Saturday, March 14, 2009

हिंदी सिनेमा को सही दिशा मिल गई है-कुणाल खेमू



-सौम्या अपराजिता


महानगर की हसीन वादियों में अपना बचपन बिताने वाले अभिनेता कुणाल खेमू काफी समय से मुंबई में हैं। अंधेरी स्थित अपने ऑफिस में वे छोटे बालों में काफी बदले से नजर आ रहे थे। ऐसा क्यों? पूछने पर उन्होंने बताया, मेरा यह लुक आने वाली फिल्म 99 के लिए है। कलयुग के समय से ही मैं बड़े बालों में दिखता आया हूं। मुझे अपने बड़े बाल बेहद प्यारे गलते थे, लेकिन 99 के लिए जरूरी था कि मेरा लुक कुछ अलग हो, इसीलिए मैंने बाल कटवा दिए। उल्लेखनीय है कि 99 में कुणाल को साथ मिला है सोहा अली खान का। फिल्म के प्रदर्शन से पहले उनकी दो और फिल्में ढूंढते रह जाओगे और जय-वीरू रिलीज होगी।
ढोल के बाद एक के बाद एक फिल्मों के प्रदर्शन के कारण ऐसा लगता है कि रुपहले पर्दे पर कुणाल की फिल्मों का फेस्टिवल शुरू होने वाला है? इस बात पर वे मुस्कुराते हैं, कुछ-कुछ ऐसा ही है, क्योंकि बहुत थोड़े-थोड़े अंतराल में मेरी तीन फिल्में रिलीज होंगी। निर्माताओं को मुझ पर इतना भरोसा है कि वे अपनी फिल्में कम गैप के साथ प्रदर्शित करने को तैयार हैं। यह मेरे लिए बहुत ही खुशी की बात है।
कुणाल की लगातार प्रदर्शित होने वाली फिल्मों का सिलसिला हास्य से भरपूर ढूंढते रह जाओगे से शुरू होगा। क्या खास है इसमें वे बताते हैं, यह मेरी पहली ऐसी फिल्म होगी, जो पूरी तरह कॉमेडी है। असरानी और जॉनी लीवर जैसे कलाकारों की मौजूदगी ने इस फिल्म को मनोरंजक बनाया है। मुझे पूरा भरोसा है कि जब दर्शक सिनेमाघरों में इसे देखने जाएंगे, तो निराश नहीं होंगे। इसमें मैं एक लूजर लड़के की भूमिका निभा रहा हूं, जो झूठ का पुलिंदा खड़ा करके अपनी प्रेमिका को पाता है। ढूंढते रह जाओगे में अपनी सह-कलाकार सोहा अली खान के बारे में कुणाल बताते हैं, वे बेहद डेडिकेटेड ऐक्ट्रेस हैं। उनके साथ मैं काफी सहज था। फिल्म में वे बिल्कुल अलग अंदाज में दिखेंगी। इसमें उन्हें देखने का अनुभव दर्शकों के लिए खास होगा। सोहा और मैं 99 में भी साथ काम कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि बतौर हीरो कुणाल की छवि गंभीर अभिनेता की है। हालांकि उन्होंने प्रियदर्शन निर्देशित ढोल में हल्की-फुल्की भूमिका निभाई थी, लेकिन उनकी छवि में विशेष परिवर्तन नहीं आया। उन्हें हमेशा कलयुग और ट्रैफिक सिग्नल के नायक के रूप में ही देखा गया, लेकिन ढूंढते रह जाओगे में वे अपनी इस छवि को तोड़ने का पूरा प्रयास करते दिखेंगे! वे अपनी सोच पर टिप्पणी करते हैं, मैं सोच-समझकर यह निर्णय नहीं लेता कि कॉमेडी फिल्में करनी है या गंभीर! दरअसल, जिस तरह की फिल्में मेरे पास आती हैं, उन्हीं में से चुनाव करता हूं। ढोल के लिए जिस तरह के रेस्पॉन्स मुझे मिले थे, उनसे बहुत उत्साहित हुआ था। सभी ने मुझ पर भरोसा किया और कहा, तुम हल्की-फुल्की भूमिकाएं भी अच्छी तरह निभाते हो। इस तरह के रेस्पॉन्स न केवल आत्मविश्वास बढ़ाते हैं, बल्कि अलग-अलग तरह की भूमिकाएं निभाने का हौसला भी देते हैं।
ढूंढते रह जाओगे के बाद पुनीत सिरा निर्देशित जय-वीरू में कुणाल दर्शकों को दिखेंगे। इसमें फरदीन खान के साथ उनकी ऑन स्क्रिन दोस्ती दर्शकों को दिखेगी। वे बताते हैं, फिल्म जय-वीरू की शूटिंग के दौरान मैंने फरदीन को करीब से जाना। वे बेहतरीन इनसान हैं और फिल्म में हम दोस्त बने हैं। वे जय की भूमिका निभा रहे हैं और मैं वीरू। दोनों की फनी भूमिका है। कुणाल ने छोटी उम्र में ही अभिनय करना शुरू कर दिया था। कौन भूल सकता है जख्म के छोटे बच्चों को, जिसने अपने संवेदनशील अभिनय से दर्शकों को खूब रुलाया। कुणाल की उम्र वैसे तो काफी कम है, लेकिन उन्होंने अपने सामने नए ढंग के सिनेमा को फलते-फूलते देखा है। वे कहते हैं, मैं खुशनसीब हूं कि हिंदी फिल्मों के इस बदलते दौर का हिस्सा हूं। बीते वर्षो में पूरा माहौल बदल चुका है। ऑफबीट फिल्में अब मल्टीप्लेक्स की फिल्में बन गई हैं। कॉमर्शिअॅल हिंदी फिल्मों के मसाले के साथ-साथ अलग तरह की फिल्में भी अपना बाजार बना रही हैं। फिल्म मेकिंग में युवाओं की भागीदारी अधिक हो गई है। मुझे लगता है कि हिंदी सिनेमा को अब सही दिशा मिल गई है। केवल यही नहीं, फिल्में देखने और बनाने का नजरिया भी बदला है।

1 comment:

  1. हिन्दी चिट्ठाजगत में स्वागत है। आप मिढिया से जुड़ी हैं क्या इसलिये इस चिट्ठे पर केवल फिल्म जगत के बारे में चिट्ठियां हैं।

    लगता है कि आप हिन्दी फीड एग्रगेटर के साथ पंजीकृत नहीं हैं यदि यह सच है तो उनके साथ अपने चिट्ठे को अवश्य पंजीकृत करा लें। बहुत से लोग आपके लेखों का आनन्द ले पायेंगे। हिन्दी फीड एग्रगेटर की सूची यहां है।

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