मुख्य कलाकार : राहुल बोस, मिनिषा लांबा, के.के.मेनन,जावेद जाफरी और दीपक डोबरियाल आदि।
निर्देशक : समर खान
तकनीकी टीम : गीत-जयदीप सरकार और जावेद अख्तर, संगीत-अदनान सामी, कहानी-समर खान,जयदीप सरकार और अर्पणा मल्होत्रा
कश्मीर की वादियों में अक्सर सेना के कुछ अफसरों द्वारा मानवाधिकार हनन की खबरें सुनी जाती हैं। समर खान निर्देशित शौर्य सेना से जुड़े इन्हीं अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डालती है। निष्पक्ष नजरिये के साथ समर खान अपनी बात रखने में सफल रहते हैं।
मेजर सिद्धार्थ चौधरी और मेजर आकाश कपूर करीबी मित्र हैं। आकाश अपने कर्तव्यों के प्रति जिम्मेदार हैं। सिद्धार्थ को नियम-कानून के दायरे में रहकर जीवन बिताना नहीं भाता है। आकाश का तबादला श्रीनगर में होता है, जहां उसे जावेद खान कोर्ट मार्शल की प्रक्रिया के लिए सेना का वकील नियुक्त किया जाता है। आकाश के सहयोग से सिद्धार्थ का भी तबादला श्रीनगर हो जाता है, लेकिन उसकी नियुक्ति जावेद खान केस के बचाव पक्ष के वकील के रूप में हो जाती है। प्रारंभ में आकाश के निर्देश और अपने बिंदास अंदाज के कारण सिद्धार्थ इस केस के प्रति लापरवाही बरतता है, लेकिन पत्रकार काव्या शास्त्री से हुई उसकी मुलाकात के बाद सब कुछ बदल जाता है। सिद्धार्थ अपने अंदर छिपे साहस को महसूस करता है और उस घटना की गहराई तक पहुंचता है जिस कारण जावेद खान का कोर्ट मार्शल करने का निर्णय सेना ने किया है।
केस की छानबीन के दौरान सिद्धार्थ का सामना ब्रिगेडियर प्रताप सिंह से होता है, जिनके अंदर एक खास संप्रदाय के प्रति जहर भरा पड़ा है। ब्रिगेडियर प्रताप उस संप्रदाय विशेष के निर्दोष लोगों को भी अपनी नफरत का शिकार बनाते हैं और उन्हें आतंकी बता कर अपना शौर्य देश के सामने प्रदर्शित करता है। अंतत: उसका झूठा शौर्य निर्दोष और समर्पित सैन्य अधिकारी जावेद खान को न्याय दिलाने वाले सिद्धार्थ के शौर्य के आगे घुटने टेक देता है।
हमेशा की तरह राहुल बोस अपने स्वाभाविक अभिनय से प्रभावित करते हैं। के के मेनन की अभिनय प्रतिभा किसी भी तुलना से परे है। शौर्य में भी उनका अभिनय शानदार है। मीनिषा लांबा ने युवा और जुझारू पत्रकार की भूमिका बखूबी निभायी है। जावेद जाफरी का अभिनय साधारण है। सीमा विश्वास एक असहाय मां की भूमिका में खूब जंचती हैं। मेहमान भूमिका में अमृता राव का ग्लैमरविहीन चेहरा भी आकर्षित करता है।
शौर्य में एक आइटम डांस भी है जो थोड़ा अटपटा लगता है। इसके अतिरिक्त गानों को जान-बूझकर ठूंसा नहीं गया है। सैन्य छावनियों और कोर्ट रूम के दृश्यों के बीच कश्मीर की वादियों के दृश्य आंखों को सुकून देते हैं। शौर्य अपने कथ्य से भटकती नहीं है और अंत तक दर्शकों को बांधे रखती है। बीच-बीच में कुछ चुटीले संवाद शौर्य की गंभीरता को मनोरंजक भी बनाते हैं।
-सौम्या अपराजिता
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