-सौम्या अपराजिता
मानसून का मौसम हमारी फिल्मों को हमेशा भिंगोता रहा है। झमाझम पड़ती बूंदे पर्दे पर कुछ ऐसा जादू बिखेरती हैं कि दर्शक बारिश में धुले दृश्यों के मोह-पाश में बंधते चले जाते हैं। शायद सावन का खुशनुमा महीना हमारी फ़िल्मी दुनिया के बाशिंदों को बेहद प्रिय है तभी तो ... कई फिल्मों की पूरी कहानी ही बरसात के मौसम के इर्द-गिर्द घूमती है। ‘बरसात की रात’,‘बरसात’,‘सावन’,‘सावन आया झूम के ’ 'मानसून वेडिंग'.. सूची काफी लंबी है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि मानसून के मौसम का और हिन्दी फिल्मों का चोली-दामन का साथ है। बारिश से जुड़े दृश्य पर्दे पर दिखाने के लिए निर्माता-निर्देशक बरसात के मौसम का इंतजार नहीं करते , उनके लिये तो ‘सावन आए या ना आए जिया जब झूमे सावन है ...।’
रिमझिम के तराने लेकर आयी बरसात
प्रेमी अपनी प्रेमिका की यादों से जुडऩे के लिए भी बरसात के मौसम में उससे हुई मुलाकात को ही बहाना बनाता है,वह गुनगुना उठता है 'जिंदगी भर नहीं भूलेगी ,वो बरसात की रात ..'। हमारे गीतकारों ने तो आँखों से बहते आंसू की तुलना भी बरसात से की है। उदाहरण कई हैं,'रोक ले आँख के बहते आंसू..बह निकला बरसात हंसेगी ...' या फिर,'नैना बरसे रिमझिम रिमझिम। बारिश की बूंदों से जुड़ी लगभग हर भावनाओं को फिल्मों में समय-समय पर पिरोया गया है। 'तक्षक' में अपने एकाकीपन को दूर भगाने के लिए तब्बू बूंदों से ही बाते करने के लिए मजबूर हो जाती हैं और गाने लगती हैं,'मैं करने लगी हूँ बूंदों से बातें।बारिश की बूंदें पड़ते ही 'परख' में साधना अपनी भावनाओं को रोक नहीं पाती है और बरबस ही गुनगुनाने लगती है,'ओ ....सजना बरखा बहार आयी,रस की फुहार लायी,अंखियों में प्यार लायी ... । जहाँ एक छाते के नीचे नरगिस और राजकपूर 'प्यार हुआ इकरार हुआ गाकर एक-दूसरे से अपने प्यार का इजहार करते हैं वहीं झमझमाती बारिश में हेमामालिनी और मनोज कुमार भावुक होकर विपरीत परिस्थितियों में भी एक-दूसरे का साथ निभाने का वादा कर बैठते हैं और गुनगुना उठते हैं 'जिंदगी की न टूटे लड़ी ...। बारिश की रात में भींगी मधुबाला को अपने गैराज में देखकर 'चलती का नाम गाडी' में किशोर कुमार इजहारे मोहब्बत कर बैठते हैं ...और मधुबाला की खूबसूरती में गा उठते हैं , 'एक लड़की भींगी भांगी सी ..'
मेघ दे पानी दे .....
बारिश के ज़्यादातर गीत रोमांस प्यार मस्ती उल्लास एवं उमंग से भरे नृत्य प्रधान गीत हैं परंतु इनके अलावा भी बारिश के गीतों में अलग-अलग मूड के कई गीत शामिल हैं। कुछ गीत विरह वेदना का स्वर लिए हुए हैं तो कभी मेघों के माध्यम से पिया को मोहब्बत का पैगाम भेजा गया है कभी गीत के माध्यम से अल्लाह से बारिश की गुहार की गई है तो कभी बारिश होने पर खुशी का इज़हार किया गया है। बारिश से भावनाएं ही नहीं जुडी हैं। बारिश की बूंदों पर किसान की आजीविका भी निर्भर है। हमारी फिल्मों में किसान और बारिश की बूंदों का भी तादात्म्य बखूबी दिखाया गया है। गर्मी से तपती धरती पर बारिश की बूंदों के पड़ने पर लगान में किसान खुश होकर गुनगुनाने लगते हैं, ''घनन घनन घन गरजत आये'' .इस गीत के जरिये वे आने वाले दिनों में अच्छी फसल होने की उम्मीद जाहिर करते हैं। यह गीत ''बरसात की रात'' के ''गरजत बरसत सावन आये रे'' व ''दो आँखे बारह हाथ'' के गीत अमर गीत ''उमड़ घुमड़ घिर आई रे घटा'' की याद दिलाता है। 'गाइड' में सूखी धरती और पानी की एक-एक बूँद के लिए तरसते लोग ईश्वर से प्रार्थना कर बैठते हैं ...अल्लाह मेघ दे पानी दे ...। दूसरी तरफ 'शोर' का गीत 'पानी रे पानी तेरा रंग कैसा' में बारिश के पानी से उपजे आनंद के साथ-साथ बारिश से होने वाली परेशानियों की भी अभिव्यक्ति है।
मानसून का मौसम हमारी फिल्मों को हमेशा भिंगोता रहा है। झमाझम पड़ती बूंदे पर्दे पर कुछ ऐसा जादू बिखेरती हैं कि दर्शक बारिश में धुले दृश्यों के मोह-पाश में बंधते चले जाते हैं। शायद सावन का खुशनुमा महीना हमारी फ़िल्मी दुनिया के बाशिंदों को बेहद प्रिय है तभी तो ... कई फिल्मों की पूरी कहानी ही बरसात के मौसम के इर्द-गिर्द घूमती है। ‘बरसात की रात’,‘बरसात’,‘सावन’,‘सावन आया झूम के ’ 'मानसून वेडिंग'.. सूची काफी लंबी है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि मानसून के मौसम का और हिन्दी फिल्मों का चोली-दामन का साथ है। बारिश से जुड़े दृश्य पर्दे पर दिखाने के लिए निर्माता-निर्देशक बरसात के मौसम का इंतजार नहीं करते , उनके लिये तो ‘सावन आए या ना आए जिया जब झूमे सावन है ...।’
रिमझिम के तराने लेकर आयी बरसात
प्रेमी अपनी प्रेमिका की यादों से जुडऩे के लिए भी बरसात के मौसम में उससे हुई मुलाकात को ही बहाना बनाता है,वह गुनगुना उठता है 'जिंदगी भर नहीं भूलेगी ,वो बरसात की रात ..'। हमारे गीतकारों ने तो आँखों से बहते आंसू की तुलना भी बरसात से की है। उदाहरण कई हैं,'रोक ले आँख के बहते आंसू..बह निकला बरसात हंसेगी ...' या फिर,'नैना बरसे रिमझिम रिमझिम। बारिश की बूंदों से जुड़ी लगभग हर भावनाओं को फिल्मों में समय-समय पर पिरोया गया है। 'तक्षक' में अपने एकाकीपन को दूर भगाने के लिए तब्बू बूंदों से ही बाते करने के लिए मजबूर हो जाती हैं और गाने लगती हैं,'मैं करने लगी हूँ बूंदों से बातें।बारिश की बूंदें पड़ते ही 'परख' में साधना अपनी भावनाओं को रोक नहीं पाती है और बरबस ही गुनगुनाने लगती है,'ओ ....सजना बरखा बहार आयी,रस की फुहार लायी,अंखियों में प्यार लायी ... । जहाँ एक छाते के नीचे नरगिस और राजकपूर 'प्यार हुआ इकरार हुआ गाकर एक-दूसरे से अपने प्यार का इजहार करते हैं वहीं झमझमाती बारिश में हेमामालिनी और मनोज कुमार भावुक होकर विपरीत परिस्थितियों में भी एक-दूसरे का साथ निभाने का वादा कर बैठते हैं और गुनगुना उठते हैं 'जिंदगी की न टूटे लड़ी ...। बारिश की रात में भींगी मधुबाला को अपने गैराज में देखकर 'चलती का नाम गाडी' में किशोर कुमार इजहारे मोहब्बत कर बैठते हैं ...और मधुबाला की खूबसूरती में गा उठते हैं , 'एक लड़की भींगी भांगी सी ..'
मेघ दे पानी दे .....
बारिश के ज़्यादातर गीत रोमांस प्यार मस्ती उल्लास एवं उमंग से भरे नृत्य प्रधान गीत हैं परंतु इनके अलावा भी बारिश के गीतों में अलग-अलग मूड के कई गीत शामिल हैं। कुछ गीत विरह वेदना का स्वर लिए हुए हैं तो कभी मेघों के माध्यम से पिया को मोहब्बत का पैगाम भेजा गया है कभी गीत के माध्यम से अल्लाह से बारिश की गुहार की गई है तो कभी बारिश होने पर खुशी का इज़हार किया गया है। बारिश से भावनाएं ही नहीं जुडी हैं। बारिश की बूंदों पर किसान की आजीविका भी निर्भर है। हमारी फिल्मों में किसान और बारिश की बूंदों का भी तादात्म्य बखूबी दिखाया गया है। गर्मी से तपती धरती पर बारिश की बूंदों के पड़ने पर लगान में किसान खुश होकर गुनगुनाने लगते हैं, ''घनन घनन घन गरजत आये'' .इस गीत के जरिये वे आने वाले दिनों में अच्छी फसल होने की उम्मीद जाहिर करते हैं। यह गीत ''बरसात की रात'' के ''गरजत बरसत सावन आये रे'' व ''दो आँखे बारह हाथ'' के गीत अमर गीत ''उमड़ घुमड़ घिर आई रे घटा'' की याद दिलाता है। 'गाइड' में सूखी धरती और पानी की एक-एक बूँद के लिए तरसते लोग ईश्वर से प्रार्थना कर बैठते हैं ...अल्लाह मेघ दे पानी दे ...। दूसरी तरफ 'शोर' का गीत 'पानी रे पानी तेरा रंग कैसा' में बारिश के पानी से उपजे आनंद के साथ-साथ बारिश से होने वाली परेशानियों की भी अभिव्यक्ति है।
ये साजिश है,बूंदों की ...
चमकती बिजली,गडग़ड़ाते बादल और झमाझम बारिश हमारी फिल्मों में संकेत सूचक की भूमिका निभाते हैं,ये संकेत या तो प्यार के होते हैं या फिर किसी संदिग्ध परिस्थिति के। पिछले कुछ दशकों से बरसात के मौसम की पृष्ठभूमि में रोमांस की तुलना में हत्या और एक्शन के दृश्यों का अधिक फिल्मांकन हो रहा है। दरअसल, ऐसे दृश्यों को रोचक और आकर्षक बनाने के लिए ही बारिश को बहाना बनाया जाता है। बारिश में स्लोमोशन में हमारा हीरो जब विलेन को मारता है तो दृश्य कुछ खास ही हो जाता है। 'सत्या' और 'शिवा'जैसी फिल्मों में हत्या के दृश्यों को फिल्माने के लिए बारिश के मौसम को बहाना बनाया गया। आज हमारी फिल्मों में बारिश का प्रयोग रोमांस से हटकर रहस्यात्मक माहौल पैदा करने के लिए किया जाता है। 'सत्या' में जहाँ बारिश के दृश्य में एक ओर उर्मिला 'गीला-गीला पानी' गाते हुए सावन के महीने की खूबसूरती पर अपनी राय पेश करती हैं वहीं,'सत्या' के ही दूसरे दृश्य में हत्या के सीन को ड्रामाटिक बनाने के लिये भी झमझमाती बारिश के मौसम को पृष्ठभूमि में रखा गया। जिस प्रकार मौसम बदलते रहते हैं,उसी प्रकार बारिश को फिल्मों में दिखाने का नजरिया भी बदलता रहा है।
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