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Friday, June 17, 2016

चार की चमक : पृष्ठभूमि नहीं,हुनर है हिट

-सौम्या अपराजिता

फ़िल्मी दुनिया में खुद को स्थापित करना गैरफ़िल्मी पृष्ठभूमि के कलाकारों के लिए टेढ़ी खीर होती है। इन कलाकारों के पास प्रतिभा और कुछ कर दिखाने का हौसला तो होता है,मगर शुरुआती पहचान और अवसर के लिए आवश्यक फ़िल्मी संपर्क और प्रभाव का अभाव होता है। कई पापड़ बेलने के बाद यदि शुरुआती अवसर मिल भी जाता है,तो उसके बाद फ़िल्मी पृष्ठभूमि वाले स्टार कलाकारों की प्रभावशाली मौजूदगी के बीच खुद को स्थापित करने की चुनौती होती है। विशेषकर गैरफ़िल्मी पृष्ठभूमि की अभिनेत्रियों के लिए तो फ़िल्मी दुनिया में सफलता का सफ़र मुश्किल भरा होता है। ऐसे ही मुश्किल भरे सफ़र को अपने बुलंद हौसलों और हुनर के साथ तय कर हिंदी फिल्मों में सफलता की कहानी लिखी है-बरेली की प्रियंका चोपड़ा,मंडी की कंगना रनोट,बैंगलुरु की अनुष्का शर्मा और दीपिका पादुकोण ने। कंगना,प्रियंका,दीपिका और अनुष्का शर्मा ने खुद को सिर्फ समर्थ अभिनेत्री के रूप में ही स्थापित नहीं किया है,बल्कि इन चारों अभिनेत्रियों ने बता दिया है कि अगर हौसला,हुनर और जोश हो,तो गैर फ़िल्मी पृष्ठभूमि की अभिनेत्रियां भी सफलता के सोपान को छू सकती हैं। बाहर से आयी इन अभिनेत्रियों ने अपने अभिनय और आकर्षण के दम पर फ़िल्मी दुनिया में प्रभावशाली पहचान बनायी है। इन्होंने पुरुष प्रधान हिंदी फ़िल्मी दुनिया के समीकरण को बदल कर नायिका प्रधान फिल्मों के सुनहरे भविष्य की नींव रखी है।

प्रियंका की प्रतिभा
विविध रंग की भूमिकाओं में ढलने की कला में पारंगत हो चुकी प्रियंका चोपड़ा हर अंदाज और कलेवर में दर्शको को प्रभावित करती हैं। गैर फ़िल्मी पृष्ठभूमि की यह अभिनेत्री अभिनय की हर कसौटी पर खरी उतरने के लिए तैयार रहती है। 'अंदाज' से 'मैरी कॉम' तक के फ़िल्मी सफ़र में प्रियंका ने तमाम उतार-चढाव के बीच हिंदी फिल्मों में अपनी प्रभावी पहचान बनायी है। सही मायने में प्रियंका ने हिंदी फिल्मों में अभिनेत्रियों के अस्तित्व को सकारात्मक उड़ान दी है। अपने संघर्ष भरे सफ़र के विषय में प्रियंका कहती हैं,' मैं जब फिल्म जगत में आई तो मेरी उंगली पकड़ने और मुझे यह कहकर रास्ता दिखाने वाला कोई नहीं था कि 'यह सही दिशा है।' मुझे कभी कोई मार्गदर्शक नहीं मिला और न ही मेरी ऐसे लोगों से दोस्ती थी, जो फिल्मों के बारे में कुछ जानते हों। मिस वर्ल्ड का खिताब जीतने के बावजूद शुरूआती दिनों में मुझे काफी संघर्ष करना पड़ा। मुझे साइन करने के बावजूद कई बार तो इसलिए फिल्मों से बाहर कर दिया गया कि कोई और अभिनेत्री किसी तगड़ी सिफारिश के साथ निर्माता के पास पहुंच गई थी। लेकिन मैं उस समय कुछ करने की स्थिति में नहीं थी। इससे मुझे दुख तो हुआ, लेकिन यह सीख भी मिली कि कड़ी मेहनत का कोई विकल्प नहीं है। आज जब पीछे मुड़कर देखती हूं,तो मुझे अपने संघर्ष पर गर्व होता है। उसी संघर्ष की बदौलत आज मैं इस मुकाम पर हूं।'

कंगना की खनक
फिल्मों में अवसर मिलने के शुरूआती संघर्ष से लेकर दो बार राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार की विजेता बनने तक का कंगना रनोट का सफ़र उन युवतियों के लिए प्रेरणादायक है जो देश के सुदूर इलाकों में बैठकर अभिनेत्री बनने का सपना संजोया करती हैं। कंगना ने सामान्य पारिवारिक पृष्ठभूमि की मजबूरियों के साथ तमाम परेशानियों से जूझते हुए आज वह मुकाम बनाया है जो फ़िल्मी चकाचौंध में पली-बढ़ी अभिनेत्रियों के लिए भी दूर की कौड़ी साबित हो रही है। अपने संघर्ष के अनुभवों को बांटते हुए कंगना कहती हैं,'बीच में एक दौर ऐसा आया था, जब मुझे लग रहा था कि अब मेरा कुछ भी नहीं हो सकता है। मुझे ढंग की फिल्में नहीं मिल रही थी। हर तरफ मेरी आलोचना हो रही थी। ‘तनु वेड्स मनु’ और ‘क्वीन’ के बाद बहुत फर्क आ गया है। नाकामयाबी के उस दौर में भी मैंने हिम्मत नहीं हारी थी। मैंने कभी परवाह नहीं की कि लोग मेरे बारे में क्या कह रहे हैं। खुद को मांजती रही और आने वाले अवसरों के लायक बनती रही। मेरा तो एक ही लक्ष्य रहा कि जो मुझे अभी लायक नहीं मान रहे हैं, उनके लिए और बेहतर बनकर दिखाऊंगी। मैं खुद को भाग्यशाली नहीं मानती हूं। मैंने हमेशा हर चीज में बहुत संघर्ष किया है। पिछले दस सालों में मैंने काफी कुछ सहा है। मैं हमेशा से ही  यहाँ एक बाहरी व्यक्ति थी और हमेशा ही रहूंगी। एक समय था जब मेरे लिए हिंदी फिल्मों में काम पाना मुश्किल था पर अब ऐसा बिल्कुल नहीं है। अब अलग तरह का संघर्ष है लेकिन पहले जितना नहीं।'

दीपिका की दिलकशी
बंगलुरु में जब दीपिका पादुकोण अपने पिता प्रकाश पादुकोण के साथ बैडमिंटन की प्रैक्टिस किया करती थीं,तब उन्होंने सोचा भी नहीं था कि एक दिन वे हिंदी फिल्मों की शीर्ष श्रेणी की नायिका बनेंगी। उन्हें इस बात का इल्म नहीं था कि जिन हाथों में अभी रैकेट है उसमें कभी फिल्मफेयर अवार्ड की ट्रॉफी होगी। ...पर ऐसा हुआ और आज हिंदी फ़िल्मी दुनिया में गैर फ़िल्मी पृष्ठभूमि की दीपिका की सफलता और लोकप्रियता का दीप अपनी रौशनी बिखेर रहा है। उनकी खूबसूरती के चर्चे तो हमेशा ही होते रहे हैं। अब तो, अजब सी अदाओं वाली इस हसीना के अभिनय का जादू भी चलने लगा है। अब वे सिर्फ अपनी बदौलत किसी फ़िल्म को कामयाब बनाने की क्षमता रखती हैं। उन्होंने नए दौर में अभिनेत्रियों के अस्तित्व को सशक्त बनाने में अहम भूमिका निभायी है। दीपिका को गर्व है कि गैर फ़िल्मी पृष्ठभूमि से होने के बाद भी वे हिंदी फिल्मों में खुद को स्थापित करने में सफल रहीं हैं। दीपिका कहती हैं,'अच्छा लगता है जब लोग कहते हैं कि तुम बिना किसी सपोर्ट के,बिना किसी गॉडफादर के यहाँ तक आई हो। यह बड़ी उपलब्धि लगती है।'

अनुष्का का आकर्षण
बचपन में जब अनुष्का शर्मा अपने प्रिय अभिनेता शाहरुख़ खान और अक्षय कुमार की फ़िल्में देखती थीं,तो अक्सर अपनी मां से मजाक में कहा करती थी,'मां...देखना मैं एक दिन शाहरुख़ और अक्षय के साथ फ़िल्म करूंगी।' उन्हें नहीं पता था कि उनका यह मजाक एक दिन हकीकत बन जायेगा। अनुष्का की पहचान आज सिर्फ शाहरुख़ खान की नायिका के रूप में नहीं,बल्कि हिंदी फिल्मों की समर्थ और सक्षम अभिनेत्री की है। अनुष्का ने अपने स्वाभाविक अभिनय और आकर्षण से खुद को स्टार अभिनेत्री बनाया और यह साबित कर दिया कि फ़िल्मी दुनिया में सफलता के लिए पृष्ठभूमि से अधिक हुनर मायने रखता है। अभी तक दस फिल्मों में अपने शानदार अभिनय की बानगी पेश कर चुकी अनुष्का कहती हैं,'मैं फ़िल्मी बैकग्राउंड से नहीं हूं। फिल्मों को लेकर जो ज्ञान मुझे आज है वो सात सालों में सात फिल्में करने के बाद आया है। अब ये मेरा पैशन बन चुका है। '

Saturday, April 30, 2016

प्रेरित और प्रोत्साहित करते हैं पद्म पुरस्कार

-सौम्या अपराजिता
पुरस्कार और सम्मान प्रोत्साहन के स्रोत होते हैं। इनसे और भी बेहतर,प्रयोगशील और रचनात्मक बनने और करने की प्रेरणा मिलती है। ..और यह पुरस्कार जब देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान के रूप में हों,तो ये उत्साहवर्द्धक होने के साथ-साथ गौरवशाली भी हो जाते हैं। भारतीय सन्दर्भ में पद्म पुरस्कार ऐसे ही सम्मान हैं।

भारत रत्न के बाद पद्म पुरस्कार भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान हैं। ये पुरस्कार, विभिन्न क्षेत्रों जैसे कला, समाज सेवा, लोक-कार्य, विज्ञान और इंजीनियरी, व्यापार और उद्योग, चिकित्सा, साहित्य और शिक्षा, खेल-कूद, सिविल सेवा इत्यादि के संबंध में प्रदान किए जाते हैं। ये पुरस्कार प्रत्येक वर्ष गणतंत्र दिवस के अवसर पर उद्घोषित किये जाते हैं। कला क्षेत्र के अंतर्गत फ़िल्म जगत से जुड़ी शख्सियतों को भी प्रति वर्ष पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया जाता रहा है। हालांकि,फ़िल्म जगत की प्रतिभाओं को इस प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित करने की परंपरा देर से शुरू हुई,मगर वक़्त के साथ प्रति वर्ष पद्म पुरस्कारों से सम्मानित होने वालों की सूची में फ़िल्म जगत से जुड़ी प्रतिभाओं की संख्या बढ़ती ही जा रही है। इस वर्ष भी प्रियंका चोपड़ा,अनुपम खेर,रजनीकांत,मधुर भंडारकर सहित कई शख्सियतों को पद्म श्री,पद्म भूषण और पद्म विभूषण की उपाधि से सम्मानित किया गया।

1958 में सर्वप्रथम पद्म पुरस्कारों के लिए हिंदी सिनेमा की शख्सियतों को भी नामांकित किया गया था। उसके बाद तो सिनेमा की विधा में उत्कृष्ट योगदान देने वाली शख्सियतों को यदा-कदा पद्म श्री,पद्म भूषण और पद्म विभूषण की उपाधि के लिए नामांकित किया जाने लगा। सिनेमा के क्षेत्र से सर्वप्रथम पद्म श्री से 1958 में नरगिस,देविका रानी और सत्यजीत रे को सम्मानित किया गया,तो हिंदी सिनेमा जगत से सर्वप्रथम पद्म भूषण से सम्मानित होने वाले कलाकार थे पृथ्वी राज कपूर और लता मंगेशकर। इन दोनों ही कालजयी शख्सियतों को वर्ष 1969 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। भारत रत्न के बाद देश का द्वितीय सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है पद्म विभूषण। इस सम्मान से दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन को सम्मानित किया गया है। इस वर्ष रजनीकांत को इस विशिष्ट सम्मान से सम्मानित किया गया है।

दरअसल,समय के साथ समाज और देश में सिनेमा का प्रभाव बढ़ा है। और कला के इस अनूठे माध्यम को अब मुख्य धारा से जोड़ कर देखा जाने लगा है। ऐसे में,देश के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान के लिए अब इस क्षेत्र के उत्कृष्ट लोगों को प्रमुखता के साथ शामिल करना आवश्यक हो गया है। यदि पिछले कुछ वर्षो में देखें तो लोकप्रिय कलाकारों और फिल्मकारों को पद्म पुरस्कार के लिए सम्मानित करने का सिलसिला बढ़ा है। आमिर खान से शाहरुख़ खान तक और ऐश्वर्या बच्चन से प्रियंका चोपड़ा तक पद्म पुरस्कारों से सम्मानित हो चुकी हैं। पूर्व में जहाँ बेहद चुनिंदा लोगों को इस सम्मान के लिए चुना जाता था,वहीँ आज के दौर में एक वर्ष में सिनेमा की आधा दर्जन से अधिक शख्सियतों को इस प्रतिष्ठित सम्मान के योग्य समझा जाने लगा है। यह बात सिनेमा से जुड़े लोगों को उत्कृष्ट और सार्थक प्रयास के लिए प्रेरित करती है। इस वर्ष पद्मश्री सम्मान के लिए चुने गए फिल्मकार नील माधव पंडा का कहना है कि यह सम्मान उन्हें देश से संबंधित मुद्दों पर आधारित और अधिक फिल्में बनाने के लिए प्रेरित करेगा। 'आई एम कलाम' के लिए जाने जाने वाले पंडा ने पद्मश्री के लिए चुने जाने पर खुशी जताते हहुए कहा,'मैं काफी खुश हूं कि मुझे पद्मश्री से सम्मानित किया जाएगा। मेरे लिए यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। मैं आश्वस्त हूं कि इससे मुझे देश के लिए प्रासंगिक मुद्दों पर अधिक फिल्में बनाने की दिशा में काम करने के लिए प्रेरणा मिलेगी।'


*प्रियंका चोपड़ा: 'दिल धड़कने दो' से 'बाजीराव मस्तानी' तक और 'क्वांटिको' के लिए पीपुल्स चॉइस अवॉर्ड पाने तक और अब पद्मश्री.... मैं शब्दों में नहीं बता सकती कि मैं किन एहसास से गुजर रही हूं। मुझे लगता है कि जैसे मेरा सपना सच हो गया है।मेरा मानना है कि यह सब मेरी कड़ी मेहनत का फल है। मैं अपने काम को कभी हल्के में नहीं लेती।'

*अनुपम खेर:'खुश, विनीत और सम्मानित महसूस कर रहा हूं। एक निर्वासित कश्मीरी पंडित के बेटे को उसकी कड़ी मेहनत के लिए आज प्रतिष्ठित पद्म भूषण मिला है जिन्होंने एक छोटे शहर में वन विभाग में क्लर्क का काम किया। मेरे देश को शुक्रिया।'

*उदित नारायण :' पद्मभूषण पुरस्कार पाकर मुझे खुशी व गर्व की अनुभूति हो रही है। संतुष्टि के भी भाव हैं कि मेरी 35 बरसों की सेवा सफल हो गई। इस मौके पर मुझे 'लगान' का 'ओ मितवा' गाना याद आ रहा है। वह इंसान को निडर होकर जिंदगी की दुश्वारियों से मुकाबला करने को प्रेरित करता रहता है। मैं आगे भी निडर व निष्पक्ष भाव से संगीत व राष्ट्र की सेवा में अनवरत लगा रहूंगा। इस पुरस्कार से मिथिला के मान में चार चांद लग गए हैं।'

महत्वपूर्ण सूची-

अब तक पद्म पुरस्कारों से सम्मानित सिनेमा जगत की शख्सियतें-

पद्म भूषण :

*पृथ्वी राज कपूर,लता मंगेशकर(1969)
*राज कपूर(1971)
*बी एन सरकार(1972)
*बी नरसिम्हा रेड्डी,धीरेन्द्र नाथ गांगुली(1974)
*बेगम अख्तर(1975)
*मृणाल सेन(1981)
*एस बालाचंदर(1982)
*अक्किनेनी नागेश्वर राव(1984)
*दिलीप कुमार,श्याम बेनेगल(1991)
*नौशाद,तलत महमूद(1992)
*रजनीकांत(2000)
*अमिताभ बच्चन,देव आनंद,प्राण (2001)
*जगजीत सिंह,नसीरुद्दीन शाह (2003)
*यश चोपड़ा,मन्ना डे (2005)
*साई परांजपे,ए के हंगल (2006)
*आमिर खान,ए आर रहमान(2010)
*शशि कपूर,वहीदा रहमान (2011)
*शबाना आज़मी,धर्मेन्द्र(2012)
*राजेश खन्ना,शर्मीला टैगोर(2013)
*कमल हासन (2014)
*अनुपम खेर,उदित नारायण (2016)


पद्म श्री:

*नरगिस,देविका रानी,सत्यजीत रे(1959)
*अशोक कुमार(1962)
*महबूब खान (1963)
*मोहम्मद रफ़ी,शशाधर मुखर्जी(1967)
*बेगम अख्तर,सुनील दत्त,दुर्गा खोटे(1968)
*बलराज साहनी,राजेन्द्र कुमार,सचिन देव वर्मन (1969)
*मन्ना डे (1971)
*ऋषिकेश मुखर्जी,वहीदा रहमान,सुचित्रा सेन,महेंद्र कपूर (1972)
*नूतन (1974)
*गोपीकृष्ण,येसुदास(1975)
*श्याम बेनेगल(1976)
*भूपेन कुमार हजारिका (1977)
*अमिताभ बच्चन (1984)
*अपर्णा सेन (1987)
*शबाना आज़मी (1988)
*कमल हासन,लीला सैमसन,मोहन अगाशे,ओम पूरी(1990)
*आशा पारीख,मनोज कुमार,जया बच्चन (1992)
*जावेद अख्तर (199)
*रामानंद सागर,ए आर रहमान,शेखर कपूर,हेमा मालिनी(2000)
*गोविन्द निहलानी,मणि रत्नम(2002)
*आमिर खान,डैनी डेंजोप्पा,राखी(2003)
*हरिहरन,अनुपम खेर(2004)
*शाहरुख़ खान,कविता कृष्णमूर्ति(2005)
*टॉम अल्टर,माधुरी दीक्षित(2008)
*अक्षय कुमार,हेलेन,उदित नारायण,कुमार शानू,ऐश्वर्या राय बच्चन (2009)
*रेखा,सैफ अली खान (2010)
*तबस्सुम,काजोल,इरफ़ान खान (2011)
*श्रीदेवी(2013)
*संजय लीला भंशाली,रवींद्र जैन,प्रसून जोशी (2015)
*प्रियंका चोपड़ा,अजय देवगन,मधुर भंडारकर,नीला माधव पांडा,एस राजामौली,सईद जाफ़री (2016)

Thursday, February 20, 2014

यही तो एक्टिंग है-अर्जुन कपूर

अर्जुन कपूर का अभिनय काबिलेतारीफ है। एक्शन दृश्यों में वे जोरदार हैं। डांस भी बढिया कर लेते हैं। साथ ही,उनका वास्ता फ़िल्मी परिवार से है। इस तरह उनके पास हुनर भी है,मौका भी है और कुछ कर दिखाने का जोश भी है। तभी तो,पहली ही फिल्म से अर्जुन को नयी पीढ़ी के सबसे तेजी से उभरते हुए सितारों में शुमार कर लिया गया है। अब तक 'इशकजादे' और 'औरंगजेब' में अर्जुन ने अभिनय का रंग बिखेरा है। अब वे 'गुंडे' में अपने अभिनय की एक और बानगी पेश कर रहे हैं। अर्जुन की बातें उन्हीं के शब्दों में...

टूट पड़ा इस मौके पर
अगर बात करें हिंदी सिनेमा की,तो बचपन से हमने शोले,दीवार और काला पत्थर जैसी फ़िल्में पसंद की है जिसमें ड्रामा हो,अनबन हो,इमोशन हो,दोस्ती हो,रोमांस हो। ..तो जब इसी तरह की फिल्म 'गुंडे' का हिस्सा बनने की बात हुई,तो मुझे लगा कि ऐसा मौका हाथ से जाने देना नहीं चाहिए। मुझे ऐसा लगा कि जैसी फिल्मों को मैं देख कर बड़ा हुआ हूं वैसी फिल्म में काम करने का मौका मिल रहा है,तो यह बहुत अच्छी बात है। किसी पिक्चर से  ऑडियंस जो चाहती है ..वह सब है इसमें। एक्शन है,रोमांस है,ड्रामा है। दो हीरो वाली फिल्म है। ऐसी फिल्म आजकल नहीं  बनती है।.. तो मैं तो टूट पड़ा इस मौके पर।

दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू
जब अली ने नैरेशन दी थी तब उसे नहीं पता था कि वह हमें कौन सा किरदार देना चाहता है। बाला और बिक्रम जो किरदार हैं उसमें बिक्रम मेरी पर्सनल लाइफ से ज्यादा मिलता है और बाला रणवीर की पर्सनल लाइफ से ज्यादा मिलता है। ऐसा नहीं था कि मैं सिर्फ और सिर्फ बिक्रम का रोल प्ले करना चाहता था। हां.. रणवीर और मुझे लगा कि उसे बाला का रोल और मुझे बिक्रम का रोल ऑफर किया जाएगा। ..लेकिन जब अली ने कहा कि वे अलग रोल करवाना चाहते हैं,तो मुझे कोई ऐतराज नहीं था। क्योंकि बाला का रोल मुझे उतना ही पसंद था जितना बिक्रम का। बाला के बिना बिक्रम अधूरा है और बिक्रम के बिना बाला। दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

उसे ही तो एक्टिंग कहते हैं
अपने व्यक्तित्व से अलग तरह की भूमिका निभाना मुश्किल से ज्यादा मजेदार और चैलेंजिंग  होता है। जब आप वैसा किरदार निभाते हैं जो आपसे नहीं मिलता-जुलता है .. उसी को तो एक्टिंग कहते हैं। बाला का किरदार निभाने में मुझे बहुत मजा आया। मेरे लिए चैलेंज था। मैं बहुत एक्साइटेड था।


मेहनत करनी पड़ी
गुंडे की कहानी की पृष्ठभूमि पिछली सदी के सातवें-आठवें दशक पर आधारित है। अली हमारे लिए अलग तरह का लुक चाहते थे। एक अलग पर्सनालिटी,अलग तेवर चाहते थे। वे चाहते थे कि वह दौर किरदारों के चेहरों के भाव से उभर कर सामने आए। उसके लिए मुझे खुद को फिट रखने के लिए मेहनत  करनी पड़ी । मुझे अपना बेस्ट दिखना था। फिट दिखने के लिए मैंने मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग ली।

दोस्ती और तालमेल
तालमेल तो बहुत अच्छा रहा। वह उभर कर सामने भी आ रहा है। ट्रेलर में सभी देख रहे कि हमारा तालमेल बेहद अच्छा है। हमारी दोस्ती बनी। मेरा ऐसा मानना है कि हम कैमरा के सामने कभी झूठ नहीं बोल सकते। अगर हमारे में तालमेल नहीं होता तो वह झलक कर सामने नहीं आता। मुझे तो बहुत मजा आया। मेरे लिए 'गुंडे' यादगार फिल्म है। रणवीर के साथ मेरी दोस्ती हुई।

कभी हावी नहीं
मैं प्रियंका को पिछले सात-आठ साल से जानता हूं। वे मेरी अच्छी दोस्त रह चुकी हैं। जब से वे इंडस्ट्री में आई हैं तबसे उन्हें जानता हूं। प्रियंका अपने-आप में बेहद उम्दा कलाकार हैं। अपना काम बखूबी निभाती हैं। सीनियर थीं,पर वे कभी हम पर हावी नहीं हुईं। मुझे बहुत मजा आया उनके साथ काम करके। वे हमारे साथ बिलकुल घुल-मिल गयी थीं।

यह मेरा गुड लक है
मैंने कभी सोचा नहीं था कि मेरी छवि एक्शन हीरो की बनेगी। एक्शन आपके काम का ही हिस्सा है। जितना नाच-गाना इम्पोर्टेन्ट है उतना ही एक्शन भी। मुझे एक्शन करने में बहुत मजा आता है। क्योंकि मैं निजी जीवन में मैं नॉन वायलेंट पर्सन हूं इसलिए कैमरा के सामने वायलेंट होने में ज्यादा मजा आता है। यह मेरा गुड लक है कि मेरी इमेज एक्शन हीरो की बनती जा रही है।

खुश हूं

गुंडे को मिल रही प्रतिक्रिया से खुश हूं।अच्छी फिलिंग है। सबने बेहद मेहनत की है। जब बन रही थी तो किसी को अंदाजा नहीं था कि फाइनल प्रोडक्ट इतना अच्छा होगा। लोग 'गुंडे' से उम्मीद कर रहे हैं,तो यह अच्छी बात है। लोगों को हमारा काम भी पसंद आना चाहिए। फिल्म लोगों को एंटरटेन करे,एक्साइट करे ताकि लोग बार-बार जाकर देखें..यही उम्मीद है।

सबसे फेवरेट आउटडोर
बहुत ही शानदार अनुभव था। पहली बार मैं कोलकाता इस फिल्म की शूटिंग के लिए गया था। मेरा फेवरेट आउटडोर शूट रहा। वहां के लोग,वहां का खाना-पीना,वहां का सेटअप.. सब बेहतरीन था। वहां से लौटने के बाद मैं सबको बहुत मिस कर रहा था।

और भी फिल्में
इस समय मैं ' तेवर' की शूटिंग कर रहा हूं। इसमें सोनाक्षी सिन्हा हैं मेरे साथ। 'फाइंडिंग फैनी' इस साल लगेगी। यह होमी अदजानिया की फिल्म है जिन्होंने 'कॉकटेल' बनायीं थी। इसमें दीपिका पादुकोण हैं। अभी हाल ही में मैंने आलिया भट्ट के साथ 'टू स्टेट्स' की शूटिंग पूरी की है।
-सौम्या अपराजिता