Wednesday, June 19, 2013

खुद पर यकीन करें ..........

खुद पर यकीन करें-विद्या बालन 
-सौम्या अपराजिता 
विद्या बालन की सफलता,लोकप्रियता और स्वीकार्यता बताती है कि हुनर,धैर्य और साहस हो तो उपलब्धि का आसमान छूना मुश्किल नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में विद्या की हर फिल्म  और हर भूमिका ने दर्शकों और समीक्षकों की प्रसंशा बटोरी है। विद्या ने तमाम आलोचनाओं का सामना करते हुए और शीर्ष अभिनेत्री की भेड़चाल से दूर रहते हुए कुशल,सक्षम और समर्थ अभिनेत्री के रूप में खुद को साबित किया है। वह विश्व मंच पर हिंदी फिल्मों का चेहरा बन चुकी हैं। भारतीय सिनेमा के  सौ वर्ष पूरे होने के जश्न के उपलक्ष में उन्हें भारतीय सिनेमा की  प्रतिनिधि के रूप में विभिन्न फिल्म समारोहों में आमंत्रित किया गया। सिर्फ अभिनय के क्षेत्र में ही नहीं विद्या ने निजी जीवन में भी संयम और धैर्य का परिचय दिया है।  विवाह के बाद विद्या ने फिल्मों में अपनी सक्रियता को अपेक्षाकृत कम किया है। अब उनका लक्ष्य अपने व्यवसाय और परिवार के साथ तालमेल बिठाकर चलना है।
खुद पर यकीन करने लगी हूं
पिछले चार-पांच वर्षों से विद्या दर्शकों की चहेती बनी हुई हैं। दर्शकों के प्यार और दुलार ने विद्या का हौसला बढाया है। यही वजह है कि विद्या अब अपने अनुकूल निर्णय ले रही हैं। विद्या कहती हैं,'हाल के दिनों में दर्शकों का जितना प्यार मुझे मिला है उससे मेरा विश्वास खुद पर बढ़ गया है।अब मैं खुद पर यकीन करने लगी हूं।हर व्यक्ति को अपनी पहचान बनानी चाहिए। दूसरों को फॉलो करने से अच्छा है ..खुद पर यकीन करें। मैं वही करती हूं।सिर्फ दूसरों जैसा बनने के लिए मैं ऐसे काम नहीं करती हूं जिसमें मेरा यकीन नहीं हो।'
जिम्मेदारी बढ़ गयी है
विवाह के बाद विद्या बालन खुद में बहुत अधिक परिवर्तन नहीं महसूस करती हैं। हालाँकि वे पति सिद्दार्थरॉय कपूर  के समर्थन से खुश हैं,पर वैवाहिक जीवन की जिम्मेदारियों को भी वे बखूबी समझती हैं। विद्या कहती हैं,'शादीशुदा जिंदगी को एन्जॉय कर रही हूं। शादी की सबसे अच्छी बात है कि जब आप काम से घर पर लौटते हैं तो अपने साथी के साथ सुकून के पल बिताने का मौका मिलता है । एक-दू सरे का सुख-दुःख हम बाँट सकते हैं।मुझे नहीं लगता कि शादी से मेरी प्रोफेशनल  लाइफ पर कोई असर पड़ा है।मैं और सिद्धार्थ दोनों एक-दुसरे की रेस्पेक्ट करते हैं।हम दोनों मेहनती हैं। हम दोनों एक-दूसरे के प्रोफेशनल प्रेशर को समझते हैं। यह सच है कि शादी के बाद मेरी जिम्मेदारी बढ़ गयी है। अब मैं एक घर भी चलाती हूं।पहले की तरह  घर की जिम्मेदारी अपनी मां पर छोड़कर निश्चिंत नहीं हो सकती।'
यादगार पल थे वे ...
कान फिल्म फेस्टिवल के निर्णायक गण में शामिल विद्या बालन को उस समय सुखद आश्चर्य हुआ जब उन्होंने विश्व सिनेमा के इस प्रतिष्ठित मंच पर अमिताभ बच्चन को हिंदी में बोलते हुए सुना। विद्या कहती हैं,'जब मैंने स्टेज पर अमिताभ बच्चन को देखा,तो जैसे मेरी सांसे रूक गयी। मैं अमिताभ बच्चन की फिल्में देखकर बड़ी हुई हूं और मेरी इक्कीस महीने की भतीजी और भतीजा भी अमित जी को जानते है। मुझे तो लगता है कि भारतीय सिनेमा और अमिताभ बच्चन एक-दूसरे के पर्याय हैं।' कान फिल्म फेस्टिवल के अपने अनुभव को बयां करते हुए विद्या आगे कहती हैं,'  व्यक्तिगत रूप से भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष के जश्न पर कान फिल्म फेस्टिवल जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अमिताभ बच्चन के साथ स्टेज शेयर करना सच में बेहद स्पेशल था। ये वैसे पल थें जब आप खुद को पींच कर पूछते हैं कि ....ओह माय गॉड! क्या यह सच है ...!'
पहली बार कॉमेडी
'इश्किया','पा','द डर्टी पिक्चर',' नो वन किल्ड जेसिका' और 'कहानी' जैसी प्रशंसित और सफल फिल्मों  के बाद 'घनचक्कर' में विद्या एक बार फिर दर्शकों के सामने होंगी। 'घनचक्कर' में विद्या की भूमिका हास्य रस  का  पुट लिए हुए है। विद्या बताती हैं,'।'घनचक्कर में मैं पहली बार कॉमेडी में हाथ आजमा रही हूं।जब पहली बार मुझे यह फिल्म ऑफर की  गयी थी  तो मैं असमंजस में थी। अब मैं खुश हूँ कि राजकुमार ने मुझे कंविस किया और मैं ऐसी फन फिल्म का हिस्सा बन पायी।'
कभी पंजाबी नहीं बोली 
'घनचक्कर' में विद्या पंजाबी हाउस वाइफ की भूमिका निभा रही हैं। विद्या जानकारी देती हैं,'मैं ऐसी महिला की भूमिका निभा रही हूँ जो बहुत ही भड़कीले कपड़े पहनती है।फिल्म में मेरा किरदार खुद को बेस्ट समझता है।इस महिला को लगता है कि वो सबसे अच्छा खाना बनाती है, सबसे फैशनेबल है और ज़िंदगी खुलकर जीती है।' राजकुमार गुप्ता निर्देशित इस फिल्म में पंजाबी महिला की भूमिका निभाने के लिए की गयी पूर्व तैयारियों के विषय में  विद्या बताती हैं,'मैंने कभी भी पंजाबी नहीं बोली है।सबसे पहले मैंने गालियां सीखी क्योंकि भाषा सीखने का ये सबसे आसान तरीका है। मेरी एक पड़ोसन पंजाबी थी।मैंने उनको कई बार सुना था तो बस उसे ही याद करके मैंने पंजाबी बोली'
फ़िल्में अब वास्तविकता के करीब 
 बदलते दौर में फिल्मों में अभिनेत्रियों की भूमिकाएं बदली हैं। अब अभिनेत्रियाँ फिल्मों में गालिया देती हैं और यदि जरुरत हो तो एक्शन  करने से भी गुरेज़  नहीं करती हैं। साथ ही  मुख्य धारा  की अभिनेत्रियाँ खल चरित्र निभाने में भी नहीं  हिचकती हैं। इस सन्दर्भ में विद्या अपनी राय देती हैं,' पहले की फिल्मों में महिला  या तो देवी होती थी या वैंप। लेकिन अब ऐसा नहीं है। हर औरत के भीतर कुछ ग्रे शेड्स होते हैं। अब सोसायटी में भी ऐसी महिलाएं सरेआम देखने को मिलती हैं। वही किरदार अब फिल्मों में भी आ रहे हैं।फ़िल्में अब वास्तविकता के करीब हो गयी हैं।'

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