Sunday, July 7, 2013

खेल और सिनेमा का ताना-बाना

-सौम्या अपराजिता 

खेल और सिनेमा ....जब मनोरंजन के ये दोनों अप्रतिम साधन एक दूसरे में घुल-मिल जाते हैं,तब  दर्शकों के सामने मनोरंजन की अद्भूत सामग्री पेश होती है। विशेषकर हिंदी फिल्मों और खेल का ताना-बाना इस कदर जुड़ा है कि जब भी दोनों का मिलन होता है, तो स्क्रीन पर रोमांच और मनोरंजन का रूहानी जादू-सा बिखर जाता है।  खेल को अपनी फिल्म का कथ्य बनाकर सफलता का स्वाद सबसे पहले चखा था नासिर हुसैन ने। साइकिलिंग की पृष्ठभूमि पर बनी आमिर खान अभिनीत 'जो जीता वही सिकंदर' की सफलता ने खेल और सिनेमा के अनूठे तालमेल की नींव रखी थी।


फ़िल्मी कैनवास के धावक 
खेल की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्मों की सफलता निर्माता-निर्देशकों को उत्साहित करती है जिससे वे बार-बार खेल विशेष को केंद्र में रखकर फिल्म का निर्माण करने के लिए प्रेरित होते हैं। निर्माता-निर्देशक अपनी फिल्मों को खेलों से जोड़ने का अवसर ढूंढते रहते हैं और जब यह अवसर उन्हें मिल जाता है,तो बड़े सितारों को फिल्म विशेष से जोड़कर शान से अपनी फिल्म प्रदर्शित करते हैं। राकेश ओम प्रकाश मेहरा ऐसा ही कर रहे हैं।इसी महीने सिल्वर स्क्रीन पर खेल की पृष्ठभूमि पर बनी उनकी 'भाग मिल्खा भाग' दस्तक देगी। 'भाग मिल्खा भाग' में राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह के खेल जीवन को दर्शकों के सामने पेश करने की जिम्मेदारी संभाली है । राकेश कहते हैं,'खेल और सिनेमा के तालमेल से पैदा होने वाला प्रभाव मुझे बेहद प्रभावित करता है।' फरहान अख्तर अभिनीत 'भाग मिल्खा भाग' में पूर्व क्रिकेटर योगराज सिंह भी नजर आएंगे। योगराज मानते है कि फिल्मों के माध्यम से क्रिकेट के अलावा दूसरे खेलों के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा सकती है। योगराज कहते हैं,' खेलों के प्रति जागरूकता बढाने में फ़िल्में अहम् योगदान दे सकती हैं। मैं चाहूंगा कि ' भाग मिल्खा भाग' देखने के बाद देश में और भी कई मिल्खा उभरें। वे जाने-समझे कि क्रिकेट के अलावा दूसरे भी खेल हैं जिसमें देश को अच्छे खिलाडियों की जरुरत है।'



खेल संस्कृति का स्याह पक्ष               

पिछले दिनों प्रदर्शित हुई 'काय पो छे' में एक अभावग्रस्त प्रतिभाशाली किशोर  क्रिकेटर को राष्ट्रीय स्तर का क्रिकेट  खिलाड़ी बनाने के लिए किये गए संघर्ष की संवेदनशील कहानी दिखाई गयी तो ' फरारी की सवारी' में अपने पुत्र की प्रतिभा को क्रिकेट के मैदान तक पहुंचाने के लिए किये गए पिता के प्रयास को दर्शकों के सामने मनोरंजक अंदाज  में पेश  किया गया। दोनों ही फिल्मों में भारतीय क्रिकेट जगत की उस प्रचलित और दूषित संस्कृति को दिखाया गया जिसमें आए दिन  प्रतिभा पैसा और पहुँच के सामने बौनी नजर आती है।'जन्नत' की कहानी क्रिकेट- जगत के नेपथ्य में चलने वाले अपराध 'सट्टेबाजी' की पृष्ठभूमि पर  बुनी गयी थी। क्रिकेट से जुड़े इस स्याह सच को  सामने लाने वाली 'जन्नत' को दर्शकों की सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली। अब फिल्मों में सिर्फ खेल और खिलाडी का जिक्र नहीं,बल्कि खेल-जगत से जुडी कड़वी सच्चाइयां भी दिखाई जाती है। पिछले वर्ष प्रदर्शित हुई 'पान सिंह तोमर' में पर्याप्त सुविधा और अवसर के अभाव में परिस्थितवश एक प्रतिभाशाली धावक के डकैत बनने की संवेदनशील कहानी दिखाई गयी। इस फिल्म को मिली दर्शकों और समीक्षकों  की स्वीकार्यता का परिणाम है कि 'पान सिंह तोमर' की केन्द्रीय  भूमिका को जीवंत  करने वाले इरफ़ान खान को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। 

क्रिकेट को सलाम                  

भारत में अगर खेल की बात करें तो पहला नाम क्रिकेट का आता है। भारतीयों के क्रिकेट प्रेम को हमारी फिल्मों में भी खूब भुनाया गया है। क्रिकेट पर बनी अब तक की सबसे यादगार और महत्वपूर्ण फिल्म है 'लगान'। भारतीय सिनेमा की कालजयी फिल्मों की सूची में शामिल 'लगान' में बिना किसी प्रशिक्षण और अनुभव के अंग्रेजों को उन्हीं के राष्ट्रीय खेल में पराजित करने की जोशीली और प्रेरणादायी कहानी को दर्शकों तक प्रभावी अंदाज में पहुँचाया गया। आमिर खान अभिनीत और निर्मित 'लगान' को सिर्फ भारतीय दर्शकों की  ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय दर्शकों की भी स्वीकार्यता मिली। क्रिकेट की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्मों में दूसरी उल्लेखनीय फिल्म है 'इकबाल' ।' इकबाल' के कथ्य में विकलांग खिलाडी के क्रिकेट प्रेम को संवेदनशील अंदाज में बयां किया गया। 'पटियाला हाउस' ,'विक्टरी','से सलाम इंडिया','मीराबाई नॉट आउट' की कहानी भी क्रिकेट के इर्द-गिर्द बुनी गयी थी ...हालांकि इन सभी फिल्मों को दर्शकों की सकारात्मक प्रतिक्रया नहीं मिली।

चक दे खेल           

लगान' ने निर्माता-निर्देशकों को खेल की पृष्ठभूमि पर अर्थपूर्ण फ़िल्में बनाने के लिए प्रेरित किया। इसी कड़ी में शाहरुख़ खान अभिनीत 'चक दे इंडिया' का निर्माण हुआ। हौकी को एक बार मुख्य धारा में शामिल करने में 'चक दे इंडिया' ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। विकलांग कोच के नेतृत्व में विश्व चैंपियन बनने वाली महिला हौकी टीम की सच्ची कहानी को दर्शकों ने खुले दिल से स्वीकारा। 'चक दे इंडिया' ने शाहरुख़ खान की अभिनय प्रतिभा को सही सामने में दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया। शाहरुख़ कहते हैं, 'खेलों से जुड़ना हमेशा मुझे उत्साहित करता है। 'चक दे इंडिया' से जुड़कर मैं बेहद गौरवान्वित महसूस करता हूं। हौकी मेरा सबसे प्रिय खेल है।' फुटबॉल और बॉक्सिंग की पृष्ठभूमि पर भी फिल्में बनी हैं जिनमें 'धन धना धन गोल' और 'अपने' उल्लेखनीय है।'अपने' के बाद बॉक्सिंग की पृष्ठभूमि पर एक और फिल्म निर्माण की प्रक्रिया में है जिसमें संजय लीला भंसाली ने अंतर्राष्ट्रीय बॉक्सिंग चैंपियन मैरी कोंम के जीवन को पर्दे पर उतारने की योजना बनायी हैं। संजय ने बॉक्सिंग की अंतर्राष्ट्रीय स्तर की खिलाडी मैरी कोंम का चरित्र निभाने की जिम्मेदारी प्रियंका चोपड़ा को सौंपी जबकि निर्देशन की बागडोर संभालने  के लिए उन्होंने उमंग कुमार को चुना। उमंग कहते हैं,'हमारे देश में खेल और सिनेमा को हमेशा से बहुत सराहा जाता है। दोनों जब साथ-साथ आते हैं तो दर्शको का उत्साह बढ़ जाता है।' किसी महिला खिलाडी को केंद्र में रखकर बनने वाली यह पहली फिल्म होगी। 

1 comment:

  1. मैं खेल को लेकर ही शोध कर रहा हूँ ,इस लिहाज से आपका यह लेख मेरे बहुत काम का है | बधाई और धन्यवाद |

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