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Saturday, February 22, 2014

पर्दे का प्यार..

हसीन वादियां,सुहाना मौसम और मधुर संगीत..ख्वाबों की ऐसी दुनिया में ले जाते हैं,जहाँ सिर्फ प्यार की भाषा बोली जाती है। जहाँ कांटे नही,सिर्फ फूल खिलते हैं। जहाँ चेहरे पर चिंता की लकीरें नहीं खिंची होती,होता है तो सिर्फ प्यार का अहसास। जीवन की आपाधापी में ख्वाबों की  ऐसी रोमांटिक दुनिया तलाशना कठिन होता है। ख्वाबों-ख्यालों की इस रोमांटिक दुनिया से आंखें दो-चार होती हैं जब हम सिल्वर स्क्रीन निहारते हैं। इस रोमांटिक और रोमांचक दुनिया के प्रेमियों के लिए कुछ भी मुश्किल नहीं है। उनका रोमांस कभी कश्मीर घाटी की हसीन वादियों में पनपता है, तो कभी नीदरलैंड का टॅयूलिप बागान उनके रोमांस का गवाह बनता है। कभी स्विट्जरलैंड की बर्फीली वादियों में प्यार के अहसास से सराबोर होते हैं,तो कभी वे पंजाब के लहलहाते खेत में हाथों-में-हाथ डालकर प्रेम-गीत गुनगुनाते हुए इजहार-ए-मोहब्बत करते हैं।

अंदाज नया,अहसास वही
सिल्वर स्क्रीन पर वक़्त के साथ इजहार-ए-मोहब्बत के अंदाज बदले हैं। अब दो फूलों का टकराना प्रेम-स्वीकृति का प्रतीक नहीं  है। अब तो चुम्बन से प्यार का इजहार किया जाता है। अब इजहार-ए-मोहब्बत के लिए बोलती आँखें काफी नहीं,'आई लव यू' या ' मैं तुमसे प्यार करता हूं' बोलना भी जरुरी है। इजहार-ए-मोहब्बत का अंदाज जरूर बदल गया है,पर भावना वही है। प्रियंका चोपड़ा कहती हैं,' समय भले ही बदल गया है लेकिन हकीकत की ही तरह सिनेमा में भी प्यार की परिभाषा और प्यार का अर्थ नहीं बदला है। प्यार करने वाले लोग बदल गए हैं। समय के साथ उनका अंदाज बदल गया है। प्यार को एक्सप्रेस करने का तरीका बदल गया है, लेकिन प्यार नहीं बदला है। प्यार का अहसास नहीं बदला है।'

आंखों-आंखों में
गौर करें तो हिन्दी सिनेमा के गोल्डेन एरा में प्रेम-रस में डूबे गीत और नायक-नायिका की बोलती आंखें ही काफी होती थीं।आंखों-ही-आंखों में प्यार का इशारा हो जाया करता था। प्रेमी-प्रेमिका के प्यार की गहराई दर्शक उनकी बोलती आँखों से ही पढ़ लिया करते थे। नायक-नायिकाओं का भावुक अभिनय और प्रेम-गीत मोहब्बत के इजहार के लिए रोमांटिक माहौल तैयार करते थे। कभी-कभी मोहब्बत-भरे इन दृश्यों को खुबसूरत बनाने के लिए धुएं का कृत्रिम माहौल तैयार किया जाता था। उस दौर की फिल्मों के आकर्षण होते थे ये दृश्य। 'आवारा' में नरगिस और राजकपूर के बीच के रोमांटिक दृश्यों को कौन भूल सकता है? कौन भूल सकता है 'मुगल-ए-आज़म' के उस रोमांटिक दृश्य को....जिसमें दिलीप कुमार पंख से मधुबाला के चेहरे को सहलाते हैं। नायक-नायिका के चेहरे के बदलते भावों से ही दर्शकों को उनके प्यार के इजहार और इंकार का अहसास हो जाता था।

वो फूलों का टकराना
वक्त बदला,तकनीक उन्नत हुई और धीरे-धीरे सिल्वर स्क्रीन का प्यार बदला। और फिर धीरे-धीरे प्यार के इजहार का तरीका भी बदलने लगा। मोहब्बत के इजहार की रोमांटिक भावना को उभारने के लिए प्रेम-रस में डूबे गीत के साथ प्रकृति की खुबसूरती का भी सहारा लिया जाने लगा। कश्मीर-घाटी की हसीन वादियों के दृश्य भी नायक-नायिका के बीच के प्यार-भरे पलों के संकेत चिह्न बन गए। अब घुटनों पर बैठकर नायक नायिका की खूबसूरती की तारीफ करते हुए अपने प्यार का इजहार करने लगा। प्यार का इजहार होता और फिर दो फूलों के टकराने का दृश्य आँखों के सामने आ जाता। फूलों का टकराना नायक-नायिका के आलिंगन का प्रतीक होता था।  'शोले' जैसी एक्शन फिल्म की पथरीली जमीन पर भी रोमांस का ख़ूबसूरत रंग चढ़ा। भला.. दिल को हथेली पर लिए घूमने वाले गबरू वीरू का पानी की टंकी पर चढकर बसंती से अपने प्यार का इजहार करना कौन भूल सकता है! जय और राधा के बीच ख़ामोश इजहार-ए-मोहब्बत के संवेदनशील दृश्य आज भी दिल को छू जाते हैं।

अन्तरंग इजहार
फिर दौर आया जब नायक-नायिका के बीच इजहार-ए-मोहब्बत के लिए चुम्बन और अन्तरंग दृश्यों को प्राथमिकता दी जाने लगी। तर्क दिया गया कि ये दृश्य आधुनिकता के दौर में प्रेम की स्वाभाविकता दर्शाने के लिए जरुरी हैं। कुछ नए प्रयोगों के साथ यह दौर आज भी जारी है। इजहार-ए-मोहब्बत के लिए चुम्बन दृश्यों के पक्ष में अदिति राव हैदरी कहती हैं,' मुझे नहीं लगता ऑनस्क्रीन किसिंग सीन देना एक बड़ी डील है। हमें बनावटी बनने की कोशिश करने की बजाय ईमानदार होना चाहिए। किसिंग तो लाइफ का एक सच है। इससे तुम अपने रिलेशन का इजहार कर रहे हो। फिल्मों में अश्लील डायलॉग होने से बेहतर है कि उसमें इंटिमेट सीन हो।'

शुद्ध देसी इजहार
नए दौर में कई फिल्मों में इजहार-ए-मोहब्बत के दृश्य बेहद रोचक अंदाज में दिखाए गए।' दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' में नायक राज का खुद से कहना-' राज, अगर ये तुझे प्यार करती है तो पलट के देखेगी। पलट... पलट...' ,तो 'सोचा ना था' में नायक वीरेन का आधी रात नायिका अदिति की बालकनी फांदकर उसके घर में घुसकर पूछना,'आखिर क्या है मेरे-तुम्हारे बीच अदिति?' ...ये ऐसे दृश्य हैं जो रोचक तो हैं ही,साथ ही नए दौर के प्रेमियों की भावनाओं को भी दर्शाते हैं। मौजूदा दौर के हिंदी सिनेमा में इजहार-ए-मोहब्बत के दृश्यों में मील का पत्थर बना 'दिल चाहता है' का वह दृश्य जिसमें नायक दूसरे की शादी में 200 लोगों के सामने नायिका से अपने प्यार का इजहार करता है। इस दृश्य में यह दिखाने की कोशिश की गयी कि नयी पीढ़ी के पास दौड़ती-भागती जिंदगी में रुककर प्यार जैसे मुलायम अहसास को समझने के लिए समय नहीं मिल पाता। जिस कारण  प्यार का इजहार करने में देर हो जाती है। कभी-कभी तो जीवन की आपा धापी में मशगूल होने के कारण नायक या नायिका प्यार के अहसास को शिद्दत से महसूस किये बिना जल्दबाजी में प्यार का इजहार कर डालते हैं। अब स्क्रीन पर 'शुद्ध देसी रोमांस' होता है..। लड़के को लड़की मिली। लड़की ने कहा, 'तुम मुझे किस कर सकते हो?' लड़के ने लड़की को चूम लिया। हो गया प्यार का इजहार। बाद में उन्हें पता चलता है कि यह प्यार नहीं, सिर्फ आकर्षण है। जब मामला शादी तक पहुंचता है तब दोनों भाग निकलते हैं। 'राँझणा' के कुंदन की तरह प्यार के इजहार का अनोखा और हृदय स्पर्शी अंदाज कम-ही देखने को मिलता है।




उधेड़बुन नहीं,सिर्फ प्यार..
सिल्वर स्क्रीन की तरह ही स्मॉल स्क्रीन पर भी इजहार-ए मोहब्बत का अंदाज बदला-बदला सा है। नए दौर में स्मॉल स्क्रीन पर प्रेमी-प्रेमिका नहीं, पति-पत्नी रोमांस के ख़ूबसूरत पलों को जी रहे हैं।' बड़े अच्छे लगते हैं' के राम और प्रिया जहां जीवन के पचास दशक पूरे करने के बाद भी एक-दूसरे से अपने प्यार का इजहार करना नहीं भूलते,तो 'दीया और बाती हम' के सूरज अपनी पत्नी संध्या से ख़ामोशी की परतों में इजहार-ए-मोहब्बत करते हैं..वहीँ 'ये रिश्ता क्या कहलाता है' में नैतिक और अक्षरा एक-दूसरे के प्रति अपनी कोमल भावनाओं का इजहार करने के लिए व्यस्त जीवन से  ख़ूबसूरत पल चुनते रहते हैं। दरअसल,स्मॉल स्क्रीन के नायक-नायिका  सिल्वर स्क्रीन के नायक-नायिका की तरह प्रेमी-प्रेमिका वाले इजहार-ए-मोहब्बत की उधेड़बुन में नहीं उलझे रहते हैं। वे पति-पत्नी के रूप में अपने    वैवाहिक जीवन की मधुरता  को बनाये रखने के मोहब्बत के इजहार के नए अंदाज अपनाते हैं। उनका प्यार हकीकत के ताने-बाने में बुना हुआ है। उनके इजहार-ए-मोहब्बत का अंदाज परिपक्व और व्यावहारिक है.....।
-सौम्या अपराजिता