गुलाल और रंगों से सराबोर कपड़ों में ढोलक की थाप पर उल्लास के इन्द्रधनुषी रंग बिखेरते नायक-नायिका अब सिल्वर स्क्रीन पर कम ही दिखते हैं। होली के त्योहार को प्रतीकात्मक रूप से फिल्मों की कहानी में पिरोने का सिलसिला अब गुजऱे जमाने की बात हो गयी है।
खुशियों का इजहार करना हो या प्यार भरी छेड़छाड़ हो या फिर,जीवन के खुशनुमा पलों को याद करना हो -माध्यम रहता था, होली का त्योहार। होली को केंद्र में रखकर कई फिल्में प्रदर्शित हो चुकी हैं। 'होली' शीर्षक से ही दो फिल्में बन चुकी हैं। जहाँ 1940 में बनी 'होली' में सितारा देवी,मोतीलाल थें वहीं,1984 में प्रदर्शित हुई केतन मेहता की 'होली' से आमिर खान ने अपने फिल्मी करियर की शुरूआत की थी। माला सिन्हा,बलराज साहनी,शत्रुघ्न सिन्हा अभिनीत 'होली आयी रे' होली को केंद्र में रखकर बनायी गयी फिल्मों में सबसे उल्लेखनीय है। होली की पृष्ठभूमि में रखकर बनायी गयी 'होली आयी रे' आज भी जब टेलीविजन पर दिखायी जाती है तो दर्शक इस फिल्म के साथ होली के रंग में गीले हो जाना पसंद करते हैं। मधुबाला और भारत भूषण अभिनीत 'फागुन' और धर्मेंद्र और वहीदा रहमान अभिनीत 'फागुन ' की पटकथा होली के रंगों से सराबोर थी। इन फिल्मों के शीर्षक मात्र से ही होली के मनोहारी दृश्य मन-मस्तिष्क में कौंध जाते हैं। होली हमारे फिल्म निर्माताओं का सबसे प्रिय त्योहार रहा है।
कहानी में ट्विस्ट लाने के लिए होली के त्योहार का प्रयोग हिन्दी फिल्मों में होता रहा है। सत्तर-अस्सी के दशक में तो हर पांचवी फिल्म में होली के दृश्यों का फिल्मांकन किया जाता था। 'शोले' की होली हिंदी सिनेमा की यादगार होली रही है। गब्बर ने रामगढ़ पर आक्रमण करने के लिए होली का ही दिन चुना था। पुरानी 'शोले' के ही तर्ज पर 'रामगोपाल वर्मा की आग' का बब्बन भी अपने छोटे भाई की मौत का बदला लेने के लिए होली का दिन चुनता है। लेकिन,'रामगोपाल वर्मा की आग' की होली 'शोले' की होली के सामने फींकी लगती है। 'सिलसिला' में अमिताभ-रेखा के प्रेम संबंधों की गूढ़ता को 'रंग बरसे' गीत ने सरल कर दिया था तभी तो लोक-लाज की परवाह किए बिना होली के बहाने इस गीत में अमिताभ ने रेखा के प्रति अपनी कोमल भावनाओं का सरेआम इजहार कर दिया। भावनाओं के उमड़ते बादल को होली के गीत सहारा देते आए हैं। होली के पावन पर्व की आड़ में होने वाले दुराचार पर भी कई फिल्मों की कहानी की नींव रखी गयी है। 'होली आयी रे' और 'दामिनी' की कहानी ऐसे ही दृश्यों से प्रारंभ होती है।
आजकल,होली की पृष्ठभूमि पर आधारित फिल्में तो दूर की बात है ,होली के दृश्य भी रूपहले पर्दे से ओझल होते जा रहे हैं। व्यावसायिक सफलता की चाह में हमारे फिल्म निर्माता परंपरागत त्योहारों का महत्व नहीं समझ पा रहे हैं।
'होली के दिन दिल मिल जाते हैं' गीत की पंक्तियां आज प्रासंगिक नहीं लगती हैं। प्रेम का इजहार करने के लिए नायक अब होली का इंतज़ार नहीं करते। इंस्टैंट प्रेम का जमाना है....होली के त्योहार का इंतजार करना हमारे आधुनिक नायकों को नहीं भाता है, अब तो 'वैलेंटाइन डे' ही उनके अनुकूल है। शायद ,यही वजह है कि 'चल जा रे हट नटखट','आज ना छोड़ेंगे बस हमजोली' जैसे प्रेम-रस से सराबोर होली के गीतों का अभाव आज की फिल्मों में मिलता है। इन पुराने नटखट गीतों की तर्ज पर हमारी युवा पीढ़ी को भी अपने जमाने के होली के गीतों की दरकार है। ऐसा नहीं है कि होली के गीत फिल्मों से पूरी तरह विलुप्त हो गए हैं। कोशिशें होती हैं लेकिन परिणाम सकारात्मक नहीं आते हैं। हमारी नायिकाएं अब 'होली आयी रे कन्हाई रंग बरसे सुना दे जऱा बांसुरी' की जगह 'डू मी ए फेवर लेट्स प्ले होली' गुनगुनाना बेहतर समझती है। राधा-कृष्ण की पारंपरिक होली पर अंग्रेजी रंग चढ़ गया है। यही वजह है कि अंग्रेजी बोलों में ढले ये गीत होली की परंपराओं का निर्वहन नहीं कर पाते हैं और जल्द ही गुमनामी के अंधेरे में चले जाते हैं। 'बागबान' के गीत 'होली खेले रघुवीरा' और 'बनारस' के गीत 'रंग डालो फेंकों गुलाल' को छोड़कर शायद ही कोई ऐसा होली के रंगों में भींगा गीत हो जो यादगार बन गया हो। होली के उल्लास की बानगी बयां करते इन दोनों गीतों के लेखक समीर कहते हैं,'आज ऐसा वक्त आ गया है कि हमारी फिल्मों से त्योहार गायब हो गए हैं। न होली दिख रही है न दीवाली। मेरा मानना है कि हमें अपनी परंपराओं से कटना नहीं चाहिए। ये त्योहार ही हैं जो हमें ऊर्जा देते हैं।'उल्लेखनीय है कि भारतीय सिनेमा ने अपने सौ साल के सफ़र में होली के गीतों के जरिये समाज और संस्कृति की ख़ूबसूरत तस्वीर पेश की है। कई बार तो ये गीत होली का पर्याय बनकर उभरे हैं।
उम्मीद है..इस इंद्रधनुषी उत्सव की छटा पुन: रूपहले पर्दे पर बिखरेगी और एक बार फिल्मी कैनवास पिचकारियों की धार और गुलाल की बौछार से रंगीला हो जाएगा।
उम्मीद है..इस इंद्रधनुषी उत्सव की छटा पुन: रूपहले पर्दे पर बिखरेगी और एक बार फिल्मी कैनवास पिचकारियों की धार और गुलाल की बौछार से रंगीला हो जाएगा।
-सौम्या अपराजिता
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