Wednesday, April 29, 2009

आम नागरिक ला सकता है बदलाव: गुल पनाग


[सौम्या अपराजिता]
दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, भारत। ऐसे में हमारा कर्तव्य है कि मतदान देकर हम लोकतंत्र प्रक्रिया के प्रति अपनी आस्था दिखाएं। केवल घर में बैठकर देश के राजनीतिक हालात पर विचार-विमर्श करने से कुछ नहीं होगा। हर व्यक्ति को सक्रिय होना पड़ेगा। एक आम नागरिक क्या कर सकता है? सब यही कहते हैं। मैं सबसे यही कहूंगी कि एक आम नागरिक ही बदलाव ला सकता है। वह वोट देने के अपने अधिकार का उपयोग कर देश की राजनीति को सही दिशा में ले जा सकता है। वैसे मैं मानती हूँ कि सबसे अधिक जागरूकता जरूरी है। कब तक नक्सलवाद, क्षेत्रवाद और गरीबी जैसी समस्याएं हमारे देश में अपनी मौजूदगी दर्ज कराती रहेंगी? इससे पहले कि देर हो जाए.. जाग जाना चाहिए हर भारतवासी को और वोट देने के अपने अधिकार का उपयोग कर राजनेताओं को देश की समस्याओं के प्रति ठोस कदम उठाने के लिए दबाव डालना चाहिए।
[नेताओं की कोई विचारधारा नहीं]
मैं देश के राजनेताओं से पूछना चाहूंगी कि वे संविधान में अंकित निर्देशों का कितना पालन करते हैं? कितने राजनेता हैं, जो देश को धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी राष्ट्र के रूप में स्थापित करने की दिशा में प्रयास करते हैं? सभी नेता अपने राजनीतिक भविष्य के लिए ही चिंतित रहते हैं। मुझे तो लगता है कि राजनेताओं की कोई विचारधारा ही नहीं होती है। वोट बैंक के आधार पर उनकी विचारधाराएं बदलती रहती हैं। वे वोट बैंक के लिए या तो क्षेत्रीयता या सांप्रदायिकता को बढ़ावा देते हैं। संविधान के आदर्शो का पालन यदि जनप्रतिनिधि नहीं करेंगे, तो कौन करेगा?
[सही जनप्रतिनिधि]
संसद में देश का प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं की औसत उम्र 65 वर्ष है। ये हम सभी जानते हैं कि भारत की अधिकांश आबादी पंद्रह वर्ष से लेकर चालीस वर्ष के बीच की है। ऐसे में क्या संसद के वर्तमान सदस्य सही मायने में जनता का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं? हमें खासकर युवाओं को गंभीरता से इस विषय पर सोचना होगा। जो युवा देश के राजनीतिक स्थिति से आहत हैं, उन्हें आगे आकर अपनी सक्रियता दिखानी होगी।

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