तीन दशक पहले उनकी मासूमियत और खूबसूरती ने दर्शकों का दिल जीता,अब वे अपनी सादगी और अदायगी के परिपक्व अंदाज से दर्शकों को लुभा रही हैं। बात हो रही है श्रद्धा कपूर की मौसी और हर दिल अजीज अभिनेत्री पद्मिनी कोल्हापुरे की। उल्लेखनीय है कि पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करने के साथ-साथ पद्मिनी ने अभिनय की दुनिया में अपनी सक्रियता बरकरार रखी है। पिछले दिनों वे ' फटा पोस्टर निकला हीरो' में शाहिद कपूर की मां की भूमिका में दर्शकों से रूबरू हुईं। सक्रिय, प्रिय और वरीय अदाकारा पद्मिनी कोल्हापुरे की बातें उन्हीं के शब्दों में ...
नए दौर के नए कलाकार
आज की युवा पीढ़ी बेहद मेहनती हैं।सभीबहुत प्रोफेशनल हैं। अपने काम से मतलब रखते हैं। और सब बहुत अच्छा काम कर रहे है। कम्पटीशन इतना बढ़ गया है कि आपको लगन और मेहनत के साथ काम करना ही पड़ता है। और जो मेहनत और लगन के साथ काम कर रहे हैं वे सफल हैं। मुझे नए दौर के नए कलाकारों के साथ काम करके बेहद अच्छा लग रहा है। खासकर शाहिद के साथ तो बहुत अच्छा लगा। वह इतना डेडिकेटेड लड़का है। इतनी मेहनत करता है कि देखकर दिल भर आता है।
आज की युवा पीढ़ी बेहद मेहनती हैं।सभीबहुत प्रोफेशनल हैं। अपने काम से मतलब रखते हैं। और सब बहुत अच्छा काम कर रहे है। कम्पटीशन इतना बढ़ गया है कि आपको लगन और मेहनत के साथ काम करना ही पड़ता है। और जो मेहनत और लगन के साथ काम कर रहे हैं वे सफल हैं। मुझे नए दौर के नए कलाकारों के साथ काम करके बेहद अच्छा लग रहा है। खासकर शाहिद के साथ तो बहुत अच्छा लगा। वह इतना डेडिकेटेड लड़का है। इतनी मेहनत करता है कि देखकर दिल भर आता है।
मेहनत करनी पड़ी
कितनी भी हल्की-फुलकी फिल्म हो काम तो उतना ही पड़ता है। उतना ही मेकअप लगाना पड़ता है।मेहनत उतनी ही करनी पड़ती है। लाइनें उतनी ही याद करनी पड़ती है। सब कुछ वही होता है,बस यही है कि माहौल अच्छा रहता है। 'फटा पोस्टर निकला हीरो' की शूटिंग के दौरान भी माहौल अच्छा था। हम सबने बेहद मेहनत की। हमारे प्रोड्यूसर बहुत अच्छे थे। उन्होंने बहुत साथ दिया। उन्होंने किसी चीज की कमी नहीं महसूस होने दी। पानी जैसे पैसा बहा रहे थे। जो करना था वो हमें करने दे रहे थे। प्रोड्यूसर की सहायता के कारन ही राजकुमार संतोषी अपने विजन के अनुसार 'फटा पोस्टर निकला हीरो' बनाने में कामयाब हुए।
कितनी भी हल्की-फुलकी फिल्म हो काम तो उतना ही पड़ता है। उतना ही मेकअप लगाना पड़ता है।मेहनत उतनी ही करनी पड़ती है। लाइनें उतनी ही याद करनी पड़ती है। सब कुछ वही होता है,बस यही है कि माहौल अच्छा रहता है। 'फटा पोस्टर निकला हीरो' की शूटिंग के दौरान भी माहौल अच्छा था। हम सबने बेहद मेहनत की। हमारे प्रोड्यूसर बहुत अच्छे थे। उन्होंने बहुत साथ दिया। उन्होंने किसी चीज की कमी नहीं महसूस होने दी। पानी जैसे पैसा बहा रहे थे। जो करना था वो हमें करने दे रहे थे। प्रोड्यूसर की सहायता के कारन ही राजकुमार संतोषी अपने विजन के अनुसार 'फटा पोस्टर निकला हीरो' बनाने में कामयाब हुए।
हम डरते थे
आज कल के लड़के-लड़कियां सबके साथ फ्रेंडली हैं। डायरेक्टर के साथ उनका मिलना-जुलना है हमारे जमाने में तो हम मीडिया से डरकर लोगों से मिलते थे। सोचते थे कि अगर कॉफ़ी पर भी मिले तो लोग क्या कहेंगे?मीडिया क्या लिखेगी? ..तो इन सब चीजों से हम डरते थे। लेकिन आज की युवा पीढ़ी नहीं डरती है। वे कहते हैं हम दोस्त हैं,हम मिलेंगे,बाहर जाएंगे। उनको कोई फर्क नहीं पड़ता। वे यही कहते है कि लिखने वाले लिखे।... जैसे मेरी भतीजी है श्रद्धा।उसके काफी दोस्त है इंडस्ट्री में। वह कहती है कि पहले उसे भी दोस्तों से मिलने में डर लगता था,पर अब वह मीडिया की अटेंशन की आदी हो गयी है। वह कहती है कि यह सब उसे झेलना पड़ेगा क्योंकि यही नेम-गेम है।
आज कल के लड़के-लड़कियां सबके साथ फ्रेंडली हैं। डायरेक्टर के साथ उनका मिलना-जुलना है हमारे जमाने में तो हम मीडिया से डरकर लोगों से मिलते थे। सोचते थे कि अगर कॉफ़ी पर भी मिले तो लोग क्या कहेंगे?मीडिया क्या लिखेगी? ..तो इन सब चीजों से हम डरते थे। लेकिन आज की युवा पीढ़ी नहीं डरती है। वे कहते हैं हम दोस्त हैं,हम मिलेंगे,बाहर जाएंगे। उनको कोई फर्क नहीं पड़ता। वे यही कहते है कि लिखने वाले लिखे।... जैसे मेरी भतीजी है श्रद्धा।उसके काफी दोस्त है इंडस्ट्री में। वह कहती है कि पहले उसे भी दोस्तों से मिलने में डर लगता था,पर अब वह मीडिया की अटेंशन की आदी हो गयी है। वह कहती है कि यह सब उसे झेलना पड़ेगा क्योंकि यही नेम-गेम है।
दिल को छू जानी चाहिए
जब मैं स्क्रिप्ट सुनती हूं और वह मेरे दिल को छू जाता है तो उस पर बन रही फिल्म के लिए खुद को तैयार कर लेती हूं।यह देखती हूं कि वह फिल्म रियल है या नहीं। हालांकि...मैं पहले काफी चैलेंजेज ले चुकी हूं। बोल्ड फिल्में कर चुकी हूं। बोल्ड फिल्में करना मेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं है। फिल्म दिल को छू जानी चाहिए। फिर मेरा निर्णय गलत साबित हो या उसका परिणाम गलत हो ... मुझपर उसका असर नहीं होता है।
जब मैं स्क्रिप्ट सुनती हूं और वह मेरे दिल को छू जाता है तो उस पर बन रही फिल्म के लिए खुद को तैयार कर लेती हूं।यह देखती हूं कि वह फिल्म रियल है या नहीं। हालांकि...मैं पहले काफी चैलेंजेज ले चुकी हूं। बोल्ड फिल्में कर चुकी हूं। बोल्ड फिल्में करना मेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं है। फिल्म दिल को छू जानी चाहिए। फिर मेरा निर्णय गलत साबित हो या उसका परिणाम गलत हो ... मुझपर उसका असर नहीं होता है।
श्रद्धा बेहद मेहनती है
हम सब श्रद्धा की सफलता से बेहद खुश हैं। उसने आशिकी 2 में बहुत अच्छा काम किया है। उसके पापा,उसकी मां.. हम सब उसकी सफलता को एन्जॉय कर रहे हैं। श्रद्धा बहुत मेहनती है। बहुत काम करती है। हर चीज को गंभीरता से लेती है। आज का जमाना ही ऐसा है कि आप किसी चीज को ग्रांटेड लेकर नहीं चल सकते। ऐसा नहीं सोच सकते कि आज मेरी यह फिल्म हिट हुई है या सुपरहिट हुई है तो मैं आराम कर सकती हूं बल्कि मुझे तो लगता है कि लोगों की उम्मीदें और भी बढ़ जाती है।
हम सब श्रद्धा की सफलता से बेहद खुश हैं। उसने आशिकी 2 में बहुत अच्छा काम किया है। उसके पापा,उसकी मां.. हम सब उसकी सफलता को एन्जॉय कर रहे हैं। श्रद्धा बहुत मेहनती है। बहुत काम करती है। हर चीज को गंभीरता से लेती है। आज का जमाना ही ऐसा है कि आप किसी चीज को ग्रांटेड लेकर नहीं चल सकते। ऐसा नहीं सोच सकते कि आज मेरी यह फिल्म हिट हुई है या सुपरहिट हुई है तो मैं आराम कर सकती हूं बल्कि मुझे तो लगता है कि लोगों की उम्मीदें और भी बढ़ जाती है।
मुझसे सलाह लेती है
श्रद्धा मुझसे सलाह-मशविरा करती रहती है। मेरा सर खाती है। उसके सवाल कभी ख़त्म ही नहीं होते। हर बात,हर चीज मुझसे पूछती है। क्योंकि उसे लगता है कि मैं उसे बेहतर सलाह दे सकती हूं। उसे लगता है कि आज श्रद्धा जिस स्थिति में है उससे मैं गुजर चुकी हूं। हालांकि बहुत समय गुजर चुका है,पर बात तो वही है।
श्रद्धा मुझसे सलाह-मशविरा करती रहती है। मेरा सर खाती है। उसके सवाल कभी ख़त्म ही नहीं होते। हर बात,हर चीज मुझसे पूछती है। क्योंकि उसे लगता है कि मैं उसे बेहतर सलाह दे सकती हूं। उसे लगता है कि आज श्रद्धा जिस स्थिति में है उससे मैं गुजर चुकी हूं। हालांकि बहुत समय गुजर चुका है,पर बात तो वही है।
दरवाजे खुल गए हैं
आज हर उम्र के कलाकारों के लिए फिल्मों के दरवाजे खुल गए हैं। पहले अठरह-बीस साल में हीरोइन का काम ख़त्म हो गया मान लिया जाता था। एक्ट्रेस आगे नहीं बढ़ सकती थी। लेकिन अभी चेंज हो गया है पूरा। लोगों की सोच बदल गयी है। ऑडियंस बदल गयी है।वह ज्यादा इंटेलिजेंट हो गयी है। और एक्टर की ही तरह एक्ट्रेस को भी हर उम्र में एक्सेप्ट करने लगी है। यह अच्छी बात है।
आज हर उम्र के कलाकारों के लिए फिल्मों के दरवाजे खुल गए हैं। पहले अठरह-बीस साल में हीरोइन का काम ख़त्म हो गया मान लिया जाता था। एक्ट्रेस आगे नहीं बढ़ सकती थी। लेकिन अभी चेंज हो गया है पूरा। लोगों की सोच बदल गयी है। ऑडियंस बदल गयी है।वह ज्यादा इंटेलिजेंट हो गयी है। और एक्टर की ही तरह एक्ट्रेस को भी हर उम्र में एक्सेप्ट करने लगी है। यह अच्छी बात है।
-सौम्या अपराजिता
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