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Wednesday, September 25, 2013

सूरज की तरह ईमानदार हूं ...

पंजाब के छोटे से शहर मलेरकोटला में पले-बढे अनस राशिद घर-घर के दुलारे बन गए हैं। बुजुर्ग महिलाएं उनमें अपने बेटे की झलक देखती हैं,तो युवतियां उन्हें अपने जीवन साथी बनाना चाहती हैं। अनस का सहज और सौम्य व्यक्तित्व उन्हें सबका प्रिय बनाता है।'कहीं तो होगा' से अभिनय की पारी की शुरुआत करने वाले अनस इन दिनों 'दीया और बाती हम' में हर दिल अज़ीज़ सूरज की केंद्रीय भूमिका निभा रहे हैं। अनस रशीद की बातें उन्हीं के शब्दों में ...

सूरज की भूमिका निभाने में सफल
आज मेरे पास ऐसी-ऐसी मां आती हैं जो कहती हैं ' मेरे तीन बेटों में से यदि एक बेटा सूरज की तरह होगा,तो मेरे लिए बस एक बेटा ही काफी है। मुझे दो और बेटों की जरुरत नहीं है।' औरतेंदीया और बाती हम में सूरज कोई बहुत करोडो -अरबों की बातें नहीं करता है,उसकी दो-दो बीवियां नहीं हैं। बहुत ही साधारण सा कैरेक्टर है। इंडस्ट्री की हालत को भी मैंने करीब से देखा है।  बोलती हैं कि मेरा बेटा सूरज जैसा हो। लड़कियां बोलती हैं कि मेरा पति सूरज जैसा हो। दर्शकों की ऐसी प्रतिक्रिया देखकर मुझे लगता है कि सूरज की भूमिका निभाने में मैं काफी हद तक सफल रहा हूं।

सूरज जैसा हूं
मैं आपको एक सीक्रेट बताता हूं। शुरुआत में सूरज के कैरेक्टर में एडजस्ट करने में मुझे मुश्किल हुई थी। सूरज कम-पढ़ा लिखा है,आठवीं पास है,एक हलवाई का बेटा है। मेरे लिए यह सब थोडा मुश्किल था,पर सूरज की जो मुख्य विशेषताएं है वे मुझसे काफी हद तक मिलती -जुलती है। सूरज का कैरेक्टर मेरी रियल लाइफ से जुड़ा हुआ है । मुझे अपनी और से कुछ करने की कोशिश नहीं करनी पड़ती है। सूरज की लाइफ में जो कुछ भी होता है उस पर रिएक्ट करने के लिए मुझे बहुत मेहनत नहीं करनी पड़ती है। जो नेचुरल रिएक्शन है वह खुद-ब-खुद आ जाते हैं। कहीं- न-कहीं निजी में मैं भी सूरज जैसा ही हूं।

सूरज जैसे हालातों से गुजरा हूं
कुदरती तौर पर मेरे जो हालत रहे हैं वह सूरज से मिलते हैं। मैंने भी फॅमिली का बड़ा बेटा होने के नाते अपने फ़र्ज़ निभाए हैं। अपनी फॅमिली के लिए मुझसे जो कुछ हो पाता है ..मैं वह करता हूं। सूरज की तरह मैं भी अपने काम में बिजी रहता हूं। सूरज की ईमानदारी और समर्पण की भावना मैं अपने अन्दर भी पाता हूं। मेरे शहर वाले,मेरे मोहल्ले वाले और मेरे बचपन के दोस्त ही मेरे बारे में बेहतर बता सकते हैं। मैंने चंडीगढ़ में मैंने अपनी पढाई की है तो चंडीगढ़ में मेरे टीचर्स,मेरे दोस्त बता सकते हैं कि अनस कैसा है? ....तो काफी हद तक समानता है सूरज और मुझमें। बस यही अंतर है कि सूरज कम पढ़ा लिखा है और मैं पढ़ा लिखा हूं।

जोखिम उठाया
छोटे पर्दे पर अपने छोटे से सफ़र के दौरान मैंने काफी उतार-चढाव देखे हैं। एक्टर के तौर पर मैंने काफी अलग-अलग तरह के शो किये हैं। मैंने जब टेलीविज़न इंडस्ट्री में एंट्री की थी उस समय टीवी का लेवल कुछ और ही था। उसके बाद मंदी आयी,काफी लोग जाबलेस हो गए। एक नया ट्रेंड आया कि सिर्फ न्यू कमर को ही चांस मिलेगा। बाकि सब घर में बैठे थे। उन सबको मद्देनज़र रखते हुए मैंने अपना लेवल ऐसा बनाये रखा कि मैं हमेशा फ्रेशर ही दिखूं। एक शो की इमेज से बाहर निकलने के लिए मैंने अपने आप में चेंजेस लाये,उसके बाद मैंने एक एक्सपेरिमेंट किया। बिज़नस टायकून और प्रिंस का कैरेक्टर प्ले करने के बाद जमीन से जुड़े कैरेक्टर को निभाने का जोखिम मैंने उठाया।

आमिर खान से प्रेरित हूं
 मैंने देखा है कि कैसे इंडस्ट्री उप-डाउन हुई। ..........और मैंने अपने करियर ग्राफ को भी देखा। एक कैरेक्टर से निकल कर मैं दूसरे कैरेक्टर में ढलता हूँ . दूसरे से तीसरे में ढलता हूँ। फिर वह सब छोड़कर आज एक नया एक्सपेरिमेंट करता हूं। मैं आमिर खान से प्रेरित होता हूं। मुझे लगता है जब वे बड़े पर्दे पर एक्सपेरिमेंट कर सकते हैं,तो मैं छोटे पर्दे पर क्यों नहीं ऐसा कुछ कर सकता हूं ....

मक्खन देख कान्हा बन जाता हूं
मेरे अन्दर पंजाबियत कूट-कूट कर भरी हुई है। पंजाबी मेहमाननवाजी के लिए जाने जाते हैं। जो कोई भी मेरे सेट पर या घर पर आता है उसे मेरी मेहमाननवाजी से महसूस हो जाता है कि मैं पंजाबी हूं। मुझे खाने-पीने का बहुत शौक है। मैं सब चीजें खाता हूं। मक्खन को देखकर तो मैं ऐसे उसके पीछे पड़ जाता हूं जैसे कन्हैया जी पड़ते थें। मेरे गुस्से में भी पंजाबियत का पुट है। इमोशनल भी बहुत हूं। ..तो मुंबई में भी मेरी पंजाबियत बरक़रार है।


छोटे शहर से होना अच्छी बात है
मैं अपने शहर निवासियों से कहना चाहूँगा कि छोटे शहर से होना बुरी बात नहीं है। छोटे शहर से होना सबसे अच्छी बात है। पहले मुझे लगता था कि हमारे शहर की कोई पहचान नहीं है । हम भविष्य में क्या करेंगे। हम तो उस स्कूल में पढ़े हैं जहाँ पर बोरी लेकर जाते थे और उसपर बैठ कर पढ़ते थे। छत से पानी टपकता था। आज मुझे गर्व है कि मैं उन हालातों से गुजरा हूं। अपने शहर और देश की पूरी जनता से कहना चाहता हूँ कि आप जितना जमीन से जुड़े रहेंगे आपको जिंदगी का उतना ही अनुभव होगा। आप अपनी स्ट्रेंथ पहचानिए और बता दीजिये कि छोटे शहर से होना यानी ज्यादा अनुभवी और सहनशील होना है।

'दीया और बाती हम' की नायिका संध्या से मिले-
http://somya-aparajita.blogspot.in/2013/09/deepika-singh.html

-सौम्या अपराजिता