Monday, May 14, 2012

वो कौन थीं?


'जीवन में कई बार ऐसा होता है जो आपने सोचा नहीं हो,जिसकी आपने कभी कल्पना नहीं की हो'..अपने करीबियों को ऐसा कई बार कहते सुना था.सोचती थी कि ऐसा कभी मेरे साथ तो नहीं हुआ है ,सब यूँ ही ऐसा कहते हैं..लेकिन पिछले दिनों मुझे इस बात पर यकीन हो गया कि जीवन में कई बार अकल्पनीय अनुभव भी होते हैं.
मुंबई की भागदौड़,नौकरी की आपाधापी ओर नियमित दिनचर्या से दूर कुछ पल सुकून के बिताने के लिए हमने दो दिनों के लिए मालशेज़ घाट जाने की योजना बनायी..मुंबई से ६ घंटे के सफ़र के बाद पूर्व योजना के अनुसार हम शाम में मालशेज़ घाट स्थित एमटीडीसी रिजॉर्ट  पहुँच गयें.
यात्रा की थकावट दूर होने के बाद दूसरे दिन सुबह हमने पास के दर्शनीय स्थानों की जानकारी इकट्ठा  की. हमें पता चला कि दो ऐसी जगहें हैं ,जहाँ हमें जाना चाहिए ...पहली जगह थी - लेयांद्री गणेश मंदिर ओर दूसरी जगह शिवनेरी किला...हमनें एक वाहन रिज़र्व  किया ओर निकल गयें लेयांद्री मंदिर की ओर....ऊंची-नीची सड़कों पर इठलाती -बलखाती कार में हम लेयांद्री गणेश मंदिर तक पहुंचे...वहां पहुँचते ही मेरी नजर मंदिर कि अनगिनत सीढ़ियों पर पड़ी,मैं घबरा गयी...खैर,किसी तरह सीढ़ियों के सहारे पहाड़ी पर स्थित मंदिर तक पहुंची...दर्शन के बाद फिर हम सीढियों के सहारे कार तक पहुँच गए...ड्राईवर ने कहा कि अब शिवनेरी किला चलते हैं...मैं उत्साहित हो गयी......ऐतिहासिक इमारतें ओर उनकी स्थापत्य कला मुझे हमेशा आकर्षित करती रही है..ओर जब बात अंग्रेजों से अपनी अनोखी युद्ध शैली से लोहा लेने वाले शिवाजी के किले ओर उनके जन्मस्थल की हो,तो मेरा उत्साहित होना लाजिमी था ...
हम शिवनेरी किला के करीब पहुँच चुके थे,तभी हमने देखा कि किले की तरफ जाने वाली सड़क पर निर्माण कार्य चल रहा है ...निर्देश मिला कि आगे कार नहीं जा सकती..पैदल ही जाना पड़ेगा..कड़ी धूप ओर लेयांद्री मंदिर कि सीढियाँ चढ़ने के थकान से मैं पहले ही चूर-चूर हो गयी थी..खैर , हिम्मत कर पैदल ही शिवनेरी किले के मुख्य द्वार तक हम पहुंचे..वहां पूरे किले का मानचित्र रेखांकित किया गया था ...उसे देखते ही मैं चौंक गयी ..इतना भव्य ओर विस्तृत किला ? जब किले के शीर्ष कि तरफ अपनी नजर दौड़ाई,तो मन में सवाल कौंधने लगा कि इतनी थकान के बाद क्या मैं वहां पहुँच पाउंगी जहाँ जाने के लिए मैंने सुकून के पूर्व निर्धारित दो दिनों का त्याग किया था!
किले कि हमारी यात्रा शुरू हुई...लगभग आधे घंटे बाद हम किले में स्थित शिवाई मंदिर तक पहुंचे...मंदिर से निकलने  के बाद जब मुझे पता चला कि अभी डेढ़ घंटे हमें ओर चलना पड़ेगा,तब जाकर हम शिवाजी के जन्मस्थल  तक पहुंचेंगे....मैंने निर्णय किया कि कुछ देर सीढियों पर ही विश्राम  करते हैं ..मैं बैठ गयी,मेरा चेहरा उतरा हुआ था..पास से स्कूली बच्चों के टीम गुजरी ..उनके चेहरे पर थकावट कि शिकन भी नहीं थी ...वे मेरे पास से गुजरे..उनके जोश ओर उत्साह से प्रेरित होकर मैं भी दोबारा उठकर अपनी मंजिल तक पहुँचने के लिए खुद को तैयार कर रही थी...तभी कोई ऐसा मिला ..जिसके बारे में सोचकर मैं आज भी रोमांचित हो जाती हूँ ...जिसका चेहरा मेरी यादों में हमेशा के लिए बस गया है .....मेरे सामने से पारंपरिक महाराष्ट्रीयन साड़ी में लिपटी बुजुर्ग महिला गुजरी..मैंने उनकी तरफ देखा भी नहीं...मगर वे मुझे निहार रही थीं,मेरे सामने से होते हुए वे आगे निकल गयीं..तभी मुझे एक महिला की आवाज सुनाई दी जो मराठी में कुछ कह रही थीं..मैंने पीछे मुड़कर देखा,तो वह वही महिला थी...मुझसे कुछ कह रही थी ..मैं उनकी बातों को सुनने लगी ...उनकी आँखों में मुझे स्नेह दिख रहा था ..ऐसा लग रहा था,जैसे उन्हें मेरा दर्द दिख रहा हो ..उनकी बातों को मैं पूरी तरह तो समझ नहीं पायी,पर उनके हाव -भाव ओर स्नेहिल व्यवहार से पता चल गया कि वे मुझे निर्देश दे रही थीं कि अपना ख्याल रखो ....अपने उत्साह पर नियंत्रण रखो...हिम्मत हो तो ही आगे की यात्रा करो......वे लगभग ५ मिनट तक अनवरत अपनी सलाह मुझे दे रही थी..मैं उनकी बातों को चकित होकर सुनती जा रही थी .वह दृश्य मेरी कल्पना से परे था ...मैं उस महिला को जानती भी नहीं थी ओर ना ही वे मुझे जानती थीं ...फिर भी ...स्नेह की गंगा वे मुझ पर कुछ यूँ उड़ेल रही थीं जैसे उनसे मेरा कोई मधुर रिश्ता हो ..आखिर कौन थीं वे ? मुझे तो लगता हैं कि माँ जैसी थीं वे......

-सौम्या अपराजिता


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