-सौम्या अपराजिता
कहते हैं बीता वक़्त लौटकर नहीं आता,पर हिंदी फिल्मों के सन्दर्भ में ऐसा नहीं है। हिंदी फिल्में लौटकर आती रहीं है। रीमेक के रूप में पुरानी हिंदी फिल्मों की वापसी होती रही है। हालांकि नए कलेवर में पेश की जाने वाली पुरानी फिल्मों के नए संस्करण पहले-सा जादू नहीं चला पाते हैं। नए कलाकारों और नए अंदाज में पेश की जाने वाली रीमेक फ़िल्में दर्शकों के दिलों में बसी पुरानी (मौलिक) फिल्मों की यादों को भूला नहीं पाती हैं। उम्मीदों और अपेक्षाओं पर खरा उतरने के दबाव के बावजूद रीमेक की जंजीर ने हिंदी फिल्मों को जकड रखा है। पुरानी लोकप्रिय हिंदी फिल्मों को नयी तकनीक और आधुनिक दृष्टिकोण की चाशनी में डूबोकर पेश करने का सिलसिला जारी है।
अमिताभ का रीमेक कनेक्शन

नयी पीढ़ी के लिए
रीमेक फिल्मों के निर्माण के पीछे तर्क है कि पुरानी फिल्मों को नए कलाकारों के साथ नए कलेवर में नयी पीढ़ी के लिए प्रस्तुत करने में बुराई क्या है....! इस तर्क के पैरोकारों के अनुसार नयी पीढ़ी के दर्शकों को पूरा हक़ है कि वे हिंदी सिनेमा में पेश की गयी बेहतरीन कहानियों को देखें। अर्जुन कपूर कहते है,'मैं फिल्मों का रीमेक बनाने में कोई बुराई नहीं समझता हूं। यदि आपको लगता है कि किसी फिल्म की कहानी को ज्यादा बड़े परिप्रेक्ष्य में दोबारा बनाया जा सकता है तो आप उसमें अपने विचार और दृष्टिकोण जोड़कर रीमेक फिल्म बना सकते हैं।' रीमेक बनाने वाले निर्माता-निर्देशकों का पक्ष है कि वे रीमेक बनाते समय वे प्रासंगिकता को ध्यान में रखते हैं।' डॉन' का सफल रीमेक बनाने वाले फरहान अख्तर कहते हैं,' आज की युवा पीढ़ी जो है, जो 10 या 12 साल के बच्चे हैं उनकी रूचि आज की ही फ़िल्मों में है। जब मैं छोटा था मैं भी बस अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना और ऋषि कपूर की फ़िल्मों के बारे में जानता था, तब मुझे नहीं पता था कि दिलीप कुमार कौन हैं। जब में थोडा बड़ा हुआ तब मैंने सोचा कि मुझे भी दिलीप कुमार की फ़िल्में देखनी चाहिए क्योंकि सभी लोग उनके बारे में बात करते थे। तो जो आज के बच्चे हैं उनके लिए डॉन शाहरुख़ ही होंगे क्योंकि वो उन्ही की फ़िल्म देख रहे हैं। ' नए निर्देशक आधुनिक तकनीक और फिल्म निर्माण के नए दृष्टिकोण के साथ दर्शकों के सामने पुरानी फिल्मों के रीमेक प्रस्तुत करते हैं। इस सन्दर्भ में अनुराग कश्यप की 'देव डी' और तिग्मांशु धुलिया की 'साहब बीबी और गैंगस्टर' का उल्लेख महत्वपूर्ण है। अनुराग ने 'देवदास' को और तिग्मांशु ने 'साहब बीबी और गुलाम' की कहानी को आधुनिक कलेवर देकर नए अंदाज़ में दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया जिसे दर्शकों की सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली।
रचनात्मकता का अभाव
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आहत भावनाएं
रीमेक से मौलिक फिल्मों के कलाकारों की भावनाएं और पहचान जुडी होती हैं। ऐसे में जब कोई नया कलाकार उनकी पहचान को अपना बनाकर रीमेक फिल्मों में दीखता है तो उनकी भावनाएं आहत होती हैं। मिथुन चक्रवर्ती कहते हैं,' मैं ‘अग्निपथ’ का रीमेक नही चाहता था और न ही अपनी सुपरहिट फिल्म ‘डिस्को डांसर’ का रीमेक देखना चाहता हूं।' सन्नी देओल भी मिथुन चक्रवर्ती की बात से सहमत हैं। वे कहते हैं,'मेरा मानना है कि कोई भी पुरानी फिल्मों को नए रूप में पेश नहीं कर सकता है। दरअसल पुरानी फिल्मों में एक जादू है, जिसे उस वक्त के अभिनेताओं ने रचा था। ऐसे में उन फिल्मों को रीमेक रूप में पेश नहीं किया जा सकता है।' मिथुन और सन्नी के विपरीत शाहरुख़ खान को गर्व होगा अगर भविष्य में उनकी फिल्मों का रीमेक बनेगा। शाहरुख़ कहते हैं,'मैं दो बेहतरीन फिल्मों के रीमेक का हिस्सा रहा हूं, दिलीप कुमार की देवदास और अमिताभ बच्चन की डॉन।मैं चाहता हूं कि अन्य लोग मेरी फिल्मों की रीमेक बनाएं। मुझे लगता है कि यह बड़ी उपलब्धि होगी।'
चुनौतियां और दबाव
जहां मौलिक फिल्मों के कलाकार रीमेक की परम्परा से भावनात्मक रूप से आहत होते हैं,वहीँ दूसरी तरफ रीमेक फिल्मों के कलाकारों के सामने खुद को साबित करने की बड़ी चुनौती होती है। उनके सामने दर्शकों के दिल में बसी पुरानी फिल्मों के कलाकार की छवि को मिटाने की बड़ी चुनौती होती हैं। उनपर दबाव होता है पुराने प्रसिद्द पात्रों को एक बार फिर प्रमाणिकता के साथ जीने का।ऋतिक रोशन के सामने' अग्निपथ' के निर्माण के दौरान ऐसा ही दबाव था। ऋतिक कहते हैं,'अग्निपथ मेरी अब तक की सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण भूमिका वाली फिल्म है। मैं इस चुनौती को महसूस कर रहा था इसलिए मैंने विजय दीनानाथ की भूमिका को अपने अंदाज में जीने की कोशिश की। जब आप कोई भूमिका अलग व अपने अंदाज में करते हैं तो लोगों को यह दिखता है और वे तुलना नहीं करते हैं।' कलाकरों के साथ-साथ निर्माता-निर्देशकों पर भी मौलिक फिल्मों की सफलता और प्रशंसा को रीमेक फिल्मों में बरकरार रखने का दबाव होता है। जो निर्देशक इस दबाव और चुनौती को गंभीरता से नहीं लेता है,उसके साख पर प्रश्नचिह्न उठने लगते हैं।है। हिम्मतवाला’ के रीमेक के बाद साजिद खान की लोकप्रियता और प्रतिष्ठा में आई कमी इसका ज्वलंत उदाहरण है।
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