Wednesday, April 15, 2009

आगे निकल आए हम , वे पीछे रह गई......



-सौम्या अपराजिता


एक वर्ष पहले फिल्म सांवरिया से सोनम कपूर और रणवीर कपूर ने साथ-साथ हिंदी फिल्मों में कदम रखा। फिल्म की बॉक्स ऑफिस असफलता के प्रभाव से दोनों कलाकार अछूते रहे, लेकिन सफलता की कसौटी पर आज दोनों की स्थिति अलग-अलग है। रणवीर जहां बचना ऐ हसीनों के बाद हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की हॉट प्रॉपर्टी बन कर उभरे, वहीं दिल्ली 6 की असफलता के बाद सोनम के सुनहरे भविष्य को लेकर कई तरह की आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं। यह सच है कि एक साथ रुपहले पर्दे पर दस्तक दे रहे चेहरों को समान सफलता नहीं मिलती है, लेकिन कभी-कभी ऐसा भी देखा गया है कि नायक-नायिका की नई-नवेली जोड़ी में से एक लोकप्रियता की ऊंचाइयां छूता है, तो दूसरा फिल्मी दुनिया में अपनी पहचान बनाने में विफल हो जाता है। पहली बार रुपहले पर्दे पर साथ-साथ प्यार भरे गीत गाने वाले नायक-नायिका वक्त गुजरने के साथ स्वयं को सफलता-असफलता की कसौटी पर परखने लगते हैं और सफल नायक या नायिका अपने भाग्य पर इतराते हैं। ऐसे में जो पिछड़ गए, वे हाथ मलते रह जाते हैं। नजर डालते हैं ऐसे नायक-नायिकाओं की जोड़ी पर, जिन्होंने अपना फिल्मी सफर तो साथ-साथ शुरू किया, लेकिन दोनों में से एक अपनी मंजिल के करीब पहुंच पाए।
वे पीछे रह गई..
मैंने प्यार किया से अपनी फिल्मी पारी आरंभ करने वाली भाग्यश्री के भाग्य ने उनका साथ तो नहीं दिया, लेकिन सलमान खान, जो छोटी भूमिका में बीबी हो तो ऐसी में आ चुके थे, के भाग्य का सितारा जरूर चमकने लगा। देखते-ही-देखते वे हिंदी फिल्मों के सबसे लोकप्रिय अभिनेताओं में शुमार हो गए। आज भी उनका जादू बरकरार है। हालांकि दूसरी ओर भाग्यश्री कभी छोटे पर्दे के किसी रिअॅलिटी शो में थिरकती हुई दिखती हैं, तो कभी फिल्मों में भाभी या बहन की भूमिका में नजर आती हैं। सलमान खान के आसपास ही अजय देवगन भी नई-नवेली नायिका मधु के साथ फूल और कांटे में अपनी रफ-टफ छवि के साथ दर्शकों से रूबरू हुए। पहली ही फिल्म में अजय देवगन का एक्शन-अंदाज दर्शकों को खूब भाया। उनमें भविष्य के एक्शन सितारे की झलक देखी गई, लेकिन दूसरी ओर वैजयंतीमाला जैसी दिखने वाली मधु अपने आकर्षण से दर्शकों को कुछ खास प्रभावित नहीं कर सकीं। उनके फिल्मी करियर की नैया डूब गई। अजय देवगन की सक्रियता आज भी हिंदी फिल्मों में बरकरार है। फिल्मों में अपने लंबे अनुभव को वे रचनात्मक मोड़ दे चुके हैं। अब वे अभिनेता और निर्माता होने के साथ-साथ निर्देशक भी बन चुके हैं। अजय देवगन के फिल्मों में प्रवेश के लगभग एक दशक बाद रितिक रोशन और अमीषा पटेल ने साथ-साथ अपना फिल्मी सफर प्रारंभ किया। कहो ना प्यार है में यदि रितिक ने अपने अभिनय और व्यक्तित्व से दर्शकों को प्रभावित किया, तो अमीषा की खूबसूरती का जादू भी दर्शकों के सिर चढ़कर बोला। ऐसा माना गया कि रितिक का साथ अमीषा के लिए हिंदी फिल्मों में अपनी जमीन तलाशने में सहायक होगा। कहो ना प्यार है की सुपर सफलता के बाद ऐसा लग भी रहा था, लेकिन अमीषा के भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया। गदर जैसी बेहद सफल फिल्म झोली में आने के बावजूद उनका फिल्मी करियर हाशिए पर आ गया। वे आज कहां हैं, यह बताने की जरूरत नहीं हैं। फिल्मों के गलत चुनाव के कारण आज अमीषा सहायक अभिनेत्री की भूमिका में सिमट कर रह गई हैं।
आगे निकल आए हम
सोलह वर्ष की उम्र में काजोल ने कमल सदाना के साथ बेखुदी से अपनी फिल्मी पारी की शुरुआत की थी। यह फिल्म काजोल के करियर में मील का पत्थर तो साबित नहीं हुई, लेकिन दर्शकों ने उनकी सादगी को जरूर पसंद किया। विरासत में मिली अभिनय-प्रतिभा को काजोल ने वक्त के साथ निखारा और धीरे-धीरे वे दर्शकों की पहली पसंद बन गई। काजोल ने सफलता के शिखर को छुआ और कमल का फिल्मी करियर रफ्तार नहीं पकड़ पाया। करिश्मा कपूर ने भी अपने पहले साथी-कलाकार हरीश को सफलता की रेस में काफी पीछे छोड़ दिया। प्रेम कैदी में नायक हरीश के साथ करिश्मा पहली बार दर्शकों से रूबरू हुई। प्रेम-कैदी में कपूर खानदान की बाला होने के कारण दर्शक उनके प्रति अधिक आकर्षित हुए और हरीश को उपेक्षा झेलनी पड़ी। हालांकि करिश्मा अपने साधारण रूप-रंग से दर्शकों को शुरुआती दिनों में प्रभावित करने में असफल रहीं, लेकिन वक्त के साथ उन्होंने प्रशंसकों का एक बड़ा वर्ग तैयार कर लिया। कई वर्षो तक वे हिंदी फिल्मों की शीर्ष अभिनेत्रियों में भी शुमार रहीं।
करिश्मा की तरह ही अपने पहले नायक विवेक मुशरान को पीछे छोड़ते हुए नेपाली बाला मनीषा कोइराला ने वर्षो तक बॉक्स ऑफिस पर राज किया। फ‌र्स्ट लव लेटर में विवेक और मनीषा पहली बार पर्दे पर साथ-साथ आए थे, लेकिन इन दोनों के रूप का जादू दर्शकों के सिर चढ़कर बोला फिल्म सौदागर से और विवेक अपनी जमीन तलाशने में असफल रहे। बड़े पर्दे की रानी बनने वाली अभिनेत्री रानी मुखर्जी की जोड़ी बनी थी सलीम खान की फिल्म राजा की आएगी बारात में अमजद खान के बेटे शादाब खान के साथ। फिल्म ने कमाल नहीं किया, लेकिन दोनों ने आगे कुछ फिल्में दूसरे कलाकारों के साथ कीं। रानी को जहां गुलाम फिल्म से आसमान में उड़ने की आजादी मिल गई, वहीं शादाब का अभिनय सफर ठहर गया और खत्म हो गया। नई पीढ़ी की नायिकाओं में आयशा टाकिया के साथ फिल्मी पारी की शुरुआत करने वाले वत्सल सेठ भी काफी पीछे रह गए। अपनी शानदार अभिनय-क्षमता के कारण आयशा ने दिग्गज निर्माता-निर्देशकों को प्रभावित किया और वे काफी कम वक्त में हिंदी फिल्मों की सफल और प्रतिभाशाली, चुलबुली अभिनेत्रियों की सूची में अपना नाम शुमार कराने में पूरी तरह सफल रहीं।
क्यों जाते हैं हाशिए पर
साथ आने के बावजूद एक आगे बढ़ता है और दूसरा पीछे रह जाता है। समय के साथ यह दूरी बढ़ती जाती है। कामयाबी के कई कारण होते हैं, तो असफलता भी अचानक नहीं आती। अगर गौर करें तो पाएंगे कि मेहनत, लगन और धैर्य से अभिनय और करियर पर ध्यान दे रहे कलाकार आगे बढ़ते हैं, जिनका ध्यान फिल्मों की वजह से मिल रहे दूसरे फायदों पर ही रहता है। नतीजा यह होता है कि वे राह से भटक जाते हैं और हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में एक बार जो फिसला, वह मुश्किल से ही उठ पाता है। फिल्में उनका इंतजार नहीं करतीं। दर्शक कामयाब सितारों के साथ रहते हैं। हिंदी फिल्मों का इतिहास गवाह है कि फिल्मों के आकाश में चमके अनेक सितारे अपनी भूलों से हाशिए पर चले जाते हैं और फिर धीरे-धीरे गुमनाम हो जाते हैं।


1 comment:

  1. लेख बढ़िया है। ऐसी कई जोड़ियाँ फ़िल्मी दुनिया में मौजूद है जिनमें से कोई एक आज सफल है और दूसरा असफल। लेकिन, कई ऐसी भी है जहाँ एक साथ करियर की शुरुआत करनेवाले दोनों ही सफल है या दोनों ही असफल हैं। इस पर भी कुछ लिखा जा सकता है।

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