-सौम्या अपराजिता 

क्षेत्र और भाषा की दीवार तोड़कर दक्षिण भारतीय फिल्मों के कलाकार हिंदी फिल्मों में दस्तक देते रहे हैं। दक्षिण की अभिनेत्रियों की हिंदी फिल्मों में ज्यादा धमक रही है। उन्होंने अपनी खूबसूरती और बेहतरीन अदायगी से दर्शकों को लुभाया है। आज भी दक्षिण भारत की कई अभिनेत्रियाँ हिंदी फिल्मों की आन,बान और शान बनी हुई हैं। जहाँ तक बात अभिनेताओं की है तो दक्षिण के अभिनेता जब-जब हिंदी फिल्मों में आये हैं,उन्हें हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने खुली बाहों से स्वीकारा है। हालाँकि वे हिंदी फिल्मों में अपनी स्थायी पहचान नहीं बना पाए हैं,पर उन्हें हिंदी भाषी दर्शकों का प्यार-दुलार मिलता रहा है। रजनीकांत हों या चिरंजीवी,कमल हासन हों या नागार्जुन .....ये अभिनेता हिंदी फिल्मों के दर्शकों के लिए उतने ही प्रिय हैं जितने अन्य हिंदी भाषी अभिनेता।

रजनीकांत की फिल्मों का इंतज़ार हिंदी फिल्मों के दर्शक बेसब्री से करते हैं। रजनीकांत की पिछली फिल्म 'रोबोट' की सफलता इसका प्रमाण है। हिंदी फिल्मों के दर्शकों के स्नेह के कारण ही रजनीकांत भी अपनी तमिल फिल्मों के हिंदी संस्करण का निर्माण करना नहीं भूलते हैं। कमल हासन की अभिनय प्रतिभा के प्रसंशको की सूची में हिंदी फिल्मों के  दर्शकों के नाम भी  शामिल हैं। आज भी कमल की फ़िल्में 'एक दूजे के लिए','अप्पू राजा' और 'सदमा' को देखने के लिए दर्शक उत्साहित रहते हैं। चिरंजीवी और नागार्जुन ने भी हिंदी फिल्मों में अपनी पहचान बनायी है,पर दक्षिण भारत के ये दोनों सितारे दर्शकों के दिल में गहरी पैंठ बनाने में सफल नहीं हुए हैं। वेंकटेश भी कुछ हिंदी फिल्मों में ही अपनी झलक दिखा पाए हैं। मलयालम फिल्मों के सुपरस्टार मोहनलाल और ममूटी हिंदी फिल्मों में चरित्र अभिनेता के रूप में दिखे। बड़े पैमाने पर उन्हें हिंदी भाषी दर्शकों की स्वीकार्यता नहीं मिली।
लम्बे अन्तराल के बाद एक बार फिर दक्षिण भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के अभिनेताओं का रुझान हिंदी फिल्मों की ओर बढ़ा है। निर्माता-निर्देशक भी दक्षिण भारतीय फिल्मों के अनुशासित और प्रतिभाशाली अभिनेताओं को स्वीकार रहे हैं।पिछले कुछ वर्षों पर नज़र डालें तो दक्षिण भारत में लोकप्रियता का परचम लहरा चुके कई अभिनेताओं ने हिंदी फिल्मों का दामन थामा है। सिद्धार्थ ने 'रंग दे बसंती' से हिंदी फिल्मों में अभिनय के सफ़र की शुरुआत की। पहली ही हिंदी फिल्म में सिद्धार्थ अपनी दमदार अदायगी से दर्शकों के दिलों में बस गए। बतौर मुख्य अभिनेता उन्होंने 'स्ट्राइकर' में भी अपनी  अभिनय प्रतिभा का प्रमाण दिया। उनकी पिछली प्रदर्शित हिंदी फिल्म 'चश्मे बद्दूर' थी जिसे दर्शकों ने पसंद किया। 'दम मारो दम' में तेलुगु फिल्मों के स्टार अभिनेता राना दुगुबट्टी ने पहली बार हिंदी फिल्मों को अपने आकर्षक व्यक्तित्व से परिचित कराया। अमिताभ बच्चन के साथ वे 'डिपार्टमेंट' में भी दिखें। राना हिंदी फिल्मों के दर्शकों के बीच बिपाशा बसु के अच्छे मित्र के रूप में भी लोकप्रिय हैं। रामगोपाल वर्मा की फिल्म 'रक्त्चारित्र' से सूर्य ने हिंदी फिल्मों में अपने करियर की शुरुआत की। तमिल फिल्मों के इस सुपरस्टार को हिंदी फ़िल्मी दर्शकों की सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली। 
दक्षिण भारत का एक और सितारा जब 'रावण' में हिंदी फिल्मों के दर्शकों से रूबरू हुआ तो उसके व्यक्तिव और अभिनय के प्रभाव से दर्शक मोहित हो गए। विक्रम के अभिनय को उनकी आखिरी प्रदर्शित हिंदी फिल्म 'डेविड' में भी समीक्षकों की तारीफ़ मिली। विक्रम के बाद दक्षिण का एक और सितारा हिंदी फिल्मों में चमका। बात हो रही है पृथ्वीराज की। 'अय्या' में रानी मुखेर्जी के नायक बनकर पृथ्वीराज ने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया। हालिया प्रदर्शित 'औरंगजेब' मे भी पृथ्वीराज ने अपनी प्रभावशाली मौजूदगी दर्ज करायी। पृथ्वीराज कहते हैं,'जब भी साउथ से कोई एक्टर हिंदी फिल्मों में आता है उसे वन फिल्म वंडर के रूप में देखने लगा जाता है। उसे स्टीरियो टाइप भूमिकाये सौंप दी जाती है। पहली बार मैंने 'औरंगजेब' में कुछ नया करने की कोशिश की है। साउथ से होने के बाद भी मैंने नार्थ का कैरेक्टर निभाने की कोशिश की है .'

सांवले-सलोने धनुष हिंदी फिल्मों के अपने सफ़र को लेकर बेहद उत्साहित हैं। दक्षिण भारतीय फिल्मों का यह पुरस्कृत और सम्मानित अभिनेता इन दिनों दर्शकों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। वजह है 'राँझना' में इनकी आकर्षक मौजूदगी। 'राँझना' में सोनम कपूर के साथ बतौर नायक हिंदी फिल्मों में अपने सफ़र की शुरुआत कर रहे हैं धनुष। सोनम कहती हैं,'धनुष  अच्छे अभिनेता हैं कि उनके लिए लैंग्वेज कोई बैरिअर नहीं था। उनके लिए लैंग्वेज कोई दीवार नहीं थी।' आनंद एल रॉय निर्देशित 'राँझना' का सबसे बड़ा आकर्षण धनुष को ही माना जा रहा है। उन्हें  हिंदी फिल्मों का भविष्य मना जा रहा है। धनुष के बाद चिरंजीवी के पुत्र रामचरण तेजा हिंदी फिल्मों के दर्शकों की कसौटी पर होंगे। वे अपूर्व लाखिया की फिल्म 'जंजीर' में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। राम की नायिका प्रियंका चोपड़ा हैं। 
पिछले दिनों ही खबर आई कि दक्षिण भारत के सुपरस्टार और स्टाइल आइकॉन  महेश बाबू भी हिंदी फिल्मों की तरफ मुखातिब हो चुके हैं। वे 'गो गोवा गॉन' की निर्देशक जोड़ी राज डीके की नयी फिल्म में अभिनय करते हुए दिखेंगे। इस खबर की पुष्टि करते हुए राज कहते हैं,'हम जल्द ही महेश बाबू के साथ फिल्म की शुरुआत करने जा रहे हैं। यह फिल्म तेलुगु और हिंदी में बनेगी।' कन्नड़ फिल्मों के अभिनेता दिगंत भी हिंदी फिल्मों में दस्तक देने के लिए अपनी कमर कास चुके हैं। वे विक्रम भट्ट की फिल्म '1 9 2 0 : लन्दन' में प्रियंका चोपड़ा की बहन मीरा चोपड़ा के साथ मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। तमिल फिल्मों के जाने-पहचाने अभिनेता शर्वानंद रामगोपाल वर्मा की फिल्म 'सत्या 2' से हिंदी फिल्मों में प्रवेश की तैयारी कर रहे हैं।
गौर करें तो हिंदी फिल्मों में  दक्षिण भारतीय अभिनेताओं की सफलता सीमित रही है। रजनीकांत और कमल हासन को छोड़ दें तो दक्षिण के अन्य अभिनेता हिंदी फिल्मों में स्थायी पहचान बनाने में असफल रहे हैं। इसकी बड़ी वजह हिंदी फ़िल्मी नायकों की विशेष छवि है। अभिनेता निर्देशक प्रभुदेवा कहते हैं,'जिस तरह साउथ के लोग इडली , साम्भर और डोसा पसंद करते हैं उसी तरह नार्थ के लोग दाल-रोटी पसंद करते हैं। मैं साउथ की फ़िल्मो का रीमेक करता हूं,पर उसे हिंदी फिल्मों के दर्शक तक पहुंचाने के लिए हिंदी फिल्मों के हीरो का ही सहारा लेता हूं।' दक्षिण भारत के अभिनेताओं की अस्वीकार्यता की बड़ी वजह अभिनेताओं का सांवला रंग और हिंदी भाषा का ज्ञान नहीं होना भी है। एक हिंदी फिल्म विशेषग्य के अनुसार,' हिंदी फिल्मों के दर्शकों के बीच मशहूर नायकों की बंधी-बंधाई छवि है। उनकी नजर में नायक देखने में गोरे-चिट्टे होने चाहिए। साउथ के एक्टर्स ]लुक से अधिक अभिनय के लिए जाने जाते हैं। यही वजह है कि हिंदी फ़िल्मी दर्शकों के लिए साउथ के एक्टर्स को स्वीकार करने में मुश्किल होती है। वहीं ...साउथ की एक्ट्रेस अपनी खूबसूरती और अपेक्षाकृत गोरे रंग के कारण हिंदी फिल्मों में आसानी से ढल जाती हैं।' 
इन दिनों सबकी निगाहें धनुष और रामचरण तेजा पर टिकी हुई हैं। 'राँझना' में धनुष और 'जंजीर' में रामचरण की स्वीकार्यता पर निर्भर है दक्षिण भारतीय फिल्मों के सितारों का हिंदी फिल्मों में सुनहरा भविष्य। यदि सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कर चुके धनुष और चिरंजीवी के सुपुत्र रामचरण तेजा की सफलता हिंदी फिल्मों और दक्षिण भारतीय फिल्मों के बीच की दूरियां पाट सकती है। अभिनेत्रियों और फिल्मों के कांसेप्ट के साथ-साथ दक्षिण के इन अभिनेताओं का जादू यदि हिंदी फ़िल्मी दर्शकों के सर चढ़कर बोलता है तो भारतीय सिनेमा का दृष्टिकोण सही मायने में सार्थक हो पायेगा जब अभिनय कला सर्वोपरि होगी न कि भाषा और क्षेत्र।