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Monday, December 30, 2013

जनवरी का जलवा..

एक और वर्ष अपने अंत की राह पर है,तो दूसरी तरफ नया वर्ष दहलीज पर खड़ा है। नयी उम्मीद,नयी सोच,नए संकल्प और नए सपनों के साथ नए वर्ष का पहला महीना दर्शकों के लिए नयी और रोचक फिल्मों से सजी उपहारों की पोटली लेकर आ रहा है। इस पोटली में बड़े सितारों की कुछ फ़िल्में हैं,तो कुछ फिल्मों में नए चेहरों की ताजगी है,तो कुछ में हंसी-ठिठोली है...। आइये जनवरी में खुलने वाली विविध रंगों वाली फिल्मों के उपहारों की इस पोटली को टटोलते हैं।

सलमान की 'जय हो' !
नए वर्ष की सर्वाधिक बहुप्रतीक्षित फिल्म है ' जय हो'। सलमान खान अभिनीत यह फिल्म अपने निर्माण के पूर्व से ही सुर्ख़ियों में रही है। कभी फिल्म की हीरोइन को लेकर,तो कभी शीर्षक को लेकर,तो कभी निर्माण में हो रहे विलम्ब को लेकर 'जय हो' चर्चा में रही। 'मेंटल' से 'जय हो' बनी यह फिल्म इसलिए भी बहुप्रतीक्षित है क्योंकि यह डेढ़ वर्ष के अंतराल पर सलमान खान की प्रदर्शित होने वाली फिल्म है। गौरतलब है कि सलमान खान के अब तक के करियर में दो फिल्मों के प्रदर्शन का अभी तक का सबसे बड़ा अन्तराल है। 'जय हो' के पहले उनकी आखिरी प्रदर्शित फ़िल्म 'एक था टाईगर' थी। 'जय हो' को लेकर सलमान इतने उत्साहित हैं कि उन्होंने फ़िल्म का पोस्टर स्वयं पेंट किया है। पिछले दिनों 'जय हो' का पोस्टर प्रदर्शित किया गया जिसे दर्शकों की अच्छी प्रतिक्रिया मिली।

माधुरी की 'डेढ़ इश्किया'
'जय हो' के अतिरिक्त जनवरी में प्रदर्शित होने वाली जिस फिल्म पर सबसे अधिक उम्मीदें टिकी हुई हैं वह है 'डेढ़ इश्किया'। विशाल भारद्वाज निर्मित और अभिषेक चौबे निर्देशित 'डेढ़ इश्किया' का सबसे बड़ा आकर्षण हैं माधुरी दीक्षित। इस फिल्म से माधुरी बतौर नायिका सिल्वर स्क्रीन पर अपनी वापसी करेंगी। विद्या बालन अभिनीत प्रशंसित और सफल फिल्म 'इश्किया' की सीक्वल 'डेढ़ इश्किया' में बेगम पारा की संजीदा भूमिका निभा रही माधुरी के साथ एक तरफ तो परिपक्व और प्रभावशाली अभिनेता नसीरुद्दीन शाह होंगे,तो दूसरी तरफ अपेक्षाकृत युवा और चंचल अभिनेता अरशद वारसी। इन दोनों ही सह कलाकारों के साथ माधुरी का तालमेल देखना रोचक होगा।
थोड़ा 'कॉमिक' टच
नए वर्ष की पहली प्रदर्शित फिल्म होगी 'मिस्टर जो बी कार्वाल्हो'। अजीबोगरीब शीर्षक वाली इस फिल्म के नायक अरशद वारसी हैं जबकि नायिका सोहा अली खान। समीर तिवारी निर्देशित हास्य रस से भरपूर इस फिल्म में जावेद जाफरी के सात अलग-अलग अवतार मुख्य आकर्षण है। 
एक और हल्की-फुल्की फिल्म 'परांठे वाली गली' भी जनवरी में प्रदर्शित होगी। अभिनेता,निर्माता और व्यवसायी अनुज सक्सेना और नवोदित नेहा अभिनीत यह फिल्म दिल्ली की मशहूर परांठे वाली गली की पृष्ठभूमि पर आधारित है। सचिन गुप्ता निर्मित और निर्देशित 'परांठे वाली गली' रोमांटिक कॉमेडी है। फिल्म की अधिकांश शूटिंग दिल्ली और मेरठ में हुई है।
यामी-अली का साथ
यामी गौतम और अली जफ़र के प्रशंसकों का इंतज़ार जनवरी महीने में ख़त्म होगा जब 'टोटल सियप्पा' सिनेमाघरों में प्रदर्शित होगी। कॉमेडी और ड्रामा विधा की इस फिल्म का शीर्षक पहले 'अमन की आशा' था जिसे बाद में बदल दिया गया। इ निवास निर्देशित और नीरज पांडे निर्मित यह फिल्म यामी गौतम की दूसरी हिंदी फिल्म है। गौरतलब है कि 'विक्की डोनर' के बाद यामी दक्षिण भारतीय फिल्मों में अधिक व्यस्त हो गयी थीं। यामी के साथ अली जफ़र ने 'टोटल सियप्पा' में अभिनय का रंग तो भरा ही है,साथ ही फिल्म के संगीत को भी अपने धुनों से सजाया है।

नए चेहरों के साथ
नए वर्ष के पहले महीने में कई नए चेहरे अपनी किस्मत आजमाने के लिए सिल्वर स्क्रीन पर अवतरित होंगे। इनमें सबसे उल्लेखनीय हैन गायिका मोनाली ठाकुर। मोनाली की पहली फिल्म 'लक्ष्मी' जनवरी में प्रदर्शित हो रही है। नागेश कुकनूर निर्देशित 'लक्ष्मी' में मोनाली केन्द्रीय भूमिका में हैं। कई नए चेहरों से सजी 'यारियां' भी जनवरी में प्रदर्शन के लिए तैयार है। दिव्या खोंसला कुमार निर्देशित 'यारियां' युवा दर्शकों को केंद्र में रखकर बनायी गयी है। इस फिल्म से कई नए चेहरे हिंदी फिल्मों में दस्तक देने के लिए तैयार हैं। युवा सितारों से सजी इस फिल्म में हिमांशु कोहली,सराह सिंह,रकुल प्रीत,देव शर्मा,निकोल फारिया जैसे नवोदित चेहरे पहली बार दर्शकों के सामने होंगे। टी सीरीज निर्मित इस फिल्म के गीत लोकप्रिय होने लगे हैं।
एक और 'शोले'
भारतीय सिनेमा की कालजयी फिल्म ' शोले' एक बार फिर सिनेमाघरों में दर्शको  के सामने होगी। इस बार 'शोले' के लोकप्रिय पात्रों के 3 डी अवतार दर्शक देख पायेंगे। अमिताभ बच्चन,धर्मेन्द्र,संजीव कुमार,अमजद खान,हेमा मालिनी,जया बच्चन अभिनीत यह क्लासिक फिल्म आज भी उतनी ही लोकप्रिय है जितनी कई दशक पहले थी। नयी तकनीक के साथ प्रदर्शित हो रही 'शोले' को लेकर नयी पीढ़ी के दर्शकों में विशेष उत्साह है। वे इस भव्य फिल्म का आनंद सिल्वर स्क्रीन पर लेने के लिए आतुर हैं।
यह तो नए वर्ष के पहले महीने में प्रदर्शित होने वाली फिल्मों की बानगी है। नए वर्ष  में और भी कई बड़ी,रोचक और बेहतरीन फ़िल्में सिनेमाघरों का रुख करने वाली है। उम्मीद तो यही है 'जय हो' और ' डेढ़ इश्किया' की सफलता के साथ नए वर्ष का आगाज सुखद और सकारात्मक हो...।
-सौम्या अपराजिता

Monday, October 21, 2013

फिल्म नयी,गीत पुराने....

पुराने गीतों को नए कलेवर में पेश करने का सिलसिला जारी है। आलोचना-प्रत्यालोचना से बचने के लिए जब भी संगीतकार पुराने सदाबहार गीतों को अपनी फिल्म में नए कलेवर के साथ पेश करना चाहते हैं तो उसे रीमिक्स नहीं,बल्कि ट्रिब्यूट का नाम दे देते हैं। पिछले दिनों प्रदर्शित हुई फिल्म बॉस में 'हर किसी को नहीं मिलता' गीत को नए संयोजन और नए अंदाज में पेश किया गया। कहा गया कि इस गीत से अक्षय कुमार स्वर्गीय फिरोज खान को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहते थे। इस वर्ष ऐसे ही कई और गीत श्रोताओं के कानों में गूंजे जिनके धुन और बोल से वे पूर्व परिचित थे।

वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई दोबारा के गीत 'तैयब अली प्यार का दुश्मन' को सुनते ही श्रोताओं की आँखों के सामने 'अमर अकबर एन्थोनी' में ऋषि कपूर पर फिल्माए गए इसी क़व्वाली गीत की तस्वीरें घूम गयी। दरअसल, इस गीत की रीमेक की इच्छा इमरान खान ने जतायी थी जिसे संगीत निर्देशक प्रीतम ने पूरा किया।' वंस अपॉन अ टाइम इन मुंबई दोबारा' के निर्माता 'तैयब अली ..' से मिलता-जुलता गाना फिल्म के लिए चाहते थे। गहन विचार-विमर्श के बाद इमरान के सुझाव को मद्देनजर रखते हुए  यह तय किया गया कि 'तैयब अली प्यार का दुश्मन'  गाने को ही फिल्म में शामिल किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि निजी जीवन में इमरान ऋषि कपूर के प्रशंसक हैं और  'अमर अकबर ऐंथनी' उनकी पसंदीदा फिल्मों में से एक है। श्रोताओं और दर्शकों की आलोचना से बचने के लिए प्रचारित किया गया कि इस गीत के जरिए इमरान खान अपने प्रिय अभिनेता ऋषि कपूर के प्रति अपना सम्मान जताना चाहते हैं। स्क्रीन पर इस सदाबहार गीत पर ठुमके लगाने की अपनी इच्छा तो इमरान ने पूरी कर ली,पर दर्शक और श्रोता इमरान खान के तथाकथित ऋषि कपूर अंदाज को पचा नहीं पाएं।
साजिद खान की 'हिम्मतवाला' के तो सभी गीत मूल 'हिम्मतवाला' से ज्यों के त्यों ले लिए गए थे। बस वाद्य यंत्रों का संयोजन और और पार्श्व गायक-गायिका नए थे। एक बार लोकप्रियता का परचम छू चुके 'नैनों में सपना' और 'ताकी-ताकी' जैसे गीत दोबारा अपना जादू नहीं चला पाए। हालांकि,यह जरुरी नहीं कि यदि फिल्म रीमेक हो,तो उसका संगीत भी मूल फिल्म के संगीत की कॉपी हो।' हिम्मतवाला' को छोड़ दें तो सभी रीमेक फिल्मों में संगीत नया रहा है। संगीतमय सफल फिल्म 'आशिकी' की रीमेक 'आशिकी 2' के सभी गीत मौलिक थे। 'आशिकी 2' की सफलता में काफी हद तक उसके मौलिक संगीत का योगदान है। हां..कभी-कभी पुरानी फिल्म के फ्लेवर के लिए एक-दो गीतों को रीमेक में नए कलेवर में ढ़ालकर पेश जरुर किया गया है,पर शेष गीत मौलिक ही रहे हैं। फिल्म विशेषज्ञों के अनुसार 'हिम्मतवाला' की असफलता में उसके गीतों ने बड़ी भूमिका निभायी है। यदि गीत नए और मौलिक होते,तो उसका कुछ लाभ फिल्म को जरुर मिलता।

'नौटंकी साला' में दो पुराने और लोकप्रिय गीतों को रीमिक्स अंदाज में पेश किया गया। ये गीत थे ' सो गया ये जहां' और 'धक्-धक् करने लगा।' ये दोनों ही गीत श्रोताओं के एक वर्ग को ही लुभा पाए। अधिकांश श्रोताओं ने इन रीमिक्स गीतों को नकारात्मक प्रतिक्रिया दी। हालांकि,आयुष्मान खुराना अभिनीत इस फिल्म के अन्य मौलिक गीतों ने श्रोताओं के कानों में लम्बे समय तक मधुर रस घोला। संभवतः 'सड़क' और ' बेटा' के इन लोकप्रिय गीतों का जादू आज भी बरकरार है इसलिए ' नौटंकी साला' में उनके नए रूपांतर लुभा नहीं पाए। 'चालबाज' के गीत 'न जाने कहां से आई है' से प्रेरित होकर 'आई मी और मैं' में ' ना जाने कहां से आया है' की रचना की गयी। धुन वही रखी गयी,बोल बदल दिए गए। इस तरह तैयार हो गया दो दशक पूर्व के लोकप्रिय गीत से प्रेरित नए जमाने का एक हिप-हॉप गीत।  नए कलेवर में ढले इस गीत को युवा श्रोताओं ने पसंद किया।
रचनाशीलता के अभाव में पुराने गीतों को रीसायकल करने के इस सिलसिले पर प्रश्न चिह्न लगाए जाते रहे हैं। फ़िल्मी दुनिया से जुडी कई शक्सियतें इस सन्दर्भ में अपना विरोध जाहिर करती रही हैं। अरशद वारसी कहते हैं,'मैं खूबसूरत पुराने गानों के नए फिल्मों में इस्तेमाल करने पर खुश नहीं हूं। मुझे पुराने गानों के रीमिक्स पसंद नहीं है। मुझे लगता है कि पुराने गाने की जगह नए गाने पेश करने चाहिए।' संगीत पारखी निर्माता-निर्देशक सुभाष घई अपनी बात रखते हुए कहते हैं,'पर्सनली मुझे  पसंद नहीं है कि किसी पुराने क्लासिक गीत को नए सिरे से किसी फिल्म में लिया जाए। लेकिन आजकल ऐसे गाने कम हैं, जो श्रोताओं की जुबां पर चढ़े हों। इसलिए पुराने सदाबहार गानों को नयी फिल्मों में लिया जाता है।'
तर्क जो भी हो..इतना तो तय है कि जब तक संगीतकार अपनी रचनाशीलता को नयी चुनौतियों के लिए नहीं तैयार करते तब तक उनके सामने पुराने गीतों को तथाकथित रूप से नए अंदाज में पेश करने का विकल्प मौजूद रहेगा.....।
-सौम्या अपराजिता