Saturday, May 25, 2013

स्मॉल स्क्रीन से सिल्वर स्क्रीन तक



-सौम्या अपराजिता 
अभिनय की दुनिया के बाशिंदे जब स्मॉल स्क्रीन से सिल्वर स्क्रीन के सफ़र पर निकलते हैं,तो उनकी राह में कभी फूल खिलते हैं तो कभी काँटों से उनका सामना होता है। स्मॉल स्क्रीन से सिल्वर स्क्रीन का सफ़र हर बार सुहाना नहीं होता है। इस सफ़र को धैर्य और समर्पण से तय करने वाले सफलता और लोकप्रियता का शिखर छूते हैं। बरुन सोबती भी  स्मॉल स्क्रीन से सिल्वर स्क्रीन के सफ़र को सुहाना बनाना चाहते हैं। धारावाहिक 'इस प्यार को क्या नाम दूं?' में अर्नव रायजादा की भूमिका निभा चुके बरुन 'मैं और मिस्टर राईट' से हिंदी फिल्मों में दस्तक देने के लिए तैयार हैं। बरुन का लक्ष्य सफल और सक्षम अभिनेताओं की सूची में अपना नाम शामिल करना है। बरुन से पूर्व भी कई अभिनेता-अभिनेत्री स्माल स्क्रीन से सिल्वर स्क्रीन का सफ़र तय कर चुके हैं जिनमें कुछ का सफ़र सुहाना रहा है,तो कुछ के लिए अभी भी मंजिल दूर है। कुछ पथप्रदर्शक बन गए  हैं,तो कुछ ने अपने कदम पीछे कर लिए हैं। एक नजर स्मॉल स्क्रीन से सिल्वर स्क्रीन का सफ़र तय करने वाले अभिनेता-अभिनेत्रियों पर .........

दिखायी राह


सफलता का पर्याय बन चुके शाहरुख़ खान और विद्या बालन ने अभिनय की दुनिया में अपने सफ़र की शुरुआत स्मॉल स्क्रीन से की थी। हिंदी फिल्मों के इन चमकते सितारों ने स्मॉल स्क्रीन से फिल्मों का सुहाना सफ़र तय किया है। जहाँ विद्या बालन ने धारावाहिक 'हम` पांच' में पहली बार अपनी झलक दिखाई तो वहीँ शाहरुख़ खान पहली बार धारावाहिक 'फौजी' में दर्शकों से रूबरू हुएं। विद्या और शाहरुख़ के साथ-साथ स्मॉल स्क्रीन से ही पहली बार प्रतिभाशाली और लोकप्रिय अभिनेता इरफ़ान खान उभरे। दूरदर्शन के धारावाहिक 'चाणक्य' में पहली बार इस प्रतिभा संपन्न अभिनेता से दर्शक परिचित हुए। मनोज बाजपेयी ने भी छोटे पर्दे से हिंदी फिल्मों का सफ़र तय किया है। धारावाहिक 'स्वाभिमान' में पहली-पहली बार मनोज दिखे थे। सिल्वर स्क्रीन पर अपने अभिनय का जौहर दिखा रहे इन सितारों ने स्मॉल स्क्रीन के अभिनेता-अभिनेत्रियों को सिल्वर स्क्रीन  की तरफ कदम बढाने के लिए प्रेरित किया है। शाहरुख़ खान,विद्या बालन,इरफ़ान खान और मनोज बाजपेयी ने अपनी सफलता और लोकप्रियता से यह बता दिया है कि यदि प्रतिभा,धैर्य और समर्पण हो तो स्मॉल स्क्रीन  से सिल्वर स्क्रीन की राह प्रशस्त और खुशगवार बनायी जा सकती है। 

 बढ़ चले सधे कदम

शाहरुख़ खान,विद्या बालन और इरफ़ान खान से प्रेरित होकर पिछले कुछ सालों  में स्मॉल स्क्रीन  के कई लोकप्रिय सितारों ने बड़े पर्दे का रुख किया जिनमें राजीव खंडेलवाल और प्राची देसाई उल्लेखनीय हैं। धारावाहिक 'कहीं तो होगा' में धीर-गंभीर सुजल की भूमिका से दर्शकों के दिल में बसने वाले राजीव ने राजकुमार गुप्ता निर्देशित फिल्म 'आमिर' से सिल्वर स्क्रीन पर कदम रखा। दर्शकों ने उन्हें बड़े पर्दे पर भी स्वीकारा। हालांकि,राजीव को स्टार स्टेटस नहीं मिला है,फिर भी वे निर्माता-निर्देशक और  दर्शकों के चहेते बने हुए हैं।राजीव कहते हैं,'जब मैं मुंबई आया तो नहीं सोचा था कि एक दिन मेरी भी फ़िल्म रिलीज़ होगी और बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगेंगे।लोग मेरी काम की तारीफ़ करेंगे। मैं चाहता हूँ कि ये ख्वाब ही रहे और कभी न टूटे।' राजीव की ही तरह प्राची देसाई भी हिंदी फिल्मों में अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब हुई हैं। '
कसम से' में बानी की लोकप्रिय भूमिका निभाने के बाद जब वे 'रॉक ओन' में फरहान अख्तर की नायिका बनीं, तो दर्शकों को सुखद आश्चर्य हुआ। दर्शकों ने प्राची में अच्छी अभिनेत्री की झलक देखी और निर्माता-निर्देशक भी इस मासूम सी दिखने वाली लड़की में अपनी फिल्म की नायिका की छवि देखने लगें। परिणामस्वरूप प्राची को रोहित शेट्टी और मिलन लुथरिया जैसे दिग्गज निर्देशकों के साथ अभिनय का मौका मिला। प्राची कहती हैं,'फिल्मों में दर्शकों ने मुझे स्वीकार किया  है। मैं उनका धन्यवाद करना चाहूंगी। अक्सर टीवी आर्टिस्ट को फिल्मों में स्वीकार नहीं किया जाता है,पर मैं खुशनसीब रही हूं कि मुझे फिल्मों में भी सब ने खुले दिल से अपनाया है।'फ़िल्मी दुनिया में राजीव और प्राची के प्रवेश के बाद लम्बे समय तक स्मॉल स्क्रीन का कोई अभिनेता या अभिनेत्री फिल्मों में खुद को साबित नहीं कर पाया। पिछले वर्ष फिल्म 'विक्की डोनर' की रिलीज़ ने एक बार फिर स्मॉल स्क्रीन  के समर्पित दर्शकों को गर्व करने का मौका दिया।' विक्की डोनर' की सफलता के बाद इडियट बॉक्स के दो लोकप्रिय चेहरे सिल्वर स्क्रीन पर चमके। बात हो रही है यामी गौतम और आयुष्मान खुराना की।  ियलिटी शो 'रोडीज' से उभरने वाले आयुष्मान खुराना और 'ये प्यार न होगा कम' में अपनी सहज अदायगी से मन मोहने वाली यामी गौतम ने स्मॉल स्क्रीन से सिल्वर स्क्रीन की तरफ सधे कदम बढ़ा लिए है। स्माल स्क्रीन से सिल्वर स्क्रीन का सफ़र सुशांत सिंह राजपूत के लिए भी सुहाना हो गया जब उनकी पहली फिल्म 'काय पो छे' बॉक्स ऑफिस पर सफल साबित हुई। सुशांत जब धारावाहिक 'पवित्र रिश्ता' के मानव से 'काय पो छे' के ईशान भट्ट बनें,तो उनके लिए  दर्शकों का प्यार-दुलार और भी बढ़ गया। सुशांत कहते हैं,'मैंने थिएटर, टीवी और फिल्म सभी को खूब इंजॉय किया है, लेकिन जब मैंने टीवी जॉइन किया, तो वहां मुझे कुछ ही टाइम में नेम और फेम मिलने लगा। मैं वहां एक ही जैसा रोला करके बोर हो गया था, तभी मैंने टीवी छोड़कर कुछ टाइम असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर काम किया और फिर फिल्म में भी काम किया।' सुशांत को सिर्फ दर्शकों से ही नहीं बल्कि हिंदी फिल्मों के प्रतिष्ठित निर्माता-निर्देशकों की भी सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली। फिल्म इंडस्ट्री द्वारा सुशांत की स्वीकार्यता का परिणाम है कि इस समय वे राजकुमार हिरानी और यशराज बैनर की फिल्मों में अभिनय कर रहे हैं। सुशांत को आने वाले दिनों के स्टार अभिनेता के रूप में देखा जा रहा है।

कठिन है डगर ...
फिल्मों में जहाँ सुशांत सिंह राजपूत का पहला प्रयास ही सफल रहा वहीं, 'काय पो छे' में उनके साथी अभिनेता अमित साद ने दो फिल्मों की असफलता के बाद सफलता का स्वाद चखा। 'काय पो छे' की सफलता के बाद भी अमित को मुख्य धारा के अभिनेता के रूप में खुद को साबित करना बाकी है। चंचल और शोख रागिनी खन्ना ने भी हिंदी फिल्मों में 'तीन थे भाई' से अपनी किस्मत आजमायी,पर उनका पहला प्रयास खुश खबरी लेकर नहीं आया। यही वजह है कि फिल्मों के चुनाव में रागिनी सावधानी बरत रही हैं। धारावाहिक 'मिसेज़ कौशिक की पांच बहुएं' में लवली की भूमिका में दर्शकों को प्रभावित करने वाली रागिनी नंदवानी को जब फिल्म 'देहरादून डायरी' में अभिनय का मौका मिला तो उन्होंने तुरंत स्वीकार कर लिया। 'देहरादून डायरी' असफल रही,पर रागिनी को दक्षिण भारतीय फिल्मों में बेहतर अवसर मिलने लगे। 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' में लक्ष्य की भूमिका निभा चुके  पुलकित सम्राट की तरफ फिल्मों के निर्माता-निर्देशकों की नजर पड़ने में देर नहीं लगी। उन्हें 'बिट्टो बॉस' में निर्माता कुमार मंगत की बेटी अमिता पाठक का नायक  बनने का अवसर मिला। हालाँकि 'बिट्टो बॉस' असफल रही,पर फरहान अख्तर और रितेश सिधवानी की पारखी नजरों ने पुलकित में अपनी नयी फिल्म 'फुकरे' के नायक की छवि देखी। पुलकित को 'फुकरे' में खुद को साबित करने का सुनहरा अवसर मिला। पिछले दिनों रिलीज़ हुई फिल्म 'श्री 'से स्माल स्क्रीन के प्रिय अभिनेता हुसैन ने फिल्मो की दुनिया में दस्तक दी। 'श्री' असफल रही,पर हुसैन ने बड़े पर्दे के दर्शकों को अपने बेहतरीन अभिनय से प्रभावित किया। हुसैन की आने वाली फ़िल्में बतायेंगी कि हिंदी फिल्मों में सफलता की राह उनके लिए कितनी मुश्किल या आसान है।

लड़खड़ा गए कदम .....
कुछ अभिनेता और अभिनेत्री ऐसे भी हैं जो स्मॉल स्क्रीन  के दर्शकों के बीच तो लोकप्रिय हैं,पर सिल्वर स्क्रीन के दर्शकों के बीच अपनी पहचान बनाने में नाकामयाब हुए हैं। ...और अब वे असफल अभिनेता-अभिनेत्री की सूची में शुमार हो गए हैं। उनके लिए सिल्वर स्क्रीन के दर्शकों के दिल में जगह बनाना मुश्किल ही नहीं,असंभव सा हो गया है। ऐसे अभिनेता-अभिनेत्री की सूची में पहला नाम अमर उपाध्याय का है। 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' में मिहिर की भूमिका निभाकर दर्शकों के प्रिय बने अमर ने जल्दबाजी में फिल्मों में कदम रखा और वे असफल रहें। उनकी पहली फिल्म 'जोड़ी क्या बनाई वाह वाह राम जी' कब आई और कब चली गयी ...दर्शकों को पता ही नहीं चला।' कहीं तो होगा' में कशिश की भूमिका से लोकप्रिय हुई खूबसूरत आमना शरीफ ने जब फिल्म 'आलू चाट' से हिंदी फिल्मों में कदम रखा,तो उन पर सभी की निगाहें टिकी थीं।  ...पर फिल्मों में आमना का आगमन सुखद नहीं रहा। उनकी पहली फिल्म 'आलू चाट' असफल रही और अब वे एक बार फिर स्मॉल स्क्रीन  का रुख कर चुकी हैं। फिल्मों में खुद को साबित करने का संजीदा शेख का प्रयास भी असफल रहा। 'पंख' में उनकी मौजूदगी फीकी रही। स्माल स्क्रीन के स्टार करण सिंह ग्रोवर ने हिंदी फिल्मों में अपने सुनहरे भविष्य का सपना देखा और बिना देर किये डायना हेडेन के साथ फिल्म साइन कर ली,पर यह उनका दुर्भाग्य है कि वह फिल्म डब्बा बंद हो गयी। ...और करण एक बार फिर स्मॉल स्क्रीन पर लौट आये हैं।

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