हिंदी फ़िल्मी दुनिया यदि पुरुष प्रधान है,तो धारावाहिकों की दुनिया में महिलाओं का बोलबाला है। मनोरंजन के इस बड़े और विस्तृत दायरे वाले समाज को मातृसत्तात्मक कहना ज्यादा उचित होगा। महिलाएं इस समाज में पुरुषों से ज्यादा प्रभावी भूमिका में हैं। धारावाहिकों की केंद्रीय पात्र महिलाएं हैं। इन धारावाहिकों के निर्माण के नेपथ्य में भी महिलाएं हैं। साथ ही,दर्शकों में भी महिलाओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले अधिक है। कुल मिलाकर यदि कहें कि धारावाहिकों की दुनिया के विशाल महल की आधारशिला महिलाएं हैं,तो गलत नहीं होगा।
महिला दर्शको को रिझाने के लिए
एक वह दौर भी था जब फिल्मों के ही तरह धारावाहिकों में भी पुरुष चरित्र महत्वपूर्ण हुआ करते थें। वह दौर दूरदर्शन के प्राइम टाइम शो का हुआ करता था। जब टीवी स्क्रीन के सामने बैठना हर दिन कुछ पलों के लिए पूरे परिवार के साथ मनाए जाने वाले त्यौहार की तरह होता था। फिर सेटेलाईट चैनेल की क्रांति हुई। है। सेटेलाईट चैनल के आगमन के बाद महिला प्रधान धारावाहिकों की नींव पड़ी जिसकी मजबूती आज तक बनी हुई है।उल्लेखनीय है कि सेटेलाईट चैनल क्रांति के बाद दैनिक धारावाहिकों का चलन बढ़ा। दैनिक धारावाहिकों की दर्शक अधिकांशतः महिलाएं होती हैं जो घर के पुरुषों के कार्यालय और बच्चों के स्कूल जाने के बाद अपने-अपने टेलीविज़न सेट से चिपक जाती हैं। इन्हीं महिला दर्शकों को आकर्षित करने के लिए महिला प्रधान धारावाहिकों के निर्माण का सिलसिला शुरू हुआ जो अब तक जारी है।
एक वह दौर भी था जब फिल्मों के ही तरह धारावाहिकों में भी पुरुष चरित्र महत्वपूर्ण हुआ करते थें। वह दौर दूरदर्शन के प्राइम टाइम शो का हुआ करता था। जब टीवी स्क्रीन के सामने बैठना हर दिन कुछ पलों के लिए पूरे परिवार के साथ मनाए जाने वाले त्यौहार की तरह होता था। फिर सेटेलाईट चैनेल की क्रांति हुई। है। सेटेलाईट चैनल के आगमन के बाद महिला प्रधान धारावाहिकों की नींव पड़ी जिसकी मजबूती आज तक बनी हुई है।उल्लेखनीय है कि सेटेलाईट चैनल क्रांति के बाद दैनिक धारावाहिकों का चलन बढ़ा। दैनिक धारावाहिकों की दर्शक अधिकांशतः महिलाएं होती हैं जो घर के पुरुषों के कार्यालय और बच्चों के स्कूल जाने के बाद अपने-अपने टेलीविज़न सेट से चिपक जाती हैं। इन्हीं महिला दर्शकों को आकर्षित करने के लिए महिला प्रधान धारावाहिकों के निर्माण का सिलसिला शुरू हुआ जो अब तक जारी है।
एकता का असर
दूरदर्शन के धारावाहिक उड़ान,रजनी, शांति और जी टीवी के धारावाहिक तारा ने छोटे पर्दे पर महिला प्रधान धारावाहिकों की नींव रखी जिस पर मजबूत इमारत तैयार की एकता कपूर ने। एकता कपूर ने सही मायने में नायिका प्रधान धारावाहिकों को नयी दिशा दी। एकता के धारावाहिकों की नायिकाएं भव्य और आकर्षक लिबास में महिला दर्शकों को लुभाने लगीं। घर-परिवार के सदस्यों के बीच तालमेल बिठाकर चलने का उनका तरीका दर्शकों को भाने लगा। क्योंकि सास भी कभी बहू थी की तुलसी के दर्द को दर्शक शिद्दत से महसूस करने लगे। दूसरी तरफ कसौटी जिन्दगी की की प्रेरणा के प्यार में दर्शक इतने डूब गए कि उन्हें प्रेरणा की दो बार शादी भी गवांरा गो गयी। दरअसल,एकता कपूर ने अपने धारावाहिकों में नायिकाओं को नए रंग-रूप में पेश किया। इन नायिकाओं के जीवन में सिर्फ एक नायक नहीं,बल्कि कई नायक हुआ करते ,फिर भी दर्शक उन्हें प्यार किया करते। एकता के धारावाहिकों की प्रशंसकों में अधिकांश मध्यमवर्गीय महिला दर्शक हुआ करतीं जिनकी दुनिया तुलसी,पार्वती और प्रेरणा के आंसुओं,गहनों और कपड़ों के इर्द-गिर्द घूमा करती थी। इन धारावाहिकों की सफलता ने एकता कपूर को टीवी क्वीन की उपाधि से नवाजा। एकता कहती हैं,'मैं आज जो भी हूं, वह टेलीविजन की वजह से हूं। मैं भावनात्मक रूप से टेलीविजन से ही जुडी हूं। मैंने पूरी कोशिश की है कि मेरे धारावाहिकों में महिला चरित्र उभरकर सामने आए।' यह एकता के धारावाहिकों की लोकप्रियता का ही असर है कि उन्हें पिछले दिनों कारोबारी जगत की सबसे शक्तिशाली महिलाओं की सूची में शामिल किया गया ।बालाजी टेलीफिल्म की संयुक्त प्रबंध निदेशक कपूर ने इस सम्मान को स्वीकार करते हुए कहा,'मैं इस सम्मानित पुरस्कार को पाकर गौरव महसूस कर रही हूं और मानती हूं कि इससे महिलाओं की क्षमता और बालाजी टेलीफिल्म्स की सामग्री को मान्यता मिली है।"
दूरदर्शन के धारावाहिक उड़ान,रजनी, शांति और जी टीवी के धारावाहिक तारा ने छोटे पर्दे पर महिला प्रधान धारावाहिकों की नींव रखी जिस पर मजबूत इमारत तैयार की एकता कपूर ने। एकता कपूर ने सही मायने में नायिका प्रधान धारावाहिकों को नयी दिशा दी। एकता के धारावाहिकों की नायिकाएं भव्य और आकर्षक लिबास में महिला दर्शकों को लुभाने लगीं। घर-परिवार के सदस्यों के बीच तालमेल बिठाकर चलने का उनका तरीका दर्शकों को भाने लगा। क्योंकि सास भी कभी बहू थी की तुलसी के दर्द को दर्शक शिद्दत से महसूस करने लगे। दूसरी तरफ कसौटी जिन्दगी की की प्रेरणा के प्यार में दर्शक इतने डूब गए कि उन्हें प्रेरणा की दो बार शादी भी गवांरा गो गयी। दरअसल,एकता कपूर ने अपने धारावाहिकों में नायिकाओं को नए रंग-रूप में पेश किया। इन नायिकाओं के जीवन में सिर्फ एक नायक नहीं,बल्कि कई नायक हुआ करते ,फिर भी दर्शक उन्हें प्यार किया करते। एकता के धारावाहिकों की प्रशंसकों में अधिकांश मध्यमवर्गीय महिला दर्शक हुआ करतीं जिनकी दुनिया तुलसी,पार्वती और प्रेरणा के आंसुओं,गहनों और कपड़ों के इर्द-गिर्द घूमा करती थी। इन धारावाहिकों की सफलता ने एकता कपूर को टीवी क्वीन की उपाधि से नवाजा। एकता कहती हैं,'मैं आज जो भी हूं, वह टेलीविजन की वजह से हूं। मैं भावनात्मक रूप से टेलीविजन से ही जुडी हूं। मैंने पूरी कोशिश की है कि मेरे धारावाहिकों में महिला चरित्र उभरकर सामने आए।' यह एकता के धारावाहिकों की लोकप्रियता का ही असर है कि उन्हें पिछले दिनों कारोबारी जगत की सबसे शक्तिशाली महिलाओं की सूची में शामिल किया गया ।बालाजी टेलीफिल्म की संयुक्त प्रबंध निदेशक कपूर ने इस सम्मान को स्वीकार करते हुए कहा,'मैं इस सम्मानित पुरस्कार को पाकर गौरव महसूस कर रही हूं और मानती हूं कि इससे महिलाओं की क्षमता और बालाजी टेलीफिल्म्स की सामग्री को मान्यता मिली है।"
नारी-सशक्तीकरण के मुद्दे..
एकता के महिला प्रधान धारावाहिकों का ये असर हुआ कि नायिका को केंद्र में रखकर दूसरे निर्माता-निर्देशकों ने भी धारावाहिकों के निर्माण की गतिविधि तेज कर दी। इस दिशा में दीया और टोनी सिंह के दो धारावाहिक 'जस्सी जैसी कोई नहीं' और 'ये मेरी लाइफ है' उल्लेखनीय है। हालांकि, इस बीच भी एकता के धारावाहिकों की चिर-परिचित नायिकाओं का क्रेज बना रहा। फिर वह समय भी आया जब सास-बहू ड्रामा वाले धारावाहिकों से दर्शकों का मोह भंग होने लगा। हालांकि, महिला प्रधान धारावाहिक अभी-भी केंद्र में बने रहें। हां.. अब इन धारावाहिकों का उद्देश्य बदल गया। महिलाओं से सम्बंधित किसी ज्वलंत मुद्दे को केंद्र में रखकर धारावाहिकों के निर्माण का सिलसिला शुरू हुआ। ऐसे धारावाहिकों में 'बालिका वधू' मील का पत्थर साबित हुआ। यह धारावाहिक आज भी दर्शकों का चहेता है हालांकि, कई मायनों में अब उद्देश्य से भटकता हुआ दिखाई देता है। सामाजिक जागरूकता के उद्देश्य से महिला प्रधान धारावाहिकों के सिलसिले से सकारात्मक संकेत मिल रहे थे। ऐसा लग रहा था अब धारावाहिकों की नायिकाएं प्रगतिशील और स्वतंत्र दिखेंगी,पर अफ़सोस ऐसा नहीं हुआ। उनकी दयनीय स्थिति आज भी बनी हुई है। स्थिति इतनी विकट हो चुकी है कि अक्सर ही किसी खास उद्देश्य या समस्या को आधारित करके शुरू किया धारावाहिक अपने मूल से भटक कर कहीं का कहीं पहुंच जाता है ।
एकता के महिला प्रधान धारावाहिकों का ये असर हुआ कि नायिका को केंद्र में रखकर दूसरे निर्माता-निर्देशकों ने भी धारावाहिकों के निर्माण की गतिविधि तेज कर दी। इस दिशा में दीया और टोनी सिंह के दो धारावाहिक 'जस्सी जैसी कोई नहीं' और 'ये मेरी लाइफ है' उल्लेखनीय है। हालांकि, इस बीच भी एकता के धारावाहिकों की चिर-परिचित नायिकाओं का क्रेज बना रहा। फिर वह समय भी आया जब सास-बहू ड्रामा वाले धारावाहिकों से दर्शकों का मोह भंग होने लगा। हालांकि, महिला प्रधान धारावाहिक अभी-भी केंद्र में बने रहें। हां.. अब इन धारावाहिकों का उद्देश्य बदल गया। महिलाओं से सम्बंधित किसी ज्वलंत मुद्दे को केंद्र में रखकर धारावाहिकों के निर्माण का सिलसिला शुरू हुआ। ऐसे धारावाहिकों में 'बालिका वधू' मील का पत्थर साबित हुआ। यह धारावाहिक आज भी दर्शकों का चहेता है हालांकि, कई मायनों में अब उद्देश्य से भटकता हुआ दिखाई देता है। सामाजिक जागरूकता के उद्देश्य से महिला प्रधान धारावाहिकों के सिलसिले से सकारात्मक संकेत मिल रहे थे। ऐसा लग रहा था अब धारावाहिकों की नायिकाएं प्रगतिशील और स्वतंत्र दिखेंगी,पर अफ़सोस ऐसा नहीं हुआ। उनकी दयनीय स्थिति आज भी बनी हुई है। स्थिति इतनी विकट हो चुकी है कि अक्सर ही किसी खास उद्देश्य या समस्या को आधारित करके शुरू किया धारावाहिक अपने मूल से भटक कर कहीं का कहीं पहुंच जाता है ।
बेबस और कमजोर
गौर करें तो धारावाहिकों में महिलाओं की छवि को अधिकांशतः ऐसे अंदाज में पेश करने की परंपरा शुरू की गयी है जो नारी सशक्तीकरण की भावना के विरुद्ध है। इन धारावाहिकों में या तो स्त्रियाँ चालाक और चालबाज हैं या फिर कमजोर और कुंठित। सकारात्मक रूप से चौकस और चतुर ना तो वे स्वयं हैं ना ही वे देखने वाली स्त्रियों को ऐसा कोई संदेश देती दिखाई पड़ती हैं। स्त्री पात्रों की लाचारी, बेबसी, मजबूरी, निरीहता और कमजोरी के लिए दर्शको की सहानुभूति बटोरकर अत्यधिक टी आर पी बटोरने के उद्देश्य से इन धारावाहिकों का निर्माण हो रहा है। अभिनेत्री शर्मिला टैगोर कहती हैं,'महिलाओं के बारे में छोटा पर्दा अभी भी बहुत पुरातनपंथी है और अभी भी उन्हें सिर्फ रसोई तक ही सीमित दिखाया जाता है। टीवी शो अभी भी बेटे की चाहत और रसोई के इर्दगिर्द घूमते रहते हैं। कोई महिला काम नहीं करती। टीवी पर कामकाजी महिलाएं पूरी तरह अनुपस्थित हैं। वर्तमान में हर महिला नौकरी करती है और अपना परिवार भी संभालती है। आज के युग में महिलाओं के किरदार को ठीक से पेश किया जाना चाहिए।'' गौर करें तो दूरदर्शन के लोकप्रिय महिला प्रधान धारावाहिक 'रजनी' और 'उड़ान' मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञानवर्धक भी थे। रजनी' और 'उड़ान' जैसे धारावाहिक अपने मुख्य चारित्रों के माध्यम से एक ऐसी स्त्री का प्रतिरूप गढ़ते हैं जो आधुनिक दिखती है, संघर्षशील और जुझारू है। साथ ही, भारतीयता के आदर्श को बिना चोट पहुँचाए एक बेहतर समाज,परिवार और राष्ट्र के निर्माण में तत्पर दिखाई देती है। तथाकथित महिला प्रधान भारतीय टेलीविज़न के मौजूदा दौर में ऐसे धारावाहिकों की कमी खलती है। वरिष्ठ अभिनेत्री आशा पारेख कहती हैं,' सीरियलों में महिलाओं पर जो अत्याचार दिखाया जाता है मुझे वो पसंद नहीं है। ऐसे कार्यक्रम बिलकुल नहीं बनाए जाने चाहिए।'
गौर करें तो धारावाहिकों में महिलाओं की छवि को अधिकांशतः ऐसे अंदाज में पेश करने की परंपरा शुरू की गयी है जो नारी सशक्तीकरण की भावना के विरुद्ध है। इन धारावाहिकों में या तो स्त्रियाँ चालाक और चालबाज हैं या फिर कमजोर और कुंठित। सकारात्मक रूप से चौकस और चतुर ना तो वे स्वयं हैं ना ही वे देखने वाली स्त्रियों को ऐसा कोई संदेश देती दिखाई पड़ती हैं। स्त्री पात्रों की लाचारी, बेबसी, मजबूरी, निरीहता और कमजोरी के लिए दर्शको की सहानुभूति बटोरकर अत्यधिक टी आर पी बटोरने के उद्देश्य से इन धारावाहिकों का निर्माण हो रहा है। अभिनेत्री शर्मिला टैगोर कहती हैं,'महिलाओं के बारे में छोटा पर्दा अभी भी बहुत पुरातनपंथी है और अभी भी उन्हें सिर्फ रसोई तक ही सीमित दिखाया जाता है। टीवी शो अभी भी बेटे की चाहत और रसोई के इर्दगिर्द घूमते रहते हैं। कोई महिला काम नहीं करती। टीवी पर कामकाजी महिलाएं पूरी तरह अनुपस्थित हैं। वर्तमान में हर महिला नौकरी करती है और अपना परिवार भी संभालती है। आज के युग में महिलाओं के किरदार को ठीक से पेश किया जाना चाहिए।'' गौर करें तो दूरदर्शन के लोकप्रिय महिला प्रधान धारावाहिक 'रजनी' और 'उड़ान' मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञानवर्धक भी थे। रजनी' और 'उड़ान' जैसे धारावाहिक अपने मुख्य चारित्रों के माध्यम से एक ऐसी स्त्री का प्रतिरूप गढ़ते हैं जो आधुनिक दिखती है, संघर्षशील और जुझारू है। साथ ही, भारतीयता के आदर्श को बिना चोट पहुँचाए एक बेहतर समाज,परिवार और राष्ट्र के निर्माण में तत्पर दिखाई देती है। तथाकथित महिला प्रधान भारतीय टेलीविज़न के मौजूदा दौर में ऐसे धारावाहिकों की कमी खलती है। वरिष्ठ अभिनेत्री आशा पारेख कहती हैं,' सीरियलों में महिलाओं पर जो अत्याचार दिखाया जाता है मुझे वो पसंद नहीं है। ऐसे कार्यक्रम बिलकुल नहीं बनाए जाने चाहिए।'
नायिकाओं के इर्द-गिर्द
हालांकि, मौजूदा दौर में छोटे पर्दे की अधिकांश नायिकाएं बेबस और लाचार हैं,पर वे सर्वेसर्वा भी हैं। उन्हीं के इर्द-गिर्द धारावाहिक की कहानी बुनी जाती है। लगभग हर धारावहिक की केन्द्रीय पात्र महिला ही होती है। फ़िल्मी दुनिया से अलग धारावाहिकों की दुनिया में पहले नायिका की भूमिका तय की जाती है,फिर नायक को नायिका की सहयोगी भूमिका की बात होती है। छोटी,मगर बड़े दायरे वाली मनोरंजन की इस दुनिया में नायक का चरित्र सिर्फ नायिका के चरित्र को अधिक प्रभावी ढंग से दर्शकों के सामने रखने के लिए गढ़ा जाता है।'महादेव' के मोहित रैना मानते हैं कि धारावाहिकों की दुनिया महिला प्रधान है। वे कहते हैं,'महिला प्रधान होने के कारण टेलीविज़न पर पुरुष कलाकारों को मुख्य भूमिका निभाने के बेहद कम मौके मिलते हैं।' अभनेता मनीष गोएल भी इस तथ्य से इत्तेफाक रखते हैं। वह कहते हैं,'इसमें कोई दो राय नहीं है कि इंडियन टीवी पर 90 प्रतिशत धारावाहिक महिला प्रधान हैं। इसकी वजह टेलीविज़न की महिला दर्शकों की बड़ी संख्या है।' उल्लेखनीय है कि मौजूदा दौर में टी आर पी चार्ट में शीर्ष स्थान पाने वाले धारावाहिकों में नायिका संध्या के सपने के साकार होने के सफ़र पर आधारित 'दीया और बाती हम',आनंदी के जीवन के विविध रंगों को दर्शाता 'बालिका वधू',भोली-भाली गोपी की कहानी 'साथिया',जोया के प्रेम के मर्म को समझाता 'क़ुबूल है',मुगलों के आशियाने में जोधा के अस्तित्व की बुनियाद को मजबूत करता 'जोधा अकबर' ,फ़िल्मी दुनिया में स्वयं को ढूंढ रही मधु के दर्द को बयां करता 'मधुबाला',रचना और गुंजन के सुहाने सपनों की कहानी 'सपने सुहाने लड़कपन के' जैसे नायिका प्रधान धारावाहिक शामिल हैं।
हालांकि, मौजूदा दौर में छोटे पर्दे की अधिकांश नायिकाएं बेबस और लाचार हैं,पर वे सर्वेसर्वा भी हैं। उन्हीं के इर्द-गिर्द धारावाहिक की कहानी बुनी जाती है। लगभग हर धारावहिक की केन्द्रीय पात्र महिला ही होती है। फ़िल्मी दुनिया से अलग धारावाहिकों की दुनिया में पहले नायिका की भूमिका तय की जाती है,फिर नायक को नायिका की सहयोगी भूमिका की बात होती है। छोटी,मगर बड़े दायरे वाली मनोरंजन की इस दुनिया में नायक का चरित्र सिर्फ नायिका के चरित्र को अधिक प्रभावी ढंग से दर्शकों के सामने रखने के लिए गढ़ा जाता है।'महादेव' के मोहित रैना मानते हैं कि धारावाहिकों की दुनिया महिला प्रधान है। वे कहते हैं,'महिला प्रधान होने के कारण टेलीविज़न पर पुरुष कलाकारों को मुख्य भूमिका निभाने के बेहद कम मौके मिलते हैं।' अभनेता मनीष गोएल भी इस तथ्य से इत्तेफाक रखते हैं। वह कहते हैं,'इसमें कोई दो राय नहीं है कि इंडियन टीवी पर 90 प्रतिशत धारावाहिक महिला प्रधान हैं। इसकी वजह टेलीविज़न की महिला दर्शकों की बड़ी संख्या है।' उल्लेखनीय है कि मौजूदा दौर में टी आर पी चार्ट में शीर्ष स्थान पाने वाले धारावाहिकों में नायिका संध्या के सपने के साकार होने के सफ़र पर आधारित 'दीया और बाती हम',आनंदी के जीवन के विविध रंगों को दर्शाता 'बालिका वधू',भोली-भाली गोपी की कहानी 'साथिया',जोया के प्रेम के मर्म को समझाता 'क़ुबूल है',मुगलों के आशियाने में जोधा के अस्तित्व की बुनियाद को मजबूत करता 'जोधा अकबर' ,फ़िल्मी दुनिया में स्वयं को ढूंढ रही मधु के दर्द को बयां करता 'मधुबाला',रचना और गुंजन के सुहाने सपनों की कहानी 'सपने सुहाने लड़कपन के' जैसे नायिका प्रधान धारावाहिक शामिल हैं।
सुनहरे मौके
जितने मनोरंजन चैनल,उतने धारावाहिक ...जितने धारावाहिक,उतने केन्द्रीय महिला पात्र..जितने केन्द्रीय महिला पात्र,उतनी नायिकाएं... जितनी नायिकाएं,उतनी अभिनेत्रियां...ज्ञात है कि छोटा पर्दा महिला कलाकारों के लिए रोजगार का बड़ा और व्यापक माध्यम बनकर उभरा है। महिला प्रधान धारावाहिकों ने उन महिला कलाकारों को अपनी प्रतिभा के प्रदर्शन के मौके दिए जिनके लिए एक अदद फिल्म में अभिनय का अवसर ढूंढना मुश्किल था। आज वे ही अभिनेत्रियां धारावाहिकों से जुड़कर उस स्टेटस को एन्जॉय कर रही हैं जिसे फिल्मों के सुपरस्टार करते हैं। ये अभिनेत्रियां बड़े गर्व से खुद को टेलीविज़न की दुनिया की सुपरस्टार बताती हैं। पुरुष सह-कलाकारों के समक्ष गर्व से खड़ी होकर अपनी बेपनाह लोकप्रियता का दंभ भरती हैं। साक्षी तंवर छोटे पर्दे की ऐसी ही स्टार अभिनेत्री हैं जिनकी लोकप्रियता किसी फिल्म स्टार से कम नहीं है। यह साक्षी के प्रभाव और लोकप्रियता का ही परिणाम है कि एकता कपूर ने 'बड़े अच्छे लगते है' के लिए साक्षी की हां का इंतज़ार कई महीनों तक किया। एकता कपूर ने जब इस धारावाहिक के लिए साक्षी तंवर के सामने प्रस्ताव रखा था, तब उन्होंने इस धारावाहिक में काम करने से साफ इंकार कर दिया था। तब एकता ने साक्षी से कहा था कि यह धारावाहिक तभी बनना शुरू होगा जब तुम इसके किरदार प्रिया के लिए हां कर दोगी। छह महीने तक एकता कपूर ने साक्षी की हां का इंतजार किया। इसके बाद एक बार फिर एकता ने साक्षी को अपने इस धारावाहिक का प्रस्ताव दिया जिसे साक्षी ने स्वीकार कर लिया। साक्षी मौजूदा दौर में छोटे पर्दे पर सबसे ज्यादा पारिश्रमिक पाने वाली अदाकारा हैं। साक्षी के बाद श्वेता तिवारी,अंकिता लोखंडे,रश्मि देसाई,टीना दत्ता और हिना खान जैसे लोकप्रिय चेहरे अच्छे पारिश्रमिक का लाभ उठाते हैं।
जितने मनोरंजन चैनल,उतने धारावाहिक ...जितने धारावाहिक,उतने केन्द्रीय महिला पात्र..जितने केन्द्रीय महिला पात्र,उतनी नायिकाएं... जितनी नायिकाएं,उतनी अभिनेत्रियां...ज्ञात है कि छोटा पर्दा महिला कलाकारों के लिए रोजगार का बड़ा और व्यापक माध्यम बनकर उभरा है। महिला प्रधान धारावाहिकों ने उन महिला कलाकारों को अपनी प्रतिभा के प्रदर्शन के मौके दिए जिनके लिए एक अदद फिल्म में अभिनय का अवसर ढूंढना मुश्किल था। आज वे ही अभिनेत्रियां धारावाहिकों से जुड़कर उस स्टेटस को एन्जॉय कर रही हैं जिसे फिल्मों के सुपरस्टार करते हैं। ये अभिनेत्रियां बड़े गर्व से खुद को टेलीविज़न की दुनिया की सुपरस्टार बताती हैं। पुरुष सह-कलाकारों के समक्ष गर्व से खड़ी होकर अपनी बेपनाह लोकप्रियता का दंभ भरती हैं। साक्षी तंवर छोटे पर्दे की ऐसी ही स्टार अभिनेत्री हैं जिनकी लोकप्रियता किसी फिल्म स्टार से कम नहीं है। यह साक्षी के प्रभाव और लोकप्रियता का ही परिणाम है कि एकता कपूर ने 'बड़े अच्छे लगते है' के लिए साक्षी की हां का इंतज़ार कई महीनों तक किया। एकता कपूर ने जब इस धारावाहिक के लिए साक्षी तंवर के सामने प्रस्ताव रखा था, तब उन्होंने इस धारावाहिक में काम करने से साफ इंकार कर दिया था। तब एकता ने साक्षी से कहा था कि यह धारावाहिक तभी बनना शुरू होगा जब तुम इसके किरदार प्रिया के लिए हां कर दोगी। छह महीने तक एकता कपूर ने साक्षी की हां का इंतजार किया। इसके बाद एक बार फिर एकता ने साक्षी को अपने इस धारावाहिक का प्रस्ताव दिया जिसे साक्षी ने स्वीकार कर लिया। साक्षी मौजूदा दौर में छोटे पर्दे पर सबसे ज्यादा पारिश्रमिक पाने वाली अदाकारा हैं। साक्षी के बाद श्वेता तिवारी,अंकिता लोखंडे,रश्मि देसाई,टीना दत्ता और हिना खान जैसे लोकप्रिय चेहरे अच्छे पारिश्रमिक का लाभ उठाते हैं।
हालांकि, छोटा पर्दा महिला प्रधान है,पर सही मायने में यह महिलाओं की स्थिति को बेहतर बनाने में योगदान नहीं दे रहा है। धारावाहिकों में महिलाओं को दो रूपों में प्रस्तुत किया जाता है। या तो उन्हें देवियों के रूप में चित्रित किया जाता है, जो असह्य वेदना, घोर आत्याचार को सहन करते हुए भी क्षमा और त्याग की मूर्ति बनी रहती है, या उसे घृणित चुड़ैल के रूप में प्रस्तुत किया जाता है जो दुष्टता और क्रूरता की किसी भी सीमा तक जा सकती है। प्रगतिशील,स्वतंत्र और सशक्त नायिकाओं का नामोनिशां नहीं मिलता। ऐसे में,आवश्यक है कि सिर्फ महिला प्रधान धारावाहिक नहीं निर्मित किये जाएं, बल्कि धारावाहिकों की नायिकाओं के माध्यम से महिलाओं की सशक्त और प्रगतिशील छवि भी पेश की जाए...।
-सौम्या अपराजिता