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Friday, June 17, 2016

चार की चमक : पृष्ठभूमि नहीं,हुनर है हिट

-सौम्या अपराजिता

फ़िल्मी दुनिया में खुद को स्थापित करना गैरफ़िल्मी पृष्ठभूमि के कलाकारों के लिए टेढ़ी खीर होती है। इन कलाकारों के पास प्रतिभा और कुछ कर दिखाने का हौसला तो होता है,मगर शुरुआती पहचान और अवसर के लिए आवश्यक फ़िल्मी संपर्क और प्रभाव का अभाव होता है। कई पापड़ बेलने के बाद यदि शुरुआती अवसर मिल भी जाता है,तो उसके बाद फ़िल्मी पृष्ठभूमि वाले स्टार कलाकारों की प्रभावशाली मौजूदगी के बीच खुद को स्थापित करने की चुनौती होती है। विशेषकर गैरफ़िल्मी पृष्ठभूमि की अभिनेत्रियों के लिए तो फ़िल्मी दुनिया में सफलता का सफ़र मुश्किल भरा होता है। ऐसे ही मुश्किल भरे सफ़र को अपने बुलंद हौसलों और हुनर के साथ तय कर हिंदी फिल्मों में सफलता की कहानी लिखी है-बरेली की प्रियंका चोपड़ा,मंडी की कंगना रनोट,बैंगलुरु की अनुष्का शर्मा और दीपिका पादुकोण ने। कंगना,प्रियंका,दीपिका और अनुष्का शर्मा ने खुद को सिर्फ समर्थ अभिनेत्री के रूप में ही स्थापित नहीं किया है,बल्कि इन चारों अभिनेत्रियों ने बता दिया है कि अगर हौसला,हुनर और जोश हो,तो गैर फ़िल्मी पृष्ठभूमि की अभिनेत्रियां भी सफलता के सोपान को छू सकती हैं। बाहर से आयी इन अभिनेत्रियों ने अपने अभिनय और आकर्षण के दम पर फ़िल्मी दुनिया में प्रभावशाली पहचान बनायी है। इन्होंने पुरुष प्रधान हिंदी फ़िल्मी दुनिया के समीकरण को बदल कर नायिका प्रधान फिल्मों के सुनहरे भविष्य की नींव रखी है।

प्रियंका की प्रतिभा
विविध रंग की भूमिकाओं में ढलने की कला में पारंगत हो चुकी प्रियंका चोपड़ा हर अंदाज और कलेवर में दर्शको को प्रभावित करती हैं। गैर फ़िल्मी पृष्ठभूमि की यह अभिनेत्री अभिनय की हर कसौटी पर खरी उतरने के लिए तैयार रहती है। 'अंदाज' से 'मैरी कॉम' तक के फ़िल्मी सफ़र में प्रियंका ने तमाम उतार-चढाव के बीच हिंदी फिल्मों में अपनी प्रभावी पहचान बनायी है। सही मायने में प्रियंका ने हिंदी फिल्मों में अभिनेत्रियों के अस्तित्व को सकारात्मक उड़ान दी है। अपने संघर्ष भरे सफ़र के विषय में प्रियंका कहती हैं,' मैं जब फिल्म जगत में आई तो मेरी उंगली पकड़ने और मुझे यह कहकर रास्ता दिखाने वाला कोई नहीं था कि 'यह सही दिशा है।' मुझे कभी कोई मार्गदर्शक नहीं मिला और न ही मेरी ऐसे लोगों से दोस्ती थी, जो फिल्मों के बारे में कुछ जानते हों। मिस वर्ल्ड का खिताब जीतने के बावजूद शुरूआती दिनों में मुझे काफी संघर्ष करना पड़ा। मुझे साइन करने के बावजूद कई बार तो इसलिए फिल्मों से बाहर कर दिया गया कि कोई और अभिनेत्री किसी तगड़ी सिफारिश के साथ निर्माता के पास पहुंच गई थी। लेकिन मैं उस समय कुछ करने की स्थिति में नहीं थी। इससे मुझे दुख तो हुआ, लेकिन यह सीख भी मिली कि कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं है। आज जब पीछे मुड़कर देखती हूं,तो मुझे अपने संघर्ष पर गर्व होता है। उसी संघर्ष की बदौलत आज मैं इस मुकाम पर हूं।'

कंगना की खनक
फिल्मों में अवसर मिलने के शुरूआती संघर्ष से लेकर दो बार राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार की विजेता बनने तक का कंगना रनोट का सफ़र उन युवतियों के लिए प्रेरणादायक है जो देश के सुदूर इलाकों में बैठकर अभिनेत्री बनने का सपना संजोया करती हैं। कंगना ने सामान्य पारिवारिक पृष्ठभूमि की मजबूरियों के साथ तमाम परेशानियों से जूझते हुए आज वह मुकाम बनाया है जो फ़िल्मी चकाचौंध में पली-बढ़ी अभिनेत्रियों के लिए भी दूर की कौड़ी साबित हो रही है। अपने संघर्ष के अनुभवों को बांटते हुए कंगना कहती हैं,'बीच में एक दौर ऐसा आया था, जब मुझे लग रहा था कि अब मेरा कुछ भी नहीं हो सकता है। मुझे ढंग की फिल्में नहीं मिल रही थी। हर तरफ मेरी आलोचना हो रही थी। ‘तनु वेड्स मनु’ और ‘क्वीन’ के बाद बहुत फर्क आ गया है। नाकामयाबी के उस दौर में भी मैंने हिम्मत नहीं हारी थी। मैंने कभी परवाह नहीं की कि लोग मेरे बारे में क्या कह रहे हैं। खुद को मांजती रही और आने वाले अवसरों के लायक बनती रही। मेरा तो एक ही लक्ष्य रहा कि जो मुझे अभी लायक नहीं मान रहे हैं, उनके लिए और बेहतर बनकर दिखाऊंगी। मैं खुद को भाग्यशाली नहीं मानती हूं। मैंने हमेशा हर चीज में बहुत संघर्ष किया है। पिछले दस सालों में मैंने काफी कुछ सहा है। मैं हमेशा से ही  यहाँ एक बाहरी व्यक्ति थी और हमेशा ही रहूंगी। एक समय था जब मेरे लिए हिंदी फिल्मों में काम पाना मुश्किल था पर अब ऐसा बिल्कुल नहीं है। अब अलग तरह का संघर्ष है लेकिन पहले जितना नहीं।'

दीपिका की दिलकशी
बंगलुरु में जब दीपिका पादुकोण अपने पिता प्रकाश पादुकोण के साथ बैडमिंटन की प्रैक्टिस किया करती थीं,तब उन्होंने सोचा भी नहीं था कि एक दिन वे हिंदी फिल्मों की शीर्ष श्रेणी की नायिका बनेंगी। उन्हें इस बात का इल्म नहीं था कि जिन हाथों में अभी रैकेट है उसमें कभी फिल्मफेयर अवार्ड की ट्रॉफी होगी। ...पर ऐसा हुआ और आज हिंदी फ़िल्मी दुनिया में गैर फ़िल्मी पृष्ठभूमि की दीपिका की सफलता और लोकप्रियता का दीप अपनी रौशनी बिखेर रहा है। उनकी खूबसूरती के चर्चे तो हमेशा ही होते रहे हैं। अब तो, अजब सी अदाओं वाली इस हसीना के अभिनय का जादू भी चलने लगा है। अब वे सिर्फ अपनी बदौलत किसी फ़िल्म को कामयाब बनाने की क्षमता रखती हैं। उन्होंने नए दौर में अभिनेत्रियों के अस्तित्व को सशक्त बनाने में अहम भूमिका निभायी है। दीपिका को गर्व है कि गैर फ़िल्मी पृष्ठभूमि से होने के बाद भी वे हिंदी फिल्मों में खुद को स्थापित करने में सफल रहीं हैं। दीपिका कहती हैं,'अच्छा लगता है जब लोग कहते हैं कि तुम बिना किसी सपोर्ट के,बिना किसी गॉडफादर के यहाँ तक आई हो। यह बड़ी उपलब्धि लगती है।'

अनुष्का का आकर्षण
बचपन में जब अनुष्का शर्मा अपने प्रिय अभिनेता शाहरुख़ खान और अक्षय कुमार की फ़िल्में देखती थीं,तो अक्सर अपनी मां से मजाक में कहा करती थी,'मां...देखना मैं एक दिन शाहरुख़ और अक्षय के साथ फ़िल्म करूंगी।' उन्हें नहीं पता था कि उनका यह मजाक एक दिन हकीकत बन जायेगा। अनुष्का की पहचान आज सिर्फ शाहरुख़ खान की नायिका के रूप में नहीं,बल्कि हिंदी फिल्मों की समर्थ और सक्षम अभिनेत्री की है। अनुष्का ने अपने स्वाभाविक अभिनय और आकर्षण से खुद को स्टार अभिनेत्री बनाया और यह साबित कर दिया कि फ़िल्मी दुनिया में सफलता के लिए पृष्ठभूमि से अधिक हुनर मायने रखता है। अभी तक दस फिल्मों में अपने शानदार अभिनय की बानगी पेश कर चुकी अनुष्का कहती हैं,'मैं फ़िल्मी बैकग्राउंड से नहीं हूं। फिल्मों को लेकर जो ज्ञान मुझे आज है वो सात सालों में सात फिल्में करने के बाद आया है। अब ये मेरा पैशन बन चुका है। '

Tuesday, December 30, 2014

विवादों का साया....

यह वर्ष हिंदी फ़िल्मी दुनिया के लिए उतार-चढ़ाव भरा रहा। एक तरफ इस साल ने सौ करोड़ी फिल्मों के क्लब में नयी फिल्मों को शामिल होते हुए देखा, तो दूसरी तरफ नए ट्रेंड ने भविष्य को नयी दिशा दी। नए चेहरों ने उम्मीद की नयी किरण जगायी,तो विवादों के साए से भी यह साल अछूता नहीं रहा। विवादों की कड़ियों ने एक तरफ फिल्मों की चमकीली दुनिया के रहस्यों का पर्दाफाश किया,तो दूसरी तरफ कुछ सितारो की चमक भी फीकी की। मधुर रिश्ते कड़वे हुए,तो अभिनेत्रियों के सम्मान को लेकर नयी बहस भी छिड़ी। कहना गलत नहीं होगा कि विवादों के कारण यह साल फ़िल्मी दुनिया के लिए बेहद 'हैपनिंग'रहा।

चमकीली दुनिया का अंधियारा
'मकड़ी' में अपनी अभिनय प्रतिभा के दम पर राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार से सम्मानित हो चुकी श्वेता प्रसाद बसु से जुड़ा विवाद सबसे अधिक सुर्ख़ियों में रहा। श्वेता के सेक्स रैकेट में शामिल होने की खबर ने पूरी फ़िल्मी दुनिया को सकते में ला दिया। एक प्रतिभाशाली अभिनेत्री के इस तरह के विवाद से जुड़ने से फिल्मों की दुनिया का ऐसा सच सामने अाया जो अब तक पर्दे में था।पता चला कि किस तरह प्रतिभा के बावजूद गैर फ़िल्मी पृष्ठभूमि की अभिनेत्रियों के लिए फिल्मों में अपनी जमीन तलाशना मुश्किल होता है। ऐसे में,जब उन्हें अच्छे अवसर नहीं मिलते हैं,तो पूँजी के अभाव में वे ऐसे कुकृत्य में शामिल होने के लिए मजबूर हो जाती हैं। दरअसल,श्वेता कुछ महीने पहले हैदराबाद के एक पांच सितारा होटल से तथाकथित सेक्स स्कैंडल के आरोप में गिरफ्तार की गई थीं। फिलहाल 2 महीने सुधारगृह में बिताने के बाद श्वेता बाहर आ गई हैं और फिर से सक्रिय हैं।

अभिनेत्रियों के सम्मान की बात
दीपिका पादुकोण ने अभिनेत्रियों के प्रति मीडिया के नजरिये पर नयी बहस छेड़ दी। एक प्रतिष्ठित मीडिया कंपनी के ट्विटर अकाउंट पर दीपिका की लो-नेक लाइन की तस्वीर को 'बड़ी खबर' बताकर पेश किया गया,जिस पर दीपिका ने कड़ा विरोध जताया। दीपिका ने कहा कि यदि मीडिया के लोग अभिनेत्रियों का सम्मान नहीं करते,तो उन्हें महिला सशक्तिकरण की चर्चा करने का कोई अधिकार नहीं है। दीपिका के इस विरोध में दूसरी अभिनेत्रियां भी शामिल हुईं और उन्होंने भी दीपिका का साथ दिया। उधर उस मीडिया कंपनी ने सार्वजनिक रूप से दीपिका पर लांछन लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उधर सोनाक्षी सिन्हा ने भी अभिनेत्रियों को लेकर घटिया नजरिए पर करारा प्रहार किया जब कमाल खान ने अपने ट्विटर अकाउंट पर हिंदी फिल्मों की अभिनेत्रियों के सबसे आकर्षक नितंब का कांटेस्ट शुरू किया। सोनाक्षी ने कमाल की इस हरकत की सरेआम आलोचना की और कमाल को चार थप्पड़ लगाने और उल्टा लटकाकर फांसी लगाने की भी पेशकश कर दी। सोनाक्षी की इस हिम्मत को फ़िल्म प्रेमियों का समर्थन मिला और कमाल को खूब गालियां मिली।

प्रचार का ये कैसा हथकंडा
प्रचार के एक अजूबे हथकंडे ने आमिर खान को विवाद से जोड़ दिया। 'पीके' को लेकर दर्शकों की जिज्ञासा बढ़ाने के लिए आमिर ने अपनी नंगी तस्वीर का सहारा लिया जिसका जमकर विरोध हुआ। 'पीके' के पहले पोस्टर के रूप में आमिर की नंग-धड़ंग तस्वीर जब पहली बार सामने आयी,तो नयी बहस छिड़ गयी। एक तरफ कुछ लोगों ने इसे भारतीय संस्कृति पर प्रहार करने की हरकत बतायी गयी,तो दूसरी तरफ कुछ लोगों ने इसे कलात्मक बताया और जमकर सराहना की। उधर इस तस्वीर को लेकर विभिन्न सामाजिक संगठनों ने विरोध जताया और प्रदर्शन भी किया। इस तरह आमिर द्वारा प्रचार का यह चर्चित हथकंडा इस वर्ष के विवादों की सूची में शामिल हो गया।

रिश्ते हुए तार-तार
बनते-बिगड़ते रिश्तों की इस फ़िल्मी दुनिया में इस वर्ष दो मधुर रिश्तों की दुखद परिणति देखने को मिली। प्रीति जिंटा-नेस वाडिया और रितिक रोशन-सुजैन खान के रिश्ते के टूटने ने विवादों का रूप लिया। एक तरफ प्रीति ने नेस पर उत्पीड़न का आरोप लगाया,तो दूसरी तरफ रितिक संग सुजैन के रिश्ते के टूटने के बाद की घटनाएं  सुर्खियां बनीं। रितिक-सुजैन की शादी टूटी जिसकी वजह अर्जुन रामपाल के साथ सुजैन की नजदीकियां बतायी गयी। दूसरी तरफ कंगना रनोट संग रितिक के अफेयर की खबर ने भी आग में घी का काम किया। प्रीति जिंटा और नेस वाडिया के बीच की कड़वाहट ने तो कई दिनों तक अख़बारों की सुर्ख़ियों में जगह बनायी। दोनों के बीच आरोप-प्रत्यारोप और वाद-विवाद का ऐसा दौर प्रारम्भ हुआ जिसने चमकीली दुनिया के रिश्तों की जटिलता को सार्वजानिक कर दिया।

हीरोइन और थप्पड़
सबसे ताजा विवाद जिसने जाते-जाते इस साल को 'हैपनिंग' बना दिया,वह है-गौहर खान थप्पड़ विवाद। एक टीवी शो के फिनाले एपिसोड की शूटिंग के दौरान भरी महफ़िल में एक दर्शक द्वारा गौहर को थप्पड़ मारना चौंकाने देने वाली खबर बन गया। थप्पड़ मारने वाले शख्स के अनुसार उसने गौहर को इसलिए थप्पड़ मारा था क्योंकि मुस्लिम होते हुए भी गौहर छोटे कपड़े पहनती है। गौहर पर लगे इस थप्पड़ ने नयी बहस छेड़ दी है। लोग चर्चा करने लगे हैं कि क्यों किसी युवती पर ही ऐसा दबाव डाला जाता है?क्यों उसे ही कपड़ों को लेकर दिशा-निर्देश जारी किये जाते हैं? गौहर थप्पड़ विवाद उस संकुचित मानसिकता का परिचायक है जो सिर्फ अभिनेत्रियों पर लागू होता है। अभिनेता जब बिना शर्ट के स्क्रीन पर दिखने पर तालियां बजती हैं,मगर जब अभिनेत्रियां छोटे कपड़े पहनती है , तो उन्हें क्यों बेशर्म कहा जाता है?
इन विवादों ने ख़बरों में जगह बनायी....साथ ही फ़िल्मी सन्दर्भ में मूल्यों,नैतिकता और महिला सशक्तिकरण को लेकर सकारात्मक बहस भी छेड़ी है। अतः ये विवाद नकारात्मक नहीं,बल्कि  सकारात्मक संकेत देते हैं।
-सौम्या अपराजिता

Saturday, October 26, 2013

राम और रणवीर की नजदीकियां....

हिंदी फिल्मों में प्रवेश के समय से ही रणवीर सिंह में सक्षम और समर्थ अभिनेता की छवि देखी गयी। उनके व्यक्तित्व का हरफनमौला अंदाज दर्शकों और निर्माता-निर्देशकों को भा गया। दिग्गज निर्देशकों को रणवीर में अपनी फिल्म के नायक की झलक दिखने लगी। प्रतिष्ठित निर्देशक संजय लीला भंसाली का ध्यान भी रणवीर पर गया और उन्होंने रणवीर के व्यक्तित्व को केंद्र में रखकर 'राम-लीला' के राम की भूमिका गढ़ दी। राम की इस भूमिका को रणवीर ने भी आत्मसात कर लिया।समर्पित और उत्साही अभिनेता रणवीर सिंह से सौम्या अपराजिता की बातचीत-

* 'राम-लीला' की झलकियां जब से जारी की गयी हैं तब से ही फिल्म को लेकर उत्सुकता बढ़ गयी है। आपको व्यक्तिगत रूप से कैसी प्रतिक्रिया मिल रही है?
-कमाल का रिस्पांस मिल रहा है। इतने अच्छे रिस्पांस की उम्मीद नहीं थी। हालांकि, हमें पता था कि हमारा  ट्रेलर बहुत कड़क बना है,पर जैसा रिस्पांस मिल रहा है वह बेहद भावुक कर देने वाला है। संजय सर और मैंने ऐसे रिस्पांस की उम्मीद नहीं की थी। फिल्म इंडस्ट्री के लोगों को ट्रेलर और गानें अच्छे लगे हैं। ऑडियंस को भी अच्छा लगा है। हर तरफ से पॉजिटिव रिस्पांस मिल रहा है। मुझे पता चला है कि यू ट्यूब पर 'राम-लीला' के ट्रेलर ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। लोग बार-बार ट्रेलर और गाने देख रहे हैं।बेहद भावुक और उत्साहित हूं।

*सबकी उम्मीदें भी काफी बढ़ गयी हैं..!
हां...,पर मुझे पूरा भरोसा है कि 'राम-लीला' लोगों की उम्मीदों पर खरी उतरेगी। जितनी अच्छी और स्ट्रोंग गानों और ट्रेलर में लग रही है उससे कहीं ज्यादा अच्छी और भव्य है 'राम-लीला'।अब तक लोगों को फिल्म के  कैरेक्टर को जानने का मौका नहीं मिला  है। लोगों को उनके इमोशन देखने को नहीं मिले हैं। जब लोग फिल्म में देखेंगे तब उन्हें और मजा आएगा। यह तो सभी जानते हैं कि मिस्टर भंसाली विजुअली कितनी स्ट्रांग फिल्म बनाते हैं। एक्टर से उनके बेहतरीन परफोर्मेंस निकालने में वे माहिर हैं। जो इ
मोशन फिल्म में दिखाए गए हैं..जो बढ़िया-बढ़िया सीन हमने शूट किये हैं वे लोग जब देखेंगे तो उन्हें ऐसा लगेगा कि 'राम-लीला' उनकी उम्मीदों से कही ज्यादा बेहतर फिल्म है। .. क्योंकि मैंने तो फिल्म देखी है इसलिए कह सकता हूं कि गानों और ट्रेलर में अभी तक लोगों ने फिल्म का एक प्रतिशत भी नहीं देखा है।

*करियर के शुरूआती लम्हों में संजय लीला भंसाली का साथ मिलना आपके लिए कितनी बड़ी उपलब्धि है?
बहुत बड़ी बात है। आपको एक बात बताऊँ... जब मैंने फिल्म शुरू नहीं की थी तब मेरी बात  एक बहुत ही सीनियर एक्टर से हो रही थी। तब उन्होंने मुझसे कहा था,' तुम संजय लीला भंसाली के साथ अपनी चौथी फिल्म कर रहे हो,यह तुम्हारे लिए बड़ी बात होगी। मैंने उनके साथ काम किया है और मैं तुम्हें दावे के साथ बता सकता हूं कि तुम्हें अंदाजा नहीं होगा कि यह कितनी बड़ी बात है तुम्हारे लिए। उनके साथ काम करने के बाद पता ही तुम्हें इस बात का पता चलेगा।' अब मैं उनकी बात से बिलकुल सहमत हूं । मिस्टर भंसाली ' एलिट ग्रुप ऑफ एक्टर्स' के साथ काम करते आये हैं। ऐसे में अगर आप मिस्टर भंसाली की फिल्म में लीड कर रहे हैं तो यह अपने आप में बड़ा एचीवमेंट है। वह बेस्ट एक्टर के साथ काम करते हैं और बेस्ट एक्टर से बेस्ट परफोर्मेंस निकालते हैं। मैं आपको शब्दों में नहीं समझा सकता कि मेरे लिए कितने सौभाग्य की बात है कि चौथी ही फिल्म में मैं इतने बड़े डायरेक्टर के साथ काम कर रहा हूं।

*तो इतने बड़े डायरेक्टर के साथ काम करने से पहले खुद को तैयार भी करना पड़ा?
-मुझे लगता है कि आप जितनी तैयारियां करेंगे उतने ही आत्मविश्वास के साथ आप सेट पर जायेंगे। मिस्टर भंसाली और मैंने काफी पहले से ही डिसाइड कर लिया था कि शूटिंग से पहले मैं गुजरात के गावों में जाऊंगा। वहां के लोगों से मिलूंगा। थोड़ी बहुत रिसर्च करूँगा कि वो लोग होते कैसे हैं? कैसे बात करते हैं? उनके चाल-ढाल कैसे हैं? हालांकि, मिस्टर भंसाली जो दुनिया क्रिएट करते हैं वह उनकी अपनी ही दुनिया होती है। ..फिर भी गुजरात का जो फ्लेवर वह चाहते थे उसे लाने के लिए तैयारी करनी पड़ी।एक हफ्ते गुजरात रहा। छोटे-छोटे गावों में जाकर वहां के लोगों से बातें की। विडिओ लिए।फोटो लिए। जाना कि वे क्या खाते हैं? कैसे बात करते हैं? अलग-अलग विषयों पर उनके क्या व्यूज हैं? काफी सीखने को मिला। सबसे ज्यादा बोलने का एक खास लहजा सीखने को मिला। उस लहजे को मैंने मिस्टर भंसाली के सामने प्रेजेंट किया जो उन्हें बेहद पसंद आया। एक मिनट के अन्दर उन्होंने बोल दिया कि आप यह लहजा अपनी बोली में ले आइयेगा।... फिर दीपिका आयीं। दीपिका के साथ हमने वर्कशॉप किये। वह भी बहुत हेल्पफुल रहा क्योंकि दीपिका और मैं फिल्म में आने से पहले एक-दूसरे को जानते नहीं थे। इतनी बड़ी और पैशनेट लव स्टोरी में काम करने के पहले एक-दूसरे को जानना जरुरी था।

*सह-कलाकार के रूप में दीपिका कितनी मददगार रहीं?
-सबसे बड़ी बात तो यह है कि वे बहुत हार्ड वर्किंग हैं। वे एक दिन में सुबह से लेकर रात तक इतनी सारी चीजें कर लेती हैं कि कमाल है! मैं तो उनको देखकर थक जाता हूं। मल्टी टास्किंग में वे एक्सपर्ट हैं। उनमें कांफिडेंस है। ये तो भगवान् की देन है कि वे इतनी सुप्रिमली कॉंफिडेंट हैं। उन्हें गलत होने का डर नहीं रहता। अपने काम के प्रति लगन और उत्साह है उनमें। उनकी डिटेलिंग भी कमाल की है। चाहे वह कॉस्टयूम की  डिटेल हो,लाइन की डिटेल हो या रिएक्शन की डिटेल...वे सब पर नजर रखती हैं। वे बिलकुल ऐसी नहीं है कि सेट पर आयें और डायरेक्टर से कहें कि आप बताइए कि क्या करना है? वे खुद का टेक लेती हैं । वे बहुत हेल्पफुल हैं। अगर आपको शॉट कंधे से ऊपर का है तो वे अपने चेहरे के रिएक्शन से शॉट देने में मदद करती हैं।माशाल्लाह! वे इतनी बड़ी स्टार हैं, पर वे स्टार वाली फीलिंग नहीं देतीं हैं। जब सेट पर आती हैं तो बहुत कोआपरेटिव रहती हैं। मैं सच में उन्हें बहुत एडमायर करता हूं।

*राम-लीला में आप लीला के राम है। निजी जीवन में राम की भूमिका से कितना इत्तेफाक रखते हैं?
-आप यकीन नहीं करेंगी कि जब मैंने इस कैरेक्टर के बारे में जाना,तो मुझे यकीन नहीं हुआ कि कोई कैरेक्टर मेरे इतना करीब कैसे हो सकता है। मेरे सामने 'राम-लीला' के स्क्रिप्ट की पहली ही नैरेशन होती है और इस कैरेक्टर की एंट्री के बारे में अंग्रेजी के कुछ शब्द का यूज़ किया जाता है। वे शब्द थें-लाउड,ड्रामेटिक,चीप,कलरफुल,फ्लैमब्लौयेंट। मुझे लगा कि इतना कमाल कैरेक्टर  है  कि मैं इसमें काफी अच्छा कर पाउँगा। वहीँ से मेरा उत्साह बढ़ गया। फिर जब नैरेशन के दौरान मैंने सुना कि दूसरे कैरेक्टर राम के बारे में क्या बाते कर रहे हैं..किस तरह उसका परिचय दे रहे हैं..तो मैंने सोचा कि यह तो काफी हद तक मेरे जैसा ही है। मुझे लगा कि अगर मैं यह मान लूं कि रणवीर सिंह के लिए ये वैसा बोल रहे हैं,तो गलत नहीं होगा। आलरेडी.. यह कैरेक्टर पेपर पर मेरे लिए लिखा गया था और मुझे कास्ट भी किया गया। कभी- कभी ही ऐसा होता है कि एक एक्टर और कैरेक्टर की पर्सनालिटी इस हद तक एक-दूसरे से मिलती हो। मैं अपनी किस्मत मानता हूं कि ऐसा कैरेक्टर मिस्टर भंसाली ने मुझको दिया।

*फिर तो राम के कैरेक्टर में ढलना आसान रहा होगा?
-काफी हद तक आसान रहा।मुझे बाद में लगा कि मिस्टर भंसाली अपने कैरेक्टर में  एक एक्टर की पर्सनालिटी को ले आते हैं। वे अपनी कास्टिंग के बारे में बहुत सोचते हैं और फिर एक एक्टर को कास्ट करते हैं।..और फिर एक्टर की पर्सनालिटी को लेकर वे अपने कैरेक्टर को स्क्रीन पर दर्शाते हैं। इसीलिए उनकी फ़िल्में  इतनी रियलऔर आर्गेनिक लगती हैं।

*'राम-लीला' के प्रति उत्साह इसलिए भी है क्योंकि इसकी पैकेजिंग काफी आकर्षक लग रही है। आपकी नजर में फिल्म के लिए उसकी अच्छी पैकेजिंग कितनी जरुरी है?
- फिल्म की पैकेजिंग तो बहुत जरुरी है। अगर दर्शक वीकेंड पर डेढ़ सौ रूपये देकर सिनेमा हॉल में जा रहा है तो क्यों न वह एक विजुअली भव्य फिल्म देखे। फिल्म आकर्षक लगनी चाहिए। फिल्म देखने से पहले उत्साह होना चाहिए कि स्क्रीन पर विशाल और बड़ी दुनिया देखने को मिलेगी।..और मिस्टर भंसाली की तरह भव्यता और रंग कोई और स्क्रीन पर लेकर नहीं आ पाता है। मिस्टर भंसाली की फिल्म का एक-एक फ्रेम ख़ूबसूरत लगता है। ऐसे लगता है जैसे एक पोएट्री है। ऐसा पूरी टीम की मेहनत और लगन से ही हो पाता है। एक-एक फ्रेम सेट करने में कभी कभी पूरा दिन लग जाता है लेकिन जब वह स्क्रीन पर आता है तो उसका जो प्रभाव होता है वह कमाल का होता है। एक फिल्म के विजुअल में कुछ बात होनी चाहिए। पैसे की वैल्यू दिखनी चाहिए।कभी-कभी मैं कोई फिल्म देखने जाता हूं, तो कई बार ऐसा लगता है कि मेरे साथ धोखा हुआ है। सोचता हूं कि यार..ये कैसा प्रोडक्शन वैल्यू है? कैसे शूटिंग की है? एक दर्शक के रूप में मेरी ऐसी राय होती है क्योंकि मैं हर हिंदी फिल्म देखता हूं।' राम- लीला' अच्छी और आकर्षक दिख रही है, तो यह फिल्म के लिए प्लस पॉइंट है। अगर इस वजह से भी लोग फिल्म देखने आये तो मुझे तो बहुत ख़ुशी होगी।

* आपके करियर और जीवन ' राम- लीला' कितनी महत्वपूर्ण है?
-वैसे तो मेरे लिए  हर फिल्म इम्पोर्टेन्ट है,पर 'राम-लीला' बहुत खास है। 'राम- लीला' इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इतने बड़े कैनवास पर मैं पहली बार काम करने का मौका मिला है। और मेरा ऐसा भी मानना है कि मेरी और दीपिका की पेयरिंग भी काफी स्पेशल है। पहली बार लोग हम दोनों को स्क्रीन पर साथ दिखेंगे। मैं उनके साथ और भी फ़िल्में करना चाहता हूं। 'राम-लीला' हमारी पेयरिंग की पहली क़िस्त है। कह सकता हूं कि 'राम-लीला' मेरे लिए तो मेरी लाइफ की सबसे बड़ी फिल्म है।
-सौम्या अपराजिता

Saturday, October 19, 2013

रोशन हुआ दीपिका की सफलता का दीप...

दीपिका पादुकोण की सफलता के दीप के तेज प्रकाश से प्रतिस्पर्धी अभिनेत्रियों की आंखें चौंधियां रही हैं। सफलता का पर्याय बन चुकी दीपिका से अब सिर्फ प्रशंसकों की ही नहीं फिल्म विशेषज्ञों की भी उम्मीदें भी बढ़ गयी हैं। 'कॉकटेल', 'रेस 2','ये जवानी है दीवानी' और 'चेन्नई एक्सप्रेस' की अपार सफलता के बाद इस आकर्षक युवा अभिनेत्री की नयी फिल्म 'राम-लीला' प्रदर्शन के लिए तैयार है। प्रशंसनीय है  कि सफलता के शिखर पर पहुंचकर दीपिका और भी निखर गयी हैं। अब उनकी बातचीत में पहले से अधिक आत्मीयता झलकती है। वे ज्यादा सहज और सरल हो गयी हैं। दीपिका से सौम्या अपराजिता की बातचीत-
बधाई...लगातार चार फिल्मों की सफलता के लिए..
-थैंक यू । बेहद खुश हूं कि सबको मेरी कोशिश पसंद आ रही है।
उम्मीद है कि 'राम-लीला' के साथ सफलता का यह सिलसिला जारी रहेगा..
-मुझे भी यही लग रहा है। 'राम-लीला' के ट्रेलर को बहुत अच्छा रिस्पांस मिला है। ट्रेलर लांच के बाद बहुत लोगों ने मुझे मैसेज किया...रणवीर को मैसेज आया...संजय सर को भी मैसेज मिले। सबने बहुत तारीफ़ की है। ट्विटर पर भी अच्छा रिस्पांस मिला है। मेरे लिए यह बहुत स्पेशल फिल्म है। हर एक हीरोइन का सपना होता है कि वह संजय जी के साथ काम करे और उनकी हीरोइन बने। मैं बहुत खुश हूं कि अपने करियर में इतनी जल्दी मुझे उनके साथ काम करने का मौका मिला।उनकी हर फिल्म में जो फीमेल कैरेक्टर होते हैं,यादगार होते हैं।लोग उनको बहुत पसंद करते हैं। उम्मीद है कि इस फिल्म में भी लोग लीला को बहुत पसंद करें। बहुत ही अच्छा एक्सपीरियंस रहा उनके साथ काम करने का। बहुत कुछ सीखने को मिला। मेरे लिए यह बहुत लिबरेटिंग  एक्सपीरियंस था क्योंकि वे एक्टर को  लिबर्टी देते हैं और इनकरेज करते हैं।... तो बहुत मेहनत के बाद तैयार हुई इस फिल्म को सभी एन्जॉय करेंगे..यही उम्मीद है।
चूंकि लीला के चरित्र को संजय लीला भंसाली ने अपनी मां को समर्पित किया है,ऐसे में...  लीला की भूमिका निभाने की जिम्मेदारी कितनी आसान या मुश्किल रही?
-लीला का कैरेक्टर निभाना बड़ी जिम्मेदारी जरूर थी। सभी जानते हैं कि संजय सर के लिए उनकी मां कितनी खास हैं। मैं खुद उनसे काफी बार मिली हूं। वे बहुत ही स्ट्रांग  और एनर्जेटिक लेडी हैं। जब भी सेट पर आती थीं तो वे हमसब को बहुत हंसाती थीं। बहुत बातचीत करती हैं सबके साथ। हर चीज में इंटरेस्ट लेती हैं। उनसे मिलने के बाद मेरे लिए लीला के कैरेक्टर को निभाना बड़ी जिम्मेदारी थी। मुझे उम्मीद है कि मैंने जो भी किया है उससे संजय सर खुश हैं। लीला बहुत चुलबुली और हैप्पी गो लकी टाइप की लड़की है। हमेशा खुश रहती है। वह अपनी शर्तों पर लाइफ जीती है। साथ ही,वह अपने कल्चर और वैल्यूज को भी बहुत रेस्पेक्ट देती है। प्यार और रिलेशनशिप में वह बहुत ट्रेडिशनल है। लीला से मैं काफी हद तक इत्तेफाक रखती हूं।
लीला की भूमिका में ढलने के लिए किस तरह की तैयारियों और अभ्यास से आपको गुजरना पड़ा?
-अभ्यास तो कुछ नहीं करना पड़ा। संजय सर के साथ काम करने के दौरान आप जितनी कम तैयारियां करें उतना ही बेहतर है। क्योंकि वे हमेशा चाहते हैं कि एक्टर इम्प्रोवाइज करें...हमेशा ऑन द स्पॉट कुछ नया करे। बार-बार वही चीज देखकर वे बहुत जल्दी बोर हो जाते हैं। ..तो जितनी कम तैयारी की जाए उतना ही अच्छा है। यही वजह है कि मैं कहती हूं कि 'राम-लीला' की शूटिंग का एक्सपीरियंस मेरे लिए बिलकुल नया और अलग था।
संजय लीला भंसाली की फिल्मों में ढेर सारे रंग होते हैं। 'राम-लीला' में भी उनका वही चिर-परिचित अंदाज दिख रहा है। बड़े कैनवास की ऐसी फिल्म का हिस्सा होने का अनुभव कैसा रहा?
-अनोखा अनुभव था । पहली बार मैं इस स्केल की फिल्म कर रही हूं। चाहे वह सिनेमेटोग्राफी हो,कॉस्टयूम हो या फिर सेट हो...सब कुछ बड़ा और ग्रैंड है। जैसा आपने कहा कि संजय सर की फिल्में अपने बड़े कैनवास के लिए जानी जाती हैं। हरएक फिल्म में उनका यह अंदाज तो दिखता ही है। वे सीन भी बेहद बारीकी से डायरेक्ट करते हैं। बहुत डिटेल में जाकर हर एक एक्स्प्रेसन को निकाल लेते हैं। हर एक शब्द में उनको वैरिएशन चाहिए। उनको हमेशा कुछ नया चाहिए।

चूंकि आपकी चार फिल्में लगातार सफल रही हैं इसलिए सबकी उम्मीदें आपसे बढ़ गयी हैं। 'राम-लीला' के बॉक्स ऑफिस पर बेहतर परिणाम का दारोमदार भी काफी हद तक आप पर ही है..
-मैं समझ सकती हूं कि लोग इस फिल्म से बहुत उम्मीद कर रहे हैं। जैसे मैं हमेशा कहती हूं कि मैं फिल्मों की शूटिंग बेहद एन्जॉय करती हूं। हर फिल्म में इतना कुछ करने को होता है।  मैं अपने-आप को कैमरे के सामने एन्जॉय करती हूं। सौभाग्यशाली हूं कि हर फिल्म में मुझे बहुत अच्छे डायरेक्टर के साथ काम करने का मौका मिला है। मुझसे सबको उम्मीद है ..मैं समझ सकती हूं। जहां तक मेरी बात है तो मेरी उम्मीद है कि लोग लीला के कैरेक्टर को भी उतना ही प्यार देंगे जितना प्यार उन्होंने वेरोनिका,नैना और मीनम्मा को  दिया है।
रणवीर आपसे नए कलाकार हैं ..तो 'राम-लीला' की शूटिंग के दौरान आपने उन्हें क्या सीखाया और उनसे आपने क्या सीखा?
 -मुझे उम्मीद है कि मैंने उन्हें कुछ सिखाया होगा। वे खुद ही बेहद अच्छे एक्टर हैं। पहली फिल्म से ही हमसब जानते हैं कि वे बेहद अच्छे एक्टर हैं। वे अपने कैरेक्टर में पूरी तरह ढल जाते हैं। रणवीर अपने कैरेक्टर में इस हद तक घुस जाते हैं कि आप भूल जाते हैं कि वे 'रणवीर सिंह' हैं। वे बहुत हेल्पफुल एक्टर हैं। ऐसे बहुत कम एक्टर हैं जो सेट पर हेल्प करते हैं।
आप पर फिल्माए गए 'राम-लीला' के गीत 'ढोल बाजे' की खूब चर्चा हो रही है। कैसा था इस गीत के फिल्मांकन का अनुभव?
-पहली बार 'ढोल बाजे' में गरबा कर रही हूं। बचपन से मैंने गरबा करते हुए लोगों को देखा है क्योंकि मेरे कई गुजराती फ्रेंड्स हैं। ..लेकिन कभी मैं नवरात्री के दौरान होने वाले गुजराती सेलिब्रेशन में नहीं गयी हूँ।पहली बार 'ढोल बाजे' की शूटिंग के दौरान ही उसे एक्सपीरियंस किया। मेरे लिए थोडा मुश्किल था क्योंकि रिहर्सल के दौरान मेरे बैक में चोट लग गयी थी। उस चोट के साथ मुझे शूटिंग करनी पड़ी।.. पर मुझे लगता है कि आखिर में जो रिजल्ट आया वह बहुत अच्छा रहा।
यह साल आपके लिए बहुत अच्छा रहा है। अपने शब्दों में इस साल की उपलब्धियों को कैसे बयां करेंगी?
-मुझे दर्शकों ने अलग-अलग कैरेक्टर में पसंद किया। 'कॉकटेल' से आज तक सबने मेरी मेहनत को सराहा है। मैंने कोशिश की है कि हमेशा कुछ नया करूं। बहुत अच्छा लगता है जब उस कोशिश को सभी पसंद करते हैं । सबने इस एक-डेढ़ साल में इतना सारा प्यार दिया है कि वही मेरे लिए मोटिवेशन(प्रेरणा) बन गया है कि आगे जाकर और अच्छा करूं..और अच्छी-अच्छी फिल्में साइन करूं.. और चैलेंजिंग रोल करूं।
'राम-लीला' के बाद और कौन सी फ़िल्मों में दर्शक आपको देख पाएंगे?
-फिलहाल मैं एक छोटी फिल्म पर काम कर रही हूं जिसका नाम ' फाइंडिंग फैनी'। शाहरुख़ के साथ तीसरी फिल्म कर रही हूं  जिसका नाम है 'हैप्पी न्यू इयर'।
-सौम्या अपराजिता