-सौम्या
लों पर पड़ते डिम्पल के साथ उनके चेहरे की हल्की-सी मुस्कान देखकर दर्शक अपनी सारी चिंताएं भूल जाते हैं। हम बात कर रहे हैं, हमेशा खुश रहने वाली अभिनेत्री प्रीति जिंटा की। अंग्रेजी फिल्म द लास्ट लियर के बाद अब उनकी अगली फिल्म हीरोज जल्द ही प्रदर्शित होगी। बातचीत प्रीति से..
यह साल आपके फिल्मी करियर के लिए काफी इंटरेस्टिंग लग रहा है। अलग मूड की फिल्मों में आप दिख रही हैं?
मुझे लगता है कि यह साल मेरे लिए सबसे बढि़या है। सबसे पहले तो मैंने इस साल ही क्रिकेट में अपनी शुरुआत की। द लास्ट लियर के बाद इस साल रिलीज होने वाली हीरोज, हेवेन ऑन अर्थ और हर पल में मैंने ऐसे-ऐसे रोल स्वीकार किए हैं, जो मैं करना चाहती थी, लेकिन मुझे चांस नहीं मिल रहा था। ऐसा नहीं है कि अगर आप अलग किस्म का रोल करते हैं, तो फिल्म बोरिंग हो जाती है। ये सभी फिल्में एंटरटेनिंग भी हैं। इस साल मेरी पहली फिल्म जो रिलीज हुई, वह थी द लास्ट लियर। यह पूरी तरह एक्सपेरिमेंटल फिल्म थी। हमें पहले से पता था किइस तरह की फिल्में देखने वाले दर्शक बिल्कुल अलग और बेहद कम हैं, लेकिन हीरोज, हेवेन ऑन हर्थ और हर पल कॉमर्शिअॅल फिल्में हैं, लेकिन अलग अंदाज की। यह साल मैंने औरतों को डेडिकेट किया है। औरतों की शक्ति को करीब से मैंने इन फिल्मों के जरिए महसूस किया है। मुझे लगता है, जो आप हैं, वह आपके काम में भी रिफ्लेक्ट होना चाहिए। बस, इस साल मैंने यही कोशिश की है।
हीरोज से जुड़े उत्साह और उम्मीद के बारे में बताएंगी?
काफी टाइम के बाद मेरी हिंदी फिल्म आ रही है। हीरोज में दर्शक मुझे बिल्कुल अलग अंदाज में देखेंगे। मैंने फिल्म में काफी मेहनत की है, इसलिए बेहद एक्साइटेड भी हूं। मैं सोचती हूं कि लोगों को यह फिल्म जरूर पसंद आएगी। मेरी ऐसी सोच है कि इंडिया में अभी भी लड़कियों को कभी चांस नहीं मिलता! कभी दूध पीती लड़की को डुबा दिया जाता है, तो कभी पैदा होते ही उसे मार दिया जाता है! सीरियस फिल्म नहीं है हीरोज, लेकिन यह जरूर बताती है कि अगर लड़की को फैमिली ने कभी चांस दिया, तो वक्त आने पर वह घर का बेटा भी साबित हो सकती है।
दूसरी फिल्मों से हीरोज किस मायने में अलग है?
इसमें एक महत्वपूर्ण और खूबसूरत नजरिया दिखाया गया है, जो आज की जेनरेशन का है। आज की जेनरेशन को सब कुछ मिला है। भरपूर प्यार मिला है, पैसे भी मिले हैं। उनका नजरिया कैसा होता है, सभी जानते हैं। वे बेफिक्र होते हैं जीवन की वास्तविकताओं से। उनके इसी बिंदास नजरिए को रिअॅल और आम लोगों के नजरिए से कॅन्ट्रास्ट किया गया है। हीरोज में मिट्टी से जुड़े लोगों और आज की न्यू जेनेरशन के प्वॉइंट ऑफ व्यू के बीच इंटरैक्शन है। जो न्यू जेनरेशन हैं, उनकी रिअॅलिटी ही अलग होती है। उन्हें लगता है कि सभी चीजें गुलाबी रंग की चमकती ग्लास में मिलती हैं। जब वे रिअॅल लोगों से मिलते हैं, तो कैसी परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं? यही हीरोज में दिखाया गया है। आम लोग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में कुछ ऐसी असाधारण चीजें करते हैं, जो उन्हें भी हीरो बना सकता है। जब लोग हीरोज देखेंगे, तो खुद ही प्राउड फील करेंगे। उन्हें उन आम, लेकिन खास लोगों की जिंदगी में झांकने का मौका भी मिलेगा, जिनके पास गाडि़यां नहीं हैं, प्राउड नहीं है, ऑनर नहीं है, फिर भी उनके पास बहुत कुछ है।
तो हीरोज को हटके फिल्मों की श्रेणी में रखा जा सकता है?
कह सकते हैं। हीरोज पूरी तरह कॉमर्शिअॅल फिल्म है। इसमें ढेर सारे स्टार हैं। कई फनी मोमेंट्स भी हैं। गाना-बजाना भी है, लेकिन हां, कुछ गंभीर बातें भी हैं। इतना कह सकती हूं कि हीरोज देखने के लिए दर्शकों को अपना दिमाग घर पर छोड़ने की जरूरत नहीं है। दर्शक अपना दिमाग लेकर हीरोज देखने सिनेमाघरों में जाएं और एंटरटेनमेंट के साथ कुछ महत्वपूर्ण विषयों पर विचार भी करें। जब मैंने पहली बार हीरोज की स्क्रिप्ट सुनी, तो लगा कि यह फिल्म करनी चाहिए। लोगों को ऐसी फिल्म देखना जरूरी है।
हीरोज में आप पारंपरिक पंजाबी वेशभूषा में दिखी हैं?
बिल्कुल, फिल्म को लेकर मेरी एक्साइटमेंट का यह भी एक कारण है। वीर जारा में मैंने पहली बार ट्रेडिशनल भूमिका निभाई थी, लेकिन उसमें मैं अमीर घर की बेटी थी। हीरोज में मैं पहली बार साधारण परिवार की पंजाबी औरत की भूमिका निभा रही हूं, जो मेरे लिए बिल्कुल नया एक्सपीरिएंस था। मैंने कुछ तैयारियां भी कीं। चाहती थी कि इस एक्सपीरिएंस को कुछ खास बनाऊं। मुझे हीरोज में अपने कैरेक्टर के लिए पंजाबी बोलनी थी। हालांकि मैं टूटी-फूटी पंजाबी बोलती हूं, लेकिन मैंने परफेक्ट तरीके से पंजाबी बोलने के लिए सीखना बेहतर समझा। चूंकि अनुपम खेर भी शिमला के हैं और मैं भी, इसलिए मैंने सबसे पहले उनकी सहायता मांगी। मैं हर दिन उनके पास जाती थी और पंजाबी बोलती थी और उनसे पूछती भी थी कि कहां गलती हो गई? वे बताते थे। इस तरह उनकी मदद से मैंने कुछ ही दिनों में टिपिकल पंजाबी बोलना सीख लिया।
सलमान खान के साथ हीरोज से पहले भी आपने कई फिल्में की हैं। हीरोज में वे बदले-बदले नजर आ रहे हैं। उनका साथ कैसा रहा?
सलमान हमेशा ही मेरे फेवॅरिट को-अर्टिस्ट की लिस्ट में रहे हैं। हीरोज में भी उनका साथ मेरे लिए यादगार रहा। आपने सच कहा कि हीरोज में सलमान बिल्कुल बदले-बदले नजर आ रहे हैं। पगड़ी और दाढ़ी में उन्हें देखने का अनुभव बहुत मजेदार रहा। जब मैंने पहली बार सलमान को सरदार के गेटअप में देखा था, तब मेरे मुंह से बस, एक ही शब्द निकला था, वाऊ! सलमान सरदार के गेटअप में बेहद अच्छे लग रहे थे। वे वाकई बहुत अच्छे लगे।
खुशी कब होती है? जब आप अच्छी फिल्म का हिस्सा होती हैं या फिर सफल फिल्म का हिस्सा होती हैं तब?
मुझे लगता है कि अच्छी फिल्म का जब आप हिस्सा होते हैं, तो वह आपके साथ-साथ दूसरों की वीडियो लाइब्रेरी की शोभा भी बन जाती है। वैसी फिल्में हमेशा याद की जाती हैं। जहां तक सफलता की बात है, तो उसकी भी जरूरत होती है। कहा यही जाता है कि चढ़ते हुए सूरज को सभी सलाम करते हैं। मेरे लिए तो एक अच्छी फिल्म का हिस्सा होना भी सफलता है। जहां तक इस साल रिलीज होने वाली मेरी फिल्मों की बात है, तो यह सच है कि ये फिल्में डिफरेन्ट हैं, लेकिन अच्छी भी हैं, एंटरटेनिंग भी हैं। ऑडिएंस उन्हें कैसे रिसीव करेगी। हां, यह देखना जरूर रोचक होगा।
शिमला से आप मुंबई आई और चर्चित हो गई। जब पीछे मुड़कर देखती हैं, तो कैसा महसूस करती हैं?
खुश होती हूं कि मैंने अपनी मेहनत और लगन केबल पर इतना कुछ पाया है। अपनी परछाई शीशे में देख सकती हूं। मेरे पापा हमेशा कहते थे कि बेटा लाइफ में हमेशा सीधा रास्ता लो, फिर राइट लो। उनकी बात मानते हुए मैं हमेशा सीधे रास्ते पर ही चली हूं। ग्लैमर वर्ल्ड में सरवाइव करना काफी डिफिकल्ट माना जाता है। मेरे लिए भी मुश्किल था, लेकिन बिना किसी समझौते के मैं यहां तक पहुंची हूं। मैं अपने अनुभव से यही बताना चाहती हूं कि जरूरी नहीं है कि आप अपने वैल्यूज और अपने सिद्धांत से कोई समझौता करके ही मंजिल तक पहुंच सकते हैं? अगर आपके दिल में चाह है और आप हार्ड-वर्क के लिए तैयार हैं, तो मंजिल खुद-ब-खुद आपके करीब होगी।
Monday, October 20, 2008
सलमान अच्छे लगे: प्रीति जिंटा
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