Monday, May 14, 2012

विद्या की रेखा....


बात तब की है ,जब मैं छठी कक्षा में पढ़ती थी...घर पर एक अंकल आये थे ,उनका नाम मुझे याद नहीं आ रहा. वे सबकी हाथ की रेखाएं देख कर भविष्यवाणी कर रहे थे...मेरी बारी भी आई ..उन्होंने मेरी हस्तरेखाओं पर अपनी नज़र दौड़ाई,पर यह क्या? उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें मुझे दिखनी लगी ...मैंने बड़ी उत्सुकता से अंकल की और देखा..थोड़ी देर बाद उन्होंने मुझसे कहा ...'सौम्या ...तुम खूब पढ़ोगी,मेहनत करोगी...तो एक दिन आई ए एस ऑफिसर जरूर बनोगी.' ज्योतिष अंकल से यह सुनते ही मैं बेहद खुश हो गयी..मैंने अंकल के इस जवाब की गहराई में जाने की कोशिश नहीं की..

चार साल बाद मैं तब चौंक गयी ,जब मैंने हस्त रेखा से जुडी एक किताब पढ़ी...दरअसल,मुझमें हमेशा कुछ नया और रोचक जानने की जिज्ञासा रही है.मेरी मैट्रिक की परीक्षा ख़त्म हो चुकी थी.फुर्सत के लम्हों की कोई कमी नहीं थी. मैंने सोचा की चलो, किताब की पोटली खोली जाए ..शायद मुझे अपने फुर्सत के पलों को बिताने का कोई विकल्प मिल जायेगा....और ऐसा ही हुआ भी.. पुस्तकों की ढेर में से मुझे हस्त रेखा से जुडी एक किताब मिल गयी....मैंने सोचा...आज तो मैं हस्त रेखा विशेषज्ञ बन कर रहूंगी ....उस किताब का नाम नहीं याद आ रहा,पर पतली किताब थी..मुझे मोटी किताबों से डर लगता है ...

मैंने उस किताब के पहले पन्ने से लेकर आखिरी पन्ना पढ़ डाला....आखिरी पन्नों में हस्त रेखा को चित्रों से समझाने की कोशिश की गयी थी ..मैंने अपनी हथेली की रेखाओं को उन चित्रों से मिलाना शुरू किया..आयु रेखा,ह्रदय रेखा और मस्तिष्क रेखा से परिचित होने के बाद मैंने अपनी हथेली पर विद्या रेखा ढूंढनी शुरू की ...यकीन मानिये,मुझे अपनी हथेली पर विद्या रेखा नहीं दिखी ....एक बार फिर मैंने किताब में दिए गए चित्र और फिर अपनी हथेली पर नज़र दौड़ाई ... हथेली पर विद्या रेखा का कोई नामोनिशान नहीं मिला ...मैंने मां को बताया...माँ ने कहा ,अपने कर्मो से तुम हाथों की रेखा को बदल सकती हो ...माँ की बात पर मैंने गौर तो किया,पर मुझे साथ ही वे ज्योतिष अंकल भी याद आ गए जिन्होंने कहा था, 'सौम्या ...तुम खूब पढ़ोगी,मेहनत करोगी...तो एक दिन आई ए एस ऑफिसर जरूर बनोगी.' मुझे यह भी पता चल गया की क्यों उनके माथे पर मेरी हथेली देखने के बाद चिंता की लकीरें खींच आई थीं?

आज भी जब मैं अपनी हथेली की और देखती हूँ ,मुझे विद्या रेखा नहीं दिखती ...सोचती हूँ ,जब मेरे हाथों में विद्या रेखा ही नहीं है,फिर मैं बिना किसी विशेष परिश्रम के हमेशा अपनी कक्षा में फर्स्ट कैसे आती थी? बचपन में मेरे भाई मुझे इन्साइक्लोपीडिया कह कर क्यों पुकारते थे ? क्यों आज भी मुझमे कुछ नया सीखने और जानने की ललक है? क्यों मैं ज्ञान प्रदर्शन से ज्यादा ज्ञानार्जन में विश्वास रखती हूँ ?
--सौम्या अपराजिता

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