अपने सुरों से श्रोताओं के कानों में मधुर रस घोलने वाले आकर्षक व्यक्तित्व वाले गायक-गायिकाओं को फिल्मों में अभिनय के प्रस्ताव मिलते रहते हैं। हालांकि,इन प्रस्तावों के बावजूद अभिनय की राहों पर मुड़ने में गायक-गायिका घबराते हैं। उन्हें दर्शकों की अस्वीकार्यता के साथ-साथ दोहरी जिम्मेदारी के दबाव का डर होता है।इस डर पर विजय हासिल करते हुए जिन्होंने गायन के साथ-साथ अभिनय की ओर भी रुख करने का जोखिम उठाया है,आमतौर पर उनके हाथ निराशा ही लगी है। किशोर कुमार,श्रुति हासन और अली जफ़र को छोड़कर जितने भी सुरों के सिपाहियों ने अभिनय के रण क्षेत्र में कूदने की हिमाकत की है उन्हें अधिकांशतः विफलता ही मिली है।
जो रहे सफल
किशोर कुमार उन सभी पार्श्व गायक-गायिकाओं की प्रेरणा हैं जो गायन के साथ-साथ अभिनय को भी अपने व्यवसाय का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाना चाहते हैं। जब किशोर कुमार ने अभिनय जगत में दस्तक दी,तो भी उन्हें उतनी ही सफलता और स्वीकार्यता मिली जितनी बतौर पार्श्व गायक मिली थी। वे जितने सफल गायक थे उतने ही सफल अभिनेता भी बनकर उभरे। दरअसल,किशोर जब गायक के साथ-साथ अभिनेता बनें तो उनकी प्रतिभा और भी निखर गयी। उनका आत्मविश्वास और बढ़ गया। वे और भी प्रिय और लोकप्रिय बन गए। किशोर कुमार से प्रेरित होकर ही गायक अली जफ़र ने अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा। 'तेरे बिन लादेन' में अली के अभिनय का रंग पहली बार भारतीय दर्शकों ने देखा। स्वाभाविक अभिनय से दर्शकों को प्रभावित करने वाले इस लोकप्रिय पॉप गायक ने बता दिया कि एक ही व्यक्ति अच्छा गायक और समर्थ अभिनेता दोनों हो सकता है। उधर कमल हासन की बिटिया श्रुति हासन ने भी संगीत जगत में अपनी धमक देने के बाद अभिनय की दुनिया में प्रवेश की योजना बनायी। अब श्रुति अभिनय में इतनी रम गयी हैं कि गायिका के रूप में उनकी पहचान हाशिये पर चली गयी है। श्रुति ने बतौर गायिका अपने करियर की शुरुआत की,पर उनकी पहचान बनी अभिनेत्री के रूप में। रोचक है कि श्रुति कई फिल्मों में स्वयं के लिए पार्श्व गायन कर चुकी हैं। उन्होंने 'लक' और 'डी डे' के गीतों को अपने कर्णप्रिय धुनों से सजाया है। अली जफ़र की ही तरह श्रुति ने भी गायन से अभिनय का सफ़र सफलतापूर्वक तय किया है। हालांकि... इस सुहाने सफ़र के बावजूद किशोर कुमार की तरह अली और श्रुति गायन और अभिनय के बीच संतुलन बनाने में सफल नहीं रहे हैं।
किशोर कुमार उन सभी पार्श्व गायक-गायिकाओं की प्रेरणा हैं जो गायन के साथ-साथ अभिनय को भी अपने व्यवसाय का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाना चाहते हैं। जब किशोर कुमार ने अभिनय जगत में दस्तक दी,तो भी उन्हें उतनी ही सफलता और स्वीकार्यता मिली जितनी बतौर पार्श्व गायक मिली थी। वे जितने सफल गायक थे उतने ही सफल अभिनेता भी बनकर उभरे। दरअसल,किशोर जब गायक के साथ-साथ अभिनेता बनें तो उनकी प्रतिभा और भी निखर गयी। उनका आत्मविश्वास और बढ़ गया। वे और भी प्रिय और लोकप्रिय बन गए। किशोर कुमार से प्रेरित होकर ही गायक अली जफ़र ने अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा। 'तेरे बिन लादेन' में अली के अभिनय का रंग पहली बार भारतीय दर्शकों ने देखा। स्वाभाविक अभिनय से दर्शकों को प्रभावित करने वाले इस लोकप्रिय पॉप गायक ने बता दिया कि एक ही व्यक्ति अच्छा गायक और समर्थ अभिनेता दोनों हो सकता है। उधर कमल हासन की बिटिया श्रुति हासन ने भी संगीत जगत में अपनी धमक देने के बाद अभिनय की दुनिया में प्रवेश की योजना बनायी। अब श्रुति अभिनय में इतनी रम गयी हैं कि गायिका के रूप में उनकी पहचान हाशिये पर चली गयी है। श्रुति ने बतौर गायिका अपने करियर की शुरुआत की,पर उनकी पहचान बनी अभिनेत्री के रूप में। रोचक है कि श्रुति कई फिल्मों में स्वयं के लिए पार्श्व गायन कर चुकी हैं। उन्होंने 'लक' और 'डी डे' के गीतों को अपने कर्णप्रिय धुनों से सजाया है। अली जफ़र की ही तरह श्रुति ने भी गायन से अभिनय का सफ़र सफलतापूर्वक तय किया है। हालांकि... इस सुहाने सफ़र के बावजूद किशोर कुमार की तरह अली और श्रुति गायन और अभिनय के बीच संतुलन बनाने में सफल नहीं रहे हैं।
अभिनय से मोह-भंग
कुछ ऐसे गायक और गायिका भी हैं जिन्होंने स्वयं को सक्षम अभिनेता-अभिनेत्री तो साबित कर लिया,पर अच्छे अवसर की अनुपलब्धता या फिर किसी अन्य कारण से जल्द ही अभिनय से उनका मोह-भंग हो गया। वसुंधरा दास और लकी अली ऐसे ही दो नाम हैं। वसुंधरा दास ने 'मानसून वेडिंग' और 'हे राम' जैसी फिल्मों में अपने अभिनय की शानदार बानगी पेश की। उनकी अनूठी आवाज की ही तरह उनके अभिनय की भी खूब प्रशंसा हुई । ..पर जल्द ही वसुंधरा के प्रशंसकों को निराशा का सामना करना पड़ा जब वसुंधरा ने अभिनय से मुंह मोड़ लिया। वसुंधरा कहती हैं,' मैं सिर्फ उपस्थिति दर्ज कराने के लिए फिल्में नहीं करना चाहती। 'हे राम' ओर 'मानसून वेडिंग' सरीखी फिल्में ही करना चाहती हूं। इसीलिए सभी फिल्मों को मैं हां नहीं कर पाती। फिर मेरा अपना एक बैंड भी है। उसकी वजह से भी टाइम कम मिलता है।' लकी अली भी ऐसी ही स्थिति से गुजरे। महमूद के पुत्र लकी अली ने कई म्यूजिक अल्बम को अपने सुरों से पिरोने के बाद पूजा भट्ट की 'सुर' में अपने संजीदा अभिनय से दर्शकों को प्रभावित किया। लकी में अच्छे गायक के साथ-साथ बेहतरीन अभिनेता की भी झलक नजर आई,पर लकी जल्द ही अभिनय से दूर हो गए।लकी कहते हैं,' मैंने ' सुर ' में अभिनय किया। ऐसी कुछ फ़िल्में होती हैं जो लीक से हटकर होती हैं। इसकी कहानी भी अच्छी थी और गाने भी। वैसे आजकल तो लोगों का ज़ोर इस बात पर है कि तीन दिन में कितना कमा सकते हैं। आज तो सिनेमा प्रपोजल जैसा बनता है।मैं इस बाज़ार का हिस्सा नहीं बनना चाहता।'
कुछ ऐसे गायक और गायिका भी हैं जिन्होंने स्वयं को सक्षम अभिनेता-अभिनेत्री तो साबित कर लिया,पर अच्छे अवसर की अनुपलब्धता या फिर किसी अन्य कारण से जल्द ही अभिनय से उनका मोह-भंग हो गया। वसुंधरा दास और लकी अली ऐसे ही दो नाम हैं। वसुंधरा दास ने 'मानसून वेडिंग' और 'हे राम' जैसी फिल्मों में अपने अभिनय की शानदार बानगी पेश की। उनकी अनूठी आवाज की ही तरह उनके अभिनय की भी खूब प्रशंसा हुई । ..पर जल्द ही वसुंधरा के प्रशंसकों को निराशा का सामना करना पड़ा जब वसुंधरा ने अभिनय से मुंह मोड़ लिया। वसुंधरा कहती हैं,' मैं सिर्फ उपस्थिति दर्ज कराने के लिए फिल्में नहीं करना चाहती। 'हे राम' ओर 'मानसून वेडिंग' सरीखी फिल्में ही करना चाहती हूं। इसीलिए सभी फिल्मों को मैं हां नहीं कर पाती। फिर मेरा अपना एक बैंड भी है। उसकी वजह से भी टाइम कम मिलता है।' लकी अली भी ऐसी ही स्थिति से गुजरे। महमूद के पुत्र लकी अली ने कई म्यूजिक अल्बम को अपने सुरों से पिरोने के बाद पूजा भट्ट की 'सुर' में अपने संजीदा अभिनय से दर्शकों को प्रभावित किया। लकी में अच्छे गायक के साथ-साथ बेहतरीन अभिनेता की भी झलक नजर आई,पर लकी जल्द ही अभिनय से दूर हो गए।लकी कहते हैं,' मैंने ' सुर ' में अभिनय किया। ऐसी कुछ फ़िल्में होती हैं जो लीक से हटकर होती हैं। इसकी कहानी भी अच्छी थी और गाने भी। वैसे आजकल तो लोगों का ज़ोर इस बात पर है कि तीन दिन में कितना कमा सकते हैं। आज तो सिनेमा प्रपोजल जैसा बनता है।मैं इस बाज़ार का हिस्सा नहीं बनना चाहता।'
धरे रह गए अरमान
कई ऐसे गायक हैं जिन्होंने बड़े अरमानों से अभिनय की दुनिया में कदम रखा,पर गायन के साथ-साथ अभिनय में भी सफल होने के उनके अरमान धरे रह गए। अभिनय की दुनिया में उनकी दाल नहीं गल पायी। सोनू निगम,आदित्य नारायण,अभिजीत सावंत और शान ऐसे ही सुरों के सिपाही हैं जिन्हें अभिनय के रण क्षेत्र में पराजय से सामना करना पड़ा। आकर्षक व्यक्तित्व के कारण इन गायकों के लिए अभिनय की राह मुश्किल नहीं थी,पर अच्छे अवसर के अभाव,जल्दबाजी और प्रस्ताओं के चुनाव में असावधानी बरतने के कारण ये लोकप्रिय गायक सफल अभिनेता नहीं बन पाए। अभिनय में मिली असफलता के बाद इन सभी ने अभिनय से मुंह मोड़ लिया है और एक बार फिर सिर्फ संगीत के प्रति अपने समर्पण की घोषणा कर दी है। हालांकि,असफलता के बावजूद हिमेश रेशमिया का अभिनय से लगाव बना हुआ है। वे अब स्व निर्मित फिल्मों में अपने लिए अभिनय के अवसर ढूंढ रहे हैं। पिछले वर्ष वे 'खिलाडी 420' में अक्षय कुमार के साथ नजर आये। गौरतलब है कि इस फिल्म का निर्माण हिमेश ने अक्षय कुमार के साथ मिलकर किया था। सोफी चौधरी भी कभी आइटम गीतों में तो कभी छोटी भूमिकाओं में अपनी झलक दिखलाती रहती हैं। हालांकि,अभी गायन और अभिनय दोनों में ही खुद को सोफी साबित नहीं कर पायी हैं।
कई ऐसे गायक हैं जिन्होंने बड़े अरमानों से अभिनय की दुनिया में कदम रखा,पर गायन के साथ-साथ अभिनय में भी सफल होने के उनके अरमान धरे रह गए। अभिनय की दुनिया में उनकी दाल नहीं गल पायी। सोनू निगम,आदित्य नारायण,अभिजीत सावंत और शान ऐसे ही सुरों के सिपाही हैं जिन्हें अभिनय के रण क्षेत्र में पराजय से सामना करना पड़ा। आकर्षक व्यक्तित्व के कारण इन गायकों के लिए अभिनय की राह मुश्किल नहीं थी,पर अच्छे अवसर के अभाव,जल्दबाजी और प्रस्ताओं के चुनाव में असावधानी बरतने के कारण ये लोकप्रिय गायक सफल अभिनेता नहीं बन पाए। अभिनय में मिली असफलता के बाद इन सभी ने अभिनय से मुंह मोड़ लिया है और एक बार फिर सिर्फ संगीत के प्रति अपने समर्पण की घोषणा कर दी है। हालांकि,असफलता के बावजूद हिमेश रेशमिया का अभिनय से लगाव बना हुआ है। वे अब स्व निर्मित फिल्मों में अपने लिए अभिनय के अवसर ढूंढ रहे हैं। पिछले वर्ष वे 'खिलाडी 420' में अक्षय कुमार के साथ नजर आये। गौरतलब है कि इस फिल्म का निर्माण हिमेश ने अक्षय कुमार के साथ मिलकर किया था। सोफी चौधरी भी कभी आइटम गीतों में तो कभी छोटी भूमिकाओं में अपनी झलक दिखलाती रहती हैं। हालांकि,अभी गायन और अभिनय दोनों में ही खुद को सोफी साबित नहीं कर पायी हैं।
और भी हैं कतार में.
वर्तमान में सबसे सफल और लोकप्रिय गायकों में शुमार मिका सिंह भी अभिनय की राह पर निकल पड़े हैं। सुनील अग्निहोत्री निर्देशित 'बलविंदर सिंह फेमस हो गया' से मिका अभिनय में अपनी किस्मत आजमाने के लिए तैयार हैं। मिका इस फिल्म के निर्माता भी हैं। सुनील अग्निहोत्री कहते हैं,'मिका शानदार गायक हैं यह तो सभी जानते हैं। अभी तक के अपने अनुभव से कह सकता हूं कि वे अच्छे अभिनेता भी हैं।' मिका की ही तरह पार्श्व गायन का एक और तेजी से उभरता हुआ चेहरा अभिनय की दुनिया में दस्तक देने के लिए तैयार है। बात हो रही है 'जरा जरा टच मी','ख्वाब देखे झूठे-मूठे' और ' संवार लूं' जैसे गीतों को अपने सुरों से सजाने वाली मोनाली ठाकुर की। अब्बास टायरवाला निर्देशित नयी फिल्म 'मैंगो' में मोनाली बतौर अभिनेत्री दर्शकों के सामने होंगी। मोनाली बताती हैं,'मैंने एक्टिंग की अलग से कोई पढ़ाई नहीं की है। एक्टिंग मेरे खून में है। मेरे पिता थिएटर एक्टर रहे हैं। दूसरे मैं हिंदी और अंग्रेजी की फिल्में लगातार देखती रही हूं। उन फिल्मों से बहुत कुछ सीखा है।' उम्मीद है कि श्रोताओं को अपने सुरों से सम्मोहित करने वाले मिका सिंह और मोनाली ठाकुर का अभिनय की दुनिया में प्रवेश का यह प्रयास सुखद और सकारात्मक हो....।
वर्तमान में सबसे सफल और लोकप्रिय गायकों में शुमार मिका सिंह भी अभिनय की राह पर निकल पड़े हैं। सुनील अग्निहोत्री निर्देशित 'बलविंदर सिंह फेमस हो गया' से मिका अभिनय में अपनी किस्मत आजमाने के लिए तैयार हैं। मिका इस फिल्म के निर्माता भी हैं। सुनील अग्निहोत्री कहते हैं,'मिका शानदार गायक हैं यह तो सभी जानते हैं। अभी तक के अपने अनुभव से कह सकता हूं कि वे अच्छे अभिनेता भी हैं।' मिका की ही तरह पार्श्व गायन का एक और तेजी से उभरता हुआ चेहरा अभिनय की दुनिया में दस्तक देने के लिए तैयार है। बात हो रही है 'जरा जरा टच मी','ख्वाब देखे झूठे-मूठे' और ' संवार लूं' जैसे गीतों को अपने सुरों से सजाने वाली मोनाली ठाकुर की। अब्बास टायरवाला निर्देशित नयी फिल्म 'मैंगो' में मोनाली बतौर अभिनेत्री दर्शकों के सामने होंगी। मोनाली बताती हैं,'मैंने एक्टिंग की अलग से कोई पढ़ाई नहीं की है। एक्टिंग मेरे खून में है। मेरे पिता थिएटर एक्टर रहे हैं। दूसरे मैं हिंदी और अंग्रेजी की फिल्में लगातार देखती रही हूं। उन फिल्मों से बहुत कुछ सीखा है।' उम्मीद है कि श्रोताओं को अपने सुरों से सम्मोहित करने वाले मिका सिंह और मोनाली ठाकुर का अभिनय की दुनिया में प्रवेश का यह प्रयास सुखद और सकारात्मक हो....।
-सौम्या अपराजिता