Saturday, February 4, 2017

रचनात्मक स्वतंत्रता पर पहरा

-सौम्या अपराजिता
फ़िल्में रचनात्मक अभिव्यक्ति का भव्य और आकर्षक माध्यम है...,मगर कई बार फ़िल्मकार को रचनाशीलता के लिए मुसीबत भी झेलनी पड़ती है। दरअसल,फ़िल्मकार जब फिल्मों के लिए कहानियां ढूंढते हैं,तो अक्सर उनकी नजर गौरवशाली इतिहास पर पड़ती है और वे इतिहास के पन्नों में दर्ज कई ऐसी कहानी निकाल लेते हैं...जो रोचक और रोमांचक होती है।...मगर जब फिल्मकार ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की कहानी को कहने के लिए रचनात्मक स्वतंत्रता लेते हैं,तो अक्सर उनका सामना विरोध से होता है। हाल ही में संजय लीला भंसाली को 'पद्मावती' की शूटिंग के दौरान भी ऐसे ही विरोध से दो-चार होना पड़ा।
जयपुर में 'पद्मावती' की शूटिंग के समय राजपूत समुदाय के एक संगठन के लोगों ने संजय लीला भंसाली के साथ अभद्रता की और जयगढ़ किले में फिल्म के सेट पर तोड़फोड़ करके शूटिंग भी रोक दी। इन लोगों का आरोप था कि भंसाली अपनी फिल्म में अलाउद्दीन खिलजी और रानी पद्मावती के बारे में तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश कर रहे हैं। दरअसल,इससे पहले भी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर बनी फिल्मों को विवादों का सामना करना पड़ा है।
'बाजीराव मस्‍तानी' की शूटिंग के समय भी संजय लीला भंसाली को विरोध का सामना करना पड़ा था। परिणामस्वरूप 'बाजीराव मस्‍तानी' के रिलीज के समय पुणे में जमकर विरोध हुआ था। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस को लिखे एक पत्र में पेशवा के वंशज प्रसादराव पेशवा ने सरकार से इस मामले में दखल देने की मांग की थी। उन्होंने आरोप लगाया था- 'यह पाया गया है कि रचनात्मक स्वतंत्रता के नाम पर इस फिल्म में मूल इतिहास को उलटा गया है। साथ ही, एक गीत को बाजीराव पेशवा प्रथम की दो पत्नियों काशीबाई और मस्तानी पर फिल्माया गया है। यह घटना ऐतिहासिक तथ्यों से मेल नहीं खाती।' आशुतोष गवोरिकर की फिल्‍म 'जोधा अकबर' का भी राजस्‍थान में जबरदस्त विरोध हुआ था।
राजपूत संगठनों का कहना था कि फ़िल्म में  प्रस्तुति इतिहास में वर्णित तथ्यों के ख़िलाफ़ है। जबकि फ़िल्म के निर्माता-निर्देशक आशुतोष गोवारीकर कह चुके थे कि फ़िल्म में काल्पनिकता का पुट है और यह कोई ऐतिहासिक दस्तावेज़ नहीं है। फिर भी...राजपूतों की करणी सेना ने फ़िल्म के विरोध में बाक़ायदा प्रदर्शन किया था और चेतावनी दी थी कि अगर इसे सिनेमाघरों में रिलीज़ किया गया तो गंभीर नतीजे होंगे।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की फ़िल्में ही नहीं,बल्कि दूसरे विषय और कथ्य की फिल्में भी विरोध का शिकार हुई हैं और हो रही हैं। मथुरा में अक्षय कुमार की 'टॉयलेट एक प्रेम कथा' की शूटिंग के दौरान भी जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ा।  फिल्म के कथानक को लेकर विरोध उपजा। दरअसल, नंदगांव-बरसाना के बीच फिल्म में वैवाहिक संबंधों को दर्शाने पर क्षेत्र के लोगों को ऐतराज था। वहां के लोगों के अनुसार, नंदगांव के लड़के और बरसाना की लड़की के बीच विवाह सनातन धर्म की परंपराओं और मर्यादाओं के विपरीत है। फिल्म का शीर्षक भी ब्रज संस्कृति के अनुरूप नहीं है। गौरतलब है कि विरोध में पंचायत द्वारा फ़िल्म के निर्देशक की जीभ काटने और अभिनेता अक्षय कुमार को पीटने का आदेश भी जारी किया गया।
एक और फ़िल्म है-'गैंग ऑफ़ वासेपुर 3' जिसे लेकर विरोध का स्वर मुखर हो चुका है। अभी इस फ़िल्म की शूटिंग भी शुरू नहीं हुई है,मगर विरोध शुरू हो चुका है। झारखंड के वासेपुर के निवासी इस आने वाली फिल्म के खिलाफ है। जिसकी वजह है उनके इलाके की बदनामी।  उन्हें लगता है कि इस शहर की सकारात्मक बाते पहली दो कड़ियों में नहीं दिखाई गयी है। इससे उनका इलाका बदनाम हुआ हैं।
दरअसल,फिल्मों के कथ्य से अपात्ति हो सकती है,मगर उसे लेकर हिंसात्मक विरोध का कोई आधार नहीं है। जयपुर में 'पद्मावती' की शूटिंग के समय संजय लीला भंसाली के साथ हुआ दुर्व्यवहार निश्चित रूप से निंदनीय है। कलात्मक अभिव्यक्ति पर ऐसे आघात के प्रति ठोस कदम उठाने चाहिए। यह नहीं भूलना चाहिए कि जब इतिहास के मशहूर पात्रों को फ़िल्मकार अपनी रचनाशीलता से गढ़ते हैं,तभी 'मुग़ले आज़म','जोधा अकबर' और 'बाजीराव मस्तानी' जैसी यादगार और शानदार फ़िल्में अस्तित्व में आती हैं।

Friday, February 3, 2017

बायोग्राफी की बेबाक बातें

-सौम्या अपराजिता
हमारी फिल्मों की ही तरह फ़िल्मी शख्सियत की बायोग्राफी भी मसालेदार होती है। दोस्ती-दुश्मनी के कई राज खोलने वाली बायोग्राफी में रहस्य और रोमांच का सारा सामान मौजूद रहता है। पिछले दिनों ऐसी ही दो नयी बायोग्राफी बाज़ार में आई है जिसमें एक करण जौहर और दूसरी ऋषि कपूर की है। फिल्मों में रची-बसी इन दोनों ही लोकप्रिय और रोचक शख्सियतों की बायोग्राफी ने फिल्मों की चमकीली दुनिया के कई राज खोले हैं।
करण जौहर की फिल्मों की ही तरह उनकी बायोग्राफी भी इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है। काजोल से उनकी दोस्ती की टूटने की वजह के जिक्र ने करण की बायोग्राफी 'द अनसूटेबल ब्वॉय' को 'टॉक ऑफ़ द टाउन' बना दिया है। करण ने पुस्तक में लिखा है,' काजोल से कोई रिश्ता अब नहीं रह गया है। हमारे बीच में कई गलतफहमी हुई थीं। मुझे तो बहुत ही बुरा लगा था । मैं उस बारे में बात भी नहीं करना चाहूंगा। इसकी वजह है कि यह मेरे और काजोल के लिए सही भी नहीं रहेगा। हम करीब 20 साल बाद बातचीत नहीं करेंगे। हम अब एक दूसरे को देखकर बस हेलो कहते हैं और आगे बढ़ जाते हैं।' काजोल के साथ विवाद के अतिरिक्त करण ने अपने निजी रिश्तों और प्रेम संबंधों को लेकर भी कई खुलासे किए हैं। इस चर्चित पुस्तक में करण ने अपने वात्सल्य प्रेम का भी जिक्र किया है और लिखा है,' मेरी एक ख्वाहिश है कि वे जीवन शादी करें या न करें लेकिन मुझे एक बच्चा जरूर होगा। मेरे अंदर एक अच्छी मां के सारे गुण विद्यमान है और मैं बच्चों की देखभाल को लेकर बहुत एक्टिव हूं।'
करण जौहर की बायोग्राफी के साथ-साथ ऋषि कपूर की बायोग्राफी भी खूब सुर्खियां बटोर रही है। दरअसल,ऋषि कपूर ने अपनी बायोग्राफी 'खुल्लम-खुल्ला- ऋषि कपूर अनसेंसर्ड' में कई चौंकाने वाले खुलासे किये हैं जिसमे से सबसे चकित करने वाला वाकया है -दाऊद इब्राहिम के साथ चाय पीने का जिक्र। रोचक शीर्षक वाली अपनी बायोग्राफी में ऋषि ने 'कर्ज' के असफल होने से उन्हें हुए डिप्रेशन का भी खुलासा किया है। उन्होंने लिखा है, 'कर्ज' से उन्हें बहुत उम्मीदें थी।मुझे लगा था कि 'कर्ज' से मेरा करियर बुलंदी छूने लगेगा।इसमें बेहतरीन संगीत और कलाकार थे।लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ,तो मैं गहरे डिप्रेशन में चला गया। मैं कैमरे के सामने जाने से भी डरने लगा था।'
इससे पहले पत्नी नंदिता पुरी द्वारा लिखी गयी ओमपुरी की बायोग्राफी ने भी काफी बवाल मचाया था। दरअसल,'ओमपुरी-अनलाइकली हीरो' के अवलोकन के पूर्व ऐसी चर्चा थी कि इसमें ओमपुरी के कई महिलाओं के साथ शारीरिक संबंध का जिक्र है जिसे लेकर ओमपुरी नाराज थे और उन्होंने नंदिता को बुरा-भला कहते हुए यह धमकी तक दे डाली थी कि वह किसी भी कीमत पर इस किताब को छपने नहीं देंगे। जैसे-जैसे समय बीता यह बात साफ हो गई कि यह प्रचार पाने के लिए की गई सोची-समझी रणनीति थी। जब पुस्तक छपकर सामने आई तो सारी बातें साफ हो गई थीं।नंदिता पुरी ने इस किताब में अपने पति के जीवन के उन पहलुओं को सामने लाने की कोशिश की है जो अब तक आम लोगों के सामने नहीं आ पाए थे।
चिरयुवा और सदाबहार रेखा की बायोग्राफी 'रेखा: द अनटोल्ड स्टोरी' भी अपने कथ्य के कारण पाठकों की जिज्ञासा का विषय बनी हुई है। इस पुस्तक में रेखा के जीवन के कई राज़ खोले गए हैं। हालांकि, इसके पहले भी रेखा को लेकर कई बातें कही जा चुकी हैं,लेकिन कम ही लोग जानते होंगे कि रेखा के जन्म तक उनके माता-पिता ने शादी नहीं की थी। इसके साथ ही बगैर शादी के सिंदूर और शूटिंग के सेट पर रेखा को किए गए चुम्बन सहित कई अन्य चौकाने वाले किस्सों का जिक्र है। शत्रुघ्न सिन्हा ने भी बायोग्राफी 'एनीथिंग बट खामोश' में कई रोचक तथ्यों से परिचित कराया है। उन्होंने बताया है कि अमिताभ बच्चन उनकी शोहरत से परेशान थे। अमिताभ अपनी कुछ फिल्‍मों में उन्‍हें नहीं देखना चाहते थे। जीनत अमान और रेखा की वजह से उनके और अमिताभ बच्‍चन के बीच दरार बढ़ी। दरअसल,रेखा और शत्रुघ्न सिन्हा की बायोग्राफी में अमिताभ बच्चन से जुड़े वाकयों का उल्लेख रोचक बनाता है।
हिंदी फिल्मों के अभिनय सम्राट दिलीप कुमार और सदाबहार देव आनंद के जीवन के अनछुए पहलू भी पुस्तक में उकेरे गए हैं। जहां
दिलीप कुमार के जीवन की बानगी को 'सब्सटेंस एंड द शैडो' में लेखक उदय तारा नायर ने दिलीप कुमार से बातचीत और इंटरव्यू के आधार पर लिखा है...वहीँ देव आनंद ने स्वयं ही ऑटो बायोग्राफी ' रोमांसिंग विद लाइफ-एन ऑटोबायोग्राफी' लिखी। 'रोमांसिंग विद लाइफ-एन ऑटोबायोग्राफी' के बहाने पाठक देव आनंद की रूमानी छवि और उनकी फिल्मी जिंदगी की चाशनी में डूब जाते हैं। रोचक तथ्य है कि पुस्तक में देव आनंद ने फिल्मी हस्तियों के अलावा राजनीतिक हस्तियों का भी जिक्र किया है। खास तौर से इंदिरा गांधी और उनके पुत्र संजय गांधी का। इंदिरा गांधी के बार में देव आनंद ने लिखा है कि वह बहुत ही कम बोलती थीं, जिसकी वजह से उनके विरोधी इंदिरा गांधी को गूंगी गुड़िया कहते थे।
लोकप्रिय और सफल कलाकारों की बायोग्राफी के बीच 'आशिकी' की गुमशुदा अभिनेत्री अनु अग्रवाल की बायोग्राफी का जिक्र भी उल्लेखनीय है। अनु ने अपनी आत्‍मकथा 'अनयूजवल: मेमोइर ऑफ़ ए गर्ल हू केम बैक फ्रॉम डेड' में अपने उथल-पुथल भरे जीवन की मार्मिक मगर रोचक कहानी बयां की है। अनु के अनुसार,'यह उस लड़की की कहानी है जिसकी ज़िंदगी कई टुकड़ों में बंट गई थी और बाद में उसने खुद ही उन टुकड़ों को एक कहानी की तरह जोड़ा है।'
दरअसल,फ़िल्मी सितारों के निजी जीवन से जुड़ी जिज्ञासा इन बायोग्राफी के प्रति पाठकों की उत्सुकता बढ़ाती है। साथ ही,फ़िल्मी कलाकारों के जीवन में रिश्तों के बनते-बिगड़ते समीकरण का उल्लेख भी बायोग्राफी को लोकप्रिय बनाता है। उम्मीद है फिल्मों से जुड़े और भी कलाकार अपने रोचक जीवन की बानगी पुस्तक में पेश करते रहेंगे। हालांकि... यदि उनमे मसालेदार घटनाओं के मुकाबले प्रेरक प्रसंगों को प्राथमिकता मिले,तो और भी अच्छा होगा।
फ़िल्मी शख्सियतों की प्रकाशित उल्लेखनीय बायोग्राफी-
*देव आनंद-'रोमांसिंग विद लाइफ'
*दिलीप कुमार-'द सब्सटैंस एंड द शैडो'
*प्रेम चोपड़ा-'प्रेम नाम है मेरा,प्रेम चोपड़ा'
*नसीरुद्दीन शाह-'एंड देन वन डे:द मेमॉयर'
*जावेद अख्तर-'तरकश'
*वैजयंती माला-'..बॉन्डिंग:द मेमॉयर'
*रेखा-'रेखा:द अनटोल्ड स्टोरी'
*शत्रुघ्न सिन्हा-'एनीथिंग बट खामोश'
करीना कपूर-'द स्टाइल डायरी ऑफ़ अ बॉलीवुड दिवा'
अनु अग्रवाल:'अनयुजुअल:मेमॉयर ऑफ़ अ गर्ल हु कम बैक फ्रॉम द डेड'
ममता कुलकर्णी-'ऑटोबायोग्राफी ऑफ़ अ योगिनी'
आयुष्मान खुराना-क्रेकिंग द कोड:माय जर्नी इन द बॉलीवुड

Tuesday, January 24, 2017

सीरियल से सिनेमा तक...

-सौम्या अपराजिता
पिछले दिनों विद्या बालन की एक ऐसी तस्वीर सामने आयी जिसने उन दिनों की याद दिला दी जब विद्या धारावाहिक 'हम पांच' में राधिका की भूमिका निभाया करती थी। दरअसल,एक आयोजन के दौरान विद्या की मुलाकात 'हम पांच' के कलाकारों से हुई,तो उन्होंने गर्व के साथ अपने पुराने साथी कलाकारों के साथ तस्वीरें खिंचवाईं और उसे सोशल मिडिया पर शेयर की। उल्लेखनीय है कि विद्या उन चुनींदा कलाकारों में से एक हैं जिन्होंने स्मॉल स्क्रीन से सिल्वर स्क्रीन तक का सफ़र सफलता पूर्वक तय किया है। विद्या से पहले शाहरुख़ खान और इरफ़ान खान ने स्मॉल स्क्रीन से सिल्वर स्क्रीन का सफ़र तय किया और बता दिया कि अगर हुनर और हौसला हो,तो छोटे पर्दे से बड़े पर्दे तक के सफ़र को उपलब्धियों भरा बनाया जा सकता है। हालांकि...छोटे पर्दे से बड़े पर्दे तक का सफ़र इतना आसान नहीं है। कुछ ही कलाकार हैं जिन्होंने शाहरुख़ खान,इरफ़ान खान,मनोज बाजपेयी,आर माधवन और विद्या बालन की तरह अपनी मेहनत,लगन और धैर्य से छोटे पर्दे से बड़े पर्दे तक का सफ़र सफलतापूर्वक तय किया है।
यदि मौजूदा दौर की बात करें,तो आयुष्मान खुराना,सुशांत सिंह राजपूत और यामी गौतम ने यह साबित कर दिया है कि छोटे पर्दे का अनुभव बड़े पर्दे के सफ़र को शानदार बना सकता है। ये तीनों ही कलाकार कभी टेलीविज़न स्क्रीन पर अपने अभिनय के रंग भरते थे और आज ये बिग स्क्रीन के लोकप्रिय चेहरे बन गए हैं। यामी गौतम और आयुष्मान खुराना ने साथ-साथ छोटे पर्दे से बड़े पर्दे का रुख किया। अगर कहें कि 'विक्की डोनर' की रिलीज़ के बाद इडियट बॉक्स के दो चेहरे सिल्वर स्क्रीन पर चमक उठे,तो गलत नहीं होगा।। रियलिटी शो 'रोडीज' से उभरने वाले आयुष्मान खुराना और 'ये प्यार न होगा कम' में अपनी सहज अदायगी से मन मोहने वाली यामी गौतम ने बेहद कम वक़्त में फ़िल्म प्रेमियों के दिल में जगह बना ली है। आयुष्मान जहाँ हरफनमौला कलाकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हुए हैं,वहीँ यामी ने अपने आकर्षण और अभिनय से बड़े निर्माता-निर्देशकों का ध्यानाकर्षण किया है। आयुष्मान इस समय 'बरेली की बर्फी' और 'मेरी प्यारी बिंदु' जैसी चर्चित फिल्मों में अभिनय कर रहे हैं,तो यामी के पास दो बड़ी फ़िल्में 'काबिल' और 'सरकार 3' है।
'एम एस धोनी' की सफलता के बाद सुशांत सिंह राजपूत के लिए बड़े पर्दे का सफ़र और भी सुहाना हो गया है। पिछले दिनों उन्हें 'सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के स्टार स्क्रीन अवार्ड से भी नवाजा गया। सुशांत के लिए अच्छी बात है कि  उनकी पहली फिल्म 'काय पो छे' बॉक्स ऑफिस पर सफल साबित हुई थी। दरअसल,सुशांत जब धारावाहिक 'पवित्र रिश्ता' के मानव से 'काय पो छे' के ईशान भट्ट बने,तो उनके लिए दर्शकों का प्यार-दुलार और भी बढ़ गया। सुशांत कहते हैं,'मैं वहां (टीवी पर) एक ही जैसा रोल करके बोर हो गया था, तभी मैंने टीवी छोड़कर कुछ टाइम असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर काम किया और फिर फिल्म में काम करना शुरू किया।' सुशांत को सिर्फ दर्शकों से ही नहीं बल्कि हिंदी फिल्मों के प्रतिष्ठित निर्माता-निर्देशकों की भी सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है।
छोटे पर्दे से बड़े पर्दे की ओर रुख करने वाले कलाकारों में राजीव खंडेलवाल,प्राची देसाई और ग्रेसी सिंह भी उल्लेखनीय हैं। धारावाहिक 'कहीं तो होगा' में धीर-गंभीर सुजल की भूमिका से दर्शकों के दिल में बसने वाले राजीव ने राजकुमार गुप्ता निर्देशित फिल्म 'आमिर' से सिल्वर स्क्रीन पर कदम रखा। दर्शकों ने उन्हें बड़े पर्दे पर भी स्वीकारा। हालांकि,राजीव को स्टार स्टेटस नहीं मिला है,फिर भी वे निर्माता-निर्देशक और  दर्शकों के चहेते बने हुए हैं। राजीव की ही तरह प्राची देसाई भी हिंदी फिल्मों में अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब हुई हैं। 'कसम से' में बानी की लोकप्रिय भूमिका निभाने के बाद जब वे 'रॉक ऑन' में फरहान अख्तर की नायिका बनीं, तो दर्शकों ने प्राची में अच्छी अभिनेत्री की झलक देखी और निर्माता-निर्देशक भी इस मासूम सी दिखने वाली लड़की में अपनी फिल्म की नायिका की छवि देखने लगे। परिणामस्वरूप प्राची को रोहित शेट्टी और मिलन लुथरिया जैसे दिग्गज निर्देशकों के साथ अभिनय का मौका मिला। ग्रेसी सिंह ने धारावाहिकों से फिल्मों की दुनिया में बड़ी छलांग लगाते हुए पहली ही फ़िल्म 'लगान' में आमिर खान की नायिका बनीं। हालांकि,उसके बाद ग्रेसी का फ़िल्मी करियर रंग नहीं ला पाया।
टीवी स्क्रीन से निकलकर बिग स्क्रीन को रोशन करने वाले कलाकारों में हंसिका मोटवानी भी एक हैं। हालांकि,हंसिका ने हिंदी फिल्मों में नहीं,मगर साउथ की फिल्मों में अपनी स्थायी पहचान बना ली है। वे तमिल-तेलुगु फिल्मों की बड़ी अभिनेत्री बन चुकी हैं। जहाँ हंसिका ने अपने फ़िल्मी करियर के लिए साउथ की राह पकड़ी,वहीँ करण सिंह ग्रोवर,गुरमीत चौधरी,जय भानुशाली और पुलकित सम्राट जैसे युवा कलाकारों ने धारावाहिकों के बाद हिंदी फिल्मों को करियर के लिए चुना। हालांकि...गुरमीत,करण,जय और पुलकित अभी भी संघर्षरत अभिनेताओं में शुमार हैं। उन्होंने अपनी शुरुआती पहचान तो बना ली है,मगर वे स्थायी पहचान बनाने में असफल रहे हैं।
दरअसल,अभिनय के सफ़र में तरक्की पाने के लिए टीवी की दुनिया से फिल्मों की ओर रुख करने वाले कलाकारों के पास अनुभव और हुनर तो होता है,मगर हर बार किस्मत उनका साथ नहीं देती। कई बार तो अच्छे अवसर की कमी उनके लिए मुसीबत का सबब बन जाती है और प्रतिभा के बाद भी उन्हें फिल्मों में स्थायी पहचान नहीं मिल पाती है। हालांकि, अब टीवी और फिल्मों  विभाजक रेखा समाप्त हो चुकी है। छोटे पर्दे पर बड़े पर्दे के सितारों की लगातार मौजूदगी ने इस दूरी को मिटाने का काम किया है। अब दर्शक अपने पसंदीदा कालकारों को हर अवतार में स्वीकार करने को तैयार है। इस स्थिति ने टीवी के कालकारों के लिए एक नयी उम्मीद जगा दी है।
बॉक्स के लिए-
टीवी से जुड़े रहना चाहते हैं शाहरुख़..
' मुझे यह समझ आया है कि टीवी की पहुंच अब लोगों के दिलों तक पहले से कहीं ज्यादा हो गई है। इसलिए टीवी सीरीज में भी अब ऐसी कहानियां देखने को मिल रही हैं जिससे ऑडियंस खुद को जोड़ सके।बेशक मैं फिर से टीवी की दुनिया में आना चाहूंगा क्योंकि कुछ कहानियां केवल दो घंटे के समय में नहीं बताई जा सकती। इसके लिए आपको दस घंटे चाहिए होते हैं।
टीवी से फिल्मों की ओर रुख क्यों करते हैं कलाकार-
फिल्मों में पैसा ज्यादा-तनाज़ ईरानी
टीवी में आपके किरदार को कभी भी इन-आउट किया जा सकता है, लेकिन फिल्मों में आपको एक किरदार को पूरी तरह जीने का मौका मिलता है। इसके अलावा बॉलिवुड में टीवी के मुकाबले पैसा भी ज्यादा मिलता है।
टीवी की दुनिया में अफरातफरी-रोनित रॉय
टीवी की दुनिया में अफरातफरी का माहौल रहता है। हालांकि, फिल्मों में भी लोग ज्यादा रिलैक्स नहीं हैं, लेकिन सीरियल्स के मुकाबले स्थिति वहां फिर भी ठीक है।
टीवी से फिल्मों में जाना तरक्की-मनोज बोहरा
छोटे पर्दे से बड़े पर्दे पर जाना एक बहुत बड़ा कदम है। यह एक एक्टर के रूप में आपकी तरक्की को दर्शाता है। भले ही सीरियल में आप कितने भी पॉपुलर हो जाएं, लेकिन फिल्मों में काम करने से अलग ही पहचान बनती है। फिल्मों में आपके द्वारा निभाए गए किरदारों को लंबे वक्त तक याद रखा जाता है।
▶ Show quoted text