जो दिल से निकले और दिल को छुए-अमित त्रिवेदी
-सौम्या अपराजिता
अमित त्रिवेदी आधुनिक और पारंपरिक संगीत का अनूठा तालमेल पेश करते हैं। उनका संगीत हर उम्र के श्रोताओं के कानों में मधुर रस घोलता है। इस युवा संगीतकार ने हिंदी फ़िल्मी संगीत को नयी दिशा दी है। दरअसल,हिंदी फ़िल्मी संगीत जगत में प्रवेश करते ही अमित त्रिवेदी ने श्रोताओं पर अपने संगीत की 'अमित' छाप छोडनी शुरू कर दी थी। देव डी, वेक उप सिड, उड़ान, एक मैं और एक तू,आयशा, इंग्लिश विन्गलिश,इशकजादे,काय पो छे का संगीत हिंदी फ़िल्मी दुनिया में अमित के सुरीले सफ़र की बानगी बयां करता है। अभी तक के अपने सुरीले सफ़र को कुछ यूँ अंदाज़ में अमित व्यक्त करते हैं,'हिंदी फिल्मों में अब तक बहुत ही खूबसूरत सफ़र रहा है। बहुत ही एन्जॉय किया है मैंने । इतना खूबसूरत सफ़र है कि क्या बताऊँ? सपने जैसा रहा है सब। अच्छे लोगों के साथ अच्छी फिल्मों में काम करने का मौका मिला। '
इसं दिनों अमित के धुनों से सजे 'लूटेरा' के गीत श्रोताओं को लुभा रहे हैं। अमित मानते हैं कि 'लूटेरा' के संगीत की लोकप्रियता में कहानी और स्क्रिप्ट का महत्वपूर्ण योगदान है। वे कहते हैं,'लूटेरा का म्यूजिक पसंद किया जा रहा है। इसके पीछे कारण हैं विक्रमादित्य मोटवानी। उनकी स्क्रिप्ट कमाल की है।उनकी स्टोरी कमाल की है। उन्होंने अपनी फिल्म को पचास के दशक में सेट की है, तो उसी बहाने हमें म्यूजिक क्रिएट करने के दौरान उस दौर जाने का मौका मिला। विक्रम का धन्यवाद जो उन्होंने मुझे 'लूटेरा' का म्यूजिक कंपोज़ करने का मौका दिया।' अमित बताते हैं कि 'लूटेरा' के गीतों को धुनों से सजाते वक़्त उन्होंने बंगाली परिवेश के संगीत से प्रेरणा ली। वह कहते हैं,'मैंने ध्यान रखा कि म्यूजिक में बंगाली फ्लेवर होना चाहिए। सलिल दा,एस डी बर्मनऔर आर डी बर्मन के म्यूजिक से मैंने प्रेरणा ली। ...तो मैंने उस तरह के कम्पोजीशन और उस तरह के ऐरेंज्मेंट्स, कम्पोजीशन और उस स्टाइल को क्रिएट करने की कोशिश की। 'लूटेरा' के गीतों में ओल्ड वर्ल्ड चार्म है। पहली बार हमने लाइव स्ट्रिंग उसे की है। 'लूटेरा' के म्यूजिक में कंप्यूटर का ज्यादा इस्तेमाल नहीं किया गया है।'
अमित मानते हैं कि हर गीत के लिए गायक और गायिका का चुनाव करते समय वे सतर्कता बरतते हैं। वे उसी गायक या गायिका को अपने गीत के लिए चुनते हैं जो उनके गीतों के हाव-भाव को बखूबी अपनी आवाज से अभिव्यक्त कर पाए। 'लूटेरा' के गीतों के लिए भी गायक-गायिका चुनते समय अमित ने यह बात ध्यान में रखी। अमित कहते हैं,'संवार लूं' के लिए मैंने मोनाली को इसलिए चुना क्योंकि मुझे पतली आवाज वाली सेमी क्लासिकल सिंगर चाहिए थी। स्वानंद किरिकरे को मैंने 'मोंटेरो' के लिए चुना क्योंकि उनकी आवाज़ में रस्टिक फील है। इस गीत के लिए मुझे ट्रेंड आवाज और गायकी नहीं चाहिए थी। अमिताभ भट्टाचार्य की सिंगिंग स्टाइल में ओल्ड वर्ल्ड चार्म है इसलिए मैंने उन्हें 'अनकही' के लिए चुना। ..और शिल्पा राव की गायकी बहुत कमाल की है उनको इसलिए उन्हें 'मन मर्जिया' के लिए चुना।'
गीतकार की कलम से निकले सार्थक,सरल और सहज बोल जब संगीतकार के सुर,लय और ताल से जुड़ते हैं तो कर्णप्रिय फ़िल्मी संगीत का ताना-बाना तैयार होता है। अमित मानते हैं कि अच्छे धुन अच्छे बोल के बिना अधूरे हैं। वे कहते हैं,' फ़िल्मी म्यूजिक के लिए अच्छे बोल बेहद जरुरी हैं। बिना प्रॉपर पोएट्री और शब्दों के गाने को वजन नहीं मिलता और न ही सिंगिंग को ताकत मिलती है । इसलिए बहुत जरूरी है बोल की क्वालिटी पर ध्यान देना।' मौजूदा फ़िल्मी संगीत के दौर पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए अमित कहते हैं,'आज हर तरह के म्यूजिक के लिए लोग तैयार हैं। यह पॉजिटिव ट्रेंड हैं। श्रोता के साथ-साथ म्यूजिक डायरेक्टर भी एक्सपेरिमेंट के लिए तैयार हैं। नया साउंड आ रहा है। नयी तकनीक आ रही है। नए इन्फ्लुएंस हो रहे हैं।लोगों की सोच का दायरा बढ़ रहा है। सबको मौका मिला रहा है। हुनर को पहचान मिल रही है।'
एस डी बर्मन,आर डी बर्मन,मदन मोहन और ए आर रहमान के प्रसंशक अमित को हर तरह का संगीत पसंद है। वह कहते हैं,'मैं सब तरह का म्यूजिक पसंद करता हूं ......जो दिल से निकले और दिल को छुए।'
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