Wednesday, February 25, 2009

महत्वाकांक्षा के जाल में उलझता प्रेम

[सौम्या अपराजिता]
महत्वाकांक्षाओं के मकड़-जाल में उलझती स्त्री के लिए अब, प्रेम शब्द के मायने बदल गए हैं। उसके जीवन का उद्देश्य अब प्रेम के ढाई अक्षरों तक नहीं सिमटा है...वह चाहती है उपलब्धियों के आसमान को छूना। प्रेम, इश्क और मोहब्बत जैसे शब्दों की सार्थकता उसके लिए अर्थ और काम की अभ्यर्थना मात्र बनकर रह गयी है। वह घर की चाहरदीवारी से निकलकर अपना स्वतंत्र अस्तित्व तलाशने में सफल तो रही है, पर उन कोमल भावनाओं को सहेजने के लिए उसके पास वक्त नहीं है जिनसे प्रेम अंकुरित होता है। कामकाजी स्त्रियों के लिए प्रेम और रोमांस बस, फिल्मी बातें ही बनकर रह गयी है। रूपहले पर्दे पर प्रेम-गीत गाने वाली अभिनेत्रियों के साथ भी ऐसा ही है। लाइट, कैमरा और एक्शन शब्दों की गूंज के साथ ही वे प्रेम के समंदर में गोते लगाने वाली नायिका का रूप धर लेती हैं और जैसे ही 'कट' की आवाज होती है.. उन्हें अपने मेकअप और चढ़ते-उठते कॅरियर ग्राफ की चिंता सताने लगती है।
[हाशिए पर प्रेम]
यदि कहें कि प्रेम-भावनाओं की संवाहिनी कही जाने वाली स्त्री अब अपने व्यावसायिक लाभ और महत्वाकांक्षाओं की आड़ में हृदय की कोमल भावनाओं से दूर होती जा रही है तो, गलत नहीं होगा। उसका माधुर्य, उसकी सरसता खोती जा रही है। अभिनेत्री प्रीति जिंटा भी ऐसा ही कुछ मानती हैं। वह कहती हैं, 'एक वक्त था जब प्यार करने के लिए समय होता था। तब क्रिकेट में भी पांच दिनों की टेस्ट सीरीज होती थी, लेकिन आज ट्वेंटी-20 मैच होते हैं।
प्यार में भी वही हाल है। शादी करो और कोई छोटी सी बात के लिए डिवोर्स कर लो। कामकाजी महिलाओं पर यह बात अधिक लागू होती है। 'तू नहीं तो और सही..' की मानसिकता आज की कामकाजी लड़कियों में देखने को मिलती है। प्यार में जो कशिश होती थी, जो त्याग होता था, जो इंतजार होता था.. अब वैसा बिल्कुल नहीं रहा। अब तो जिंदगी बदल गयी है। इसकी सबसे बड़ी वजह है स्त्रियों का घर की चाहरदीवारी से बाहर निकलकर पुरूषों के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर चलना। बाहरी दुनिया के प्रभाव में धीरे-धीरे स्त्रियां 'अटेंशन डिसॉर्डर' का शिकार होती जा रही हैं। हमारी प्राथमिकताएं बदल गयी हैं।'
[तनावपूर्ण जिंदगी में प्रेम]
कुछ ऐसी भी कामकाजी स्त्रियां हैं जिनके जीवन का आधार ही प्रेम है। फिर वह माता-पिता के साथ उनका स्नेहिल संबंध हो या पुरूष मित्र या पति के प्रति उनका समर्पित प्रेम। ऐसी स्त्रियों के लिए प्रेम पहले है, काम बाद में.. आंतरिक सुकून पहले है, महत्वाकांक्षाएं बाद में। उन्हें प्रेम के गहरे सागर में गोते लगाना भाता है। वे नहीं चाहती कि उनका प्रेम-संबंध उनके कॅरियर या उनकी महत्वाकांक्षाओं से प्रभावित हो। हिन्दी फिल्मों की ग्लैमरस अदाकारा समीरा रेड्डी कहती हैं कि आज भी स्त्रियों के लिए सबसे जरूरी प्यार है। मैं मानती हूँ कि कामकाजी महिलाओं के लिए प्यार और रोमांस के लिए वक्त निकालना और भी जरूरी है। कारण, आज की तनावपूर्ण जिंदगी में प्यार ही है, जो हमें एक ऐसी दुनिया में ले जाता है जहाँ हम सुकून के कुछ पल बिता सकते हैं। पुरूष मित्र या पति के लिए ही नहीं अपने माता-पिता और भाई-बहनों के लिए अपनी व्यस्तता के बीच समय निकालकर आप उनसे भी अपने प्यार का इजहार कर सकती हैं। मैं व्यस्त होने के बावजूद अपने परिवार के साथ बैठकर दो पल प्यार की बातें करने के लिए समय निकाल ही लेती हूँ।'
[रोमांटिक सपने पूरे नहीं होते]
छोटे पर्दे के सबसे आकर्षक चेहरों में एक अभिनेत्री दिव्यंका त्रिपाठी जब भोपाल जैसे छोटे शहर से मुंबई आयीं, तो उन्होंने भी महसूस किया कि वक्त की कमी और अपनी-अपनी नौकरी में व्यस्तता के कारण लड़कियां किस तरह स्वयं अपने-आप से दूर होती जा रही हैं। वह भूल गयी हैं कि कभी वे भी फिल्मों के रोमांटिक दृश्य देखकर आहें भरा करती थीं और प्रेम-भरे सपने बुना करती थीं। दिव्यंका कहती हैं, 'मुंबई जैसे मेट्रो शहर में पहले तो काम पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। फिर अपने प्रतिस्प‌िर्द्धयों के बीच खुद को बनाए रखने की जद्दोजहद में ही सारा समय निकल जाता है। ऐसे में अपने प्रेम-संबंध को बनाए रखना मुश्किल हो जाता है। इतनी फ्रस्ट्रेशन होती है कि यदि अपने प्रेमी या पति के साथ आप घूमने-फिरने के लिए समय निकाल लेती हैं, तो भी आपका काम ही दिमाग में कौंधता रहता है। मेरी कई ऐसी सहेलियां हैं, जो कई बार इतनी परेशान हो जाती हैं कि इन सब चीजों से भागना चाहती हैं। मैं मानती हूँ, हर चीज की एक उम्र होती है और प्यार का भी एक वक्त होता है। आजकल अक्सर ऐसा होता है कि प्यार करने की स्टेज पार कर जाने के बाद लड़कियां शादी के विषय में सोचती हैं। लड़कों की तुलना में लड़कियां अधिक सेंसिटिव होती हैं। वे जो भी करती हैं उसे पूरे दिल और समर्पण से करती हैं, वे युवावस्था से ही रोमांटिक सपने देखना शुरू कर देती हैं। ऐसे में, यदि कॅरियर पर ध्यान देने के कारण उनके रोमांटिक सपने पूरे नहीं होते हैं तो बाद में वे डिप्रेशन की शिकार होने लगती हैं। इसलिए मैंने तो सोच लिया है कि मैं वक्त पर शादी करूंगी और अपने रोमांटिक सपने पूरे करूंगी। मेरे लिए तो कॅरियर से जरूरी मेरी खुशहाल निजी जिंदगी और उसमें ढेर सारा प्यार और रोमांस है।'
[व्यस्तता, महत्वाकांक्षा और प्रेम]
अभिनेत्रियों के लिए पर्दे का प्यार कभी-कभी ही हकीकत बन पाता है। वजह है अपने फिल्मी सफर को मंजिल तक पहुँचाने की चिंता या किसी दूसरी प्रतिस्प‌र्द्धी अभिनेत्री से आगे निकलने की तमन्ना। उनकी यही चिंता और तमन्ना उन्हें दिन के चौबीस घटे व्यस्त रखती है। ऐसे में उनके पास वक्त ही नहीं होता कि वे प्यार की मीठी-मीठी बातें कर सकें। पूर्व मिस यूनिवर्स और अभिनेत्री लारा दत्ता फिल्मी चकाचौंध की इस सच्चाई से रू-ब-रू होने के बाद संभल गयी हैं। वह कहती हैं, 'मैं कभी स्वयं को इतना व्यस्त नहीं रखना चाहती कि अपने प्रेम संबंध को बरकरार रखने के लिए वक्त न निकाल सकूं। यही वजह है कि नंबर वन के स्पॉट को लेकर मुझे कभी चिंता नहीं रही। मैं ऐसी महत्वाकांक्षाएं नहीं पालती, जिससे मेरा प्रेम- संबंध प्रभावित हो।'

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