प्रतिदिन प्रतिपल विज्ञान प्रगति कर रहा है। नयी तकनीक दस्तक दे रही है। वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति ने कला माध्यमों को विशेषकर सिनेमा को नए सिरे से संवारा है। फिल्मकारों की कल्पना को नयी उड़ान दी है। सिल्वर स्क्रीन के चरित्रों को थ्री डी अवतार दिए हैं। स्पेशल इफ़ेक्ट की गुणात्मकता से सिनेमा को समृद्ध बनाया है। स्पेशल इफ़ेक्ट से लबरेज बेहतरीन सिनेमाई अनुभव के लिए अब भारतीय दर्शक हिंदी फिल्मों की तरफ मुखातिब हो रहे हैं। बदलते वक़्त और तकनीकी समृद्धि के साथ अब हिंदी फिल्मों में भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर के स्पेशल और विजुअल इफ़ेक्ट दर्शनीय हैं।
स्वदेशी तकनीक
स्पेशल इफेक्ट का बुद्धिमत्ता पूर्वक व खूबसूरती से प्रयोग न सिर्फ फिल्मों को संवार सकता है , बल्कि फिल्म के कथानक को हकीकत के और करीब ले जा सकता है। देर से ही सही , अब हिंदी फिल्मों में भी अच्छे व प्रभावशाली स्पेशल इफ़ेक्ट का प्रयोग होने लगा है। अच्छी बात है कि पिछले कुछ अर्से से इन इफेक्ट को बाहर से आयात करने के बजाय भारत में ही विकसित किया जा रहा है। विदेशी तकनीशियनों की सहायता से 'रा.वन' के कई शानदार और जानदार स्पेशल इफेक्ट भारत में तैयार किये गए थे। जल्द प्रदर्शित हो रही 'कृष 3' के जबरदस्त विजुअल और स्पेशल इफेक्ट्स की नींव पूरी तरह भारतीय भूमि में ही तैयार की गयी है। रितिक रोशन बताते हैं,'हमने ' कृष 3' के निर्माण में अमेरिका या हॉलीवुड से कोई मदद नहीं ली। सब कुछ पूरी तरह से भारतीय है। वीएफएक्स और स्पेशल इफेक्ट्स भी भारत में ही किए। यह हम सभी के लिए गर्व की बात है।' इससे पहले भी कई हिंदी फिल्मों को भारतीय तकनीशियनों ने स्पेशल इफेक्ट से सजाया है। इन फिल्मों में 'गायब','जजंतरम ममंतरम' और 'टार्जन द वंडर कार' उल्लेखनीय हैं।
स्पेशल इफेक्ट का बुद्धिमत्ता पूर्वक व खूबसूरती से प्रयोग न सिर्फ फिल्मों को संवार सकता है , बल्कि फिल्म के कथानक को हकीकत के और करीब ले जा सकता है। देर से ही सही , अब हिंदी फिल्मों में भी अच्छे व प्रभावशाली स्पेशल इफ़ेक्ट का प्रयोग होने लगा है। अच्छी बात है कि पिछले कुछ अर्से से इन इफेक्ट को बाहर से आयात करने के बजाय भारत में ही विकसित किया जा रहा है। विदेशी तकनीशियनों की सहायता से 'रा.वन' के कई शानदार और जानदार स्पेशल इफेक्ट भारत में तैयार किये गए थे। जल्द प्रदर्शित हो रही 'कृष 3' के जबरदस्त विजुअल और स्पेशल इफेक्ट्स की नींव पूरी तरह भारतीय भूमि में ही तैयार की गयी है। रितिक रोशन बताते हैं,'हमने ' कृष 3' के निर्माण में अमेरिका या हॉलीवुड से कोई मदद नहीं ली। सब कुछ पूरी तरह से भारतीय है। वीएफएक्स और स्पेशल इफेक्ट्स भी भारत में ही किए। यह हम सभी के लिए गर्व की बात है।' इससे पहले भी कई हिंदी फिल्मों को भारतीय तकनीशियनों ने स्पेशल इफेक्ट से सजाया है। इन फिल्मों में 'गायब','जजंतरम ममंतरम' और 'टार्जन द वंडर कार' उल्लेखनीय हैं।
संभव हुआ असंभव
दीगर बात है कि सुपर हीरो पर आधारित फिल्मों की मेकिंग में सुपर तकनीक की दरकार होती है। ऐसी फिल्मों में असंभव को संभव कर दिखाने की चुनौती होती है। इस चुनौती के लिए फ़िल्मकार तैयार भी रहते हैं क्योंकि सुपर हीरो पर आधारित फिल्में दर्शकों को लुभाती रही हैं। ऐसा काम जिसकी कल्पना आम आदमी कर भी नहीं सकता, वह सब सुपर हीरो मिनटों में कर देता है। पर्दे पर अन्याय करने वालों को जब सुपर हीरो अपनी विशेष शक्तियों से हराता है तो दर्शकों को अपनी जीत नजर आती है। यही वजह है कि किसी ना किसी रूप में सुपर हीरो की मौजूदगी भारतीय सिनेमा में हमेशा रही है। हिंदी फिल्मों में सुपर हीरो की कामयाबी का श्रेय रितिक रोशन को जाता है। 'कोई मिल गया' में रितिक के सुपर तकनीक से सजी सुपर हीरो फिल्म की श्रृंखला की शुरुआत हुई,जो तकनीकी प्रगति के साथ और भी उन्नत होती गयी। 'कृष' के बाद 'कृष 3' में सुपर हीरो बने रितिक रोशन विजुअल इफेक्ट्स के माध्यम से एक बार फिर असंभव को संभव करते हुए दिखेंगे। 'कृष3' का सबसे बड़ा आकर्षण इसका उन्नत विजुअल इफेक्ट माना जा रहा है। यही वजह है कि 'कृष3' की पहली झलकियों में कलाकारों से अधिक फिल्म के तकनीकी पहलू को अधिक प्राथमिकता दी गयी।
दीगर बात है कि सुपर हीरो पर आधारित फिल्मों की मेकिंग में सुपर तकनीक की दरकार होती है। ऐसी फिल्मों में असंभव को संभव कर दिखाने की चुनौती होती है। इस चुनौती के लिए फ़िल्मकार तैयार भी रहते हैं क्योंकि सुपर हीरो पर आधारित फिल्में दर्शकों को लुभाती रही हैं। ऐसा काम जिसकी कल्पना आम आदमी कर भी नहीं सकता, वह सब सुपर हीरो मिनटों में कर देता है। पर्दे पर अन्याय करने वालों को जब सुपर हीरो अपनी विशेष शक्तियों से हराता है तो दर्शकों को अपनी जीत नजर आती है। यही वजह है कि किसी ना किसी रूप में सुपर हीरो की मौजूदगी भारतीय सिनेमा में हमेशा रही है। हिंदी फिल्मों में सुपर हीरो की कामयाबी का श्रेय रितिक रोशन को जाता है। 'कोई मिल गया' में रितिक के सुपर तकनीक से सजी सुपर हीरो फिल्म की श्रृंखला की शुरुआत हुई,जो तकनीकी प्रगति के साथ और भी उन्नत होती गयी। 'कृष' के बाद 'कृष 3' में सुपर हीरो बने रितिक रोशन विजुअल इफेक्ट्स के माध्यम से एक बार फिर असंभव को संभव करते हुए दिखेंगे। 'कृष3' का सबसे बड़ा आकर्षण इसका उन्नत विजुअल इफेक्ट माना जा रहा है। यही वजह है कि 'कृष3' की पहली झलकियों में कलाकारों से अधिक फिल्म के तकनीकी पहलू को अधिक प्राथमिकता दी गयी।
3 डी दुनिया
'3 डी' तकनीक की लोकप्रियता का आलम यह है कि लगभग हर निर्माता-निर्देशक अपनी फिल्मों को इस आधुनिक और लोकप्रिय तकनीक में ढालना चाहता है। विशेषकर डरावनी फिल्मों के लिए इस तकनीक का भरपूर प्रयोग किया जा रहा है। विक्रम भट्ट द्वारा निर्मित 'हॉन्टेड' और हाल में प्रदर्शित हुई 'हॉरर स्टोरी 3 डी' इसके उदाहरण हैं। विक्रम कहते हैं, 'मुझे 3डी तकनीक ने अपनी ओर खींच लिया है। यह सबसे हटकर है।' भारत की पहली अंडरवाटर 3डी फिल्म 'वार्निंग' ने भी पिछले दिनों सिनेमाघरों में दस्तक दी। 3 डी तकनीक के प्रति बढ़ते लगाव की वजह है कि सलमान खान और सुभाष घई जैसे नाम भी इस तकनीक से जुड़ने के लिए आतुर हैं। सुभाष घई कहते हैं,' वर्तमान में 3-डी फिल्मों का दौर है और मैं नई तकनीक का इस्तेमाल करना पसंद करता हूं। मैं मनोरंजक फिल्में बनाने के लिए जाना जाता हूँ और उसी परंपरा को आगे बढ़ाऊँगा। इतना अवश्य कहूँगा कि मेरी अगली फिल्म 3-डी होगी।' उधर सलमान खान ने भी अपनी नयी फिल्म 'मेंटल' को 3 डी तकनीक से जोड़ने की इच्छा जतायी है।
'3 डी' तकनीक की लोकप्रियता का आलम यह है कि लगभग हर निर्माता-निर्देशक अपनी फिल्मों को इस आधुनिक और लोकप्रिय तकनीक में ढालना चाहता है। विशेषकर डरावनी फिल्मों के लिए इस तकनीक का भरपूर प्रयोग किया जा रहा है। विक्रम भट्ट द्वारा निर्मित 'हॉन्टेड' और हाल में प्रदर्शित हुई 'हॉरर स्टोरी 3 डी' इसके उदाहरण हैं। विक्रम कहते हैं, 'मुझे 3डी तकनीक ने अपनी ओर खींच लिया है। यह सबसे हटकर है।' भारत की पहली अंडरवाटर 3डी फिल्म 'वार्निंग' ने भी पिछले दिनों सिनेमाघरों में दस्तक दी। 3 डी तकनीक के प्रति बढ़ते लगाव की वजह है कि सलमान खान और सुभाष घई जैसे नाम भी इस तकनीक से जुड़ने के लिए आतुर हैं। सुभाष घई कहते हैं,' वर्तमान में 3-डी फिल्मों का दौर है और मैं नई तकनीक का इस्तेमाल करना पसंद करता हूं। मैं मनोरंजक फिल्में बनाने के लिए जाना जाता हूँ और उसी परंपरा को आगे बढ़ाऊँगा। इतना अवश्य कहूँगा कि मेरी अगली फिल्म 3-डी होगी।' उधर सलमान खान ने भी अपनी नयी फिल्म 'मेंटल' को 3 डी तकनीक से जोड़ने की इच्छा जतायी है।
..कि पैसा बोलता है
जब तकनीक समृद्ध होगी तो पूंजी निवेश भी अधिक होगा। अपनी फिल्म में आवश्यक स्पेशल इफ़ेक्ट शामिल करने के लिए निर्माता अधिक मात्रा में पूंजी निवेश करने से नहीं घबराते हैं। फिल्म का बजट चाहे जो हो, उसमें दृश्यों का प्रभाव बढ़ाने के लिए विजुअल इफेक्ट और कंप्यूटर ग्राफिक्स का इस्तेमाल आम बात हो गई है। एक वरिष्ठ तकनीशियन बताते हैं, 'आजकल पोस्ट प्रोडक्शन के दौरान निर्देशक के मनचाहे इफेक्ट देने के लिए कंप्यूटर ग्राफिक्स और तकनीक का काफी इस्तेमाल किया जाता है। वीएफएक्स स्टूडियो इस काम के लिए 5 लाख रुपये से लेकर कुछ करोड़ रुपये तक मांग सकता है।' उल्लेखनीय है कि करीब 150 करोड़ रुपये में बनी 'रोबोट' के कुल बजट का 25 फीसदी हिस्सा वीएफएक्स पर ही खर्च किया गया था। वीएफएक्स ने फिल्म की कहानी लोगों तक आसानी से पहुंचा दी।' गौरतलब है कि 'कृष 3′ के लिए विज़ुअल इफेक्ट का निर्माण शाहरुख़ खान की कंपनी'रेड चिली' ने किया है। जानकारों के अनुसार इस पूरी प्रक्रिया में 26 करोड़ का पूंजी निवेश किया गया है।
जब तकनीक समृद्ध होगी तो पूंजी निवेश भी अधिक होगा। अपनी फिल्म में आवश्यक स्पेशल इफ़ेक्ट शामिल करने के लिए निर्माता अधिक मात्रा में पूंजी निवेश करने से नहीं घबराते हैं। फिल्म का बजट चाहे जो हो, उसमें दृश्यों का प्रभाव बढ़ाने के लिए विजुअल इफेक्ट और कंप्यूटर ग्राफिक्स का इस्तेमाल आम बात हो गई है। एक वरिष्ठ तकनीशियन बताते हैं, 'आजकल पोस्ट प्रोडक्शन के दौरान निर्देशक के मनचाहे इफेक्ट देने के लिए कंप्यूटर ग्राफिक्स और तकनीक का काफी इस्तेमाल किया जाता है। वीएफएक्स स्टूडियो इस काम के लिए 5 लाख रुपये से लेकर कुछ करोड़ रुपये तक मांग सकता है।' उल्लेखनीय है कि करीब 150 करोड़ रुपये में बनी 'रोबोट' के कुल बजट का 25 फीसदी हिस्सा वीएफएक्स पर ही खर्च किया गया था। वीएफएक्स ने फिल्म की कहानी लोगों तक आसानी से पहुंचा दी।' गौरतलब है कि 'कृष 3′ के लिए विज़ुअल इफेक्ट का निर्माण शाहरुख़ खान की कंपनी'रेड चिली' ने किया है। जानकारों के अनुसार इस पूरी प्रक्रिया में 26 करोड़ का पूंजी निवेश किया गया है।
तकनीकी प्रगति ने किया बेरोजगार
डिजिटल तकनीक ने सैंकड़ों स्टंट कलाकारों के जीवन को अंधकारमय बना दिया है। फ़िल्मे तकनीकी रूप से जैसे-जैसे उन्नत हो रही हैं, स्पेशल इफेक्ट यानी फ़िल्मों में हैरतअंगेज़ दृश्यों को डिजिटल तकनीक से दर्शाने वाले स्टूडियो की भरमार हो गयी है। इन स्टूडियो ने स्टंट से जुड़े अधिकांश दृश्यों को आधुनिक तकनीक से फिल्माने की परंपरा शुरू कर दी है। जिस कारण स्टंट कलाकारों के पास रोजगार की कमी हो गयी है। मुंबई में अवस्थित एक स्पेशल इफ़ेक्ट की कम्पनी के मालिक का कहना है,'हाथ से किए जाने वाले और तकनीक पर आधारित फिल्म स्टंट अब ख़त्म हो रहे है क्योंकि अब कंप्यूटर पर यह सब बड़ी आसानी से हो जाता है।'
डिजिटल तकनीक ने सैंकड़ों स्टंट कलाकारों के जीवन को अंधकारमय बना दिया है। फ़िल्मे तकनीकी रूप से जैसे-जैसे उन्नत हो रही हैं, स्पेशल इफेक्ट यानी फ़िल्मों में हैरतअंगेज़ दृश्यों को डिजिटल तकनीक से दर्शाने वाले स्टूडियो की भरमार हो गयी है। इन स्टूडियो ने स्टंट से जुड़े अधिकांश दृश्यों को आधुनिक तकनीक से फिल्माने की परंपरा शुरू कर दी है। जिस कारण स्टंट कलाकारों के पास रोजगार की कमी हो गयी है। मुंबई में अवस्थित एक स्पेशल इफ़ेक्ट की कम्पनी के मालिक का कहना है,'हाथ से किए जाने वाले और तकनीक पर आधारित फिल्म स्टंट अब ख़त्म हो रहे है क्योंकि अब कंप्यूटर पर यह सब बड़ी आसानी से हो जाता है।'
बनी रहे कलात्मकता
तकनीक के ताने-बाने में बुना सिनेमा दर्शकों को अद्भूत आनंद देता है। जब दर्शक सिल्वर स्क्रीन पर असंभव को संभव होते देखते हैं,तो उन्हें उस सिनेमाई अनुभव के लिए निवेश की गयी पूंजी के सदुपयोग की संतुष्टि होती है।... पर जब कोई फिल्म कला पक्ष को हाशिए पर रखकर सिर्फ तकनीक के सांचे में ढालकर पेश की जाती है,तो दर्शक निराश होते हैं। वे ठगा-सा महसूस करते हैं। ऐसे में आवश्यक है कि उन्नत तकनीक को सार्थक और मनोरंजक कथानक के इर्द-गिर्द बुना जाए और कला पक्ष की उपेक्षा किए बिना उन्नत तकनीक से सजी फिल्में निर्मित की जाएं तभी हमारा सिनेमा सही मायने में समृद्ध होगा।
तकनीक के ताने-बाने में बुना सिनेमा दर्शकों को अद्भूत आनंद देता है। जब दर्शक सिल्वर स्क्रीन पर असंभव को संभव होते देखते हैं,तो उन्हें उस सिनेमाई अनुभव के लिए निवेश की गयी पूंजी के सदुपयोग की संतुष्टि होती है।... पर जब कोई फिल्म कला पक्ष को हाशिए पर रखकर सिर्फ तकनीक के सांचे में ढालकर पेश की जाती है,तो दर्शक निराश होते हैं। वे ठगा-सा महसूस करते हैं। ऐसे में आवश्यक है कि उन्नत तकनीक को सार्थक और मनोरंजक कथानक के इर्द-गिर्द बुना जाए और कला पक्ष की उपेक्षा किए बिना उन्नत तकनीक से सजी फिल्में निर्मित की जाएं तभी हमारा सिनेमा सही मायने में समृद्ध होगा।
-सौम्या अपराजिता