपीएल में शाह रुख खान,जूही चावला,प्रीति जिंटा और शिल्पा शेट्टी की सहभागिता ने फ़िल्मी दुनिया के अन्य सितारों को भी क्रिकेट से सक्रिय रूप से जुड़ने के लिए प्रेरित किया है। इस प्रेरणा के परिणाम ने क्रिकेट से जुड़े फ़िल्मी सितारों के एक नए ग्लैमरस आयोजन 'सेलिब्रिटी क्रिकेट लीग' की स्थापना की।इस लीग में टीमों के स्वामी भी फ़िल्मी सितारे हैं और खिलाड़ी भी क्रिकेट में रचे-बसे फ़िल्मी सितारे ही हैं। सेलिब्रिटी क्रिकेट लीग से सोहेल खान,रितेश देशमुख,सुनील शेट्टी,बॉबी देओल और आदित्य रॉय कपूर जैसे सितारे जुड़े हैं। इस लीग में सलमान खान की सक्रियता भी उल्लेखनीय हैं। तीसरे 'सेलिब्रिटी क्रिकेट लीग' के आरंभ के दौरान सलमान ने क्रिकेट में फ़िल्मी सितारों की रूचि को कुछ यूँ बयां किया था,'यह देखकर अच्छा लग रहा है कि हमारे फिल्म स्टार्स मैदान पर उतरकर भी अच्छे हाथ दिखा रहे हैं। लंबे-लंबे शेड्यूल में काम करने के बावजूद फिल्म स्टार अच्छा खेल रहे हैं।यह काबिले तारीफ है। यह सब उनका क्रिकेट के लिए प्यार है। सच कहूं तो एक्टर्स का पहला प्यार क्रिकेट ही होता है।'</div>
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क्रिकेट के लिए फ़िल्मी सितारों के इस क्रेज से जाहिर हो गया है कि आम भारतीयों की तरह वे भी क्रिकेट के प्रेम-पाश में बंधे हुए हैं। उम्मीद है कि आने वाले दिनों में सितारों के क्रिकेट कनेक्शन की कुछ और नयी कहानियां सामने आएंगी जो देश को एक सूत्र में पिरोने वाले क्रिकेट और सिनेमा को और भी करीब लाएंगी...।</div>
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-सौम्या अपराजिता</div>
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Somya Aparajitahttp://www.blogger.com/profile/14438976490936719303noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-694989969122548218.post-76535358388873040952014-04-22T12:03:00.000+05:302014-04-23T13:26:33.597+05:30निर्माता बनीं अभिनेत्रियां..<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="http://4.bp.blogspot.com/-M_T_AAZDLZo/U1YLtF_X9kI/AAAAAAAADv4/tvCeLCPSkho/s1600/bobbyjasoos-2014-3a.jpg-719328099.jpeg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="http://4.bp.blogspot.com/-M_T_AAZDLZo/U1YLtF_X9kI/AAAAAAAADv4/tvCeLCPSkho/s1600/bobbyjasoos-2014-3a.jpg-719328099.jpeg" height="150" width="200" /></a></div>
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कुछ नया और अलग करने की ख्वाहिश सबके मन में होती है। जब यह ख्वाहिश अपने व्यवसाय के ही किसी पहलू से जुडी हुई हो,तो बस सही समय और मौके की तलाश होती है। ऐसे ही सही मौके और समय का लाभ उठाते हुए कई अभिनेताओं ने अभिनय के साथ-साथ फिल्म निर्माण और निर्देशन की कमान संभाल ली। हालांकि, अजय देवगन और आमिर खान को छोड़ दें,तो अधिकांश अभिनेताओं ने निर्देशन से अधिक फिल्म निर्माण में रूचि दिखायी। इनमें अमिताभ बच्चन,शाहरुख़ खान,सलमान खान,रितेश देशमुख,जॉन अब्राहम जैसे कई और नाम शामिल हैं। महत्वाकांक्षी,साहसी और रचनाशील अभिनेत्रियां भी अभिनेताओं की तरह अभिनय के साथ-साथ फिल्म निर्माण के विभिन्न पहलुओं से जुड़ने के लिए आतुर रहती हैं। सही समय और मौका मिलते ही वे भी फिल्म निर्माण में अपनी किस्मत आजमाने से नहीं हिचकिचाती हैं।<br />
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<a href="http://2.bp.blogspot.com/-Ah4Hnhruoa0/U1YPvg-zd8I/AAAAAAAADwY/xMjw7aDJYiU/s1600/IMG_2038-769690.JPG-1342485558.jpeg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://2.bp.blogspot.com/-Ah4Hnhruoa0/U1YPvg-zd8I/AAAAAAAADwY/xMjw7aDJYiU/s1600/IMG_2038-769690.JPG-1342485558.jpeg" /></a></div>
साहसी कदम.. </div>
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अनुष्का शर्मा ने कमर कस ली है।.. और अब वे पूरी तरह फिल्म निर्माण के समर में कूद पड़ी हैं। अनुष्का लम्बे समय से अभिनय के अतिरिक्त कुछ नया और अलग करना चाहती थीं। ऐसे में,जब अनुष्का सही समय पर बेहतर मौका मिला,तो तुरंत उन्होंने फिल्म निर्माता बनने का निर्णय कर लिया। पिछले दिनों ही अनुष्का शर्मा ने नवदीप सिंह की नयी फिल्म 'एन एच 10' के निर्माण की कमान संभाली है। बेहद कम अन्तराल में अनुष्का शर्मा ने अभिनेत्री से फिल्म निर्माता बनने का साहसी सफ़र तय कर लिया है। अनुष्का शर्मा ने अपनी खुशी जताते हुए कहा कि,'मैं बेहद खुश हूं कि करियर की शुरुआत में ही मुझे निर्माता बनने का अवसर मिला है। अपने फिल्मी करियर में निर्माता के रूप में कदम बढ़ाने के लिए 'एनएच 10' से बेहतर फिल्म मुझे नहीं मिलती।' उल्लेखनीय है कि 'एनएच 10' यात्रा कथा और मारधाड़ वाली रोमांचक फिल्म है। 'एनएच 10' की शूटिंग दिल्ली और आस पास के इलाकों में शुरू हो चुकी है। फिल्म का प्रदर्शन इस वर्ष सितंबर में किया जाएगा। अनुष्का की केंद्रीय भूमिका वाली इस फिल्म के निर्देशक नवदीप सिंह होंगे।</div>
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<a href="http://3.bp.blogspot.com/-WQUaDsNLkD4/U1YFT-Pv0cI/AAAAAAAADvc/8iFNJpL4jDo/s1600/1796016_620406194698221_139545614_o.jpg777663069.jpeg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="http://3.bp.blogspot.com/-WQUaDsNLkD4/U1YFT-Pv0cI/AAAAAAAADvc/8iFNJpL4jDo/s1600/1796016_620406194698221_139545614_o.jpg777663069.jpeg" height="132" width="200" /></a></div>
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अभिनय नहीं,तो निर्माण सही..<br />
अभिनेत्री के रूप में अपने फ़िल्मी करियर से निराश दीया मिर्ज़ा ने जब फिल्म निर्माण करने का निर्णय लिया,तो उनके चेहरे की आकर्षक मुस्कान लौट आयी। दीया ने फिल्म निर्माता के रूप में अपनी दूसरी फिल्म के रूप में ' बॉबी जासूस' को चुना। विद्या बालन अभिनीत इस फिल्म के लिए दीया इतनी उत्साहित हैं कि इन दिनों उनके अधिकांश ट्वीट में सिर्फ 'बॉबी जासूस' और विद्या बालन का जिक्र होता है। बतौर निर्माता दीया की पहली फिल्म 'लव ब्रेकअप जिन्दगी' थी,जो बॉक्स ऑफिस पर कमाल नहीं कर पायी। गौरतलब है कि इस फिल्म का निर्माण दीया ने जाएद खान के साथ मिलकर किया था और उसमें उन्होंने अभिनय भी किया था। 'बॉबी जासूस' में दीया पूरी तरह फिल्म निर्माता की भूमिका निभा रही हैं। इस फिल्म में दीया ने अभिनय नहीं करने का फैसला किया है। दीया कहती हैं,'फिल्म के लिए विद्या बालन मेरी पहली पसंद थी। मैं इस फिल्म की स्क्रिप्ट को लेकर बेहद आश्वस्त हूं।' उधर पिछले दिनों अभिनय से दूरी कायम कर चुकी शिल्पा शेट्टी ने भी 'ढिस्क्याऊं' से फिल्म निर्माण में अपनी किस्मत आजमायी। उन्हें लगा था कि फिल्मों में अभिनय का मौका नहीं मिल रहा,ऐसे में..कहीं फिल्म निर्माण में उनकी किस्मत चमक जाए।.. पर अफ़सोस ऐसा नहीं हुआ और 'ढिस्क्याऊं' का बॉक्स ऑफिस पर बुरा हाल रहा। हालांकि, 'ढिस्क्याऊं' की असफलता के बाद भी शिल्पा ने फिल्म निर्माण में अपनी सक्रियता बरकरार रखने का आश्वासन दिया है।</div>
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<a href="http://1.bp.blogspot.com/-Rk-eP4z9gX8/U1YMnJ6-PmI/AAAAAAAADwI/iWEE2csk7N0/s1600/preity-zinta-ishkq-in-paris-moviestills-bollyupdatescom-01.jpg1932288361.jpeg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://1.bp.blogspot.com/-Rk-eP4z9gX8/U1YMnJ6-PmI/AAAAAAAADwI/iWEE2csk7N0/s1600/preity-zinta-ishkq-in-paris-moviestills-bollyupdatescom-01.jpg1932288361.jpeg" height="213" width="320" /></a></div>
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ताकि एक्टिंग करियर संवर जाए..<br />
अपने एक्टिंग करियर को फिर से संवारने के उद्देश्य से प्रीति जिंटा ने फिल्म निर्माता बनने का निर्णय किया और 'इश्क इन पेरिस' बना डाली। प्रीति द्वारा निर्मित और अभिनीत 'इश्क इन पेरिस' असफल रही। प्रीति का एक्टिंग करियर तो नहीं संवर पाया,पर बतौर निर्मात्री हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में उनकी पहचान को नयी दिशा जरूर मिल गयी। उधर.. अमीषा पटेल ने भी अभिनेत्री के रूप में खुद को नए सिरे से स्थापित करने का निर्णय कर लिया है और इसी निर्णय के तहत वे अब फिल्म निर्माता बन चुकी हैं।'देसी मैजिक' से फिल्म निर्माण में कदम रख रहीं अमीषा कहती हैं,'हर कोई अपनी जिंदगी में ऐसे चरण से गुजरता है बदलाव निश्चित होता है। अगर आप नहीं बदलते तो आप समय के साथ नहीं चल पाते, अगर आप नयापन लाने की कोशिश नहीं करते, तब आप निष्क्रिय हो जाते हैं खास कर जब आप एक कलाकार हों।'देसी मैजिक' में अमीषा के साथ अभिनेता जायद खान और रणधीर कपूर नजर आएंगे।</div>
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<a href="http://4.bp.blogspot.com/-HqB8okzrtSk/U1YG2pj7ONI/AAAAAAAADvs/5OjxtICSfCs/s1600/Kangana+1+-+Low1709487075.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" src="http://4.bp.blogspot.com/-HqB8okzrtSk/U1YG2pj7ONI/AAAAAAAADvs/5OjxtICSfCs/s1600/Kangana+1+-+Low1709487075.jpg" height="400" width="265" /></a></div>
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कुछ नया करने की चाहत में<br />
ऐसा नहीं है कि असफल एक्टिंग करियर से निराश होकर ही अभिनेत्रियां फिल्म निर्माण की तरफ रुख करती हैं। 'दिल का रिश्ता ' से ऐश्वर्या राय ने तब फिल्म निर्माण में अपनी किस्मत आजमायी जब वे सफलता के शिखर पर थीं। जूही चावला ने भी सफलता के कई सोपान चढ़ने के बाद शाहरुख़ खान के साथ मिलकर फिल्म निर्माण की बागडोर संभाली। इसी सूची में अब कट्रीना कैफ का नाम भी जुड़ सकता है । खबर है कि कट्रीना भी अब फिल्म निर्माण करना चाहती हैं। कट्रीना की इच्छा महिला प्रधान फिल्म बनाने की है। कहा जा रहा है कि फिल्म निर्माता बनकर कट्रीना वैसी फ़िल्में बनाना चाहती हैं जिसमें वे अपने लिए प्रभावशाली केंद्रीय भूमिका की व्यवस्था कर सकें। वे हिंदी फिल्मों में बनी अपनी तथाकथित 'ग्लैमर की गुड़िया' की छवि को तोडना चाहती हैं इसलिए उन्होंने अपनी सशक्त भूमिका वाली फिल्म के निर्माण की योजना बनायीं है। कट्रीना कैफ के साथ-साथ 'क्वीन' को मिली सफलता और प्रशंसा से अभिभूत कंगना रनोट ने भी फिल्म निर्माण में अपनी इच्छा जतायी है। कंगना कहती हैं,'फिल्म निर्माण की तकनीक मुझे बेहद लुभाती है। मेरे लिए फिल्म निर्माण की प्रक्रिया ध्यान लगाने जैसी है। मैं इसे बेहद पसंद करती हूं।'</div>
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फिल्म निर्माण में अभिनेत्रियों की बढ़ती सक्रियता पुरुष प्रधान हिंदी सिनेमा के लिए सकारात्मक और सुखद संकेत है। </div>
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Somya Aparajitahttp://www.blogger.com/profile/14438976490936719303noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-694989969122548218.post-79938298963739088422014-04-16T12:19:00.000+05:302014-04-16T12:21:37.401+05:30दिशा और दया..<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="http://3.bp.blogspot.com/-tHImXT9Uvq0/U04iLsc8tKI/AAAAAAAADtA/1o4aAKaiRk0/s1600/01-784805.JPG" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img alt="" border="0" src="http://3.bp.blogspot.com/-tHImXT9Uvq0/U04iLsc8tKI/AAAAAAAADtA/1o4aAKaiRk0/s320/01-784805.JPG" id="BLOGGER_PHOTO_ID_6002772937637934242" /></a></div>
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दयाबेन की भूमिका में दिशा वकानी ने लोकप्रियता का नया आसमान छूया है। लम्बे अर्से से सब टीवी के 'तारक मेहता का उल्टा चश्मा' में दया बेन की मुख्य भूमिका में दर्शकों का मनोरंजन कर रही दिशा गुजराती रंगमंच की सक्रिय अदाकारा रहीं हैं। उनके लिए छोटे पर्दे से जुड़ना बेहद सकारात्मक और सुखद रहा है। दिशा मानती हैं कि दया बेन की भूमिका निभाने का निर्णय उन्होंने इसलिए किया था क्योंकि वे कुछ नया और अलग करना चाहती थीं। दिशा की बातें उन्हीं के शब्दों में..</div>
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कोई भूमिका छोटी या बड़ी नहीं<br />
एक अभिनेत्री के रूप में मैं खुद को हर भूमिका में ढालना चाहती हूं। यही वजह है कि दस वर्ष की उम्र में मैंने थिएटर में नर्स की भूमिका निभाई थी। इस उम्र में मैं बुजुर्ग औरत की भी भूमिका निभा चुकी हूं। अपने लिए भूमिकाएं चुनते वक़्त लचीला रवैया रखती हूं। मेरे लिए कोई भी भूमिका छोटी या बड़ी नहीं होती है। वही करती हूं जो मेरा दिल कहता है।</div>
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दया है ही ऐसी<br />
जब दया बेन की भूमिका के लिए मैंने हांमी भरी थी,तो मुझे लगा था कि दया की भूमिका मैं बेहद एन्जॉय करूंगी। ..और यही हुआ भी। दया की भूमिका को सिर्फ मैं ही नहीं दर्शक भी एन्जॉय करते हैं। दया है ही ऐसी। दया के फैन दुनिया के हर कोने में हैं। मुझे बहुत अच्छा लगता है जब लोग मुझे देखकर मेरी तरफ दौड़े चले आते हैं। अच्छी बात है कि अब धीरे -धीरे लोग मेरा नाम भी जानने हैं।</div>
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<a href="http://1.bp.blogspot.com/-o5QbcZpmk88/U04nOh_qNzI/AAAAAAAADtQ/0pboFDyZ-L0/s1600/disha-81002990.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://1.bp.blogspot.com/-o5QbcZpmk88/U04nOh_qNzI/AAAAAAAADtQ/0pboFDyZ-L0/s1600/disha-81002990.JPG" height="212" width="320" /></a></div>
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हंसाने में मजा है<br />
कॉमेडी में टाइमिंग जरुरी होती है। कॉमेडी में मायने रखता है कि आप किस तरह से खुद को पेश करते हैं। कॉमेडी की सबसे अच्छी बात यह है कि बिना किसी खींच-तान के हल्के-फुल्के माहौल में शूटिंग ख़त्म हो जाती है। मुझे दर्शकों को हंसाने में मजा आता है हालांकि, मैं जानबूझ कर हंसाने की कोशिश नहीं करती। दया की मासूम अदा दर्शकों को हंसा देती है।</div>
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व्यस्तता की आदत हो गयी है<br />
मैं बचपन से एक्टिंग कर रही हूं। इसलिए मुझे पता है कि इस प्रोफेशन में फॅमिली के लिए समय निकलना कठिन है। अच्छी बात है कि मेरी फॅमिली को भी इस बारे में पता है। उन्हें मेरी व्यस्तता की आदत हो चुकी है। हालाँकि, मुझे फॅमिली और काम के बीच बैलेंस बनाने में तकलीफ नहीं होती है। मेरी पर्सनल लाइफ भी प्रोफेशनल लाइफ की तरह खुशनुमा है।</div>
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आभारी हूं<br />
टेलीविज़न के दर्शकों की बेहद आभारी हूं कि उन्होंने मुझे इतना प्यार दिया है। मेरी मौजूदा पहचान टेलीविज़न के दर्शकों के प्यार और दुलार की वजह से ही है। सिर्फ एक धारावाहिक में अभिनय कर रही अभिनेत्री को दर्शकों का इतना पोजिटिव रिस्पांस कम ही मिलता है। मैं खुशनसीब हूं कि मुझे यह मिला है और मिल रहा है।</div>
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-सौम्या अपराजिता</div>
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Somya Aparajitahttp://www.blogger.com/profile/14438976490936719303noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-694989969122548218.post-79121099117834265302014-04-05T01:22:00.000+05:302014-04-05T01:24:38.545+05:30एक्टिंग में अच्छा हूं-रणवीर सिंह<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="http://1.bp.blogspot.com/-Z4a5qOOX5Os/Uz8GdL8_PdI/AAAAAAAADoo/YDxWIn8-RqA/s1600/IMG_9320-746809.JPG" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="" border="0" src="http://1.bp.blogspot.com/-Z4a5qOOX5Os/Uz8GdL8_PdI/AAAAAAAADoo/YDxWIn8-RqA/s320/IMG_9320-746809.JPG" height="640" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5998520327175355858" width="424" /></a></div>
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<span id="goog_281892196"></span><span id="goog_281892197"></span>रणवीर सिंह ने जब रुपहले पर्दे पर दस्तक दी थी,तो शायद ही किसी ने सोचा होगा कि साधारण नैन नक्श वाला यह चंचल-शोख अभिनेता एक दिन हिंदी फिल्मों का स्टार अभिनेता बनेगा जिसके साथ काम करने के लिए शीर्ष फिल्मकार और अभिनेत्रियां अपनी बारी का इंतज़ार करेंगी। पांच फिल्मों (बैंड बाजा बारात,लेडिज वर्सेज रिक्की बहल,लूटेरा,रामलीला और गुंडे) में अपने अभिनय के विविध रंग बिखेर चुके रणवीर बेहद कम अन्तराल में नयी पीढ़ी के सक्षम,प्रतिभाशाली और हरफनमौला अभिनेता बनकर उभरे हैं। रणवीर की बातें उन्हीं के शब्दों में..</div>
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एक्टर बनने की चाहत<br />
मैं बांबे ब्वॉय हूं। बांद्रा के स्मॉल स्कूल लर्नस एकेडमी में पढ़ाई हुई। बचपन से ही एक्टर बनना चाहता था। स्टडी और स्पोर्ट में मैं सुपर स्पेशल था,लेकिन मेरा ध्यान परफॉर्मिंग आर्ट की तरफ था। डिबेट,ड्रामा..में मैं अच्छा था। मैंने सोचा की मुझे फिल्म इंडस्ट्री का हिस्सा बनना चाहिए,लेकिन फिर यह मैंने सोचा कि पता नहीं मुझे मौका मिलेगा या नहीं। उस समय मेरे दिमाग में यह बात थी कि फिल्म इंडस्ट्री में सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों को ही मौका मिलता है,पर अब वक्त बदल चुका है। अब लोग मेरिट के हिसाब से सोच रहे हैं। ...तो एक्टर बनने के सपने के बारे में सोचते-सोचते मैं अपने दूसरे पैशन पर भी ध्यान दे रहा था क्रिएटिव राइटिंग। इसी बीच अमेरिका में इंडियाना यूनिवर्सिटी में एक्टिंग क्लास के लिए गया। एक्टिंग क्लास में मिल रहे रेस्पांस से मुझे लगा कि मैं एक्टिंग में अच्छा हूं। मैंने रियलाइज किया कि मैं तो एक्टर ही बनूंगा। एक्टिंग में ग्रैजुएशन की डिग्री लेने के बाद मैंने थिएटर भी किया। मुंबई वापस आने के बाद मैंने खुद से कहा कि अब मुझे हिंदी फिल्मों का एक्टर बनना है। ....और उसके बाद से संघर्ष शुरू हुआ।</div>
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संघर्ष का वो दौर<br />
टेलीविजन कमर्शियलों के लिए असिस्टेंट डायरेक्टर बनने से शुरूआत हुई। उसके बाद मैंने सोचा कि अब डायरेक्टर-प्रोड्यूसर को अप्रोच करना पड़ेगा। कास्टिंग डायरेक्टर से मिलने लगा। कई जगह ऑडिशन दिया। कई जगह सेलेक्ट हुआ और कई जगह नहीं हुआ। उस समय लगा कि अच्छा मौका मुझसे बहुत दूर है। यह सब इनकरेजिंग नहीं था,फिर भी मैं एक बड़े मौके का इंतजार कर रहा था। तीन साल के स्ट्रगल के बाद 'बैंड बाजा बारात' के लिए ऑडिशन दिया और सेलेक्ट कर लिया गया। स्ट्रगल पीरियड के दौरान इतनी सारी अनिश्चितता थी कि समझ में नहीं आ रहा था की क्या करूं?</div>
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एक्टिंग सिखायी नहीं जाती<br />
एक्टिंग ऐसी चीज है जो सिखायी नहीं जा सकती। ....या तो आप कर सकते हो या नहीं कर सकते हो। आपकी पर्सनालिटी है पर डिपेंड करता है कि आप एक्टिंग कर पाते हो या नहीं? एक्टिंग की ट्रेनिंग आपको हेल्प करती है। ट्रेनिंग के कारण एक्टिंग की तरफ आपका अप्रोच शार्प और क्लियर हो जाता है।</div>
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तुलना,मगर नक़ल नहीं<br />
अपनी पहचान बनाना चाहता हूं। मेरा कांसस एफर्ट है कि मैं किसी दूसरे एक्टर की नक़ल नहीं बनूं। दूसरे एक्टर और उनकी फिल्मों से खुद को कंपेयर अवश्य करता हूं क्योंकि यह कंपेरिजन मुझे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। जब दूसरों को बेहतरीन एक्टिंग करते हुए देखता हूं तो मुझे लगता है कि मैं उनसे भी शानदार कुछ करूं लेकिन मैं कभी किसी दूसरे से कंपीटिशन नहीं करता।</div>
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हर बार कुछ नया और अलग<br />
मैं आज कैरियर के जिस मुकाम पर हूं, वहां मेरे लिए बहुत जरूरी है कि मैं आम लोगों से अलग तरह का काम करूं। मैं सिर्फ ऐसा काम स्वीकार कर रहा हूं जिसमें नवीनता हो। मै खुद को ऐसे एक्टर के रूप में स्थापित करना चाहता हूं कि जिसके बारे में लोग सोचें कि यह एक्टर किसी भी किरदार में नज़र आ सकता है। मैं खुशनसीब हूं कि एक तरफ जहां अली अब्बास जफ़र को लगा कि उनकी फिल्म 'गुंडे' के किरदार में मैं फिट बैठता हूं,वहीं दूसरी तरफ विक्रम मोटवानी को लगा कि मैं उनकी फिल्म 'लुटेरा 'में भी फिट बैठता हूं।</div>
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गोविंदा का साथ<br />
इस समय 'किल दिल' की शूटिंग कर रहा हूं। बहुत अच्छी स्क्रिप्ट है। मैं बचपन के दिनों से ही गोविन्दा का बहुत बड़ा फैन रहा हूं। मै अपने स्कूल के दिनो से ही गोविन्दा की नकल करता आ रहा हूं। मुझे विश्वास नही हो रहा है कि 'किल दिल' मै गोविन्दा के साथ काम कर रहा हूं।( 'किल दिल' में परिणीति चोपड़ा और अली जफ़र भी महत्वपूर्ण भूमिकाओं में हैं।)</div>
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जोया के निर्देशन में <br />
जोया अख्तर के साथ (फिल्म-दिल धड़कने दो) काम करने को लेकर बेहद उत्साहित हूं।मेरा मानना है कि जोया फिल्म इंडस्ट्री की सार्वधिक प्रतिभावन निर्देशकों में एक हैं।जोया के साथ काम कर मुझे अपने अभिनय का नया पहलू दिखाने को मिलेगा जो दर्शकों को हैरान कर देगा।</div>
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-सौम्या अपराजिता</div>
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Somya Aparajitahttp://www.blogger.com/profile/14438976490936719303noreply@blogger.com0