-सौम्या अपराजिता
अनुराग कश्यप जैसे सक्षम और सफल निर्देशक की जीवनसाथी होने के बाद भी कल्कि कोचलिन ने फ़िल्मी दुनिया में अपने अस्तित्व को खुद ढूंढा है। अनुराग की छत्रछाया से दूर कल्कि ने अपनी पहचान खुद बनाई है। 'देव डी' में कल्कि को चन्दा की भूमिका सौंप कर अनुराग ने हिंदी फ़िल्मी दुनिया में पहला अवसर तो दे दिया,पर उस अवसर को सकारात्मक दिशा देते हुए अपने फ़िल्मी करिअर को कल्कि ने स्वयं संवारा है। पांडिचेरी में पली-बढ़ी कल्कि मौजूदा दौर में हिंदी फिल्मों की प्रतिभाशाली अभिनेत्रियों में शुमार हैं। 'शैतान','जिंदगी न मिलेगी दोबारा' और 'शंघाई' के बाद कल्कि अब 'एक थी डायन' में दिखेंगी। कल्कि से बातचीत . . .
मुख्य धारा की फिल्में होने के बाद भी आपकी फिल्में लीक से हट कर होती हैं। अपने लिए फिल्में चुनते समय आप क्या ध्यान रखती हैं?
-मुझे नहीं लगता कि फिल्में चुनना आसान काम है। स्क्रिप्ट पर मेरी पहली नज़र होती है,लेकिन स्क्रिप्ट तब तक कोई महत्व नहीं रखता जब तक अच्छा निर्देशक नहीं हो। अपने कैरेक्टर की ओरिजिनलिटी और फ्रेशनेस पर भी मेरा ध्यान रहता है। साथ ही, मैं हमेशा यह जानने की कोशिश करती हूं कि निर्देशक क्या कहना चाहता है? हर फिल्म में कोई सन्देश नहीं हो सकता ,पर पैसे बनाने के अलावा फिल्म बनाने की कोई तो वजह होनी चाहिए।
'देव डी' से लेकर 'एक थी डायन' तक आप खुद में किस तरह के बदलाव महसूस करती हैं?
- फिल्म मेकिंग की तकनीक के विषय में थोड़ी जानकारी हो गयी है। अब मैं कैमरा को बेहतर समझने लगी हूं। मेरी हिंदी सुधर गयी है। एक्टिंग स्किल भी सुधरी है। साथ ही, मुझे लगता है मैं फिल्म मेकिंग के प्रोसेस को ज्यादा एन्जॉय करने लगी हूं।' देव डी' के समय मैं इतनी डरी हुई थी कि अपनी तरफ से कुछ भी नया करने की कोशिश नहीं करती थीं। वैसा ही करती थी जैसा करने के लिए सौ बार प्रक्टिस कर चुकी थी। अब मैं अपनी और से बेहतर और नया करने की कोशिश करती हूं।
'एक थी डायन' का कांसेप्ट रोचक लग रहा है। आप किस तरह का करेक्टर निभा रही हैं?
-मैं लिजा दत्त का करेक्टर निभा रही हूं। लिजा म्यूजिक टीचर है। वह दुनिया के सबसे फेमस जादूगर बोबो की बहुत बड़ी फैन है। बोबो इमरान के कैरेक्टर का नाम है।
इमरान के साथ यह आपकी दूसरी फिल्म है। उनके साथ के बारे में कुछ बतायेंगी?
-हम दोनों में खूब बनती है। वे प्रोफेशनल और हार्ड वर्किंग हैं जबकि मैं रिलैक्स रहती हूं। यह बहुत अच्छा है कि हम दोनों ने दो बिलकुल अलग तरह की फिल्मों में साथ काम किया है। ऐसा होने से हम दोनों को एक ही तरह की फिल्मों में कास्ट नहीं किया जाएगा। हम दोनों ही अपने कम्फर्ट जोन से बाहर आने की कोशिश कर रहे हैं।
'एक थी डायन' के बाद दर्शक आपको किन फिल्मों में देख पाएंगे?
-'एक थी डायन' के बाद 'ये जवानी है दीवानी' है, जो मई के आखिरी हफ्ते में रिलीज़ होगी। इस समय मैं सोनाली बोस की फिल्म 'मार्गरिटा,विद अ स्ट्रॉ' की शूटिंग कर रही हूं।
फिल्मों के अतिरिक्त अपनी व्यस्तता के बारे में बताएं ?
-थिएटर में बिजी रहती हूँ। रजत कपूर का प्ले 'हैमलेट न क्लाउन' प्रिंस कर रही हूं। एक नया प्ले भी इन दिनों लिख रही हूं।
थिएटर बैकग्राउंड के कलाकारों के लिए फिल्मों में प्रवेश करने का क्या यह सही समय है?
-मुझे लगता है कि हर फील्ड के लोगों के लिए हिंदी फिल्मों में आने का यह सही समय है। बस टैलेंट और लगन होनी चाहिए। अब नए कांसेप्ट पर बिना स्टार के फिल्में बनाना आसान हो गया है।
फिल्म मेकिंग के दौरान क्रिएटिविटी की कितनी जरुरत होती है? आपको ऐसा नहीं लगता कि कमर्शिअल सक्सेस के लिए काफी हद तक क्रिएटिविटी से समझौता करना पड़ता है?
-कमर्शिअल सक्सेस और क्रिएटिविटी साथ -साथ चलने चाहिए। फिल्म बनाने की वजह होती है कि वह अधिक से अधिक लोगों तक पहुँच सके। फिल्म की कमर्शिअल सक्सेस की चाह करना कोई गलत बात नहीं है। हालांकि, मुझे लगता है कि क्रिएटिविटी से पर्दे पर मैजिक क्रिएट कर दर्शकों के दिल को छूया जा सकता है।
फिल्में डायरेक्ट करने के विषय में आपने कुछ सोचा है?
-नहीं। मुझे नहीं लगता कि मुझे फिल्ममेकिंग की इतनी जानकारी हो गयी है कि मैं कोई फिल्म डायरेक्ट कर सकूँ। इस समय मैं यह नहीं कह सकती कि फिल्म डायरेक्शन मुझे पसंद है। थिएटर के लिए मैं डायरेक्शन के विषय में सोच सकती हूं।
अनुराग कश्यप से आपको किस तरह का सहयोग और समर्थन मिलता है?
-सपोर्ट से अधिक वे मुझे रेस्पेक्ट देते है। वे मुझे अपना काम और अपनी पसंद को बनाए रखने की आजादी देते हैं। वे मेरे काम में कभी दखल नहीं देते हैं। वे तब ही मुझे कोई सलाह देते हैं जब मैं उनसे मांगती हूं।
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