'सात फेरे' की सलोनी की भूमिका में साधारण नैन-नक्श वाली सांवली-सलोनी राजश्री ठाकुर जब दर्शकों से रूबरू हुईं थीं,तो सबने उनमें अपने आस-पास रहने वाली घरेलू लड़की की छवि देखी । लगभग चार वर्षों तक सलोनी का सफर छोटे पर्दे पर चलता रहा। फिर अचानक राजश्री ठाकुर दर्शकों की नजरों से ओझल हो गयीं। हालांकि इस बीच वे 'सपना बाबुल का बिदाई' में मेहमान भूमिका निभाती हुई नजर आयीं, पर राजश्री के प्रशंसकों को इससे संतुष्टि नहीं हुई। ..फिर भी राजश्री ने मनपसंद भूमिका के प्रस्ताव के अभाव में परिवार को प्राथमिकता देते हुए छोटे पर्दे से दूरी बनायी रखी।राजश्री बताती हैं,'सात फेरे' के बाद मेरी जिंदगी में काफी बदलाव आए। इमोशनल लगाव हो गया था 'सात फेरे' की पूरी टीम से। खैर,लाइफ तो चलती रहती है। 'सात फेरे' के बाद मैंने खुद को अपने परिवार के लिए समर्पित कर दिया। पति और परिवार के साथ वक्त बिताने का मौका मिला। घरेलू काम भी करती हूँ। पति संज्योत के लिए खाना बनाना मेरा पैशन है। योगा क्लास भी ज्वॉइन किया। सच कहूं तो मैंने उस दौरान लाइफ एन्जॉय की।'
लगभग तीन वर्ष के अन्तराल के बाद जब राजश्री को अपनी पसंद की भूमिका निभाने का अवसर मिला,तो वे एक बार दर्शकों के सामने अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए तैयार हो गयीं। राजश्री कहती हैं,'मैं कैमरा के सामने लौटने के लिए जल्दबाजी में नहीं थी। अच्छी,स्ट्रांग और चैलेंजिंग भूमिका का इंतज़ार कर रही थी। यह इंतज़ार जयवंता बाई की भूमिका के साथ ख़त्म हुआ।' ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित सोनी टीवी के धारावाहिक 'भारत का वीरपुत्र-महाराणा प्रताप' में प्रताप की मां जयवंता बाई की भूमिका में अपने सशक्त अभिनय की बानगी पेश कर रही राजश्री कहती हैं,'यह एक ऐतिहासिक किरदार है । मैं हमेशा से किसी ऐतिहासिक चरित्र को भूमिका निभाना चाहती थी।ऐसे में जब मुझे जयवंताबाई की भूमिका निभाने मौका मिला तो मैंने तीन सालों बाद छोटे पर्दे पर वापसी करने का निर्णय लिया।'
जयवंता बाई की भूमिका में ढलने के लिए राजश्री को काफी अभ्यास करना पड़ा। वे बताती हैं,'यह सोशल ड्रामा नहीं है। हिस्टोरिकल शो है। ऐसे में उस दौर के हाव-भाव अपनाने में वक़्त लगा। मेहनत करनी पड़ी।जयवंता बाई के बैठने-चलने और बात करने के लहजे पर विशेष ध्यान देना पड़ा।' जयवंता बाई की भूमिका के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए राजश्री कहती हैं,'महाराणा प्रताप अपनी मां जयवंताबाई के कारण ही 'महाराणा' बनें। मां से मिले संस्कारों ने ही महाराणा प्रताप को महान,उदार और रणविजय बनाया। जयवंताबाई के व्यक्तित्व की इन्हीं खूबियों ने मुझे आकर्षित किया।' दरअसल,धारावाहिकों की भीड़ में गुम नहीं होना चाहती हैं राजश्री। गुणात्मक कार्य करने में यकीन रखने वाली राजश्री कहती हैं,'मैं हर तरह के किरदार निभाना चाहती हूं, पर वह मेरे व्यक्तित्व से मेल खाने चाहिए। मैं कभी भी ऐसी भूमिका नहीं करूंगी जो मुझे पसंद नहीं होगी।'
-सौम्या अपराजिता
No comments:
Post a Comment
आपकी टिप्पणियों का स्वागत है...