Monday, May 14, 2012

मेरे प्रिय अभिनेता........


घर आते ही स्कूल बॉक्स और बोरे को अपनी जगह रख कर माँ से पूछा,'माँ,पापा कब तक आयेंगे?' माँ ने कहा,'आते ही होंगे'. स्कूल के कपडे बदलकर मैं क्वार्टर के अहाते में चली गयी और अपने स्कूल को निहारने लगी. मैंने कुछ दिनों पहले ही स्कूल की एक कमरे वाली इमारत पर चढ़ कर स्कूल का नाम लिखा था-'आदर्श राजकीय प्राथमिक विद्यालय,बसंतपुर,सिवान'.नील के गाढे रंग से लिखा नाम अहाते से साफ़-साफ़ दिख रहा था. तभी, मेरी नजर अपने छोटे भाई पर पड़ी.वह दोस्तों के साथ खेलने के बाद घर आ रहा था.उसके हाथ में सिर्फ स्कूल बॉक्स था..मैंने उससे पूछा,क्या हुआ आदर्श..अपना बोरा छोड़ आये? अब कल किस पर बैठोगे? उसे तुरंत याद आया और वह बोरा लाने चला गया.दरअसल, स्कूल के मैदान में खुले आसमान के नीचे हमारी क्लास लगती थी..स्कूल में इतनी बेंच नहीं थी कि सब उसपर बैठ सके. ऐसे में हमारे स्कूल के एकमात्र मास्टर साहेब ने हम सब से अपने घर से बोरा लाने को कहा था जिसे स्कूल ख़त्म होने के बाद हम वापस घर ले जाते थे. आदर्श बोरा लेकर घर की ओर आ रहा था. तभी  पापा की जीप की घरघराहट सुनाई दी.मैं तुरंत घर के भीतर चली आई.

जैसे ही पापा ने घर में प्रवेश किया..मैंने तुरंत उन्हें बताया कि पापा मुझे आज 'मेरे प्रिय अभिनेता' पर निबंध लिखने का होमवर्क दिया गया है..मैं क्या लिखूं? चौथी कक्षा में पहली बार होमवर्क के लिए पापा की सहायता लेने की जरुरत महसूस हुई थी ..मुझे नहीं पता था कि  अभिनेता कैसे होते हैं? मैं तो उनके नाम तक नहीं जानती थी. जानती भी कैसे?  हम लालटेन युग में जी रहे थे..रात में घर को कभी बल्ब की रौशनी से रोशन होते हुए नहीं देखा था..टीवी के बारे में हमें इतना ही पता था कि वह  ड्राइंग रूम में रखने वाली अच्छी चीज़ है.अखबार आते ही कहाँ गुम हो जाता था,पता ही नहीं चलता था..ऐसे में हम उस रंगीन दुनिया से अनभिज्ञ थे आज जिसके करीब हैं..

पापा ने फ्रेश होने के बाद मुझे पास बुलाया और कहा,'मेरे प्रिय अभिनेता' निबंध में तुम अमिताभ बच्चन के बारे में लिखो..मैंने पापा से पूछा,'वो कौन हैं?' पापा ने उनके बारे में बताया कि वे कवि हरिवंश राय बच्चन के पुत्र हैं .शुरूआती असफलता के बाद मेहनत और समर्पण के बल पर उन्होंने खुद को साबित किया.उनकी फ़िल्में सभी पसंद करते हैं ..पापा ने 'जंजीर' का विशेष जिक्र किया.पापा ने उनके व्यक्तित्व के विषय में भी बताया.वे ६ फुट  लम्बे हैं..मैंने पापा की बातो को ध्यान से सुनकर 'मेरे प्रिय अभिनेता' पर १०-१५ वाक्यों का निबंध तो लिख दिया,पर मैं उनकी छवि से अनजान थी.मैंने आज तक उनकी तस्वीर नहीं देखी थी. लेकिन,मुझे इतना तो पता चल ही गया था की यदि पापा ने' मेरे प्रिय अभिनेता' निबंध के लिए उनका नाम लिया है,तो वे जरुर विशिष्ट होंगे.

वक़्त बीता..पापा का ट्रान्सफर आरा हुआ..वहां हमने पहली बार अपने टीवी पर चलती-फिरती तस्वीरें देखी..मुझे टीवी का नशा हो गया था.हर मंगलवार रात और रविवार शाम दूरदर्शन पर फ़िल्में देखना नहीं भूलती थी..माँ और मैं दूरदर्शन पर दिखाई जाने वाली फिल्मों के नियमित दर्शक थे. उसी दौरान मैंने अमिताभ बच्चन को' मुकद्दर का सिकंदर' में पहली बार देखा.मैंने माँ से पूछा,'माँ यही हैं अमिताभ बच्चन!' माँ ने कहा,'हाँ'. मैं खुश हो गयी कि आखिर मैंने अमिताभ बच्चन को देख ही लिया .लेकिन, दूरदर्शन पर दिखाई जाने वाली लगभग हर फिल्म में अमिताभ बच्चन को  देख कर बोर होने लगी.माँ से मैंने पूछा, 'माँ ये लोग सिर्फ एक ही अभिनेता की फ़िल्में क्यों दिखाते हैं?' माँ ने कहा क्योकि लोग वही देखना चाहते हैं? मैं चिढ जाती. फ़िल्में देखना मैंने कम कर दिया.अमिताभ बच्चन की फ़िल्में मैं तब ही देखती जब उसमे विनोद महरा या विनोद खन्ना होते..मुझे दोनों ही अमिताभ बच्चन से ज्यादा अच्छे लगते थे.एक दिन  माँ के साथ चित्रहार देख रही थी,मैंने' लाल बादशाह' के गाने पर उम्रदराज अमिताभ बच्चन को  शिल्पा शेट्टी के साथ ठुमके लगाते देखा..मुझे बहुत बुरा लगा..मैंने माँ से कहा,'देखो,ये हैं तुम्हारे अमिताभ बच्चन? कैसे लग रहे हैं?' माँ चुप हो गयी..

अब पापा का ट्रान्सफर पटना हो चुका था.पापा के पास हमारे लिए पहले से ज्यादा समय था.पापा हमें पढ़ाते थे..कभी-कभी घर पर ही फुफेरे भाइयों और दोस्तों के साथ क्विज़ कांटेस्ट हुआ करता था..मेरा सामान्य ज्ञान अच्छा था..मैं हमेशा जीतती थी..उस समय केबल चैनल के कारण टीवी देखने पर थोड़ी पाबन्दी हो गयी थी ताकि हमारी पढ़ाई पर उसका असर ना हो..पर जब पापा को 'कौन बनेगा करोडपति' के बारे में पता चला तो उन्होंने हमें मना नहीं किया..हम सब मिलकर 'कौन बनेगा करोडपति' देखते.  'कौन बनेगा करोडपति देखने के दौरान मुझे अमिताभ बच्चन के व्यक्तित्व के नए पहलू के बारे में पता चला.मैंने महसूस किया कि यह अभिनेता सही मायनों में विशिष्ट है..अतुल्य है..इसका व्यक्तित्व ही नहीं,इसकी ज्ञान शक्ति भी कमाल है.

बसंतपुर और आरा से पटना होता हुआ मेरी जिंदगी का कारवाँ मुंबई पहुंचा..फ़िल्मी दुनिया की चमकीली दुनिया की उदासीन सच्चाइयों से रूबरू हुई..इस रंगीन दुनिया के खोखले लोगों की भीड़ में एक चेहरा मुझे अद्भुत ओर विशिष्ट लगा...वो चेहरा है-अमिताभ बच्चन का..जब सदी के महानायक के सामने खुद को पाया तो, पता चला कि क्यों पापा ने कहा था कि 'मेरे प्रिय अभिनेता' सिर्फ अमिताभ बच्चन हो सकते हैं!
-सौम्या अपराजिता

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