Saturday, February 4, 2017

रचनात्मक स्वतंत्रता पर पहरा

-सौम्या अपराजिता
फ़िल्में रचनात्मक अभिव्यक्ति का भव्य और आकर्षक माध्यम है...,मगर कई बार फ़िल्मकार को रचनाशीलता के लिए मुसीबत भी झेलनी पड़ती है। दरअसल,फ़िल्मकार जब फिल्मों के लिए कहानियां ढूंढते हैं,तो अक्सर उनकी नजर गौरवशाली इतिहास पर पड़ती है और वे इतिहास के पन्नों में दर्ज कई ऐसी कहानी निकाल लेते हैं...जो रोचक और रोमांचक होती है।...मगर जब फिल्मकार ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की कहानी को कहने के लिए रचनात्मक स्वतंत्रता लेते हैं,तो अक्सर उनका सामना विरोध से होता है। हाल ही में संजय लीला भंसाली को 'पद्मावती' की शूटिंग के दौरान भी ऐसे ही विरोध से दो-चार होना पड़ा।
जयपुर में 'पद्मावती' की शूटिंग के समय राजपूत समुदाय के एक संगठन के लोगों ने संजय लीला भंसाली के साथ अभद्रता की और जयगढ़ किले में फिल्म के सेट पर तोड़फोड़ करके शूटिंग भी रोक दी। इन लोगों का आरोप था कि भंसाली अपनी फिल्म में अलाउद्दीन खिलजी और रानी पद्मावती के बारे में तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश कर रहे हैं। दरअसल,इससे पहले भी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर बनी फिल्मों को विवादों का सामना करना पड़ा है।
'बाजीराव मस्‍तानी' की शूटिंग के समय भी संजय लीला भंसाली को विरोध का सामना करना पड़ा था। परिणामस्वरूप 'बाजीराव मस्‍तानी' के रिलीज के समय पुणे में जमकर विरोध हुआ था। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस को लिखे एक पत्र में पेशवा के वंशज प्रसादराव पेशवा ने सरकार से इस मामले में दखल देने की मांग की थी। उन्होंने आरोप लगाया था- 'यह पाया गया है कि रचनात्मक स्वतंत्रता के नाम पर इस फिल्म में मूल इतिहास को उलटा गया है। साथ ही, एक गीत को बाजीराव पेशवा प्रथम की दो पत्नियों काशीबाई और मस्तानी पर फिल्माया गया है। यह घटना ऐतिहासिक तथ्यों से मेल नहीं खाती।' आशुतोष गवोरिकर की फिल्‍म 'जोधा अकबर' का भी राजस्‍थान में जबरदस्त विरोध हुआ था।
राजपूत संगठनों का कहना था कि फ़िल्म में  प्रस्तुति इतिहास में वर्णित तथ्यों के ख़िलाफ़ है। जबकि फ़िल्म के निर्माता-निर्देशक आशुतोष गोवारीकर कह चुके थे कि फ़िल्म में काल्पनिकता का पुट है और यह कोई ऐतिहासिक दस्तावेज़ नहीं है। फिर भी...राजपूतों की करणी सेना ने फ़िल्म के विरोध में बाक़ायदा प्रदर्शन किया था और चेतावनी दी थी कि अगर इसे सिनेमाघरों में रिलीज़ किया गया तो गंभीर नतीजे होंगे।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की फ़िल्में ही नहीं,बल्कि दूसरे विषय और कथ्य की फिल्में भी विरोध का शिकार हुई हैं और हो रही हैं। मथुरा में अक्षय कुमार की 'टॉयलेट एक प्रेम कथा' की शूटिंग के दौरान भी जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ा।  फिल्म के कथानक को लेकर विरोध उपजा। दरअसल, नंदगांव-बरसाना के बीच फिल्म में वैवाहिक संबंधों को दर्शाने पर क्षेत्र के लोगों को ऐतराज था। वहां के लोगों के अनुसार, नंदगांव के लड़के और बरसाना की लड़की के बीच विवाह सनातन धर्म की परंपराओं और मर्यादाओं के विपरीत है। फिल्म का शीर्षक भी ब्रज संस्कृति के अनुरूप नहीं है। गौरतलब है कि विरोध में पंचायत द्वारा फ़िल्म के निर्देशक की जीभ काटने और अभिनेता अक्षय कुमार को पीटने का आदेश भी जारी किया गया।
एक और फ़िल्म है-'गैंग ऑफ़ वासेपुर 3' जिसे लेकर विरोध का स्वर मुखर हो चुका है। अभी इस फ़िल्म की शूटिंग भी शुरू नहीं हुई है,मगर विरोध शुरू हो चुका है। झारखंड के वासेपुर के निवासी इस आने वाली फिल्म के खिलाफ है। जिसकी वजह है उनके इलाके की बदनामी।  उन्हें लगता है कि इस शहर की सकारात्मक बाते पहली दो कड़ियों में नहीं दिखाई गयी है। इससे उनका इलाका बदनाम हुआ हैं।
दरअसल,फिल्मों के कथ्य से अपात्ति हो सकती है,मगर उसे लेकर हिंसात्मक विरोध का कोई आधार नहीं है। जयपुर में 'पद्मावती' की शूटिंग के समय संजय लीला भंसाली के साथ हुआ दुर्व्यवहार निश्चित रूप से निंदनीय है। कलात्मक अभिव्यक्ति पर ऐसे आघात के प्रति ठोस कदम उठाने चाहिए। यह नहीं भूलना चाहिए कि जब इतिहास के मशहूर पात्रों को फ़िल्मकार अपनी रचनाशीलता से गढ़ते हैं,तभी 'मुग़ले आज़म','जोधा अकबर' और 'बाजीराव मस्तानी' जैसी यादगार और शानदार फ़िल्में अस्तित्व में आती हैं।

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