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Friday, June 17, 2016

चार की चमक : पृष्ठभूमि नहीं,हुनर है हिट

-सौम्या अपराजिता

फ़िल्मी दुनिया में खुद को स्थापित करना गैरफ़िल्मी पृष्ठभूमि के कलाकारों के लिए टेढ़ी खीर होती है। इन कलाकारों के पास प्रतिभा और कुछ कर दिखाने का हौसला तो होता है,मगर शुरुआती पहचान और अवसर के लिए आवश्यक फ़िल्मी संपर्क और प्रभाव का अभाव होता है। कई पापड़ बेलने के बाद यदि शुरुआती अवसर मिल भी जाता है,तो उसके बाद फ़िल्मी पृष्ठभूमि वाले स्टार कलाकारों की प्रभावशाली मौजूदगी के बीच खुद को स्थापित करने की चुनौती होती है। विशेषकर गैरफ़िल्मी पृष्ठभूमि की अभिनेत्रियों के लिए तो फ़िल्मी दुनिया में सफलता का सफ़र मुश्किल भरा होता है। ऐसे ही मुश्किल भरे सफ़र को अपने बुलंद हौसलों और हुनर के साथ तय कर हिंदी फिल्मों में सफलता की कहानी लिखी है-बरेली की प्रियंका चोपड़ा,मंडी की कंगना रनोट,बैंगलुरु की अनुष्का शर्मा और दीपिका पादुकोण ने। कंगना,प्रियंका,दीपिका और अनुष्का शर्मा ने खुद को सिर्फ समर्थ अभिनेत्री के रूप में ही स्थापित नहीं किया है,बल्कि इन चारों अभिनेत्रियों ने बता दिया है कि अगर हौसला,हुनर और जोश हो,तो गैर फ़िल्मी पृष्ठभूमि की अभिनेत्रियां भी सफलता के सोपान को छू सकती हैं। बाहर से आयी इन अभिनेत्रियों ने अपने अभिनय और आकर्षण के दम पर फ़िल्मी दुनिया में प्रभावशाली पहचान बनायी है। इन्होंने पुरुष प्रधान हिंदी फ़िल्मी दुनिया के समीकरण को बदल कर नायिका प्रधान फिल्मों के सुनहरे भविष्य की नींव रखी है।

प्रियंका की प्रतिभा
विविध रंग की भूमिकाओं में ढलने की कला में पारंगत हो चुकी प्रियंका चोपड़ा हर अंदाज और कलेवर में दर्शको को प्रभावित करती हैं। गैर फ़िल्मी पृष्ठभूमि की यह अभिनेत्री अभिनय की हर कसौटी पर खरी उतरने के लिए तैयार रहती है। 'अंदाज' से 'मैरी कॉम' तक के फ़िल्मी सफ़र में प्रियंका ने तमाम उतार-चढाव के बीच हिंदी फिल्मों में अपनी प्रभावी पहचान बनायी है। सही मायने में प्रियंका ने हिंदी फिल्मों में अभिनेत्रियों के अस्तित्व को सकारात्मक उड़ान दी है। अपने संघर्ष भरे सफ़र के विषय में प्रियंका कहती हैं,' मैं जब फिल्म जगत में आई तो मेरी उंगली पकड़ने और मुझे यह कहकर रास्ता दिखाने वाला कोई नहीं था कि 'यह सही दिशा है।' मुझे कभी कोई मार्गदर्शक नहीं मिला और न ही मेरी ऐसे लोगों से दोस्ती थी, जो फिल्मों के बारे में कुछ जानते हों। मिस वर्ल्ड का खिताब जीतने के बावजूद शुरूआती दिनों में मुझे काफी संघर्ष करना पड़ा। मुझे साइन करने के बावजूद कई बार तो इसलिए फिल्मों से बाहर कर दिया गया कि कोई और अभिनेत्री किसी तगड़ी सिफारिश के साथ निर्माता के पास पहुंच गई थी। लेकिन मैं उस समय कुछ करने की स्थिति में नहीं थी। इससे मुझे दुख तो हुआ, लेकिन यह सीख भी मिली कि कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं है। आज जब पीछे मुड़कर देखती हूं,तो मुझे अपने संघर्ष पर गर्व होता है। उसी संघर्ष की बदौलत आज मैं इस मुकाम पर हूं।'

कंगना की खनक
फिल्मों में अवसर मिलने के शुरूआती संघर्ष से लेकर दो बार राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार की विजेता बनने तक का कंगना रनोट का सफ़र उन युवतियों के लिए प्रेरणादायक है जो देश के सुदूर इलाकों में बैठकर अभिनेत्री बनने का सपना संजोया करती हैं। कंगना ने सामान्य पारिवारिक पृष्ठभूमि की मजबूरियों के साथ तमाम परेशानियों से जूझते हुए आज वह मुकाम बनाया है जो फ़िल्मी चकाचौंध में पली-बढ़ी अभिनेत्रियों के लिए भी दूर की कौड़ी साबित हो रही है। अपने संघर्ष के अनुभवों को बांटते हुए कंगना कहती हैं,'बीच में एक दौर ऐसा आया था, जब मुझे लग रहा था कि अब मेरा कुछ भी नहीं हो सकता है। मुझे ढंग की फिल्में नहीं मिल रही थी। हर तरफ मेरी आलोचना हो रही थी। ‘तनु वेड्स मनु’ और ‘क्वीन’ के बाद बहुत फर्क आ गया है। नाकामयाबी के उस दौर में भी मैंने हिम्मत नहीं हारी थी। मैंने कभी परवाह नहीं की कि लोग मेरे बारे में क्या कह रहे हैं। खुद को मांजती रही और आने वाले अवसरों के लायक बनती रही। मेरा तो एक ही लक्ष्य रहा कि जो मुझे अभी लायक नहीं मान रहे हैं, उनके लिए और बेहतर बनकर दिखाऊंगी। मैं खुद को भाग्यशाली नहीं मानती हूं। मैंने हमेशा हर चीज में बहुत संघर्ष किया है। पिछले दस सालों में मैंने काफी कुछ सहा है। मैं हमेशा से ही  यहाँ एक बाहरी व्यक्ति थी और हमेशा ही रहूंगी। एक समय था जब मेरे लिए हिंदी फिल्मों में काम पाना मुश्किल था पर अब ऐसा बिल्कुल नहीं है। अब अलग तरह का संघर्ष है लेकिन पहले जितना नहीं।'

दीपिका की दिलकशी
बंगलुरु में जब दीपिका पादुकोण अपने पिता प्रकाश पादुकोण के साथ बैडमिंटन की प्रैक्टिस किया करती थीं,तब उन्होंने सोचा भी नहीं था कि एक दिन वे हिंदी फिल्मों की शीर्ष श्रेणी की नायिका बनेंगी। उन्हें इस बात का इल्म नहीं था कि जिन हाथों में अभी रैकेट है उसमें कभी फिल्मफेयर अवार्ड की ट्रॉफी होगी। ...पर ऐसा हुआ और आज हिंदी फ़िल्मी दुनिया में गैर फ़िल्मी पृष्ठभूमि की दीपिका की सफलता और लोकप्रियता का दीप अपनी रौशनी बिखेर रहा है। उनकी खूबसूरती के चर्चे तो हमेशा ही होते रहे हैं। अब तो, अजब सी अदाओं वाली इस हसीना के अभिनय का जादू भी चलने लगा है। अब वे सिर्फ अपनी बदौलत किसी फ़िल्म को कामयाब बनाने की क्षमता रखती हैं। उन्होंने नए दौर में अभिनेत्रियों के अस्तित्व को सशक्त बनाने में अहम भूमिका निभायी है। दीपिका को गर्व है कि गैर फ़िल्मी पृष्ठभूमि से होने के बाद भी वे हिंदी फिल्मों में खुद को स्थापित करने में सफल रहीं हैं। दीपिका कहती हैं,'अच्छा लगता है जब लोग कहते हैं कि तुम बिना किसी सपोर्ट के,बिना किसी गॉडफादर के यहाँ तक आई हो। यह बड़ी उपलब्धि लगती है।'

अनुष्का का आकर्षण
बचपन में जब अनुष्का शर्मा अपने प्रिय अभिनेता शाहरुख़ खान और अक्षय कुमार की फ़िल्में देखती थीं,तो अक्सर अपनी मां से मजाक में कहा करती थी,'मां...देखना मैं एक दिन शाहरुख़ और अक्षय के साथ फ़िल्म करूंगी।' उन्हें नहीं पता था कि उनका यह मजाक एक दिन हकीकत बन जायेगा। अनुष्का की पहचान आज सिर्फ शाहरुख़ खान की नायिका के रूप में नहीं,बल्कि हिंदी फिल्मों की समर्थ और सक्षम अभिनेत्री की है। अनुष्का ने अपने स्वाभाविक अभिनय और आकर्षण से खुद को स्टार अभिनेत्री बनाया और यह साबित कर दिया कि फ़िल्मी दुनिया में सफलता के लिए पृष्ठभूमि से अधिक हुनर मायने रखता है। अभी तक दस फिल्मों में अपने शानदार अभिनय की बानगी पेश कर चुकी अनुष्का कहती हैं,'मैं फ़िल्मी बैकग्राउंड से नहीं हूं। फिल्मों को लेकर जो ज्ञान मुझे आज है वो सात सालों में सात फिल्में करने के बाद आया है। अब ये मेरा पैशन बन चुका है। '

Sunday, December 8, 2013

अनुशासित और आकर्षक अनुष्का....

मॉडलिंग की दुनिया से होते हुए फ़िल्मी दुनिया का सुहाना सफ़र तय करने वाली अनुष्का शर्मा ने अपनी पहली ही फिल्म में स्वयं को समर्थ अभिनेत्री के रूप में स्थापित कर लिया। अनुष्का का आकर्षक व्यक्तित्व उनकी प्रतिभा में चार-चांद लगाता है। उत्साही और आकर्षक अनुष्का शर्मा से सेहत और फिटनेस से जुडी बातचीत-

सेहतमंद और फिट रहने के लिए क्या-कुछ करती हैं?
- चूंकि, मेरे मां-पापा दोनों अपनी सेहत को लेकर हमेशा सजग रहे हैं। उन्हीं की प्रेरणा से मैंने अपनी अपनी सेहत पर विशेष ध्यान देना बचपन से ही शुरू कर दिया था। चूँकि,हम आर्मी बैकग्राउंड से हैं इसलिए हमारे घर का माहौल काफी अनुशासित है। जब आपकी दिनचर्या नियमित होती है,तो पूरे दिन शरीर में फूर्ति रहती है और आप स्वस्थ और अच्छा महसूस करते हैं। मेरे साथ भी ऐसा ही है। अनुशासित और नियमित दिनचर्या में ही मेरा फिटनेस मंत्र छिपा है।

फिल्मों में आने से पूर्व  आप किस तरह अपनी फिटनेस पर ध्यान देती थीं?
- मेरी बॉडी एथलेटिक है।बचपन से ही स्पोर्ट ओरिएंटेड रही हूँ। स्पोर्ट्स में मेरी रूचि मेरी फिटनेस को बनाए रखने में मददगार रही है। मेरी बॉडी एथलेटिक है जो मुझे अपनी फिटनेस को बनाए रखने में सहायता करती है। रैंप मॉडलिंग करती थी जिस वजह से मुझे अपने फिगर पर भी खासा ध्यान पड़ता था,पर फिल्मों में एक्टिंग करने के लिए जिस स्टैमिना की जरूरत होती है वह मुझमें नहीं थी। रब ने.... की शूटिंग से पहले मुझे जिम रेगुलर जाना पड़ा जिससे खुद को मैं टफ बना सकूं। अब,जिम जाना मेरी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है।

किस तरह के व्यायाम करती हैं?
- जिम में ज्यादा मुश्किल एक्सरसाइज नहीं करती हूं। रेगुलर एक्सरसाइज पर मेरा ज्यादा जोर रहता है। मेरा मानना है कि डांस बेहतरीन एक्सरसाइज है।श्यामक दावर के निर्देशन में डांस सीखने बाद मैंने स्वयं में काफी परिवर्तन महसूस किया। मेरे शरीर में पहले से अधिक लचीलापन आ गया था। .....और खुद को पहले से अधिक फिट महसूस कर रही थी। मैंने महसूस किया कि डांस बेहतरीन एक्सरसाइज है। उससे शरीर के हर हिस्से की एक्सरसाइज हो जाती है।

खाने-पीने में किस तरह की सावधानी बरतती हैं?
-ज्यादा स्पाइसी भोजन मुझे पसंद नहीं है। घर का बना खाना मुझे अच्छा लगता है और जितना हो सके,घर से बना खाना ही खाती हूँ।  सुबह के नाश्ते में फ्रूट सलाद लेती हूं। लंच में दो से तीन फुल्के,दाल और हरी सब्जियां सलाद के साथ लेती हूं। शाम के नाश्ते में ग्रीन टी और सोया स्नैक्स खाती हूं । डिनर में लंच की ही तरह संतुलित खाना खाती हूं जिसमें दो से तीन फुल्के,हरी सब्जी और फ्रूट सलाद होता है। मेरे डाईट चार्ट से पता ही चल गया होगा कि मुझे सादा भोजन मुझे पसंद है। गरिष्ठ भोजन से दूर ही रहती हूं।

Friday, December 6, 2013

रैंप से रुपहले पर्दे तक...

मॉडलिंग की दुनिया हिंदी फिल्मों का प्रवेश द्वार बन गयी है। मौजूदा दौर में हर दूसरे-तीसरे अभिनेता या अभिनेत्री के तार मॉडलिंग की दुनिया से जुड़े हैं। ऐसा लगता है जैसे रैंप और टीवी कमर्शियल कोई 'रियलिटी शो' हो जिसमें कुछ चेहरों के आकर्षण और प्रतिभा को परख कर उन्हें फिल्मों का नायक या नायिका बनाने का सिलसिला चल पड़ा हो। मॉडलिंग जगत के चेहरों की हिंदी फिल्मों में बढती पैंठ की पड़ताल...


अभिनेत्रियां अधिक सफल
हिंदी फिल्मों के आकाश में चमकने वाले कई सितारों का मॉडलिंग की दुनिया से वास्ता रहा है। हालांकि,सफल अभिनेता के रूप में बेहद कम पुरुष मॉडल अपनी पहचान बनाने में सफल हुए हैं। वर्तमान में मॉडलिंग से हिंदी फिल्मों में प्रवेश करने वाले सफल अभिनेताओं में जॉन अब्राहम और अर्जुन रामपाल उल्लेखनीय हैं। अभिनेताओं के मुकाबले मॉडलिंग की पृष्ठभूमि की अभिनेत्रियों की सफलता का औसत बेहतरीन रहा है। शीर्ष की पांच अभिनेत्रियों में चार अभिनेत्रियां फिल्मों में प्रवेश के पूर्व रैम्प पर अपनी थिरकन का जादू चला चुकी हैं। यहां बात हो रही है  कट्रीना कैफ ,प्रियंका चोपड़ा, दीपिका पादुकोण और अनुष्का शर्मा की। मौजूदा दौर की इन शीर्ष चार अभिनेत्रियों ने मॉडलिंग की दुनिया से होते हुए फिल्मों का सफ़र तय किया है। कट्रीना कैफ 'बूम' की रिलीज़ से पूर्व देश-विदेश के कई फैशन शो में रैंप पर कैटवाक कर चुकी हैं। टीवी कमार्शियलों में दीपिका पादुकोण के बोलते चेहरे और भारतीय व्यक्तित्व से प्रभावित होकर  फराह खान ने उन्हें 'ओम शांति ओम' में शांतिप्रिया की भूमिका सौंपी। 'रब ने बना दी जोड़ी' में तानी की भूमिका के लिए आदित्य चोपड़ा की तलाश बंगलुरू की मॉडल अनुष्का शर्मा पर जाकर ख़त्म हुई।  'मिस वर्ल्ड' की उपाधि को अपने सर पर सजाए प्रियंका चोपड़ा के रैंप पर थिरकने वाले कदम जब फ़िल्मी दुनिया की तरफ मुड़े,तो ऐसा लगा मानो जैसे हिंदी फिल्मों को ऐश्वर्या राय बच्चन जैसी एक और स्टार मिस वर्ल्ड अभिनेत्री मिल गयी हो।

आकर्षक प्रस्तुति में माहिर
मॉडलिंग जगत की पृष्ठभूमि से आने वाली अभिनेत्रियां और अभिनेता अपने बाहरी व्यक्तित्व पर विशेष ध्यान देते हैं। उन्हें अपेक्षाकृत फैशन और स्टाइल की अच्छी समझ होती है। विशेषकर अभिनेत्रियाँ अपने रंग-रूप को लेकर अधिक सजग होती हैं इसलिए निर्माता-निर्देशक का ध्यान अपनी हीरोइनों की साज-सज्जा से अधिक उनके कैरेक्टर पर रहता है। वे निश्चिंत होकर अपनी फिल्म के दूसरे पक्ष पर नजर रख सकते हैं। गौर करें तो इन दिनों दीपिका पादुकोण की सफलता में हर फिल्म में भूमिका के अनुसार उनके बदलते लुक और प्रस्तुति का भी महत्वपूर्ण योगदान है। एक सफल मॉडल होने के कारण दीपिका जानती हैं कि किस भूमिका के लिए उन्हें किस तरह के लुक को अपनाने की जरुरत है। फिल्म विशेषज्ञ मयंक शेखर कहते हैं,'दीपिका स्क्रीन पर  शानदार नजर आती हैं।वे अपने रंग-रूप को लेकर बेहद जागरूक लगती हैं।'

अनुशासन और व्यावसायिक समझ
मॉडलिंग जगत से हिन्दी फिल्मों में प्रवेश करने वाले चेहरे अपने साथ खूबसूरती और ग्लैमर के साथ ही अनुशासन भी लेकर आते हैं। रैंप पर कैटवाक के दौरान एक निश्चित अवधि में कई पोशाक बदलने पड़ते हैं,दूसरे सहयोगी मॉडल के साथ कदम-ताल करना पड़ता है। ऐसा वे अपने अनुशासित व्यवहार से कर पाते हैं। जब इस अनुशासित अनुभव के बाद मॉडल फिल्मों में प्रवेश करते हैं..तो अपने साथ अनुशासित कार्य प्रणाली भी लाते हैं। साथ ही,उनकी कार्य शैली में व्यावसायिकता का पुट दूसरी पृष्ठभूमि के अभिनेता-अभिनेत्रियों के मुकाबले अधिक होता है। वे ज्यादा प्रोफेशनल होते हैं। उनके निर्णय में निजी लाभ से अधिक प्रोफेशनल लाभ का संकेत अधिक होता है। अभिनेता-अभिनेत्रियों के इस प्रोफेशनल रवैये से फिल्म मेकर भी सकरात्मक रूप से प्रभावित होते हैं। अपनी फिल्म के नायक-नायिका के प्रोफेशनल व्यवहार के कारण फिल्म निर्माण की गतिविधि तेजी से आगे बढती है।

पोशाक से जुड़े खुले विचार..
अंग प्रदर्शन को लेकर मॉडलिंग पृष्ठभूमि की अभिनेत्रियों का नजरिया साफ होता है।मॉडलिंग इंडस्ट्री से जुड़े होने के कारण वे दर्शकों के समूह के बीच हर तरह के पोशाक पहनने की आदी होती हैं। इसलिए वे पोशाक के मामले में खुले विचारों वाली होती हैं। जिस कारण फिल्म निर्माता पोशाक को लेकर अभिनेत्रियों की आनाकानी से बच जाते हैं। वे बेफिक्र होकर इन अभिनेत्रियों को अपनी फिल्म के आकर्षण के रूप में पेश कर सकते हैं। सुपर मॉडल रह चुकी कट्रीना कैफ कहती हैं,'अगर फिल्मों की बात है,तो मैं किसी भी तरह के लुक में ढलने के लिए तैयार रहती हूं। फिल्मों में  अपने लुक को लेकर मैं ओपन रहती हूं।' गौर करें तो मॉडलिंग पृष्ठभूमि की अभिनेत्रियों के प्रवेश के बाद से ही हिंदी फिल्मों की नायिकाओं के पोशाक पहनने का अंदाज बदला। वे तथाकथित आधुनिक और विविध अंदाज के पोशाक पहनने लगीं। मॉडलिंग से फिल्मों का रुख करने वाली अभिनेत्रियों  का ही असर है कि अब दर्शक भी फिल्मों की नायिकाओं के छोटे-छोटे पोशाक को लेकर काना फूसी नहीं करते हैं।

होती है आलोचना
ऐसा नहीं है कि मॉडलिंग से हिंदी फिल्मों की राह आसान है। शुरूआती संघर्ष और आलोचना से दो-चार होना पड़ता है। बिपाशा बसु ने जब मॉडलिंग से हिंदी फिल्मों का रुख किया,तो उनके अभिनय की जमकर आलोचना हुई। बिपाशा बताती हैं,' मैं 18 साल की थी जब मैंने अपना करिअर शुरू किया और मैं मॉडलिंग से बोर हो चुकी थी । बोरियत की वजह से ही मैंने पहली फिल्म की थी, जिसको लेकर मेरी बहुत आलोचना हुई।' ' आयशा' और 'रास्कल्स' जैसी फिल्मों में अभिनय कर चुकी लिजा हैडेन कहती हैं,'मुझे लगता है कि एक मॉडल होने के कारण खुद को एक एक्टर के तौर पर स्थापित करना बेहद मुश्किल है। लोगों के मन में पहले से धारणा बन चुकी होती है कि मॉडल एक्टिंग नहीं कर सकते हैं।'

 संघर्ष भी..
दरअसल,मॉडलिंग इंडस्ट्री से आयी लडकियां कैमरे की भाषा समझती हैं। वे फिल्मी दुनिया की चकाचौंध में खुद को ढाल भी लेती हैं,पर हिंदी फिल्मों के  लटके-झटके वे जल्दी पचा नहीं पाती हैं। अनुभव के अभाव में उन्हें अभिनय में पारंगत होने में वक़्त भी लगता है। कट्रीना कैफ को भी वक़्त लगा। वे बताती हैं,' फ़िल्में मेरे लिए माउंट एवरेस्ट की तरह थीं,जहाँ तक पहुंचना मेरे लिए बड़ी चुनौती थी। धीरे-धीरे बात बनी। सेट पर कम्फर्ट के साथ रहने में वक़्त लगा। बोलने के लहजे,डांस और एक्टिंग स्किल पर ध्यान देना पड़ा। यह एक सफ़र था जिसे डेस्टिनी ने मेरे लिए प्लान किया था।' कॉकटेल' से हिंदी फिल्मों में पदार्पण करने वाली डियाना पेंटी कहती हैं,'मॉडलिंग और फ़िल्में  एक-दूसरे से बहुत अलग हैं, वे पूरी तरह से अलग हैं। काम की प्रकृति के लिहाज से दोनों पूरी तरह से अलग हैं। अभिनय बहुत कुछ चाहता है।इसमें आपको शारीरिक, भावनात्मक व मानसिक रूप से डूबना पड़ता है। खुद से संघर्ष करना पड़ता है।'

आलोचना और संघर्ष से दो-चार होने के बाद भी मॉडलिंग की पृष्ठभूमि के चेहरों का फिल्मों में आगमन का सिलसिला जारी है। प्रतिवर्ष लगभग एक दर्जन नए चेहरे मॉडलिंग की दुनिया से होते हुए हिंदी फिल्मों में प्रवेश करते हैं। हालांकि, प्रशिक्षण और अनुभव के अभाव में उनके लिए फिल्मों में प्रारम्भिक दिन कठिन होते हैं। कुछ इन कठिनाइयों के आगे घुटने टेक देते हैं,तो कुछ अनुशासन,धैर्य और व्यावसायिक समझ के कारण धीरे-धीरे खुद को फ़िल्मों में स्थापित करने में सफल रहते हैं और दीपिका पादुकोण और कट्रीना कैफ की तरह सफलता का नया सोपान छूते हैं।

इस वर्ष मॉडलिंग से फिल्मों में प्रवेश करने वाले चेहरे-
वाणी कपूर
पूजा चोपड़ा
क्रिष्टिना अखीवा
कायनात अरोड़ा
पूजा साल्वी
पूनम पांडे
सारा लेओन
राशि खन्ना
अमायरा दस्तूर

-सौम्या अपराजिता

Saturday, November 2, 2013

जश्न-ए-दीपावली

'ज्योति पर्व' दीपावली अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। इस दिन दीपों को प्रज्ज्वलित कर दुनिया को नयी उम्मीदों और नयी ऊर्जा से रोशन करने की घोषणा की जाती है। हिंदी फ़िल्मी दुनिया के टिमटिमाते सितारे भी उल्लास और उमंग से यह पर्व मनाते हैं। लाइट,साउंड,कैमरा और एक्शन जैसे संकेत चिह्नों से दूर दीपावली उन्हें परिवार और दोस्तों के साथ कुछ खुशनुमा पल बिताने का अवसर देता है। ऐसे ही कुछ सितारों की जश्न-ए-दीपावली ...

दीपिका पादुकोण
दीपावली के दिन मैं अपने परिवार के साथ रहना चाहती हूं। सच कहूं तो दीपावली का त्यौहार मुझे अपने परिवार के साथ वक़्त बिताने के लिए बेचैन कर देता है। अच्छी बात है कि इस बार दीपावली के दिन मैं अपने परिवार के साथ रहूंगी। दीपावली मेरा सबसे प्रिय त्यौहार है। बचपन से ही मैं दीपावली सेलिब्रेशन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती रही हूं। मम्मी और छोटी बहन के साथ दीया जलाना मुझे बेहद पसंद है। हम सब  एक साथ मिल कर दीपावली की शाम को लक्ष्मी पूजा करते हैं। मुझे और मेरी बहन को हमारे पेरेंट्स ने हमेशा से बताया है कि पटाखे पर्यावरण के लिए हानिकारक होते है  इसलिए हम कभी पटाखे नहीं जलाते हैं।बचपन में भी छोटे- मोटे  पटाखे ही जलाते थे। दीपावली के दिन मेरे लिए सबसे खास होते हैं  माँ के हाथों से बने कुछ ख़ास व्यंजन और मिठाइयां ...।

बिपाशा बसु
मुंबई में अपने परिवार और रिश्तेदारों की कमी सबसे अधिक मुझे दीपावली के दिन ही खलती है। मेरे ज्यादातर रिश्तेदार बंगाल में रहते हैं इसलिए दीपावली के दिन उनसे मिलना नहीं हो पाता है। दीपावली के कुछ दिन पहले बड़े पैमाने पर घर की साफ़-सफाई करवाती हूं और करती हूं। ऐसा करने से दीपावली के दिन होने वाली साज-सज्जा और भी ख़ूबसूरत लगती है । पटाखे मैं बिलकुल नहीं जलाती हूं। लक्ष्मी-गणेश की पारंपरिक पूजा के बाद रसगुल्लों का स्वाद लेती हूं। दीपावली के दिन की सबसे अच्छी बात है कि इस दिन हम सब गिले-शिकवे भूलकर एक-दूसरे को याद करते हैं और सबकी ख़ुशी की कामना करते हैं।

रणवीर सिंह
दीपावली का मतलब मेरे लिए फैमिली और फ्रेंड्स के साथ क्वालिटी टाइम बिताना है। मैं दीपावली के दिन होने वाले जुआ को पसंद नहीं करता इसलिए दीपावली की पार्टी मुझे बोरिंग लगती है। उस दिन मुझे अपनी फैमिली के बच्चों के साथ खेलना ज्यादा अच्छा लगता है। मुझे पटाखे पसंद नहीं हैं।  दीपावली के बारे में एक बात जो बहुत पसंद है..वह है चारो-तरफ दिखते मुस्कुराते चेहरे। सभी रिलैक्स और खुश नजर आते हैं। दीपावली बिजी शेड्यूल के बीच सेलिब्रेशन का मौका देता है।वैसे.. मेरे लिए  दीपावली की सबसे बड़ी हाईलाइट मिठाइयां हैं।
सोनम कपूर
मैं बचपन से बेहद फेस्टिव रही हूं। खासकर दीपावली के लिए बेहद उत्साहित रहती हूं।दीपावली के दिन अक्सर घर की साज-सज्जा की जिम्मेदारी मुझे दी जाती है। मम्मी के साथ मिलकर रंगोलियां बनाती हूँ। मुझे दीपावली के दिन दीये से अपने घर को रोशन करना ज्यादा अच्छा लगता है। मोमबत्तियों का हम कम-से-कम इस्तेमाल करते हैं। मुझे तेज आवाज वाले पटाखे पसंद नहीं है,रॉकेट और फूलझडिय़ों से ही दीपावली मनाती हूं।  दीपावली रोशनी का त्योहार है,शोर का नहीं। पारंपरिक माहौल में हम दीपावली मनाते हैं।

रितिक रोशन
दीपावली के आस-पास हमारी सिटी बेहद पॉल्यूटेड हो जाती है। मुझे लगता है कि दीपावली के दिन होने वाले पॉल्यूशन के विषय में हमें सोचना चाहिए। पटाखे फोडऩे से ज्यादा पॉल्यूशन होता है। हवा में पटाखों के हानिकारक टुकड़े फैल जाते हैं। मेरी कोशिश रहती है कि बम और पटाखों की तेज आवाज से दूर कहीं शांत और सुकून वाली जगह पर दीपावली मनाऊं। इस बार दीपावली का सेलिब्रेशन मेरे लिए खास है क्योंकि मेरी फिल्म 'कृष3' रिलीज़ हुई है। उम्मीद है कि मेरे लिए और दर्शकों के लिए 'कृष3' दीपावली सेलिब्रेशन को और खुशनुमा बनाएगी।

अनुष्का शर्मा
मैं त्योहारों के दौरान ज्यादा उत्साहित नहीं होती हूं। मेरे लिए दीपावली का दिन दूसरे दिनों की तरह नॉर्मल ही रहता है। ऐसा शायद इसलिए है क्योंकि मैं बचपन से दीपावली सेलीब्रेशन की तैयारियों में इंवॉल्व नहीं रही हूं। मम्मी हमेशा दीपावली के लिए सारी तैयारियां करती है। मैंने कभी दीपावली के लिए कुछ नहीं खरीदा है। बचपन में पटाखे फोड़े हैं। बड़े होने के बाद वह भी छूट गया। हां.. मेरी कोशिश रहती है कि दीपावली का दिन अपने घर वालों के साथ समय बिताऊं....
-सौम्या अपराजिता