Thursday, June 6, 2013

छोटे शहर के बड़े सपने ....... .

-सौम्या अपराजिता 

छोटे शहर से छोटे पर्दे का सफ़र तय करने वाली अभिनेत्रियों के जीवन में उनकी लोकप्रियता और उपलब्धियां बहार लेकर आई हैं। छोटे शहर में देखे गए उनके बड़े सपने  पूरे हो रहे हैं। उन्होंने अपनी लोकप्रियता और सफलता से यह साबित कर दिया है कि हुनर और जोश हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है। छोटे शहरों के मूल्यों और संस्कार के साथ टेलेविज़न इंडस्ट्री में दस्तक देने वाली इन अभिनेत्रियों की उपलब्धियां महानगरों में पली-बढ़ी लड़कियों से किसी भी मायने में कम नहीं है।
छोटे शहर की अभिनेत्रियों की उपलब्धियों की बात हो तो,सबसे पहला नाम साक्षी तंवर का आता है। राजस्थान के अलवर में पली-बढ़ी साक्षी साक्षी  मौजूदा दौर में भारतीय टेलीविज़न जगत के सबसे सफल और लोकप्रिय चेहरों में शुमार हैं। पिछले दिनों ही एक सर्वे में  साक्षी को टेलेविज़न की सबसे लोकप्रिय अभिनेत्री घोषित किया गया। पिछले कई वर्षों से छोटे पर्दे पर अपनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज करा रही साक्षी सिर्फ छोटे शहर की लड़कियों की ही नहीं,बल्कि अभिनय की दुनिया में संघर्षरत महानगरों की लड़कियों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत हैं। साक्षी 'जब कहानी घर घर की' में पार्वती की भूमिका चित्रित कर रही थीं,तभी छोटे शहर की एक और ख़ूबसूरत लडकी ने छोटे पर्दे पर अपनी मोहक उपस्थिति दर्ज कराई। बात हो रही है भोपाल की दिव्यंका त्रिपाठी की।' बनूँ मैं तेरी दुल्हन' की केंद्रीय भूमिका में दिव्यंका ने दर्शको को अपनी संवाद अदायगी और खूबसूरती से सम्मोहित कर लिया।  टेलेविज़न जगत का लोकप्रिय चेहरा बनने के बाद भी दिव्यंका खुद को छोटे शहर के मूल्यों और संस्कारों से जुड़ा हुआ पाती हैं। वे कहती हैं ,'हर निर्णय के लिए आज भी मैं अपने माता -पिता पर निर्भर हूं। बड़े शहरों में ऐसा नहीं होता है। बड़े शहर की लड़कियां अपनी फैमिली के साथ ऐसा बांड नहीं शेयर करती हैं। मुझे अपने मूल्यों और संस्कार पर गर्व है जो मुझे लाइफ में गलत निर्णय लेने से बचाते हैं।'
'बालिका वधू' में आनंदी की लोकप्रिय भूमिका निभाने का अवसर जब जमशेदपुर की प्रत्यूषा बनर्जी को मिला तो उन्हें अपनी किस्मत पर भरोसा नहीं हुआ। उनका चुनाव महानगरों की कई लड़कियों के बीच हुआ था। इस सुनहरे अवसर को अमली जामा पहनाने के लिए प्रत्यूषा ने जमशेदपुर से मुंबई का रुख किया। हालांकि,अपने साथ छोटे शहर के मूल्यों की पोटली लाना वो नहीं भूलीं। प्रत्यूषा के कुछ दिनों बाद ही एक और छोटे शहर की लड़की ने दर्शकों का ध्यान अपनी और खींचा। चर्चा हो रही है बनारस की सौम्या सेठ की। धारावाहिक' नव्या' में केंद्रीय भूमिका निभाने के बाद 'ख़ूबसूरत' में आराध्या की भूमिका में सौम्या को दर्शकों ने सराहा। सौम्या दर्शकों का प्यार और दुलार पाकर बेहद उत्साहित हैं। वह कहती हैं,' मैंने कभी नहीं सोचा था की लोग मुझे इतना पसंद करेंगे। मैं इतनी पॉपुलर हो
जाउंगी इसका अंदाज़ा भी नहीं था मुझे। छोटे शहर से होने के कारण यह सब मेरे लिए सपने जैसा ही है।' सौम्या बनारस की गलियों में पली -बढीं हैं तो कृतिका सेंगर का बचपन औद्योगिक शहर  कानपुर में बीता है।' झाँसी की रानी' में रानी लक्ष्मीबाई की भूमिका से लोकप्रिय हुई कृतिका इन दिनों 'पुनर्विवाह' में आरती की  भूमिका में दर्शकों को लुभा रही हैं। जी टी वी के ही अन्य धारावाहिक' पवित्र रिश्ता' में पूर्वी की अपने भूमिका निभा रही आशा नेगी ने बेहद कम समय में अपनी अभिनय प्रतिभा से निर्माता-निर्देशकों का ध्यान आकर्षित किया है। देहरादून से उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद आशा ने मुंबई का रुख किया। छोटे शहर से होने के बाद भी आशा ने बड़े सपने देखने का हौसला दिखाया। परिणामतः वे आज छोटे पर्दे  की तेज़ी से उभरती अभिनेत्रियों में एक हैं। 

पटना की ऐतिहासिक नगरी से मायानगरी मुंबई तक का सफ़र तय करने वाली अभिनेत्रियों में रतन राजपूत का नाम उल्लेखनीय है। पटना में पली बढ़ी रतन राजपूत ने छोटे पर्दे पर अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है।' अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो' में लाली की संवेदनशील भूमिका में  रतन ने छोटे पर्दे  के दर्शकों पर अविस्मरणीय प्रभाव छोड़ा। स्क्रीन पर गरीबी रेखा से निजी  जीवन बसर कर रहे परिवार की बिटिया बनी रतन देखते ही देखते पूरे भारत की बिटिया बन गयीं। रतन की तरह 'हिटलर दीदी' में इंदिरा शर्मा की भूमिका से लोकप्रिय हुई रति पाण्डेय और 'चाँद छुपा बदल में' निवेदिता की भूमिका निभाने वाली नेहा सरगम भी पटना की रहने वाली हैं। दोनों ही अभिनेत्रियों ने बेहद कम वक़्त में दर्शकों पर अपनी अमित छाप छोड़ी है।

 हालांकि,रुढ़िवादी सोच के कारण छोटे शहर के लड़कियों के लिए ग्लैमर की दुनिया में दस्तक देना आसान नहीं होता है।  'छोटी बहु' में राधिका की भूमिका निभा चुकी रुबीना दिलैक के लिए शिमला से टेलेविज़न इंडस्ट्री तक का सफ़र मुश्किल भरा रहा। वे  बताती हैं,'मैंने और मेरी फैमिली ने कभी नहीं सोचा था कि मैं टेलेविज़न इंडस्ट्री में जाउंगी। मैं ठेंठ पहाड़ी हूं। मेरी फैमिली बेहद कंज़र्वेटिव है। हमारे यहाँ एक्टिंग के करिअर को अच्छे नजरिये से नहीं देखा जाता है। शुरुआत में मुझे काफी मुश्किल हुई,पर धीरे-धीरे बात बन गयी।''अफसर बिटिया' की सांवली सलोनी कृष्णा की भूमिका निभाने वाली मिताली नाग मानती हैं कि उन्हें छोटे शहर से होने के कारण संघर्ष करना पड़ा।नागपुर में पली बढ़ी मिताली बताती हैं,'मुझे शुरुआत में मुश्किलों से सामना करना पड़ा क्योंकि मैं यहाँ किसी को पहचानती नहीं थी। मुझे लोग हीन दृष्टि से देखते थे।शायद इसलिए क्योंकि मैं महानगरों की बोल्ड लड़कियों जैसी नहीं हूं। मैंने अपने संस्कार और मूल्य संजोकर रखे हैं।' मिताली की ही तरह 'साथ निभाना साथिया' में गोपी की भूमिका निभा रही देबोलीना भटाचार्य के लिए खुद को मुंबई की आपाधापी के अनुकूल बनाने में मुश्किल हुई। असम के सिबसागर शहर की देबोलीना बताती हैं,'असम के छोटे शहर से आकर मुंबई की लाइफस्टाइल में ढलना मेरे लिए मुश्किल था पर मैंने अब काफी हद तक यहाँ की चमक -दमक में खुद को ढाल लिया है।'

छोटे शहर की इन लड़कियों ने बड़े सपने देखने का हौसला दिखाया है। अपने जज्बे से इन हसीं अभिनेत्रियों ने बता दिया है कि संस्कार और मूल्यों का निर्वहन करते हुए भी उपलब्धि का आसमान छूया जा सकता है। 

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