टूटता नहीं दर्द का सिलसिला ....
-सौम्या अपराजिता
जिया खान की आत्महत्या ने एक बार फिर नयी बहस छेड़ दी है। एक बार फिर सिनेमा की चकाचौंध में डूबे सितारों की खोखली दुनिया विचार-विमर्श का विषय बन गयी है। इस चमकीली दुनिया में ग्लैमर है,शोहरत है,रुतबा है,पैसा है ....लेकिन जीवनी शक्ति को संचारित करने वाले भाव प्यार,स्नेह,करुणा और विश्वास नहीं है। यही वजह है कि सफलता की सीढ़ी चढ़ने के बाद अचानक गिरने से जोर का झटका लगता है। ..और फिर अपनों के प्यार और स्नेह के अभाव में दर्द का ऐसा सिलसिला शुरू होता है जो टूटने का नाम नहीं लेता है। जिया के साथ ऐसा ही हुआ। जिया से जब आखिरी बार बात हुई थी तब जिया ने अपनी स्थिति को कुछ यूं बयां किया था,'मेरे जीवन की एकमात्र गाइड लाइन है। अपनी आँखें बंद करती हूं और सोचती हूं कि जो कर रही हूं सही है या नहीं ? मन की सुनती हूं।'
फ़िल्मी दुनिया में प्रवेश के बाद प्रतिस्पर्धा की भावना कलाकारों के कला पक्ष पर हावी हो जाती है। ...और फिर वे कलाकार नहीं बल्कि किसी व्यवसायी की तरह बाज़ार में अपने ब्रांड की उपयोगिता और लोकप्रियता का परचम लहराने की महत्वाकांक्षा के मकडजाल में फंसते जाते हैं। ऐसा विशेषकर अभिनेत्रियों के साथ होता है। पुरुष प्रधान हिंदी फिल्मी दुनिया में अभिनेत्रियों को हर कदम पर अपनी उपयोगिता साबित करनी होती है। यदि उन्हें किसी अभिनेता,निर्माता या निर्देशक का सहयोग और समर्थन नहीं मिलता तो सफलता की राह उनके लिए और भी मुश्किल हो जाती है। ऐसे में क्षमता,खूबसूरती और ग्लैमर होने के बाद भी यदि कोई अभिनेत्री अपनी पहचान बनाने में नाकामयाब होती है,तो यह उसके लिए किसी बड़े सदमे से कम नहीं होता है। सफलता के बदलते समीकरण के बीच खुद को उपेक्षित महसूस करते हुए वह डिप्रेशन का शिकार हो जाती है। हालाँकि कई अभिनेत्रियाँ ..अपने करीबियों की स्नेहिल छाँव में इस डिप्रेशन के जाल से खुद को मुक्त करने में सफल होती हैं ...लेकिन जो सफल नहीं हो पाती हैं वे जिया की तरह अपनी जीवनी शक्ति खोने लगती हैं। दिया मिर्ज़ा कहती हैं,', मैंने बड़े बैनर, बड़े निर्माता-निर्देशकों और स्टार अभिनेताओं के साथ फिल्में की, पर वे बॉक्स ऑफिस पर विफल रहीं।हम ऐसी इंडस्ट्री से संबंध रखते हैं, जहाँ चढ़ते सूरज को हर कोई सलाम करता है। यहाँ हर एक एक्टर को उसकी सफल फिल्मों से तोला जाता है न कि उसके टैलेंट से।' जिया खान की ही तरह अपने डूबते करियर से चिंतित हैं अभिनेत्री नेहा ओबेरॉय। हालाँकि, नेहा ने खुद को निराशा के गर्त में डूबने से बचा लिया है। वह कहती हैं,' निराश जरा भी नहीं होती, क्योंकि मैं पॉजिटिव सोच वाली लड़की हूं। सच तो यह है कि लाइफ में बहुत कुछ अच्छा और बेहतर होगा, यही सोचकर अपना काम करती हूं।'
कुछ अभिनेत्रियों के लिए सफलता-असफलता का मापदंड अधिक मायने नहीं रखता क्योंकि उनके साथ समृद्ध फ़िल्मी पृष्ठभूमि है। वे यदि असफलता के गर्त में भी चली जाएँ फिर भी उन्हें मौके मिलते रहते हैं इसलिए वे असफलता से होने वाले डिप्रेशन का शिकार नहीं होती हैं। ऐसी ही अभिनेत्री हैं करीना कपूर। करीना कहती हैं,'अपनी फिल्मों की सफलता और असफलता को मैं कभी गंभीरता से नहीं लेती। खुद को सेफ करने के लिए ऐसी बात नहीं कर रही हूं। दरअसल, यह सच है कि मैं बस एक्टिंग को गंभीरता से लेती हूं। जिस तरह स्क्रिप्ट राइटर भगवान नहीं होते, उसी तरह मेरी हर फिल्म ग्रेट नहीं हो सकती। मेरी हर फिल्म दर्शकों को पसंद आएगी, ऐसी उम्मीद भी मैं कभी नहीं करती। इसीलिए असफलता मुझे निराश नहीं करती।' अंधी प्रतिस्पर्धा के दौर में गैर फ़िल्मी पृष्ठभूमि की प्रियंका चोपड़ा जैसी सकरात्मक विचारों वाली अभिनेत्री भी है जो सिर्फ बेहतर काम में यकीन करती हैं। वह कहती हैं,' फिल्मों की सफलता-असफलता मेरे लिए इतना मायने नहीं रखता कि जीना-मरना इसके लिए ही हो। बस एक आर्टिस्ट के रूप में अपनी और से बेहतर करने की कोशिश करती हूं।' प्रीती जिंटा मानती हैं कि प्रतिस्पर्धा की अंधी दौड़ में पीछे रहने के डर से खुद को जीवन के दूसरे सुखों से दूर नहीं करना चाहिए। प्रीति कहती हैं,''जिंदगी में खोना और पाना तो लगा ही रहता है। जब आप ज्यादा खोते हो तो पाने की चाह ज्यादा होती है। जब ज्यादा पाते हो तो आस-पास की चीजें भूल जाते हो और खुद में खोने लगते हो। इस तरह अपनों को खोने लगते हो। मुझे जिंदगी में कोई पीछे नहीं ढकेल सकता। हां, मैं पीछे तब खड़ी रहूंगी जब मेरा मन करेगा। इसलिए पीछे नहीं खड़ी रहूंगी, क्योंकि दुनिया ने मुझे पीछे खड़ा किया है। अगर मेरा मन दौड़ कर सबसे आगे जाने का है तो मैं वह भी कर सकती हूं और मैं कर चुकी हूं।'
चढ़ते सूरज को सलाम करने वाली इस फ़िल्मी दुनिया में जिया जैसी कोमल और संवेदनशील अभिनेत्रियों के दिल में निराशा से उबरते दर्द के सिलसिले को तोडना होगा। उन्हें स्नेह, प्यार और दुलार से समझाना होगा कि फिल्मों से आगे जहाँ और भी हैं। उन्हें यकीन दिलाना होगा कि जो हुआ अच्छा हुआ,जो हो रहा है अच्छा ही होगा,होगा जो अच्छा ही होगा।
-सौम्या अपराजिता
जिया खान की आत्महत्या ने एक बार फिर नयी बहस छेड़ दी है। एक बार फिर सिनेमा की चकाचौंध में डूबे सितारों की खोखली दुनिया विचार-विमर्श का विषय बन गयी है। इस चमकीली दुनिया में ग्लैमर है,शोहरत है,रुतबा है,पैसा है ....लेकिन जीवनी शक्ति को संचारित करने वाले भाव प्यार,स्नेह,करुणा और विश्वास नहीं है। यही वजह है कि सफलता की सीढ़ी चढ़ने के बाद अचानक गिरने से जोर का झटका लगता है। ..और फिर अपनों के प्यार और स्नेह के अभाव में दर्द का ऐसा सिलसिला शुरू होता है जो टूटने का नाम नहीं लेता है। जिया के साथ ऐसा ही हुआ। जिया से जब आखिरी बार बात हुई थी तब जिया ने अपनी स्थिति को कुछ यूं बयां किया था,'मेरे जीवन की एकमात्र गाइड लाइन है। अपनी आँखें बंद करती हूं और सोचती हूं कि जो कर रही हूं सही है या नहीं ? मन की सुनती हूं।'
फ़िल्मी दुनिया में प्रवेश के बाद प्रतिस्पर्धा की भावना कलाकारों के कला पक्ष पर हावी हो जाती है। ...और फिर वे कलाकार नहीं बल्कि किसी व्यवसायी की तरह बाज़ार में अपने ब्रांड की उपयोगिता और लोकप्रियता का परचम लहराने की महत्वाकांक्षा के मकडजाल में फंसते जाते हैं। ऐसा विशेषकर अभिनेत्रियों के साथ होता है। पुरुष प्रधान हिंदी फिल्मी दुनिया में अभिनेत्रियों को हर कदम पर अपनी उपयोगिता साबित करनी होती है। यदि उन्हें किसी अभिनेता,निर्माता या निर्देशक का सहयोग और समर्थन नहीं मिलता तो सफलता की राह उनके लिए और भी मुश्किल हो जाती है। ऐसे में क्षमता,खूबसूरती और ग्लैमर होने के बाद भी यदि कोई अभिनेत्री अपनी पहचान बनाने में नाकामयाब होती है,तो यह उसके लिए किसी बड़े सदमे से कम नहीं होता है। सफलता के बदलते समीकरण के बीच खुद को उपेक्षित महसूस करते हुए वह डिप्रेशन का शिकार हो जाती है। हालाँकि कई अभिनेत्रियाँ ..अपने करीबियों की स्नेहिल छाँव में इस डिप्रेशन के जाल से खुद को मुक्त करने में सफल होती हैं ...लेकिन जो सफल नहीं हो पाती हैं वे जिया की तरह अपनी जीवनी शक्ति खोने लगती हैं। दिया मिर्ज़ा कहती हैं,', मैंने बड़े बैनर, बड़े निर्माता-निर्देशकों और स्टार अभिनेताओं के साथ फिल्में की, पर वे बॉक्स ऑफिस पर विफल रहीं।हम ऐसी इंडस्ट्री से संबंध रखते हैं, जहाँ चढ़ते सूरज को हर कोई सलाम करता है। यहाँ हर एक एक्टर को उसकी सफल फिल्मों से तोला जाता है न कि उसके टैलेंट से।' जिया खान की ही तरह अपने डूबते करियर से चिंतित हैं अभिनेत्री नेहा ओबेरॉय। हालाँकि, नेहा ने खुद को निराशा के गर्त में डूबने से बचा लिया है। वह कहती हैं,' निराश जरा भी नहीं होती, क्योंकि मैं पॉजिटिव सोच वाली लड़की हूं। सच तो यह है कि लाइफ में बहुत कुछ अच्छा और बेहतर होगा, यही सोचकर अपना काम करती हूं।'
कुछ अभिनेत्रियों के लिए सफलता-असफलता का मापदंड अधिक मायने नहीं रखता क्योंकि उनके साथ समृद्ध फ़िल्मी पृष्ठभूमि है। वे यदि असफलता के गर्त में भी चली जाएँ फिर भी उन्हें मौके मिलते रहते हैं इसलिए वे असफलता से होने वाले डिप्रेशन का शिकार नहीं होती हैं। ऐसी ही अभिनेत्री हैं करीना कपूर। करीना कहती हैं,'अपनी फिल्मों की सफलता और असफलता को मैं कभी गंभीरता से नहीं लेती। खुद को सेफ करने के लिए ऐसी बात नहीं कर रही हूं। दरअसल, यह सच है कि मैं बस एक्टिंग को गंभीरता से लेती हूं। जिस तरह स्क्रिप्ट राइटर भगवान नहीं होते, उसी तरह मेरी हर फिल्म ग्रेट नहीं हो सकती। मेरी हर फिल्म दर्शकों को पसंद आएगी, ऐसी उम्मीद भी मैं कभी नहीं करती। इसीलिए असफलता मुझे निराश नहीं करती।' अंधी प्रतिस्पर्धा के दौर में गैर फ़िल्मी पृष्ठभूमि की प्रियंका चोपड़ा जैसी सकरात्मक विचारों वाली अभिनेत्री भी है जो सिर्फ बेहतर काम में यकीन करती हैं। वह कहती हैं,' फिल्मों की सफलता-असफलता मेरे लिए इतना मायने नहीं रखता कि जीना-मरना इसके लिए ही हो। बस एक आर्टिस्ट के रूप में अपनी और से बेहतर करने की कोशिश करती हूं।' प्रीती जिंटा मानती हैं कि प्रतिस्पर्धा की अंधी दौड़ में पीछे रहने के डर से खुद को जीवन के दूसरे सुखों से दूर नहीं करना चाहिए। प्रीति कहती हैं,''जिंदगी में खोना और पाना तो लगा ही रहता है। जब आप ज्यादा खोते हो तो पाने की चाह ज्यादा होती है। जब ज्यादा पाते हो तो आस-पास की चीजें भूल जाते हो और खुद में खोने लगते हो। इस तरह अपनों को खोने लगते हो। मुझे जिंदगी में कोई पीछे नहीं ढकेल सकता। हां, मैं पीछे तब खड़ी रहूंगी जब मेरा मन करेगा। इसलिए पीछे नहीं खड़ी रहूंगी, क्योंकि दुनिया ने मुझे पीछे खड़ा किया है। अगर मेरा मन दौड़ कर सबसे आगे जाने का है तो मैं वह भी कर सकती हूं और मैं कर चुकी हूं।'
चढ़ते सूरज को सलाम करने वाली इस फ़िल्मी दुनिया में जिया जैसी कोमल और संवेदनशील अभिनेत्रियों के दिल में निराशा से उबरते दर्द के सिलसिले को तोडना होगा। उन्हें स्नेह, प्यार और दुलार से समझाना होगा कि फिल्मों से आगे जहाँ और भी हैं। उन्हें यकीन दिलाना होगा कि जो हुआ अच्छा हुआ,जो हो रहा है अच्छा ही होगा,होगा जो अच्छा ही होगा।
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