शालीनता,भारतीयता और सौन्दर्य की प्रतिमूर्ति सुचित्रा सेन को काल के क्रूर हाथों ने उनके प्रशंसकों और परिवार से छीन लिया। सुचित्रा सेन का यूं जाना भारतीय कला जगत की ऐसी क्षति है जिसकी पूर्ति असंभव है।
सुचित्रा सेन ने अपने अभिनय की आंधी से हिंदी और बंगाली दर्शकों के दिलों को कई वर्षों तक झकझोरा। वे भारतीय सिनेमा की चुनिन्दा कालजयी अभिनेत्रियों में शुमार हैं।
सुचित्रा सेन ने अपने अभिनय की आंधी से हिंदी और बंगाली दर्शकों के दिलों को कई वर्षों तक झकझोरा। वे भारतीय सिनेमा की चुनिन्दा कालजयी अभिनेत्रियों में शुमार हैं।
उल्लेखनीय है कि बंगाली फिल्मों की सर्वाधिक सफल और लोकप्रिय अभिनेत्री सुचित्रा सेन पिछले कई वर्षों से एकांतवास में रह रही थीं। लगभग पच्चीस वर्ष तक अभिनय में सक्रिय रहने के बाद 1978 में उन्होंने सिनेमा जगत से सन्यास ले लिया था। पिछले कई वर्षों से रामकृष्ण मिशन की सेवा में सुचित्रा अपने जीवन का उत्तरार्ध कोलकाता में व्यतीत कर रही थीं। परिवार के सदस्यों के अतिरिक्त किसी से मिलना-जुलना उन्हें पसंद नहीं था। पत्रकारों और प्रशंसकों से भी उन्होंने दूरी बनाए रखी। सुचित्रा सेन पहली भारतीय अभिनेत्री थीं जिन्हें किसी अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 1963 में 'मास्को फिल्म फेस्टिवल' में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के पुरस्कार से सम्मानित होकर इतिहास रचने वाली इस सशक्त और सक्षम अभिनेत्री का भारतीय सिनेमा जगत में योगदान अतुलनीय है।
विशेषकर बंगाली फिल्मों को सुचित्रा सेन ने अपनी अभिनय प्रतिभा से नई ऊंचाइयां दी। वे लगातार पच्चीस वर्षों तक बंगाली फिल्मों की सबसे सफल और दुलारी अभिनेत्री बनी रहीं। सहयोगी अभिनेता उत्तम कुमार के साथ 'सात नंबर काइदे,'गृहप्रवेश जैसी कई सफल और यादगार बंगाली फिल्मों में उन्होंने अभिनय किया। बंगाली फिल्मों के साथ-साथ सुचित्रा सेन ने हिंदी फिल्मों को भी अपनी अभिनय-कला से समृद्ध किया। 'बंबई का बाबू,'ममता,'देवदास,'मुसाफिर' और 'आंधी' उनकी यादगार हिंदी फिल्में हैं। गुलजार निर्देशित 'आंधी' में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से प्रेरित राजनेता की सशक्त भूमिका के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
अभिनय प्रतिभा की धनी सुचित्रा अपने धुन की पक्की थीं। उन्हें अपनी शर्तों पर काम करना पसंद था। एक वक्त पर उन्होंने सत्यजीत रे और राज कपूर जैसे दिग्गज निर्देशकों की फिल्मों में अभिनय के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था। सुचित्रा सेन ने वर्ष 2005 का 'दादासाहेब फाल्के पुरस्कार स्वीकारने से भी मना कर दिया था। दिल्ली जाकर राष्ट्रपति के हाथों पुरस्कार स्वीकार करने में असमर्थ होने के कारण उन्होंने ऐसा किया था। सुचित्रा सेन का वास्तविक नाम रोमा दासगुप्ता था। 1947 में कोलकाता के उद्योगपति अदिनाथ सेन से विवाह के बाद उनका प्रचलित नाम सुचित्रा सेन हो गया। सुचित्रा की पुत्री मुनमुन सेन ने भी कई बंगाली और हिंदी फिल्मों में अभिनय किया। मुनमुन सेन के बाद नतिनी रिया सेन और राइमा सेन अपनी नानी सुचित्रा सेन से मिली अभिनय की विरासत को आगे बढ़ा रही हैं। राइमा अपनी नानी की यादें ताजा करते हुए कहती हैं,'वे मुझे और रिया को हमेशा आशीर्वाद देती रहीं। उन्होंने कभी हमें कुछ भी करने से नहीं रोका। मेरी नानी लेजिंड बन चुकी हैं।'
-सौम्या अपराजिता