-सौम्या अपराजिता

जब नन्हीं सुनिधि चौहान ने वर्षों पहले म्यूजिकल शो 'मेरी आवाज सुनो' में अपने सुरों का जादू बिखेरा था,तब किसी ने नहीं सोचा था कि वह छोटी सी लड़की आने वाले दिनों में हिंदी फ़िल्मी संगीत का सितारा बन जाएगी। सोलह वर्षीया श्रेया घोषाल ने जब 'सारेगामा' में मधुर तान छेड़ी थी,तो किसी ने उस खूबसूरत लड़की में हिंदी फिल्मों की सबसे व्यस्त पार्श्व गायिका की झलक नहीं देखी थी। जब रणविजय सिंह और आयुष्मान खुराना ने रियलिटी शो 'रोडिज' में  विजेता का ताज पहना था,तो किसी ने यह अनुमान नहीं लगाया था कि वे बेहद कम वक़्त में खुद को हिंदी फिल्मों के समर्थ और सक्षम अभिनेता के रूप में स्थापित कर लेंगे। प्रसिद्धि की ऊंचाइयां छू रहे इन चेहरों को सफलता और लोकप्रियता की राह दिखाई छोटे पर्दे ने। छोटे पर्दे ने इनके सपने को नया आयाम दिया। उन्हें मौका दिया कि वे अपनी प्रतिभा से दर्शकों को परिचित करा सके। उन्हें आम से खास बनाया।

कुछ वर्ष पूर्व तक अच्छे अवसर और मंच के अभाव में प्रतिभाएं घुट कर दम तोड़ देती थीं। कलात्मक अभिव्यक्ति के अवसर के अभाव में कलाकार अपने सपनों को साकार नहीं कर पाते थें। आम से खास बनने का उनका सपना अधूरा ही रह जाता था। ऐसे में,जब टेलीविजन पर विभिन्न कार्यक्रमों में आम लोगों को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिला, तो जैसे कोने में दुबकी प्रतिभाओं को उम्मीदों का नया आस्मां मिल गया। इसी क्रम में टेलीविजन कार्यक्रमों में कुछ ऐसी प्रतिभाओं ने अपनी झलक दिखलाई जिनमे बहुत कुछ कर दिखाने की ललक थी। उन्हें अपनी प्रतिभा पर भरोसा था। उन्हें यकीन था कि एक बेहतर अवसर उन्हें उनके सपने के करीब ला सकता है। इस तरह छोटे पर्दे पर 'नो बडी' से 'सम बडी' बनने का सफ़र शुरू हो गया। इस क्रम में छोटे पर्दे ने दो बड़ी गायन प्रतिभाओं (सुनिधि चौहान और श्रेया घोषाल) से संगीत जगत को परिचित कराया।

'मेरी आवाज सुनो' में सुनिधि चौहान और 'सारेगामा' में श्रेया घोषाल ने पहली बार अपने सुरों का जादू बिखेरा। सुनिधि चौहान पहली ऐसी कलाकार हैं जिन्होनें छोटे पर्दे से फिल्म संगीत का सफ़र तय किया। 'मेरी आवाज सुनो' में सुनिधि की गायन प्रतिभा से प्रभावित होकर आदेश श्रीवास्तव ने उन्हें 'शस्त्र' फिल्म में गाने का अवसर दिया। उसके बाद सुनिधि ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।अपनी जुदा आवाज के कारण सुनिधि हिंदी फिल्म संगीत का लोकप्रिय चेहरा बन गयीं। सुनिधि की तरह श्रेया घोषाल की प्रतिभा भी छोटे पर्दे पर ही उभरी। 'सारेगामा' में श्रेया घोषाल की आवाज पहली बार गूंजी थी। 'सारेगामा' में श्रेया की प्रतिभा को परखने के बाद ही संजय लीला भंसाली ने उन्हें अपनी फिल्म 'देवदास' के लिए पार्श्व गायन का अवसर दिया। धीरे-धीरे श्रेया अपनी प्रतिभा और लगन के कारण हिंदी फ़िल्मी संगीत का सितारा बन गयीं। श्रेया और सुनिधि की तरह छोटे पर्दे से फ़िल्मी संगीत का सफ़र तय किया अनुष्का मनचंदा,नीति मोहन,नेहा भसीन और कुनाल गांजावाला ने। हालाँकि,वे सुनिधि और श्रेया की तरह सफल और लोकप्रिय नहीं हो पाए। इन गायन प्रतिभाओं की ही तरह छोटे पर्दे से होते हुए फिल्म संगीत जगत का सफ़र सफलतापूर्वक तय किया शेखर राजवानी ने। संगीतकार जोड़ी विशाल-शेखर के शेखर 'सारेगामा' के प्रतिभागी रह चुके हैं। तोशी-शारिब की संगीतकार जोड़ी को भी पहली बार अपनी प्रतिभा से श्रोताओं को रूबरू कराने का मौका दिया छोटे पर्दे ने। तोशी अमूल 'वौइस् ऑफ़ इंडिया' के प्रतिभागी रह चुके हैं जबकि शारिब ने 'सारेगमापा चैलेन्ज' में पहली बार अपने सुरों का जादू चलाया था।

छोटे पर्दे के रियलिटी कार्यक्रमों ने अभिनय जगत को भी बेहतरीन  प्रतिभाएं दी हैं जिनमें आयुष्मान खुराना का नाम सबसे उल्लेखनीय है। चंडीगढ़ के इस युवक को जब रोमांच से भरपूर 'रोडिज' में प्रतिभागी बनने का मौका मिला,तो लोकप्रियता की पहली सीढ़ी समझ कर इस मौके को हाथ से जाने  नहीं दिया। 'रोडिज' से मिली प्रसिद्धि ने आयुष्मान को एक जाने- चेहरे के रूप में स्थापित किया। उन्हें फ़िल्मी कार्यक्रमों में संचालन के मौके  मिले। संपर्क बढ़ा। ...और इस तरह उन्हें पहली फिल्म 'विक्की डोनर' में अभिनय का मौका मिला। वे देखते ही देखते हिंदी फिल्मों का सबसे तेजी से उभरता हुआ सितारा बन गएँ। 'रोडिज' के पहले संस्करण के विजेता रणविजय सिंह ने भी आयुष्मान की तरह ही फिल्मों तक का सफ़र तय किया। नागेश कुकनूर   और  विपुल शाह  जैसे निर्देशकों के साथ काम करने का उन्हें अवसर मिला।

कुछ ऐसी भी प्रतिभाएं हैं जो अभी तक अपनी मंजिल नहीं ढूंढ पायी हैं। उन्हें छोटे पर्दे पर अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका तो मिल गया है,पर वह  मौका उनके लिए सुनहरे भविष्य की दस्तक नहीं बन पाया।  उन्हें सुनिधि चौहान,श्रेया घोषाल,कुनाल गांजावाला,आयुष्मान खुराना,शेखर राजवानी,तोशी-शारिब जैसी सफलता और लोकप्रियता नहीं मिल पायी। वे सफलता के सोपान नहीं चढ़ पाएं। कहना गलत नहीं होगा कि छोटे पर्दे पर जिस तरह नए प्रतिभा की खोज से जुड़े कार्यक्रमों की संख्या बढ़ी है,उस अनुपात में प्रतिभागियों की लोकप्रियता और सफलता का औसत घटा है। प्रतिभा दिखाने का मंच तो मिला है,पर वह मंच सफलता और सुनहरे भविष्य की सीढी नहीं बन पाया है।  आवश्यक है कि प्रतिभा आधारित कार्यक्रमों की गुणवत्ता पर ध्यान देने की। प्रतिभाओं को सिर्फ मंच नहीं प्रदान किया जाये,पर उन्हें अपनी कला को निखारने और संवारने के मौके भी दिए जाएं। साथ ही,उन्हें कुछ ऐसे संपर्क सूत्र प्रदान किये  जाएँ जो उन्हें मंजिल की राह दिखाएं। इस दिशा में पिछले दिनों प्रदर्शित हुई फिल्म 'एबीसीडी, एनी बॉडी कैन डांस' बेहतरीन  है। रेमो डिसूजा की इस फिल्म के निर्माण का उद्देश्य डांस रियलिटी शो के प्रतिभावान प्रतिभागियों को उनकी मंजिल के करीब पहुँचाना था। धर्मेश,सलमान,पुनीत और प्रिंस ने इस फिल्म में अभिनय और नृत्य का अनूठा संगम पेश कर अपनी प्रतिभा को बड़ा दायरा दिया। यदि भविष्य में भी ऐसे प्रयास होंगे तो कुछ और प्रतिभाएं रियलिटी कार्यक्रमों से मिली लोकप्रियता की नींव पर सफलता की इमारत बना पाएंगी । एक बार फिर श्रेया घोषाल और सुनिधि चौहान जैसे सुरीले सितारे चमकेंगे ....आयुष्मान खुराना और रणविजय सिंह जैसे और भी प्रतिभावान अभिनेता दर्शकों का मनोरंजन करने के लिए सिल्वर स्क्रीन पर दस्तक देंगे। कुछ और आम लोग खास बन पाएंगे।